Net JRF Hindi Unit 7 : कानों में कंगना कहानी का सारांश
राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह का परिचय (Introduction of Raja Radhikharaman Prasad Singh
राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह जी का जन्म 10 दिसम्बर 1990 को शाहाबाद, बिहार में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा राजराजेश्वरी सिंह था। इनकी मृत्यु 24 मार्च 1971 को हुई थी, इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई है। 1907 में आरा जिला स्कूल से इन्ट्रेंस। 1909-1910 में सेंट जेवियर्स कॉलेज, कलकत्ता से एफ.ए की पढ़ाई की थी। यह बीए से पहले की शिक्षा थी, जिसका प्रवधान उस दौर में था। 1912 में प्रयाग विश्वविद्यालय से बी.ए. किया था। 1914 में कलकत्ता विश्वद्यालय से इतिहास विषय में एम.ए किया।
1907 में वयस्क होने पर उनकी रियासत कोर्ट ऑफ वार्डस से मुक्त हुई तथा वे उस रियासत के स्वामी हुए। 1920 में अंग्रेज सरकार ने राधिकारमण प्रसाद सिंह को राजा की उपाधि प्रदान की। कालांतर में वे सी.आई.ई. की उपाधि से भी अलंकृत हुए हैं। आरा, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के प्रथम भारतीय अध्यक्ष मनोनीत हुए। 1927 से 1935 तक इस पद पर सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में आसीन रहे।
गाँधीजी के प्रभाव में आकर पदत्याग किया और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के आग्रह पर बिहार हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष बने। 1935 में रियासती दायित्व छोटे भाई राजीवरंजन प्रसाद को सौंपकर सृजन-कार्य में लीन हुए।
1920 में बेतिया में संपन्न बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के द्वितीय वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्ष मनोनीत हुए। 1936 में वे बिहार हिन्ही साहित्य सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष मनोनीत हुए।
कृतियों का परिचय
बहुआयामी साहित्य सृजन किया है।
कहानी संग्रह-
1 कुसुमांजलि
2 अपना पराया
3 गाँधी-टोपी
4 धर्मधुरी
उपन्यास
1) राम-रहीम 1936 में प्रकाशित हुआ।
2 पुरूष और नारी 1939 में प्रकाशित हुआ।
3) सूरदास 1942 में प्रकाशित हुआ।
4) संस्कार 1944 में प्रकाशित हुआ।
5) पूरब और पश्चिम 1951 में प्रकाशित हुआ।
6) चुबंन और चाँटा 1957 में प्रकाशित हुआ।
लघु उपन्यास
1 नवजीवन 1912 में प्रकाशित हुआ।
2 तरंग 1920 में प्रकाशित हुआ।
3 माया मिली न राम 1936 में प्रकाशित हुआ।
4 मॉर्डन कौन, सुंदर कौन 1964 में प्रकाशित हुआ।
5 अपनी अपनी नज़र अपनी-अपनी डगर 1966 में प्रकाशित हुआ।
राधिकारमण प्रसाद सिंह ने कुछ नाटक एवं संस्मरण भी लिखे हैं।
बिहार की प्रसिद्ध मासिक हिन्दी पत्रिका नई धारा का इनके संरक्षण में प्रकाशन हुआ।
पुरस्कार एवं सम्मान
1969 में मगध विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की।
1970 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग में साहित्य-वाचस्पति की उपाधि प्रदान की।
कानों में कंगना कहानी का परिचय (Introduction of Kanon Men Kangana story)
विषय – प्रेम छल की कहानी है। उतराखण्ड के ऋषिकेश का वर्णन है, इस कहानी में। नरेन्द्र नाचने वाली किन्नरी के प्रेम में पड़कर छल करता है। पत्नी के सारे गहने बेच कर किन्नरी को दे देता है। अंत में कानों का कंगना भी ले लेता है। जब वह कंगना माँगता है, तभी उसकी पत्नी किरन की मृत्यु हो जाती है।
कानों में कँगना कहानी के तथ्य
1913 में यह कहानी इंदु पात्रिका में प्रकाशित हुई है। बाद में लेखक के कुसुमांजलि कहानी संग्रह में संकलित की गई। प्रेम एवं वासना के द्वंद्व को स्पष्ट करने वाली एक मर्मस्पर्शी कहानी है। यह कहानी कथावाचन शैली में लिखी गई है।
कहानी के प्रमुख पात्र-
किरन- नायिका है, यौगीश्वर की पुत्री है।
नरेन्द्र – किरन के पति, योगीश्वर के शिष्य भी हैं।
योगीश्वर- नरेन्द्र के गुरू व किरन के पिता।
जुही – सेविका है।
कहानी की मुख्य घटनाएँ व सारांश (Main Events and Summary of the Story)
ऋषिकेश के निकट एक सुंदर वन में कुटी में योगीश्वर का पुत्री किरन के साथ निवास स्थान है।
योगीश्वर नरेंद्र के पिता के बाल-सखा हैं।
नरेंद्र नियमित रूप से धर्मग्रंथों के अध्ययन के लिए योगीश्वर के पास जाता है।
कानों में क्या है? संवाद से नायक व नायिका में बातचीत होती है।
भोली-भाली कन्या किरन के प्रति नरेन्द्र का आकर्षण।
नरेन्द्र। अब मैं चला, किरन तुम्हारे हवाले हैं। कहकर योगीश्वर नरेंद्र को किरन का दायित्व सौंप देते हैं।
विवाह के पश्चात्, प्रेम और आनंद में मुरादाबाद में दो साल का समय किरन और नरेन्द्र व्यतीत करते हैं।
मित्र मोहन के यहाँ नृत्य कार्यक्रम में किन्नरी से मुलाकात होती है, और नरेन्द्र उसके रूप-सौंदर्य पर मुग्ध हो जाता है।
किन्नरी को प्रसन्न करने के लिए नरेन्द्र ने किरन के सभी वस्त्र एवं आभूषण उस पर लुटा देता है।
एक दिन किरन के समक्ष यह राज खुल जाता है और वह आहत होकर पछाड़ खाकर भूमि पर गिर जाती है। उसके बाद किरन अस्वस्थ रहने लगती है।
एक दिन नरेंद्र के यह पूछने पर कि क्या उसके पास कोई आभूषण बचा है, किरन कानों में कँगना की ओर इशारा करती है, उसके तुरन्त बाद उसकी मृत्यु हो जाती है।
कानों में कँगना देखकर नरेंद्र को उसके साथ बिताए निश्छल प्रेम के क्षण याद आ जाते हैं, पर अब पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं था। यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।
महत्वपूर्ण संवाद (Important Dialogue)
“किरन! तुम्हारे कानों में क्या है?”
उसने कानों से चंचल लट को हटाकर कहा – “कँगना”।
“अरे! कानों में कँगना? सचमुच दो कंगन कानों को घेरकर बैठे थे”।
“किरन! आज की यह घटना मुझे मरते दम तक न भूलेगी। यह भीतर तक पैठ गई”।
दूसरे दिन मैं योगीश्वर से मिलने गया। वह करिन को पास बिठाकर न जाने क्या पढ़ा रहे थे। उनकी आँखें गंभीर थीं। मुझको देखते ही वह उठ पड़े और मेरे कंधों पर हाथ रखकर गद्गद् स्वर में बोले – “नरेन्द्र! अब मैं चला, किरन तुम्हारे हवाले है। यह कहकर किसी की सुकोमल अँगुलियाँ मेरे हाथों में रख दीं। लोचनों के कोने पर दो बूँदें निकलकर झाँक पड़ी”।
“किरन, किरन! तुम्हारे पास कोई गहना भी बच रहा है?”
“हाँ, क्षीण कण्ठ की काकली थी”।
“कहाँ है, अभी देखने दो”।
उसने धीरे-से घूँघट सरका कर कहा – “वही कानों का कँगना। सर तकिये से ढल पड़ा- आँखें भी झिप गई। वह जीवन-रेखा कहाँ चली गई- क्या इतने ही के लिए अब तक ठहरी थी?”
“परलोक से ढूँढ़ निकालूँ – ऐसी शक्ति इस दीन-हीन मानव में कहाँ”?
“चढ़ा नशा उतर पड़ा। सारी बातें सूझ गईं, आँखों पर की पट्टी खुल पड़ी, लेकिन हाय? खुली भी तो उसी समय जब जीवन में अंधकार ही रह गया”।
विद्वानों ने कहा –
आचार्य रामचंद्र शुक्ल – “सूर्यपुरा के राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह जी हिंदी के एक अत्यंत भावुक और भाषा की शक्तियों पर अद्भुत अधिकार रखने वाले पुराने लेखक हैं। उनकी एक अत्यंत भावुकतापूर्ण कहानी कानों में कँगना संवत 1970 (सन् 1913) में इंदु में निकली थी।
गोपालराय – कानों में कँगना तत्कालीन सामंती परिवेश में पत्नी और वेश्या के प्रति प्रेम की टकराहट पर आधारित भावुकतापूर्ण कहानी है। प्रकृति और नारी-सौंदर्य का भावोच्छ्वासित वर्णन कहानी को और भी यथार्थ से दूर ले जाता है। कानों में कंगना पहनने का तथ्य अपने विरोधाभास के कारण कौतूहल पैदा करता है और वही कहानी के अंत में करूणा का भाव भी व्यंजित करता है।
- Study Material : निबन्ध दिल्ली दरबार दर्पण | Essay Delhi Darbar Darpan
- Study Material : नादान दोस्त कहानी का सारांश | Summary of the story Naadan Dost
- Study Material : बचपन कहानी का सारांश | Summary of the story Bachpan
- Study Material : निबन्ध भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? | Nibandh bharatavarshonnati Kaise Ho Sakatee Hai?
- Study Material : निबन्ध नाखून क्यों बढ़ते हैं | Essay Nakhoon Kyon Badhate Hain