Study Material : Delhi, IGNOU मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand, MHD
Ignou Study Material : MHD 10 प्रेमचन्द कहानी विविधा | MHD 10 Premchand Story Miscellaneous
आहुति कहानी का परिचय
वर्तमान में भारत के प्रत्येक व्यक्ति को यह पता है कि – भारत को 1947 में स्वतंत्रता एक दिन की चाहत या संघर्ष से नहीं मिली है। कई सालो तक स्वतंत्रता या स्वराज की माँग व संघर्ष करने के बाद 1947 में भारत में आज़ादी मिली है।
आज हम बात कर रहे हैं, ऐसी ही एक कहानी की। जो स्वतंत्रता के लिए हो रहे संघर्ष की एक झलक दिखाती है। कहानी का नाम आहुति है, यह कहानी प्रेमचंद जी द्वारा लिखी गई है। इस कहानी में तीन मुख्य पात्र हैं। विशम्भर, आनन्द और रूपमणि।
स्वाधीनता पाने के लिए किस प्रकार छात्रों ने संघर्ष किया। यह कहानी इस विषय पर आधारित है।
आहुति कहानी का सारांश
विशम्भर और आनन्द दोनों एक ही यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी थे। आनन्द अमीर भी है साथ ही शिक्षा पर उसकी अच्छी पकड़ है। विशम्भर के पास धन नहीं था परिणाम स्वरूप प्रोफेसरों ने उसे एक छोटा-सा वजीफा दे दिया था। रूपमणि एक साल पहले उन्हीं के समकक्ष थी। इस साल उसने कॉलेज छोड़ दिया था।
कहानी की शुरूआत आन्नद और रूपमणि की बातचीत से होती है। आन्नद रूपमणि को यह सूचना देता है कि विशम्भर वालण्टियर बन गया है। यह सुनकर रूपमणि ने कहा क्या तुमने उसे समझाया नहीं? रूपमणि को ने कहा शायद मैं उसे रोक सकती हूँ। आनन्द विशम्भर की शिकायत लेकर रूपमणि के पास आया था लेकिन जब रूपमणि ने उसे कहा कि मैं उसे रोक सकती हूँ। आनन्द इस बात से चिढ़ जाता है। विशम्भर ने अपने जाने की सूचना आनन्द को खत लिखकर दी थी। आनन्द चाहता था कि रूपमणि विशम्भर को रूकने के लिए उसकी खुशामद करे, लेकिन उसके ऐसा न करने से उसके अहम को ठेस लगती है। परिणाम स्वरूप रूपमणि के यह कहने पर कि मेरे साथ चलो आनन्द ने मना कर दिया। उसके बाद आनन्द ने जब विशम्भर का लिखा ख़त रूपमणि को दिया तो ख़त पढ़ने के बाद उसने कहा मेरा जाना भी बेकार है।
जब रूपमणि ने यह कहा कि मेरा जाना भी व्यर्थ है तो आन्नद ने उसके उत्तर में विशम्भर के लिए फैसले के नुकसान गिनाने शुरू कर दिए “जब साल भर जेल में चक्की पीस लेंगे और वहाँ तपेदिक लेकर निकलेंगे, या पुलिस के डण्डों से सिर और हाथ-पाँव तुड़वा लेंगे, तो बुद्धि ठिकाने आवेगी। अभी तो जयजयकार और तालियों के स्वप्न देख रहे होंगे”।
आन्नद से सारी बात करने के बाद रूपमणि विशम्भर की तलाश में स्वराज्य भवन पहुँच गई। जहाँ उसे विशम्भर नहीं मिला। पूछने पर पता चला की विशम्भर ने देहातों को तैयार करने का काम लिया है परिणाम स्वरूप वह गाँव के लिए निकल गया है।
रूपममि तेज साइकिल चलाकर स्टेशन पहुँच गई। वहाँ उसकी मुलाकात विशम्भर से हुई। रूपमणि विशम्भर की दशा देखकर बहुत दुखी हो गई। विशम्भर ने पाँव में जुता भी नहीं पहना हुआ था। रूपमणि विशम्भर को समझाने का प्रयास करती है और उसे चेताती है कि कम से कम दो साल की जेल हो सकती है। यह सुनकर विशम्भर यह उम्मीद करता है की रूपमणि उसकी हिम्मत बाँधे न की उसे कमज़ोर करे। रूपमणि उसे न जाने के लिए कहती है।
रूपमणि की बाते सुनकर विशम्भर कहता है कि यदि मैं यहाँ रूक गया तो पढ़-लिखकर भी तीन-चार सौ रूपए की नौकरी मिलेगी। लेकिन मेरे चले जाने से सम्पूर्ण देश का स्वराज्य मिलेगा।
परिणाम स्वरूप जिस व्यक्ति पर आनन्द और रूपमणि दया करते थे, आज रूपमणि के मन में उसके लिए श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो गया। रूपमणि ने साथ चलने की बात कही लेकिन विशम्भर ने उसे साथ ले जाने से यह कहते हुए मना कर दिया कि “आनन्द बाबू मुझे ज़िन्दा न छोड़ेंगे”।
पहले दृढता से फिर निवेदन करते हुए विशम्भर ने रूपमणि को साथ ले जाने से मना कर दिया। विशम्भर के जाते-जाते रूपमणि ने कहा – “मैं तुम्हारै लिए ईश्वर से प्राथना करूँगी”।
रूपमणि ने स्टेशन से वापस लौटकर विशम्भर का पुराना फोटो और उसके पुराने लिखे पत्र निकाले साथ ही उन पत्रों को दोबारा नई दृष्टि से पढ़ा।
विशम्भर के जाने के बाद रूपमणि की दिनचर्या बदल चुकी थी। अब वह स्वराज्य-भवन जाने लगी, विलास की प्रत्येक वस्तु धीरे-धीरे अपने आप से दूर कर दी। चरखा चलाने लगी। परीक्षा के कारण आनन्द व्यस्त हो गया और रूपमणि के पास ज़्यदा नहीं आ पाया।
एक दिन शाम को आनन्द आया तो रूपमणि स्वराज्य भवन जा रही थी। परिणाम स्वरूप आनन्द और रूपमणि में तनाव पूर्ण बातचीत हुई। एक तरफ रूपमणि विशम्भर की लगातार प्रसंशा कर रही थी दूसरी तरफ आनन्द विशम्भर की व्यंगपूर्ण अलोचना कर रहा था।
बातचीत को दौरान कॉग्रेस बुलेटिन डाकिए द्वारा लाया गया जिसे पढ़कर रूपमणि ने कहा कि विशम्भर पकड़ लिए गए हैं और दो साल की उसे सजा हो गई है। यह सुनकर आनन्द ने व्यंग किया तो उत्तर में रूपमणि ने स्वतंत्रता से संबन्धित तर्कसंगत अनेक बाते उसे सुना दीं। आनन्द तिलमिला उठा बोला – “ तुम तो पक्की क्रान्तिकारी हो गई हो इस वक्त”।
रूपमणि ने रानीगंज जाने का फैसला किया और कहा – “ विशम्भर ने जो दीपक जलाया है, वह मेरे जीते-जी बुझने न पाएगा”।
आनन्द ने रूपमणि को रोकने की नकाम कोशिश करने के बाद बिना रूपमणि से विदा लिए वह वहाँ से चला गया। कहानी यही समाप्त हो जाती है।
आहुति कहानी की समीक्षा
आहुति कहानी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौर की कहानी है परिणाम स्वरूप इस कहानी में स्वतंत्रता आंदोलन की रूपरेखा दिखाई देती है।
समाज के अधिकतर व्यक्ति को पता होता है कि क्या सही है क्या गलत है फिर भी व्यक्ति गलत को गलत कहने की हिम्मत इसलिए नहीं करता क्योंकि उसे समाज के द्वारा बहिष्कृत किए जाने या समाज के द्वारा उसका अहित किए जाने का भय होता है। वहीं दूसरी ओर हमारे ही समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो जानते हैं कि गलत के खिलाफ़ अवाज़ उठाने से उन्हें सज़ा मिलेगी फिर भी वह बिना डरे अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं। विशम्भर और आनन्द इन्ही दो विपरीत विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
हवन में डालने वाली सामग्री को आहुति कहते हैं। स्वतत्रंता के लिए लगभग प्रत्येक वर्ग की आहुति की आवश्यकता थी। जो कहानी के पात्र विशम्भर की आहुति के माध्यम से दर्शाया गया है।
समान्य तौर पर देखा जाए तो आकर्षण को समाज प्रेम समझ लेता है, लेकिन सत्य यह है कि प्रेम खुबियों से होता है। जिसकी झलक इस कहानी में देखने को मिलती है। रूपमणि पहले विशम्भर पर दया करती थी लेकिन जब विशम्भर देश की स्वतंत्रता के लिए खुद मुश्किलों को गले लगाने लगा तो रूपमणि के मन में विशम्भर के लिए श्रद्धा उत्पन्न होने लगी।
आहुति कहानी का निष्कर्ष
यह कहानी स्वतंत्रता से पूर्व लिखी गई थी परिणाम स्वरूप इसमें पूर्ण रूप से स्वतंत्रता आंदोलन की झलक दिखाई दे रही है।
वर्तमान में हमारा देश आज़ाद हो चुका है। अब हम एक स्वतंत्र नगरिक हैं।
वर्तमान में आनन्द और विशम्भर जैसे किरदार समाज में मौजूद हैं। जहाँ एक ओर आनन्द मुश्किलों से बचना चाहता है वहीं दूसरी ओर विशम्भर समाज के भले के लिए खुद मुश्किलों को गले लगा लेता है।
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