Study Material : बचपन कहानी का सारांश | Summary of the story Bachpan (Bachpan Kahani ka saransh)
कहानी का परिचय (Introduction to the Story)
बच्चों आज आपकी दिनचर्या जैसी होती है, सुबह उठना, स्कूल जाना, खेलना-कूदना क्या आपने कभी सोचा है, आपके माता-पिता, दादा-दादी और नाना-नानी का बचपन कैसा रहा होगा? आज हम बात करेंगे एक ऐसी ही कहानी कि जिसमें लेखिका का बचपन आपके बचपन से थोड़ा अलग था। कहानी का नाम बचपन है, जो आपके पाठ्यक्रम में लगाई गई है।
यह कहानी कृष्णा सोबती द्वारा लिखी गई है। इस कहानी में लेखिका ने छोटे बच्चों से अपने बचपन की कुछ स्मृतियों को साझा किया है। जिस कारण यह कहानी अपने आप में संस्मरण की श्रेणी में आ गई है। वर्तमान में जब वे कहानी लिख रही थीं, तब वे बड़ी हो चुकी हैं। उन्होंने इस कहानी में खुद को बच्चों की दादी या नानी की उम्र की बताया है। इसका मतलब है, उनकी उम्र 50 वर्ष से ज़्यादा रही होगी जब उन्होंने यह कहानी लिखी है।
बचपन कहानी का सारांश (Summary of the story Bachpan)
कहानी की शुरूआत में लेखिका कहती हैं, मैं तुम्हें अपने बचपन में ले जाऊँगी अर्थात वे अपने बचपन की कहानी बच्चों को सुनाएँगी। वे कहती हैं, मैं तुम्हारी दादी, नानी, मौंसी, कोई भी हो सकती हूँ।
वे अपने बचपन से लेकर वर्तमान में के बच्चों तक के समय में आए बदलाव की बात करती हैं। वे कहती हैं, उनके समय में बच्चे जो पहनते थे, और अब के बच्चे जो पहनते हैं, उसमें बहुत फर्क हो गया है। वे इसी के साथ अपने पहनावे में आए बदलाव के बारे में बताती हैं, पहले वे रंग बिरंगे कपड़े फ्रॉक निकर-वॉकर, स्कर्ट, लहँगे, गरारे पहनती थीं, अब वे हल्के और सादे चूड़ीदार और घेरदार कुर्ते पहनना पसंद करती हैं।
बचपन में लेखिका के यहाँ नौकर था फिर भी उन्हें अपने मोज़े खुद धोने पड़ते थे। जूते पॉलिश करती थीं, वे यह काम इतवार (सन्डे) को करती थीं।
शनिवार को उन्हें ऑलिव ऑयल या कैस्टर ऑयल पीना पड़ता था। ऑयल की महक उन्हें पसंद नहीं थी। इसे वे शनिवारी दवा कहती हैं।
उनके बचपन में घरों में ग्रामोफ़ोन थे। रेडियो और टेलीविजन नहीं थे।
उस समय वे शहतूत फ़ाल्से और खसखस के शरबत पीते थे। लेकिन अब लोग पेप्सी-कोक पीते हैं। वह कचौड़ी समोसा खाना पसंद करते थे, लोग अब पैटीज़ खाते हैं।
लेखिका का घर मॉल से दूर नहीं था, कभी-कभी वह वहाँ समान लेने भी जाया करती थीं। उन्हें पेस्ट्री और चॉकलेट की खुशबू आकर्षित करती थी। उन्हें सिर्फ चॉकलेट खरीदने की छूट थी। जो वह घर पर रात के खाने के बाद खाती थीं।
लेखिक का बचपन शिमला में बीता है, उन्हें वहाँ के काफ़ल बहुत याद आते हैं। उन्हें चने और अनारदाने का चूर्ण भीच खाना पसंद था। उन्हीं दिनों “चने ज़ोर गरम बाबू मैं लाया मज़ेदार” गाना चला था, जो उनके स्कूल के सभी बच्चों को याद था।
स्कैंडल पॉइंट के सामने एक दुकान थी, जिसके शोरूम में शिमला-कालका ट्रेन मॉडल बना था।
वहीं पर एक और दुकान थी, जहाँ लेखिका का पहली बार चश्मा बना था, जिसके लिए वह खुद के जिम्मेवार मानती हैं, क्योंकि वह रात को लैंप की रोशनी में पढ़ती थीं।
डॉक्टर ने कहा था, चश्मा उतर जाएगा, लेकिन वर्तमान में जब लेखिका यह कहानी लिख रहीं थीं, तब तक भी नहीं उतरा था।
लेखिका के भाई उन्हें चश्मा लगाने पर चिड़ाते थे, कहते थे-
“आँख पर चश्मा लगाया
ताकि सूझे दूर की
यह नहीं लड़की को मालूम
सूरत बनी लंगूर की”।
अब लेखिका को यह चश्मा अपने चेहरे के साथ घुला-मिला लगता है। वे कहती हैं, अब जब चश्मा उतार देती हैं, तो चेहरा खाली-खाली लगने लगता है।
जब वे कहानी लिख रही हैं, तब भी वे टॉपी लगाना पसंद करती हैं। उन्होंने रंग बिरंगी टॉपी जमा कर ली है। उन्हें हिमाचली टोपियाँ पसंद है। यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।
कहानी का निष्कर्ष (Conclusion of the Story)
कहानी में लेखिका ने पीछली शताब्दी की बात की है, सन् 2000 से पहले से लेकर सन् 2000 के बाद में आए बदलावों की चर्चा की है।
लेखिका का मन शनिवारी दवा पीने का नहीं करता था, लेकिन फिर भी पीना पड़ता था, वैसे ही बच्चों आपका भी कुछ दवाइयों को खाने का मन नहीं करता होगा, लेकिन खाना पड़ता होगा।
अपने बचपन में छोट-मोटा समान वे भी खरीद कर लाती थीं, और वर्तमान में आप भी अपने घर का समान खरीद कर लाते होगे।
उनके घर में नौकर था, फिर भी अपने मोज़े उन्हें खुद धोने पड़ते थे, और अपने जूते भी उन्हें खुद पॉलिश करने पड़ते थे। इसका मतलब है, आपको भी अपने छोटे-छोटे काम खुद करने चाहिए, अपने माता-पिता से पूछ कर। हर काम के लिए दूसरो पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
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