Ignou Study Material : बलिदान कहानी का सारांश व निष्कर्ष : MHD 10 प्रेमचन्द कहानी विविधा | MHD 10 Premchand Story Miscellaneous
कहानी का परिचय (Introduction to the story)
यह हमेशा देखा जाता है, किसी व्यक्ति का मान सम्मान समाज उसकी योग्यता के अनुसार होता है। यह योग्यता किसी भी प्रकार की हो सकती है, संभव है व्यक्ति आर्थिक रूप से मज़बूत हो, किसी प्रकार का विशेष प्रकार का ज्ञान हो, और यह भी हो सकता है कि वह नौकरी में किसी ऐसे पद पर हो जो ताकत दर्शाता हो जैसे – पुलिस, डॉक्टर, नेता आदि।
परिणाम स्वरूप जब किसी कारण से योग्यता घटती है, तो व्यक्ति का सम्मान भी घट जाता है। हम ऐसी ही कहानी की बात कर रहे हैं। बलिदान कहानी का नाम है, यह कहानी प्रेमचंद जी द्वारा लिखी गई है। इस कहानी में जमीदार द्वारा किसान के शोषण का चित्रण है।
बलिदान कहानी का सारांश (Summary of the Balidaan Story)
व्यक्ति के पद (Position) के अनुसार सम्मान होता है। सम्मान कब और कितना देना है, इस आधार पर व्यक्ति का नाम तय कर लिया जाता है। इस कहानी में मँगरू नाम का व्यक्ति कॉन्सटिबिल बन गया तो इसे मंगलसिंह कहकर पुकारा जाने लगा। कल्लू नाम का व्यक्ति गाँव का मुखिया बन गया तो लोग उसे कालिकादीन कह कर पुकारने लगे।
इसी प्रकार हरखचंद्र कुरमी नाम का व्यक्ति अर्थिक रूप से कमज़ोर हो जाने के बाद गाँव वालो के लिए हरखू हो गया। हरखू की बीस साल पहले तक उसके यहाँ शक्कर बनती थी, कई हलों की खेती होती थी। करोबार चारो तरफ फेला हुआ था, लेकिन विदेशी शक्कर के आ जाने से हरखू के यहाँ शक्कर का कारोबार बन्द हो गया। लोगों से मिलना जुलना बन्द हो गया और जान पहचान भी खतम होती चली गई।
अब उसके पास पाँच बीघे जमीन है, उसी पर खेती करके जीवन व्यतीत करता है। कहानी में वह अब सत्तर साल का है, लगभग हर साल बीमार पड़ता है और हर बार बिना दवाई खाए ठीक हो जाता है। इस बार जब बीमार पड़ा तो पाँच महीने तक बीमार रह गया, लेकिन इलाज नहीं करवाया। होली के दिन उसकी मृत्यु हो जाती है, हरखू का बेटा गिरधारी उसका अंतिम संस्कार और क्रिया बिना धन की कमी किए करता है।
इसी दौरान गाँव वालो की नज़र उसके खेतों पर पड़ गई। हरखू का खेत उपजाऊ है, साथ ही कुएँ के पास है। साल में तीन फसलें उसके खेतों में होती है। ओंकारनाथ से गाँव के कई लोग उसके खेतो का अधिकार खरीद लेना चाहते हैं, लेकिन वह पहले गिरधारी को इसका अधिकार देना चाहता है परिणाम स्वरूप अपने ही खेतों में खेती करने के लिए लगान के रूपए और सौ रूपए नज़राना गिरधारी से ओंकारनाथ माँगता है। गिरधारी कहता है, बहुत जोड़ तोड़ के वह सिर्फ पचास रूपए का ही इंतज़ाम कर सकता है।
गिरधारी द्वारा रूपए का इंतज़ाम न कर पाने के कारण ओंकारनाथ उसके खेतो का लगान और नज़राना लेकर कालिकादीन को गिरधारी का खेत दे देता है। उस दिन घर में चूल्हा नहीं जला, सुभागी अन्याय के खिलाफ बोलने वाली महिला थी, इसलिए कालिकादीन की पत्नी के घर जाकर उसकी पत्नी को भला-बुरा सुनाया। लेकिन उसे पता था, इसका कोई फायदा नहीं होगा। गिरधारी ने उस दिन खाना नहीं खाया। अगले दिन अपने बैलों को सहला रहा था। मंगलसिंह ने मौके का फायदा उठा कर अस्सी रूपए के बैल साठ रूपए में गिरधारी सिंह से खरीद लिए। इसी समय तुलसी (बनिया) आकर गिरधारी को दिए कर्ज़ को माँगने लगा। बैलों को देते समय गिरधारी उनसे लिपट लिपट कर बहुत रो रहा था।
अगली सुबह गिरधारी घर में नहीं था, सुभागी सारे गाँव में खोजती रही लेकिन वह कहीं नहीं मिला। रात को बैलो की नाद के पास उसने गिरधारी को देखा और जैसे ही उसके पास जाने लगी गिरधारी पीछे हटते हटते गायब हो गया। अगली सुबह जब कालिकादीन हल लेकर खेत में गया तो गिरधारी वहाँ बैठा था, कालिकादीन उससे बातें कर ही रहा था कि पीछे हटते हटते गिरधारी कुएँ में कूद गया। कालिकादीन ने शोर मचाया लोगों को बताया। उस दिन के बाद कालिकादीन की गिरधारी के खेतों में जाने की हिम्मत नहीं हुई। उसने गिरधारी के खेतों के अधिकारों से इस्तीफा दे दिया। ओंकारनाथ ने बहुत कोशिक की उसके खेत कोई ले ले लेकिन पूरे गाँव में कोई भी उसके खेतों में जाने से डरता था।
गिरधारी किसी को परेशान नहीं करता था, वह सिर्फ अपने खेतों कि सुरक्षा करता था। कभी-कभी वहाँ से उसके रोने की अवाज़े आती थीं और वह शाम को वहाँ बैठता था। अर्थात गाँव वालों को लगता था, गिरधारी का भूत अपने खेतों की रक्षा कर रहा है, इसलिए कोई वहाँ जाता ही नहीं था। सभी उसके खेतों में खेती करने से डरते थे।
छ: महीने बीत चुके हैं, गिरधारी का बेटा ईंटो की भट्टी पर काम करता है, महीने में बीस रूपए कमा लेता है। उसके घर में खाने-पीने की कमी नहीं है, लेकिन गाँव में सुभागी का अब पहले जैसा सम्मान नहीं है। वह अब सबसे बचती फिरती थी।
निष्कर्ष (Conclusion)
अंग्रेजी शासन काल में अपने ही खेतों को अपने खेत बनाए रखने के लिए टैक्स के नाम पर किसानों को लगान देना पड़ता था। यह लगान इतना ज़्यादा होता था कि कभी-कभी किसान के अपने खाने के लिए भी अनाज नहीं बचता था। लगान न देने पर लगान वसूल करने की ज़िम्मेदारी जिस जमीदार को दी जाती थी, वह किसान के खेतों का अधिग्रहण कर लेता था। जैसा की इस कहानी में दिखाया गया है।
गिरधारी के खेत हाथिया कर ओंकारनाथ को कोई फायदा नहीं हुआ। अगर वह खेत गिरधारी के पास होते तो देर सबेर कम ज़्यादा लगान और नज़राना उसे मिल ही जाता, लेकिन गिरधारी की मृत्यु के बाद अब उसके खेतों को कोई लेने को तैयार नहीं होता।
व्यक्ति का समाज में मान-सम्मान उसकी योग्यता या ताकत से होता है।
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