Study Material NCERT : श्यामाचरण दुबे का निबन्ध उपभोक्तावाद की संस्कृति का सारांश व समीक्षा | Essay of Shyamacharan Dubey Upabhoktaavaad kee Sanskrti

Study Material NCERT : श्यामाचरण दुबे का निबन्ध उपभोक्तावाद की संस्कृति | Essay of Shyamacharan Dubey Upabhoktaavaad kee Sanskrti

Table of Contents

उपभोक्तावाद की संस्कृति निबन्ध का परिचय (Introduction to the Upabhoktaavaad kee Sanskrti Essay)

उपभोक्तावाद की संस्कृति निबंध बाजार की गिरफ्त में आ रहे समाज की वास्तविकता को प्रस्तुत करता है। लेखक का मानना है कि हम विज्ञापन की चमक-दमक के कारण वस्तुओं के पीछे भाग रहे हैं, हमारी निगाह गुणवत्ता पर नहीं है। संपन्न और अभिजन वर्ग द्वारा प्रदर्शनपूर्ण जीवन शैली अपनाई जा रही है, जिसे सामान्य जन भी ललचाई निगाहों से देखते हैं। यह सभ्यता के विकास की चिंताजनक बात है, जिसे उपभोक्तावाद ने परोसा है। लेखक की यह बात महत्वपूर्ण है कि जैसे-जैसे यह दिखावे की संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति और विषमता भी बढ़ेगी।

निबन्ध उपभोक्तावाद की संस्कृति का सारांश (Summary of the Essay The Culture of Consumerism)

यह निबन्ध उपभोक्तावाद की संस्कृति और उसके समाज पर पड़ने वाले गहरे प्रभावों को समझाने वाला है। इसमें बताया गया है कि किस तरह हमारा जीवन, सोच और मूल्य उपभोक्ता मानसिकता से बदल रहे हैं। सरल भाषा में इसका विस्तृत सारांश इस प्रकार है—

उपभोक्तावाद का अर्थ और स्थिति (Meaning and status of consumerism)

आज की दुनिया में उपभोक्तावाद यानी ज्यादा से ज्यादा वस्तुएँ खरीदना और उपभोग करना एक नया जीवन-धर्म बन गया है। सुख की परिभाषा अब वस्तुओं और दिखावे से जुड़ गई है। पहले वस्तुएँ हमारी ज़रूरतें पूरी करती थीं, लेकिन अब वे प्रतिष्ठा और शान-शौकत दिखाने का साधन बन चुकी हैं।

बाज़ार में टूथपेस्ट से लेकर साबुन, कपड़े, सौंदर्य सामग्री, मोबाइल, गाड़ियाँ और फैशन की चीज़ें—हर जगह प्रतिस्पर्धा है। हर उत्पाद अपने आप को “सबसे अच्छा” बताने की कोशिश में है। अब खरीदार सिर्फ ज़रूरत के लिए ही चीज़ें नहीं खरीदते, बल्कि दिखावे और आधुनिक दिखने के लिए भी खर्च करते हैं।

सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव (Social and cultural changes)

इस उपभोक्ता संस्कृति ने हमारे समाज की सोच को गहराई से बदल दिया है।
भारतीय परंपराओं और मूल्यों का महत्व घटने लगा है।
पश्चिम की जीवनशैली का अंधानुकरण बढ़ रहा है।
विज्ञापन और मीडिया ने हमारी पसंद-नापसंद तय करनी शुरू कर दी है।

लोग अब अपनी पहचान इस आधार पर बनाते हैं कि उनके पास कौन-सी महँगी वस्तुएँ हैं या वे किस बड़े होटल, स्कूल या अस्पताल से जुड़े हैं। यहाँ तक कि शादी और इलाज जैसी ज़रूरी चीज़ें भी “पाँच सितारा” नाम से जुड़ गई हैं।

उपभोक्तावाद के नकारात्मक प्रभाव (Negative Effects of Consumerism)

समाज में असमानता और वर्गांतर बढ़ रहा है।
सीमित संसाधनों का अपव्यय हो रहा है।
नैतिकता, आचार-व्यवहार और सामाजिक सरोकार कमज़ोर होते जा रहे हैं।

स्वार्थ और व्यक्तिगत भोग की भावना परमार्थ और सामूहिक ज़िम्मेदारी से अधिक महत्व पाने लगी है।
जीवन की गुणवत्ता वस्तुओं से जोड़ी जाने लगी है, जबकि असली संतोष और खुशी पीछे छूट रही है।

निबंध का मुख्य संदेश (Main message of the essay)

महात्मा गांधी ने कहा था कि हमें अच्छे प्रभावों को अपने जीवन में जगह देनी चाहिए, लेकिन अपनी जड़ों और नींव से नहीं हटना चाहिए। उपभोक्तावादी संस्कृति हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक नींव को हिला रही है। यह संस्कृति न केवल मनुष्य को भोगवादी बना रही है, बल्कि उसे भ्रम और प्रतिस्पर्धा के जाल में फँसा रही है।
भविष्य में यह प्रवृत्ति समाज के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। इसलिए जरूरत है कि हम अपनी असली संस्कृति, नैतिकता और मूल्यों को संभालकर रखें, ताकि विकास का मार्ग सही दिशा में रहे।

उपभोक्तावाद की संस्कृति समीक्षा (consumerism culture review)

यह निबंध उपभोक्तावाद की संस्कृति और उसके प्रभावों का प्रभावशाली विश्लेषण प्रस्तुत करता है। सरल और स्पष्ट भाषा में लिखा गया यह निबंध दर्शाता है कि आधुनिक समाज में वस्तुओं के भोग और दिखावे को ही सुख और प्रतिष्ठा का मापदंड माना जाने लगा है। दैनिक जीवन की छोटी-छोटी वस्तुओं से लेकर महंगे फैशन, पाँच सितारा सेवाओं तक उपभोक्तावाद का प्रभाव हर जगह महसूस होता है।

निबंध ने सही ढंग से यह उजागर किया है कि इससे हमारी सांस्कृतिक अस्मिता कमज़ोर हो रही है और हम पश्चिमी जीवनशैली का अंधानुकरण कर रहे हैं। विज्ञापन और बाज़ार की चमक-दमक ने हमारी मानसिकता में बदलाव लाया है, जिससे सामाजिक असमानता, संसाधनों का बर्बाद होना, और नैतिक मूल्यों का क्षय हो रहा है।
शैली में यह निबंध पठनीय और सुव्यवस्थित है, जो विषय की गंभीरता को सहजता से प्रस्तुत करता है।

गांधीजी के संदर्भ में संतुलित सोच प्रस्तुत करना इसका एक प्रमुख सकारात्मक पहलू है। हालांकि, निबंध में उपभोक्तावाद को सीमित करने या सांस्कृतिक संरक्षण के उपायों पर अधिक प्रकाश डाला जा सकता था। कुछ भाग लंबाई में थोड़े संक्षिप्त हो सकते थे। मूल रूप में, यह निबंध उपभोक्तावाद के प्रभावों पर जागरूक करता है और संस्कृतिक मूल्य बनाए रखने की आवश्यकता पर विचार करने को प्रेरित करता है, जो इसे सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है।

सरल भाषा में लिखा गया यह निबंध बताता है कि किस प्रकार आधुनिक जीवनशैली में वस्तुओं के भोग को ही सुख और प्रतिष्ठा का मापदंड माना जाने लगा है। दैनिक जीवन में टूथपेस्ट से लेकर महंगे फैशन, पाँच सितारा होटल और स्कूल तक उपभोक्तावाद व्याप्त है, जिससे पारंपरिक मूल्यों और सांस्कृतिक अस्मिता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।

निबंध ने पश्चिमी जीवनशैली के अनुकरण, विज्ञापन के प्रभाव, सामाजिक असमानता, संसाधनों की बर्बादी और नैतिक क्षरण को प्रभावी ढंग से उजागर किया है। गांधीजी के विचारों के माध्यम से संतुलित दृष्टिकोण देना इसकी खासियत है।

हालांकि, इसमें उपभोक्तावाद को सीमित करने के उपायों या जागरूकता बढ़ाने की बातों पर अधिक ध्यान दिया जा सकता था। कुछ भागों को संक्षिप्त कर मुख्य संदेश को और प्रभावी बनाया जा सकता था।

परिणाम स्वरूप, यह निबंध वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उपभोक्तावाद के गंभीर परिणामों पर जागरूक करता है और सांस्कृतिक संरक्षण की आवश्यकता पर ज़ोर देता है, जो इसे समाज के लिए महत्वपूर्ण बनाता है।

श्यामाचरण दुबे का जीवन परिचय (Biography of Shyamacharan Dubey)

श्यामाचरण दुबे का जन्म सन् 1922 में मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में हुआ। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में पीएच.डी. की। वे भारत के अग्रणी समाज वैज्ञानिक रहे हैं। उनका देहांत सन् 1996 में हुआ।

मानव और संस्कृति, परंपरा और इतिहास बोध, संस्कृति तथा शिक्षा, समाज और भविष्य, भारतीय ग्राम, संक्रमण की पीड़ा, विकास का समाजशास्त्र, समय और संस्कृति हिंदी में उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। प्रो. दुबे ने विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन किया तथा अनेक संस्थानों में प्रमुख पदों पर रहे। जीवन, समाज और संस्कृति के ज्वलंत विषयों पर उनके विश्लेषण एवं स्थापनाएँ उल्लेखनीय हैं। भारत की जनजातियों और ग्रामीण समुदायों पर केंद्रित उनके लेखों ने बृहत समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। वे जटिल विचारों को तार्किक विश्लेषण के साथ सहज भाषा में प्रस्तुत करते हैं।


UGC NET JRF Hindi का सम्पूर्ण पाठ्यक्रम

UGC NET JRF Hindi : पूछे जाने वाले संवाद और तथ्य
Net JRF इकाई 5 हिन्दी कविता
Net JRF इकाई-6 हिन्दी उपन्यास
Net JRF इकाई-7 हिन्दी कहानी
Net JRF इकाई-8 हिन्दी नाटक
Net JRF ईकाई 9 – हिन्दी निबन्ध
Net JRF इकाई 10 अन्य गद्य विधाएँ

Leave a Comment