Ignou Study Material : MHD 10 प्रेमचन्द कहानी विविधा | MHD 10 Premchand Story Miscellaneous
कहानी का परिचय (Introduction to the story)
जीवन के हर पडाव पर जीवन व्यतीत करने के लिए किसी न किसी का सकारात्मक सहयोग चाहिए होता है। जन्म से लेकर युवावस्था तक यह सहयोग माता-पिता द्वारा प्राप्त होता है, उन्हीं का सहयोग चाहिए भी होता है। लेकिन युवावस्था में जीवन सहज रूप से गुजारने के लिए जीवन साथी की आवश्यकता होती है, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, धार्मिक और परिवारिक आदि प्रकार के कारणों से जीवन साथी महत्वपूर्ण हो जाता है।
यदि किसी की युवावस्था के शुरू होने से पहले ही उसका जीवन साथी छोड़ कर दुनिया से चला जाए तो क्या होगा? यदि वह पुरूष है, तो परिवार व समाज उसका दोबारा विवाह करा देगा, लेकिन यदि वह स्त्री है तो क्या समाज उसके पुर्नविवाह के लिए उसी रूप से सहयोग करेगा?
हम बात कर रहे हैं, ऐसी ही एक कहानी की कहानी का नाम है- प्रेम की होली। यह कहानी ‘प्रेमचंद’ जी द्वारा लिखी गई है।
प्रेम की होली कहानी का सारांश (Summary of Prem Ki Holi Story)
यह कहानी मुख्य रूप से गंगी की है, अर्थात कहानी की नायिका गंगी है, और अप्रत्यक्ष नायक गरीबसिंह है। कहानी की शुरूआत में गंगी लगभग 17 साल की है, तीन साल पहले उसके पति का देहांत हो गया। अर्थात वह तीन साल से विधवा है, गाँव की भाभियाँ उसकी सहेलियाँ सभी उससे मज़ाक करती हैं, अपने घर या ससुराल की कथा सुनाती हैं, लेकिन पति से संबन्धित कोई बात नहीं करती हैं। पति से संबन्धित सारे बातें वह उससे छुपाना चाहती हैं। लेखक कहता है, सभी उसके वैधव्य का आदर करते हैं।
होली आई, होली में सभी महिलाओं की साड़िया गुलाबी रंग से रंगी गई और सभी ने गुलाबी साड़िया पहनी। गंगी की साडी किसी ने नहीं रंगी, उसने खुद ही मना कर दिया। वह अपने मायके में ही रहती है, जितना मुमकिन हो घर का काम करती है, होली के दिन भी उसने बहुत काम किया।
इसी होली पर कोठार गाँव से बुद्धू सिंह का बेटा गरीबसिंह भी आया हुआ था। उसने गंगी को देख-देख कर गीत गाता रहा। गंगी भी उसे कुछ देर देखती रही, उसे उसका गाना अच्छा लग रहा था। यह नज़र समान नज़रो से भिन्न थी, वह कुछ ही देर में अन्दर चली जाती है। उसके जाने के बाद बड़ी उत्सुकता से अपने पिता से उसके बारे में पूछती है।
फिर एक दिन गंगी गोबर पाथ (ऊपले बना रही थी) रही थी, तभी वहाँ से ठाकुर गरीबसिंह निकले उन्होंने एक नज़र गंगी को देखा, और नज़रे झुका ली। इस बार भी उनकी नज़र भिन्न थी, सकारात्मक रूप से अलग थी। इस नज़र में सम्मान पूर्वक प्रेम का एहसास था।
इसी तरह एक दिन शाम को फिर से ठाकुर गरीबसिंह वहाँ से निकले। मैकू सन कात रहा था, उसने गरीबसिंह को अपने पास बैठा लिया। इस बार गरीबसिहं बहुत बीमार लग रहा था, देखने से ही उसके स्वास्थ का पता चल रहा था। गंगी उसकी यह हालत देखकर बहुत चिंतित हुई। पहले उसने अपनी माँ से गरीबसिंह की सेहत के बारे में बात की, फिर अपने पिता से कहा कि वह उन्हें समझाएँ की वह अपना ख्याल रखे। यह सुनकर पहली बार मैकू न गुस्से भरी नज़रों से गंगी को अपना काम करने को कहा जिसे सुनकर गंगी को बहुत दुख हुआ।
एक साल बाद फिर से होली आई, इस साल भी वही पिछले साल वाली धूम थी। गंगी पूरा दिन गरीबसिंह की राह देखती रही, शाम हो गई सब अपने-अपने घर चले गए, लेकिन गंगी को अभी भी लग रहा था कि कोठार से कोई न कोई आएगा। उसने इसका ज़िक्र अपने पिता से किया – पिता ने यह कह कर मना कर दिया रात को अब कोई क्या आएगा।
गंगी ने मंदिर पर चढ़ कर देखा तो चिता जल रही थी। उसे लगा कोठारवाले आज होलिका जला रहे हैं, उसने यह आकर अपने पिता से बताया। पिता ने भी जब जाकर देखा तो समझ गए वह चिता है। इतने में किसी ने आकर बताया की कोठार वाले गरीबसिंह की मृत्यु हो गई है।
इसके बाद जितनी भी होली आई, गंगी ने किसी होली में त्योहार नहीं समझा। वह किसी होली में होली देखने बाहर नहीं आती। उसके लिए गरीबसिंह के साथ ही होली चली गई।
प्रेम की होली कहानी का समीक्षा (Prem Ki Holi Story Review)
गंगी एक विधवा लड़की है, जो खुद ही विवाहित जीवन के बारे में विचार नहीं करती है। लेकिन गरीबसिंह से मिलने के बाद, उन्हें देखने के बाद उसके मन में प्रेम का एहसास होता है। ठाकुर गरीबसिंह भी गंगी के लिए ऐसा ही अनुभव करते हैं, लेकिन एक-दूसरे से अपने मन के भाव शब्दों में प्रकट नहीं करते हैं।
यह कहानी लगभग सौ वर्ष पहले लिखी गई है, उस समय प्रेम में भी लड़की और लड़के का प्रत्यक्ष संवाद संभव नहीं होता था। परिणाम स्वरूप इस कहानी में भी उसी का चित्रण किया गया है।
कहानी के अनुसार (समाज में भी देखा जा सकता है) गंगी का कभी दूसरा विवाह नहीं होगा। वह सारा जीवन इसी प्रकार बिता देगी।
गंगी लगभग 14 साल की आयु में विधवा हो गई है, जिससे पता चलता है कि उसका विवाह बहुत छोटी आयु में ही हो गया था। किशोरावास्था में ही वह विधवा भी हो गई है।
भारतीय समाज में उस दौर में भी और आज़ादी के बाद भी बाल विवाह होते रहे हैं। युवावास्था आते-आते यदि कोई पुरूष विधूर हो जाता था, तो उसका दोबारा विवाह करा दिया जाता रहा है, यदि कोई लड़की विधवा होती तो, सम्भवत: पूरा जीवन उसे अकेले ही बिताना पड़ता रहा है।
वर्तमान में भारतीय संविधान में मौजूद महिलाओं के अधिकार के परिणाम स्वरूप यह स्थिति बदली है। कानूनी रूप से विधवा पुर्नविवाह की अनुमति है, साथ ही बाल-विवाह पर रोक लगाई जा चुकी है। सामाजिक रूप से यह स्थिति कानून के आधार पर पूर्ण रूप से है या नहीं यह कहना मुश्किल है।
कहानी पढ़ते समय हमेशा यह याद रखना चाहिए, साहित्य समाज का दर्पण है। लेकिन साहित्य पूर्ण रूप से समाज नहीं है। अर्थात साहित्य का अर्थ होता है, कुछ ऐसा है।
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