IGNOU MHD- 3 जैनेन्द्र कुमार की कहानी पाजेब का सारांश | Jainendr Kumaar kee kahaanee paajeb ka saaraansh
पाजेब कहानी का परिचय (Introduction to Pajeb story)
सामने वाला व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ बोल रहा है, यह समझना बहुत मुश्किल है। झूठ बोलने के जिन लक्षणों को हम जानते या समझते हैं, कभी-कभी वह लक्षण डर के कारण भी दिखाई देते हैं। विशेष रूप से तब जब बोलने वाला व्यक्ति बच्चा हो और उस बच्चे को हम अपराधी समझ रहे हैं।
बच्चों की मनोवैज्ञानिक स्थिति को समझना आत्यधिक चुनौती पूर्ण कार्य है। बच्चे का बाल मन चोरी करना नहीं जानता है, चोरी क्या अर्थ होता है। एक बालक यह भी ठीक से नहीं समझता। ऐसे में अगर उसे कोई चीज अच्छी लगती है, तो वह उठा लेता है या अपने पास रख लेता। बच्चे के ऐसा करने पर बड़े या अभिभावक उसे चोर बुलाने लगते हैं। जिसका उसने मनौविज्ञान पर अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
जिस बच्चे ने कोई वस्तु ली ही नहीं है। उससे बार-बार कहा जाए बताओं तुमने ली है? कब ली? कहाँ ली? क्यों ली? ऐसे में बच्चा डर जाता है, और झूठ भी बोलने लगता है। हम ऐसी ही कहानी की बात कर रहे हैं, जिसका नाम पाजेब है और इसे जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखा गया है।
पाजेब कहानी का सारांश (Pajeb story summary)
यह कहानी लेखक ने इस प्रकार लिखी है, जैसे यह कहानी उसके अपने जीवन का अंश हो। लेखक ने बताया लिखा की, उनके मोहल्ले में नई डिजाइन की पायल का चलन आया। अधिकतर महिलाओं ने नई तरह की पाजेब पहनी थी, परिणाम स्वरूप लेखक की बेटी मुन्नी ने भी ऐसी ही पाजेब पहनने की ज़िद की। मुन्नी ने लेखक से कहा जैसी रूकमन और शीला ने पाजेब पहनी है, उसे भी वैसी ही पाजेब चाहिए।
इतवार को मुन्नी की बुआ आई, और इत्तेफाक से मुन्नी के लिए वैसी ही पाजेब लाई जैसी उसे चाहिए थी। मुन्नी का भाई आशुतोष पहले तो खुश हुआ। सबको मुन्नी की पायल दिखाता रहा। बाद में वह ज़िद करने लगा की उसे बाईसाइकिल चाहिए। बुआ ने आशुतोष को यह कहकर समझा दिया कि उसके जन्म दिन पर उसके लिए साइकिल खरीद दी जाएगी।
कुछ घन्टे में पायल उतार कर रख दी गई। शाम को श्रीमती जी दूसरी पायल खोज रही थीं। पायल न मिलने पर उन्हें लगा, पायल बंशी नौकर ने चुरा ली है। बंसी से जब पूछा गया तो पता चला उसने नहीं चोराई। लेखक को लगा उनके बेटे आशुतोष ने चुरा ली है, परिणाम स्वरूप उससे पूछा गया। आशुतोष के मना करने पर उससे बार-बार पूछा गया और बाध्य किया गया की वह मान ले पायल उसने ली है। मजबूर होकर उसने कह दिया पायल उसने ली है। बहुत ज़ोर देकर पूछा गया तो उसने कहा वह पायल उसने अपने दोस्त छुन्नू को दी है।
लेखक ने कहा छुन्नू माँग लाओ, आशुतोष ने कहा – उसके पास होगी नहीं तो वह कहाँ से देगा। पिता के ज़ोर देने पर वह छुन्नू के घर गया और उससे पायल माँगी। छुन्नू ने कहा आशुतोष ने उसे पायल नहीं दी है, परिणाम स्वरूप छुन्नू की माँ ने छुन्नू को बहुत मारा और रोने लगी।
मार के डर से छुन्नू ने कहा आशुतोष ने वह पायल पतंग वाले को दे दी है। लेखक ने अपने छोटे भाई प्रकाश को पतंग वाले के यहाँ भेजा। वापस आकर प्रकाश ने लेखक से बताया की दोनों ही पतंग वाले कहते हैं, उन्हें पायल नहीं दी है। इसी दौरान लेखक ने अपने बेटे को थप्पड़ मारा और उसे कमरे में बन्द कर दिया गया। कुछ देर बाद कमरा खोला तब भी आशुतोष कुछ नहीं बोला। उसके बाद आशुतोष को ज़बरदस्ती प्रकाश के साथ पतंग वाले के यहाँ भेजा गया। उसी समय बच्चो की बुआ आ गई, बुआ के पूछने पर भी लेखक ने नहीं बताया की बात क्या है।
कुछ देर लेखक और लेखक की बहन यानी बुआ की बात होती रही। अंत में बुआ ने दूसरी पायल निकाल कर कहा यह पायल तो उस दिन मेरे साथ ही चली गई थी। यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।
समीक्षा या निष्कर्ष (Review or Conclusion)
कहानी के अंत में यह साबित हो जाता है कि आशुतोष पहले जो कह रहा था वही सच था। लेकिन लेखक द्वारा उसका विश्वास न करने पर डर के आशुतोष ने लेखक के हाँ में हाँ मिला ली। परिणाम स्वरूप आशुतोष के साथ-साथ छुन्नू को भी दंड भुगतना पड़ा। छुन्नू भी बार-बार कहता रहा कि उसने पायल नहीं देखी, लेकिन उसकी माता ने उसका यकीन नहीं किया। परिणाम स्वरूप उसने भी झूठ कहा कि आशुतोष ने पायल बेंच दी है।
यह स्थिति मात्र कहानी की नहीं है, बल्कि असल जीवन में भी कई बार ऐसा होता है, जब बच्चे डर से बड़ो की हाँ में हाँ मिला लेते हैं। खुद भी समस्याओं में फंस जाते हैं, और दुसरो की भी मुश्किल में डाल देते हैं। ऐसे में बड़ो की ज़िम्मेदारी बनती है, कि वह सच और डर में फर्क को समझे।
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