Study Material : Delhi, NCERT Class-9
कबीर का परिचय (Introduction to Kabir)
कबीर के जन्म और मृत्यु के बारे में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि सन् 1398 में काशी में उनका जन्म हुआ और सन् 1518 के आसपास मगहर में देहांत। कबीर ने विधिवत शिक्षा नहीं पाई थी परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था।
भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा के प्रमुख कवि कबीर की रचनाएँ मुख्यत: कबीर ग्रंथावली में संगृहीत हैं, किंतु कबीर पंथ में उनकी रचनाओं का संग्रह बीजक ही प्रामाणिक माना जाता है। कुछ रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहब में भी संकलित हैं।
कबीर अत्यंत उदार, निर्भय तथा सद्गृहस्थ संत थे। राम और रहीम की एकता में विश्वास रखने वाले कबीर ने ईश्वर के नाम पर चलने वाले हर तरह के पाखंड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया। उन्होंने अपने काव्य में धार्मिक और सामाजिक भेदभाव से मुक्त मनुष्य की कल्पना की। ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, गुरुभक्ति, सत्संग और साधु-महिमा के साथ आत्मबोध और जगतबोध की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। कबीर की भाषा की सहजता ही उनकी काव्यात्मकता की शक्ति है। जनभाषा के निकट होने के कारण उनकी काव्यभाषा में दार्शनिक चिंतन को सरल ढंग से व्यक्त करने की ताकत है।
साखियाँ एवं सबद (पद) का परिचय Introduction to Saakhiyaan Evan Sabad (pad)
यहाँ संकलित साखियों में प्रेम का महत्व, संत के लक्षण, ज्ञान की महिमा, बाह्याडंबरों का विरोध आदि भावों का उल्लेख हुआ है। पहले सबद (पद) में बाह्याडंबरों का विरोध एवं अपने भीतर ही ईश्वर की व्याप्ति का संकेत है तो दूसरे सबद में ज्ञान की आँधी के रूपक के सहारे ज्ञान के महत्व का वर्णन है। कबीर कहते हैं कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्त होता है।
साखियाँ (Sakhiyan)
मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं।1।
प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।21
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।3।
पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होड़ के हरि भजै, सोई संत सुजान।4।
हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकट न जाइ। 5।
काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम। 6।
ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊंच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ।7।
सबद (पद) (Sabad)
1
मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।
कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में॥
2
संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी॥
हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा॥
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी॥
आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ॥
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