Net JRF Hindi : हिन्दी कविता यूनिट 5 | मुक्तिबोध की कविताएँ
मुक्तिबोध (Muktibodh)
मुक्तिबोध का जन्म 1917 में हुआ मृत्य 1964 में हुई। भयानक खबरों का कवि कहा जाता है।
मुक्तिबोध का रचना संग्रह-
चाँद का मुंह टेढ़ा है, जो 1964 में प्रकाशित हुआ था। श्रीकांत वर्मा ने इसे संकलित किया था, क्योंकि तब तक मुक्तिबोध की मृत्यु हो चुकी थी। इसमें 28 कविताएँ संकलित है। जिसमें से “ब्रम्हराक्षस”, “अंधेरे में”, “लकड़ी का रावण” महत्वपूर्ण है।
अन्य काव्य संग्रह “भूरी भूरि खाक धूल” 1980 में प्रकाशित हुआ था।
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मुक्तिबोध स्वयं फैटेसी पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वह स्वप्न के भीतर एक स्वप्न, विचारधारा के भीतर और एक प्रच्छन्न विचारधारा, कथ्य के भीतर एक और कथ्य, मस्तिष्क के भीतर एक और मस्तिष्क, कक्ष के भीतर का और गुप्त कक्ष है।
ब्रम्हराक्षस कविता में – ब्रहमराक्षस मध्य वर्ग की बौद्धिक चेतना का प्रतीक है।
व्यक्ति और समाज जब टकराते हैं, तो व्यक्ति अकेला पड़ जाता है और उसे समाज की बाते माननी पड़ती है, परिणाम स्वरूप वह (कविता) स्वप्न के माध्यम से उसे पूरा करता है।
व्यक्ति ‘प्राप्त ज्ञान को व्यावहारिक नहीं बना पाता, उसे क्रिया (एक्शन) में परिणत नहीं कर पाता परिणामत: भटकता रहता है कि और फ्रस्टेशन (कण्ठा, निराशा) का शिकार हो जाता है।
‘अँधेरे में’ का पहला प्रकाशन ‘कल्पना’ में 1964 में आशंका के द्वीप अँधेरे में नाम से हुआ।
रामस्वरूप चतुर्वेदी ने लिखा है – मुक्तिबोध का काव्य संकलन चाँद का मुँह टेढ़ा है। एक बड़े कलाकार की ‘स्कैच बुक’ लगता है। “अँधेरे में” लगभग 45 पेज की एक लम्बी कविता है।
शमशेर ने इस संग्रह को “एक दहकता इस्पाती दस्तावेज” कहा है।
रामविलास शर्मा – “अपराध भावना का अनुसन्धान” कहा है।
नामवर सिंह – “आस्मिता की खोज” कहा है।
प्रभाकर माचवे – लावा कहा है।
(भूल गलती कविता में भूल गलती को सुल्तान के रूप में पेश किया गया है)
मुक्तिबोध ने फैंटेसी को ‘अनुभव की कन्या’ कहा है
चाँद का मुँह टेढ़ा है मरणोपरांत प्रकाशित रचना, इसका संकलन 1964 में श्रीकांत वर्मा ने किया था।
1) कविता – भूल गलती (Net JRF)
भूल गलती कविता के रचनाकार मुक्तिबोध हैं।
यह रचना “चाँद का मुँह टेढ़ा है” (1964) में संकलित है।
कविता का विषय – भ्रष्टाचार रूपी राजा को ‘भूल गलती’ कहा है। वह लोगों की कमजोरियों से ही शक्ति प्राप्त करता है। वह निरंकुश है और उसके समक्ष ईमान जंजीर में जकड़ा है।
दूसरा पक्ष – भूल गलती मध्यवर्गीय व्यक्ति है, जो अपने स्वार्थ हेतु अपने अंदर के ईमान को नष्ट कर रहा। वह भूल गलती अर्थात भ्रष्टाचार रूपी राजा दिन प्रतिदिन और ताकतवर होता जा रहा है।
2) कविता – ब्रम्हराक्षस (Net JRF)
ब्रम्हराक्षस कविता 1957 में लिखी गई है। यह “चाँद का मुँह टेढ़ा है” (1964) में संकलित है।
विषय – एक रूपककथा काव्य जिसमें ब्रम्हराक्षस मध्यवर्गीय बौद्धिक वर्ग का प्रतीक है।
यह दिखाया गया है कि बौद्धिक वर्ग का व्यक्ति अपनी वास्तविक ज्ञान को व्यवहारिक परिस्थिति में सामंजस्य नहीं बैठा पाता और जीवन भर उलझनों में रहता है।
3 कविता – अंधेरे में (Net JRF)
अंधेरे में कविता “चाँद का मुँह टेढ़ा है” (1964) में संकलित है। यह 45 पृष्ठों की एक लम्बी कविता है।
इसमें फैंटेसी का प्रयोग किया गया है।
कविता का विषय – अंधेरा समाजिक अव्यवस्था एवं कवि के मानस का भी प्रतीक है। इसमें दो रक्तालोक पुरूष हैं-
1 अंधेरे कमरे के अंदर वाला पुरुष – (सामाजिकता का प्रतीक)
2 कमरे का सांकल बजाने वाला रक्तालोक पुरूष – (कविता का प्रतीक)
समाज और कविता दोनों जब तक नहीं मिलेंगे तब तक सुन्दर समाज का निर्माण नहीं हो पाएगा। यह कविता आठ खण्डों में विभाजित हैं, इसमें तीन घटनाएँ हैं।
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