Net JRF Hindi : हिन्दी कविता यूनिट 5 | बिहारी सतसई जगन्नाथ दास रत्नाकर द्वारा संपादित
रीतिसिद्ध कवि बिहारी (Reetisiddh Kavi Biharee)
बिहारी का जन्म 1595 में ग्वालियर के गोविंदपुर नामक गाँव में हुआ था। उनके आश्रयदाता महाराजा जयसिंह थे।
उन्होंने बिहारी सतसई की रचना 1662 में की। कुल दोहों की संख्या 719 है। यह दोहें मुक्तक शैली में लिखित हैं। इनकी भाषा ब्रजभाषा है। जबकि जग्गनाथ दास रत्नाकर ने दोहों की संख्या 713 माना है। सतसई का मतलब सात सौ होता है।
बिहारी पर तीन रचनाओं का प्रभाव था –
गाथा सप्तशथी (हाल कृत)
अमरूक शतक
आर्या सप्तशती (गोवर्धनाचार्य)
पेपर – 2 Drishti IAS UGC Hindi Sahitya [NTA/NET/JRF] – 4TH EDITION खरीदने के लिए क्लिक करें
बिहारी व बिहारी सतसई के बारे में विद्वानों के कथन –
1- लाला भगवानदीन ने सूर, तुलसी, केशव के बाद बिहारी को हिंदी साहित्य का चौथा रत्न माना।
2- बिहारी को राधा चरण गोस्वामी ने रस पीयूषवर्षी मेघ कहा।
3 ग्रियसर्न – बिहारीलाल भारत के थाम्पसन कहे जाते हैं। किसी यूरोपीय भाषा में बिहारी सतसई के सामान रचना नहीं है।
4 पदम् सिंह शर्मा – बिहारी सतसई शक्कर की रोटी है
5 शुक्ल – इनका एक एक दोहा हिंदी साहित्य में एक रत्न माना जाता है।
6 शुक्ल – जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक रचना में सफल होगा।
7 शुक्ल – यदि प्रबन्ध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है
8 शुक्ल – भावों का बहुत उत्कृष्ण और उदात्त स्वरूप बिहारी में नहीं मिलता। कविता उनकी श्रृंगारी है पर प्रेम की उच्च भूमि पर नहीं पहुँचती।
अन्य तथ्य – बिहारी पर सबसे पहले तुलनात्मक आलोचनाकी शुरूआत पद्मसिंह शर्मा ने सरस्वती पत्रिका के माध्यम से की उन्होंने सरस्वती में 1907 में बिहारी और फारसी के कवि सादी के बीच तुलना की।
फिर – पद्मसिंह शर्मा ने 1918 में एक पुस्तक लिखा जिसका नाम “बिहारी सतसई: तुलनात्मक अध्ययन” इसमें बिहारी को देव से बड़ा माना। बिहारी को श्रेष्ठ मानने वालों में लाला भगवानदीन भी प्रसिद्ध है।
देव बडे की बिहारी विवाद की शुरूआत मिश्रबंधुओ ने किया था। पद्मसिंह शर्मा ने देव बडे की बिहारी तुलनात्मक आलोचना की शुरूआत की थी।
कृष्ण बिहारी मिश्र और मिश्रबन्धु ने देव को बड़ा माना है। पद्मसिंह शर्मा ने बिहारी को बड़ा माना है।
पद – 1
मंगल बिन्दु सुरंगु, मुख ससि केसरि आड़ गुरू।
इक नारी लहि संगु, रसमय किय लोचन जगत।।
शब्दार्थ-
मंगल बिन्दु सुरंग – लाल रंग का ग्रह/बिन्दी
मुख ससि – चन्द्रमा की तरह मुख
केसरी आइ गुरु- वृहस्पति/टीका
रसमय- आनन्दमय
लोचन- दृष्टि
नोट – इसमें ज्योतिष ज्ञान का वर्णन है
पद – 2
पाइ महावरू दैंन कौं नाइनि बैठी आइ।
फिरि फिरि, जानि महावरी, एड़ी मीड़ति जाइ।।
इसमें भ्रांतिमान अलंकार है। लाल एडी को लाल रंग समझ लेती है। इसलिए भ्रांतिमान अलंकार माना जाएगा।
पद – 3
तो पर वारौं उरबसी, सुनि राधिके सुजान।
तू मोहन के उर बसीं, हवै उरबसी समान।।
शब्दार्थ
तो पर – तुझ पर
बारौं – न्यौछावर करता हूँ
उरबसी – उर्वशी अप्सरा
सुजान – चतुर
मोहन – श्रीकृष्ण, मोहित करने वाले।
उर बसी – हृदय में बसी हुई है।
हवै – होकर
उरबसी – आभूषण
नोट – इसमें यमक अलंकार है। जब एक शब्द बार बार आता है, और हर बार शब्द का अर्थ अलग हो तो यमक अलंकार हो जाता है।
- UGC Net JRF Hindi : सिक्का बदल गया कहानी की घटना संवाद व सारांश । Sikka Badal Gya Story Incident Dialogue and Summary
- UGC Net JRF Hindi : मारे गए गुलफाम उर्फ तीसरी कसम कहानी की घटना संवाद और सारांश | Incident Dialogue And Summary Of The Story Mare Gye Gulfam ou Tisree kasam
- UGC Net JRF Hindi : परिंदे कहानी की घटना संवाद और सारांश | Story Parinde Incident Dialogue And Summary
- UGC Net JRF Hindi : अपना अपना भाग्य कहानी की घटना संवाद और सारांश | Story Of Apna Apna Bhagya Incident Dialogue And Summary
- UGC Net JRF Hindi : एक टोकरी भर मिट्टी कहानी की घटना सारांश व संवाद | Summary And Dialogue Of The Story Ek Tokaree Bhar Mittee