Ignou Study Material : बड़े भाई साहब कहानी का सारांश : MHD 10 प्रेमचन्द कहानी विविधा | MHD 10 Premchand Story Miscellaneous
कहानी का परिचय (Introduction to the Story)
प्रत्येक व्यक्ति को अपने-अपने स्तर का संघर्ष बड़ा लगता है, या अपनी समस्याएँ बड़ी लगती हैं। जब कोई बच्चा स्कूल जाता है, उसे स्कूल जाना बहुत बड़ा और मुश्किल काम लगता है। कोई व्यक्ति नौकरी करता है, उसे अपनी नौकरी बहुत बड़ी जिम्मेदारी लगती है। वृद्ध व्यक्ति को लगता है, उसका जीवन अधिक मुश्किलों से भरा है, क्योंकि अब वह निर्भर हो चुका है।
इसी आधार पर विचार कीजिए, पढाई लिखाई करना कितनी बड़ी जिम्मेदारी का काम है? क्या यह बहुत कठिनाई का काम है? क्या पढाई के दौरान मात्र पढाई ही महत्वपूर्ण है? या अन्य कार्य भी पढ़ाई के समान आवश्यक हैं, जैसे – खेलकूद, भौतिक क्रियाकलाप, माता-पिता संबन्धियों के साथ समय व्यतीत करना, समाज में अपनी और समाज की हमारी ज़िन्दगी में भूमिका को समझना इत्यादि। विचार कीजिए।
आज हम बात कर रहे हैं, ऐसी ही एक कहानी की। कहानी का नाम है – बड़े भाई साहब। यह कहानी प्रेमचंद जी द्वारा लिखी गई है, यह कहानी मैं शैली में लिखी गई है। पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है, कि प्रेमचंद अपनी और अपने बड़े भाई की बात कर रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है, यदि ऐसा होता तो यह संस्मरण या रेखाचित्र विधा होती। जैसा की बड़े भाई साहब कहानी विधा है, परिणाम स्वरूप यह मैं शैली में लिखी गई कहानी है।
बड़े भाई साहब कहानी का सारांश (Bade Bhai Saheb Story Summary)
यह कहानी मैं शैली में लिखी गई है, साथ ही साथ पूरी कहानी फ्लैशबैक में है। मैं पात्र अपनी और अपने बड़े भाई साहब की कहानी सुनाता है। मैं पात्र और बड़े भाई साहब दोनों पढ़ाई के लिए हॉस्टल में रहते थे।
फ्लैशबैक की शुरूआत में मैं पात्र नौ साल का और बड़ा भाई चौदह साल का था। बड़ा भाई नौवीं कक्षा में पढ़ता था और छोटा भाई (मैं) पाँचवी कक्षा में पढ़ता था। बड़ा भाई अध्ययनशील प्रवृत्ति का छात्र था, लेकिन छोटा भाई पढ़ना पसंद नहीं करता था। वह सिर्फ काम चलाऊ या बड़े भाई के डर से थोड़ा बहुत पढ़ लेता था।
मैं पात्र हॉस्टल से निकलकर मैदान में चला जाता है, उसे कंकरियाँ उछालना, कागज, तितलियों से खेलना बहुत पसंद है। यह सब देखकर बड़े भाई साहब यानी बड़ा भाई मैं पात्र को हमेशा डंटता रहता है। वह कहता है – दादा (पिता) की गाढ़ी कमाई क्यों बरबाद करते हो? यह सब सुनकर छोटे भाई के आँसू निकलने लगते हैं। मैं के अनुसार बड़ा भाई उपदेश देने में निपुर्ण था। इतनी डांट सुनने के बाद छोटा भाई टाइम टेबल बनाता सोचता की अबसे वह टाइम टेबल के अनुसार पढाई करेगा, लेकिन जब अमल करने का मौका आता तो खेलने चला जाता था।
इम्तहान हुआ, परिणाम यह हुआ कि छोटा भाई अब्बल आ गया और बड़ा भाई फेल हो गया। छोटे भाई का मन करता था, वह अपने बड़े भाई से पूछ ले कि वह कैसे फेल हो गए, लेकिन पूछने की हिम्मत नहीं होती थी।
बडे भाई के डर से छोटा भाई पढ़ लेता था, लेकिन अब वह डर भी नहीं रह गया था। इस बात को बड़े भाई ने भांप लिया था। वह छोटे भाई को कहने लगे इसके लिए घमंड न करें। “अन्धे के हाथ बटेर लग गई है” इस प्रकार उन्होंने छोटे भाई को समझाने का प्रयास किया।
फिर से दूसरे साल भी छोटा भाई अब्बल आ गया और बड़ा भाई फेल हो गया। अब दोनों भाइयों में एक कक्षा का ही अंतर रह गया था। छोटे भाई के मन में आता बड़ा भाई एक बार और फेल हो जाए तो दोनों बराबरी पर आ जाएँगे, लेकिन कुछ ही देर में उसने अपने मन के इस ख्याल को निकाल फैंका। इस बार फैल होने पर बड़ा भाई रोने लगा, मैं के अनुसार यदि छोटा भाई भी फैल हो जाता तो बड़े भाई को इतना दुख नहीं होता, लेकिन छोटा प्रथम आ रहा था और बड़ा फेल हो रहा था। इस कारण बड़े भाई को बहु दुख होता था। अब मौका पाकर भी छोटे भाई को बड़ा भाई कुछ नहीं कहता था।
इस दौरान छोटे भाई को कनकौए उडाने का शौक हो गया था। जब मौका मिलता वह पतंगबाजी ही करता था। कटी हुई पतंग को पकड़ने के लिए दूर-दूर तक भागता था। एक दिन फिर पतंग के पीछे भागते हुए बड़े भाई ने छोटे भाई को आड़े हाथों ले लिया। पहले तो बहुत डांटा फिर उसके बाद छोटे भाई को बहुत समझाया कि, वह क्यों इतना कठोर बन कर रहता है। मैं पांच साल बडा हूँ, पांच साल बडा ही रहूँगा।
बड़े भाई का कहना था, उसके कंधो पर छोटे भाई की ज़िम्मेदारी है, उसका भी मन करता है, खेलने का। लेकिन वह नहीं खेलता कुदता क्योंकि उसे छोटे भाई को सही राह पर चलाना है। वह कहता है- मैं खुद बैराह चलूँ तो तुम्हें कैसे सही रास्ते पर चलने के लिए कहूँ।
कहानी के अंत में बड़े भाई का दिल नर्म पड़ जाता है, इसी समय एक पतंग कटी हुई, उनकी ओर आ रही थी, जिसे बड़े भाई ने पकड़ लिया और हॉस्टल की तरफ भागने लगा। मैं पात्र भी बड़े भाई के पीछे भागने लगा। यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।
बड़े भाई साहब कहानी की समीक्षा (Bade Bhai Saheb Story Review)
यह कहानी प्रेमचंद जी द्वारा लिखी गई है, अर्थात सौ वर्ष पहले लिखी गई है। इस कहानी में बच्चो पर शिक्षा प्राप्त करने के दौरान परिवार के द्वारा दिए जा रहे प्रेशर पर ध्यान दिया गया है।
इस कहानी में दो पात्र छात्र हैं, बड़ा भाई सारा दिन पढ़ता है, लेकिन फिर भी फेल हो जाता है। छोटा भाई खेल-कूद में व्यस्त रहता है, फिर भी प्रथम आता है। अर्थात बड़े भाई में पास होने का लगातार तनाव रहता है, छोटे भाई के साथ ऐसा नहीं है।
जिस दौर में यह कहानी लिखी गई थी, उस दौर से ज़्यादा यह कहानी वर्तमान में जीवान्त है। आज कल के छात्र खेलकूद में बहुत कम समय व्यतीत करते हैं, वह इतने तनाव में रहते हैं, जितना शायद नौकरी पेशा। इसका कारण कौन है? विचार कीजिए।
स्कूल का विद्यार्थी स्कूल जाता है, दोपहर आकर फिर ट्यूशन जाता है, घर आकर उसे ट्यूशन और स्कूल दोनों जगह का गृह कार्य करना है। ट्यूशन इसलिए लगाई जाती है, ताकि स्कूल के बचे डाउट टूयूशन में क्लियर हो जाएँ। लेकिन ट्यूशन (कोचिंग) स्कूल से ज़्यादा बच्चो के लिए तनाव का केन्द्र बन गया है? विचार कीजिए क्या सच में ऐसा ही है? यदि है तो इसका समाधान क्या है?
कम अंक लाने का डर, फेल होने का डर, छात्रों में तनाव पैदा करता है। यही तनाव उन्हें अच्छे प्रदर्शन से रोकता है। जिसकी स्पष्ट स्थिति आस-पास के महौल और समाचार पत्रों या चैनलों के माध्यम से पता चलती है।
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