Study Material : कानों में कंगना कहानी का सरल सारांश व समीक्षा | Simple Summary and Review of the Story Kanon men kangna
कहानी का मूल भाव (The core of the story)
कुछ सालों के पहले की बात करें तो समाज में अधिकतर नियोजित विवाह अर्थात अरेंज मैरिज होती थीं लेकिन वर्तमान में प्रेम विवाह का चलन अधिक है, आज के समय में शहर से लेकर गाँव तक लोग प्रेम विवाह करना चाहते हैं, यहाँ तक कि अगर स्थिति ऐसी है तो माता-पिता खुद उसे अपनी सहमति देते हुए अरेंज मैरिज में बदल देते हैं।
साथ ही साथ आपने लोगों को यह भी कहते सुना होगा कि नियोजित विवाह से ज्यादा प्रेम विवाह में तलाक देखने को मिलते हैं। इसकी क्या वजह है यह कोई स्पष्ट रूप से नहीं बता पाता।
इसी तरह समाज में कुछ शादियाँ ऐसी भी हैं, जिसमें लोगो ने आपस में प्रेम विवाह किया और शादी के कुछ सालों बाद ही उनमें से किसी एक का किसी अन्य से साथ संबन्ध हो जाता है, या फिर वह किसी और को प्रेम करने लग जाते हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि जब उन्होंने अपना प्रेम विवाह किया है तो शादी के बाद कोई और उन्हें कैसे पसंद आ सकता है? आज की कहानी इसी विषय पर आधारित है।
कहानी का विषय (Story Plot)
कानों में कंगना कहानी एक मार्मिक कहानी है।
इसमें स्त्री पीड़ादायक स्थिति का चित्रण हैं।
इस कहानी में पेम और वासना की अभिव्यक्ति है।
पाकृतिक सौन्दर्य का वर्णन और उसके क्षरण की चिंता दिखाई देती है।
कहानी में दुष्यंत और शंकुतला का वर्णन किया गया है।
यह कहानी 3 खण्ड में विभक्त है-
नरेन्द्र द्वारा किरन को कंगन पहनाने की कथा।
योगेश्वर द्वारा किरन को नरेन्द्र को सौपना
नरेन्द्र के गृहस्थ जीवन का पतन होना।
कहानी में काव्यमयी भाषा का प्रयोग है। अनुप्रास अलंकार का प्रयोग ज्यादा किया गया है। साथ ही मुहावरो का भी प्रयोग किया गया है। यह कहानी “मैं” शैली में लिखी गई है।
कानों में कंगना कहानी का सरल सारांश (Simple Summary of the Story Kanon men kangna)
इस कहानी का नायक नरेन्द्र है, और नायिका किरन है। कहानी की शुरूआत होती है, नरेन्द्र पुछता है “किरन तुम्हारे कानो में क्या है” नरेन्द्र किरन के पिता को गुरूदक्षिणा के रूप में दो कंगन देने के लिए लाता है, उसी कंगन को किरन लेकर अपने कानो में पहन लेती है।
किरन के रूप सोन्दर्य का वर्णन करते हुए लेखक ने उसे भोली और चंचल दोनों कहा है। लेखक किरन के रूप सौन्दर्य का वर्णन करते है, प्रकृति के उपमानो का इस्तेमाल करता है।
नरेन्द्र ने किरन के कानों से कंगन उतार लिया और उसे किरन के हाथो में पहनाने लगा, वह किरन से कहता है- “आज की यह घटना मुझे मरते तक न भूलेगी यह भीतर तक पैठ गई”।
ऋषिकेश के पास एक सुन्दर वन है जहाँ योगीश्वर अपनी कुटी बनाकर रहते हैं। योगीश्वर नरेन्द्र के पिता के मित्र हैं, नरेन्द्र के पिता ने योगीश्वर से धर्म के सब ग्रन्थ पढ़ने के लिए कहा था। नरेन्द्र ने गुरू दक्षिणा के रूप में जो कुछ योगीश्वर को दिया था उन्होंने वह सब लौटा दिए उनमें से सिर्फ दो कंगन किरन उठा कर ले जाती है और उसे कानों में पहन लेती है।
नरेन्द्र कहता है, जिस दिन उसने धर्मग्रन्थ से मुँह मोड़ा, उसी दिन कामदेव ने वहाँ जाकर उनकी किताब का पहला सफ (पन्ना) उलटा। अर्थात जिस जिन नरेन्द्र के ग्रन्थ पढ़ने का कार्य समाप्त हुआ उसी दिन उसे किरन के प्रति प्रेम का एहसास होता है।
नरेन्द्र या किरन के बताएँ बिना ही योगीश्वर सब समझ जाते हैं, और दूसरे दिन किरन का हाथ नरेन्द्र को सौप देते हैं कहतै हैं “अब मैं चला, किरन तुम्हारे हवाले है”।
शादी के बाद नरेन्द्र और किरन मुरादाबाद में रहने लगे वहाँ दो साल बीत गए। एक दिन नरेन्द्र मोहन के यहाँ नाच देखने गया, वहाँ किन्नरी नाम की महिला नाचने वाली थी। जिसके विषय में लेखन ने कहा है “नवीन यौवन, कोकिल-कण्ठा, चतुर चंचल चेष्टा तथा मायावी चमक-अब चित्त को चलाने के लिए और क्या चाहिए”।
नरेन्द्र किन्नरी को देख कर उस पर मोहित हो गया। किन्नरी नाचने वाली नहीं नचानेवाली थी, उसने नरेन्द्र को अपने इशारों पर नचाना शुरू कर दिया। नरेन्द्र किरन को भूल गया और किन्नरी के झूठे प्रेम में पड़ गया।
पाँच महीने हो गए लेकिन नरेन्द्र के ऊपर किन्नरी का चढा नशा नहीं उतरा। नरेन्द्र ने – बनारसी साड़ी, पारसी जैकेट, मोती का हार, कटकी कर्णफूल सब कुछ किन्नरी को दे दिया। किरन के पास कोई गहना नहीं बचता है, लेखक ने कहा है दिनभर बहनो की माला किरन के गले में और मोती की माला शाम को किन्नरी के गले में नरेन्द्र डाल देता है।
अर्थात किन्नरी से बहाने बनाता रहता है और घर की सारी सम्पत्ति किन्नरी के ऊपर नरेन्द्र लुटाता रहता है। एक दिन सारी बाते किरन को पता चल गई और किरन पछाड खाकर गिर गई। उसके आँखो से एक भी आँसू नहीं निकला और न ही नरेन्द्र को उस पर दया आई या खुद की गलतियों पर न ही पछतावा हुआ।
एक रात बहुत बारिश हो रही थी और नरेन्द्र को किन्नरी ने निराश करके अपने पास से लौटा दिया था। वह सोचता है उसके हाथों में अगर एक अँगूठी भी होती तो वह किन्नरी को दे देता और उसके साथ समय गुज़ारता।
घर पहुँचते ही वह जूही को बुलाता है, कहता है किरन के पास जो कुछ भी बचा हो वह फौरन माँग लाओ। जब किरन ने ऊपर से कोई उत्तर नहीं दिया तो नरेन्द्र जाकर खुद ही सारा कमरा छान लेता है सन्दूक तोड़ देता है, आलमारी की तलाशी ले लेता है, कुछ नहीं मिलता तो उसी समय किरन पर झपटता है। किरन तकिये के सहारे बेजान होकर लेटी थी, नरेन्द्र किरन से पूछता है- तुम्हारे पास कुछ है?
किरन ने धीर से अपना घूँघट सरका दिया और कहा वही कानों का कंगना है। किरन ने वह कँगन आज फिर से कान में पहन लिए थे। कानों का कँगना दिखाते ही उसकी मृत्यू हो जाती है।
वह कँगन देखते ही नरेन्द्र को किरन के साथ प्रेम के पल याद आ जाते हैं। “चढ़ा नशा उतर पडाष सारी बातें सूझ गईं- आँखों पर की पट्टी खुल पड़ी लेकिन हाय। खुली भी तो उसी समय जब जीवन में केवल अन्धकार ही रह गया है” और लेखक के इसी कथन के साथ कहानी समाप्त हो जाती है।
कानों में कंगना कहानी की समीक्षा (Review of Kangana Story in Cannes)
इस कहानी में प्रकृति सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। कहानी के अनुसार नरेन्द्र द्वारा विवाहेतर संबंध (extra marital affair) है। इस कहानी के परिणाम स्वरूप कहा जा सकता है कि प्रेम विवाह करने के बाद भी विवाहित जोड़े में से कोई एक किसी दूसरे के प्रति आकर्षित होकर अपने शादी शुदा ज़िन्दगी को बर्बाद कर सकता है।
वैसे तो यह कहानी है, लेकिन जैसा कि सबको पता है साहित्य समाज का दर्पण है, इसका मतलब समाज में कुछ इस प्रकार की परिस्थितियाँ मौजूद हैं।
वहीं पर एक चीज़ और देखने लायक है, स्त्री और पुरूष दोनों के द्वारा किए गए एक ही कृत के परिणाम और सज़ा अलग-अलग होती है। अगर नरेन्द्र के द्वारा किया गया अपराध नरेन्द्र ने न करके किरन ने किया होता तो नरेन्द्र उसे छोड़ देता, लेकिन किरन ने नरेन्द्र को नहीं छोड़ा बल्कि अपने पति के द्वारा किए गए अन्याय के परिणाम स्वरूप वह दुखी, परेशान और बीमार रहने लगी अंत में उसकी मृत्यू हो जाती है। किरन की मृत्यू नियति नहीं थी, बल्कि नरेन्द्र के द्वारा उसे नज़रअंदाज़ करके किन्नरी के साथ बनाएँ संबन्ध के कारण हुई है।
इस कहानी में स्त्री के दो रूपों का वर्णन किया गया है- एक तरफ किरन है जो अपने पत्नी धर्म का निवाह तब भी करती है, जब उसका पति किसी और को उसके अधिकार दे देता है। दूसरी तरफ किन्नरी है, जो नरेन्द्र को तभी तक अपने पास आने देती है, रिश्ता रखती है, जब तक वह उसे धन-दौलत विलासिता की वस्तुएँ उसके लिए लाता रहता है।
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