Study Material : दुनिया का सबसे अनमोल रतन का सरल सारांश | A Simple Summary of the Duniya Ka Sabase Anamol Ratan

Study Material : Net JRF Hindi Unit 7 दुनिया का सबसे अनमोल रतन कहानी का सरल सारांश

कहानी का परिचय (Introduction to the Story)

अगर आपसे पूछा जाए कि आपकी अपनी सबसे किमती चीज़ क्या है, तो आप क्या उत्तर देंगे? यह कहानी इसी पृष्ठभूमी पर आधारित है। कहानी में नायक नायिक से अपने प्रेम का इज़हार करता है, नायक नायिका के लायक है, या नहीं यह जानने के लिए नायिका नायक से दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ लाने को कहती है। उसका कहना है कि अगर वह दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ लेकर आ जाए तो वह नायक का प्रेम स्वीकार कर लेगी।

यह कहानी प्रेमचंद जी ने लिखी है। इस कहानी का प्रकाशन 1907 ईसवी में सोजे वतन संग्रह में हुआ था। कहानी के मुख्य पात्र दिलफ़िगार (घायल हृदय का प्रतीक), दिल फरेब, बुज़ुर्ग, काला चोर, घायल सिपाही, सती होने वाली स्त्री हैं।

यह कहानी प्रेमचंद जी ने देश प्रेम में लिखी थी। प्रेमचंद कहानी के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि देश के सिपाही से ज़्यादा बड़ी कुर्बानी कोई नहीं दे सकता है।

दुनिया का सबसे अनमोल रतन का सरल सारांश (A Simple Summary of the Duniya Ka Sabase Anamol Ratan)

कहानी की शुरूआत में दिलफ़िगार एक कँटीले पेड़ के नीचे बैठकर रो रहा होता है, क्योंकि वह दिलफ़रेब से अपने प्रेम का इज़हार करता है। वह उसके प्रेम को स्वीकार करने के स्थान पर कहती है – अगर तू मेरा सच्चा प्रेमी है, तो जा और दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ लेकर मेरे दरबार में आ। तब मैं तुझे अपनी गुलामी में क़बूल करूँगी। यदि वह ऐसा न कर पाया तो दिलफ़रेब उसे फाँसी दे देगी।

दिलफ़रेब के फैसला सुनाने के बाद उसके गुलामों ने दिलफ़िगार को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। तीन देन से वह पेड़ के नीचे बैठकर यह सोच रहा है कि मैं क्या करूँ?

वह चक्कर खा कर गिर जाता है, सोचता है काश उसका भी कोई मददगार मिल जाता। कोई उसे उस चीज़ का नाम बता देता। लेखक ने लिखा है वह नंगे बदन, थकन से चूर कई सालों तक घूमता फिरता रहता है। पैर काँटो से घायल हो गए हैं, शरीर में हड्डियाँ ही हड्डियाँ दिखने लगी हैं। अभी तक उसे वह बेशक़ीमती चीज नहीं मिली है।

एक दिन एक जगह बहुत भीड लगी हुई थी, दिलफ़िगार कमज़ोरी और यहाँ के हालात की वजह से रूक गया। वह देखता है एक कैदी की हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ आदि सब उतारी गई हैं। इस कैदी को लोग काला चोर कहते हैं, उसे फाँसी के तख़्ते पर चढ़ा दिया, तभी वह ज़ोर से चिल्लाने लगा मुझे आख़िरी आरज़ू पूरी करने के लिए उतार दो।

उसे फाँसी के तख़्ते से उतार दिया गया, यहाँ भीड़ में एक बच्चा दुनिया के सुख-दुख से अंजान, पाप की धूल से अछूता खेल रहा था। काला चोर उस लड़के के पास आया उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगा। उसे अपना बचपन याद आ गया, उसकी आँखों से आँसू का एक क़तरा गिर पड़ा, दिलफ़िगार ने लपककर उसे अपने हाथ में ले लिया- उसने सोचा यह दुनिया की अनमोल चीज़ है।

वह दिलफ़रेब के पास जाता है, वह आँसू की बूँद दिलफरेब को दे देता है, दिलफरेब कुछ देर सोचने के बाद वह दिलफिगार की से कहती है, बेशक यह बेशकीमती चीज है, मैं तेरी हिम्मत की दाद देती हूँ। मगर यह दुनिया की सबसे बेशक़ीमती चीज नहीं है। इसलिए जा और फिर से कोशिश कर।

दिलफ़िगार ने अब तक दिलफरेब का चेहरा नहीं देखा था, परिणाम स्वरूप वह उससे उसका चेहरा दिखाने के लिए कहता है, दिलफरेब उसकी बाते सुनकर गुस्सा हो गई हुक्म देकर उसे दरबार से बाहर निकलवा दिया।

कुछ देर तक दिलफिगार दिलफरेब की के ऐसा करने से रोता रहा फिर वह अनमोल चीज की तलाश में निकल गया।

एक रोज़ शाम के समय नदी के किनारे दिलफिगार देखता है की चन्दन की एक चिता बनी हुई है, उस पर एक युवती सुहाग के जोड़े पहने सती होने के लिए बैठी थी। परिणाम स्वरूप चिता में आग लगाई गई और देखते ही देखते पति-पत्नी राख में बदल गए।

इस राख के ढेर को इक्टठा करके दिलफिगार दिलफरेब के पास लेकर जाता है। दिलफरेब ने उस बेशकीमती चीज को लेने के लिए जब अपना हाथ आगे बढ़ाया तो दिलफ़िगार ने उसकी कलाई चूम ली।

इस बार भी दिलफरेब ने इसे बेशकीमती चीज़ मानकर दिलफिगार की तारीफ की और इस बार दुआ करती है की खुदा उसे कामयाब कर दे। इस बार वह पर्दे से बाहर आकर दिलफ़िगार को अपना चेहरा दिखा देती है, कुछ ही पलों में ओझल हो जाती है। फिर से उसका हाथ पकड़कर दरबार से बाहर निकाल दिया।

इस बार दिलफिगार हिम्मत हार जाता है और जान देने के लिए पहाड़ पर चढ़ जाता है, कूदने ही वाला था कि अचानक हरे-हरे कपड़े पहनकर एक बुजुर्ग उसके पास आता है। कहता है, मजबूत इरादा मुहब्बत की पहली मंजिल है, मर्द बन और हिम्मत न हार। पूरब की तरफ़ एक देश है, जिसका नाम हिन्दोस्तान है, वहाँ जा और तेरी आरजू पूरी होगी।

यह कहकर बुजुर्ग गायब हो गया, दिलफ़िगार ने शुक्रिए की नमाज़ अदा की और खुशी-खुशी पहाड़ से उतरा हिन्दोस्तान आ गया।

हिन्दोस्तान आ कर वह लड़ाई कै मैदान में पहुँच जाता है, जहाँ सिपाहियों की लाशें पड़ी हैं। इतने में उसे एक घायल सिपाही मिलता है, जो खुद को माँ का बेटा और भारत का सपूत कहता है।

वह दिलफ़िगार को दुश्मन समझता है, परिणाम स्वरूप दिलफ़िगार उसे बताता है कि वह मैं अपने वतन से निकला हुआ एक गरीब मुसाफ़िर हूँ।

यह सुनकर घायल सिपाही उसे अपने पहलू में बैठा लेता है, और कहता है मेरे पास यही दो अंगुल जमीन है, जो मेरे पास बाक़ी रह गई है और जो सिवाय मौत के कोई नहीं छीन सकता है।

वह अपने मेहमान का स्वागत नहीं कर सकता, इसका अफ़सोस करता है। सिपाही अपने ही देश की गुलामी के लिए जिन्दा नहीं रहना चाहता है। वह ऐसी ज़िन्दगी से मर जाना अच्छा समझता है। उसके शरीर से खून बह रहा होता, लगातार खून बहने से उसकी मृत्यू हो जाती है। मरते-मरते उसने भारत माता की जय कहा और उसके सीने से खून का आख़िरी क़तरा निकल पड़ा। दिलफ़िगार समझ गया, बेशक इस दुनिया में इस कतरे से ज़्यादा कोई अनमोल चीज़ नहीं हो सकती है।

वह खून का आखिरी कतरा लेकर दिलफ़रेब के पास पहुँचता है। दिलफरेब कहता है, इस बार तू बहुत दिनों के बाद वापस आया है। दिलफ़िगार ने सिपाही के खून का आखिरी कतरा उसे दे दिया, और उसकी सारी कथा सुनाने लगा।

दिलफरेब ने इस बार इसे अनमोल चीज़ मान ली और दिलफ़िगार से लिपट गई। वह कहती है कि मेरी दुआएँ बर आईं और ख़ुदा ने मेरी सुन ली, और तुझे कामयाब व सुर्ख-रू किया। आज से तू मेरा मालिक है और मैं तोरी लौडी।

इसके बाद दिलफ़रेब ने एक रत्नजटित मंजूषा मँगाई और उसमें से एक तख़्ती निकाली जिस पर सुनहरे अक्षरों में लिखा होता है-

“खून का वह आख़िरी क़तरा जो वतन की हिफ़ाज़त में गिरे दुनिया की अनमोल चीज़ है”। यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।


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