UGC Net JRF Hindi : study material परिंदे कहानी की घटना संवाद और सारांश | Story Parinde Incident Dialogue And Summary
कहानी का परिचय (Introduction To The Story)
यह कहानी निर्मल वर्मा द्वारा लिखी गई है, इसका प्रकाशन 1959 में हुआ था।
कहानी के पात्र – लतिका, सुधा, जूली, करीमुद्दीन, डॉ मुकर्जी, ह्यूबर्ट, प्रिंसिपल मिस वुड, ओल्डमेड, गिरीश नेगी, फादर एलमंड पादरी।
विषय – सभी पात्रों की अपनी एक व्यक्तिगत परिस्थिति हैं, जिसका समाधान सभी चाहते हैं, लेकिन न ढूँढ़ पाने के कारण एब्सर्ड के शिकार हैं। सभी का जीवन एक ही प्रश्न का उत्तर खोजर रहा है- हम कहाँ जाएँगे? यही वह प्रश्न है जो कहानी के केंद्र में शुरू से अंत तक बना हुआ है।
नामवर सिंह कहते हैं- परिन्दे निर्मल वर्मा की ही पहली कृति नहीं है बल्कि जिसे हम नयी कहानी कहना चाहते हैं उसकी भी पहली कृति है।
वे लिखते हैं- स्वतंत्रता या मुक्ति का प्रश्न जो समकालीन विश्व साहित्य का मुख्य प्रश्न बन चला है, निर्मल की कहानियाँ है प्राय: अलग-अलग कोण से उठाया गया है। एक तरफ से देखा जाये तो परिन्दे की लतिका की समस्या स्वतंत्रता या मुक्ति की समस्या है। अतीत से मुक्ति, स्मृति से मुक्त, उस चीज से मुक्त जो हमें चलाए चलती है और अपने रेले में घसीट ले जाती है। इन कहानियों में प्राय: सभी व्यक्ति अपने अतीत से मुक्त होने के लिए प्रयत्नशील है।
परिंदे कहानी का संक्षिप्त सारांश (Brief summary of the story Parindey)
इस कहानी की नायिका लतिका है, जो गिरीश नेगी से प्रेम करती थी। गिरीश नेगी की मृत्यु के बाद वह उसे भुला नहीं पाती है, इसी कारण से वह अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ पा रही है। वह किसी और से न तो शादी कर पा रही है, न ही किसी के प्रेम को स्वीकार कर पा रही है।
मि. ह्यूबर्ट लतिका से प्रेम करता है, इसलिए उसने लतिका को एक प्रेम पत्र भी लिखा जिसे पढ़कर लतिका को उस पर गुस्सा नहीं आता ममता आती है, लेकिन वह उस खत का ह्यूबर्ट को कोई उत्तर नहीं देती, अर्थात उसके प्रेम को स्वीकार नहीं करती है।
लतिका एक ऐसे स्कूल की अध्यापिका है, जहाँ सब हॉस्टल में रहकर पढ़ते हैं। सर्दियाँ बढ़ने वाली हैं, इसलिए स्कूल की छुट्टी पड़ने वाली है, कहानी में छुट्टियों पर जाने से पहले की सारी घटना घटिता है।
मिस वुड स्कूल की प्रिंसिपल हैं, जिनका स्वभाव कुछ सख़्त है। डॉ. मुकर्जी बर्मा से आए हैं, और हॉस्टल में ही रहते हैं। मुकर्जी चाहते हैं, लतिका अपने अतीत को भुलाकर आगे बढ़ जाए।
जूली नाम की एक स्टूडेंट है, जिसका प्रेम पत्र हॉस्टल में आता है, लेकिन लतिका उसे यह कहकर नहीं देती कि तुम अभी बहुत छोटी हो। लेकिन बाद में वह खुद अपने इस व्यवहार पर पछताती है। डॉक्टर मुकर्जी मि. ह्यूबर्ट को लतिका और गिरीश नेगी के प्रेम के बारे में सब कुछ बता देते हैं, परिणाम स्वरूप ह्यूबर्ट लतिका से अपना प्रेम पत्र वापस माँगता है।
कहानी के अंत में ह्यूबर्ट की तबीयत खराब हो जाती है, डॉ. मुकर्जी लतिका को समझाते हुए कहते हैं, मैं भी अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हूँ, लेकिन उसकी मृत्य के बाद अगर मेरी उम्र का मामला न होता तो मैं दूसरी शादी कर लेता।
कहानी के अंत में यह पूर्ण रूप से तो स्पष्ट नहीं है, कि लतिका आगे बढ़ने के लिए तैयार है, लेकिन वह जूली के खत को उसके कमरे में रख देती है, जब वह सो रही थी। यह एक संकेत है, कि लतिका अब अपने अतीत से चिपक कर नहीं रहेगी बल्कि आगे बढ़ने का सोचेगी। यहीं पर यह कहानी समाप्त हो जाती है।
परिंदे कहानी की घटना व सारांश (Story of Parinde and its summary)
अँधेरे गलियारे में चलते हुए लतिका ठिठक गई। दीवार का सहारा लेकर उसने लैम्प की बत्ती बढ़ा दी।
सात नम्बर कमरे से लड़कियों की बातचीत और हँसी-ठहाकों का स्वर अभी तक आ रहा था।
सिनेमा के परदे पर ठहरे हुए क्लोजअप की भाँति उभरने लगे।
7 नम्बर का कमरा सुधा का कमरा था।
करीमुद्दीन हॉस्टल का नौकर था। उसके आलस और काम में टालमटोल करने के किस्से हॉस्टल की लड़कियों में पीढ़ी दर-पीढ़ी चले आते थे।
हेमन्ती के गाने का प्रोग्राम है, आप भी कुछ देर बैठिए न। सुधा ने कहा।
लतिका के चेहरे का तनाव ढीला पड़ गया।
लतिका कहती है- अभी कुछ पक्का नहीं है- आई लव द स्नो-फॉल।
बाहर धुन्ध की नीली तहें बहुत घनी हो चली थीं।
अभी मिटी नहीं थी, मगर अब जैसे वह भीतर न होकर बाहर फैली हुई धुन्ध का हिस्सा बन गई थी।
थैंक यू मिस लतिका, ह्यूबर्ट के स्वर में कृतज्ञता का भाव था। सीढ़ियाँ चढ़ने से उनकी साँस तेज हो रही थी।
मुकर्जी के कमरे में रात में मि. ह्यूबर्ट शोपाँ और चाइकोब्सकी के कम्पोजीशन बजाएँगे।
डॉक्टर मुकर्जी आधे बर्मी थे, जो उनकी नाक और छोटी-छोटी आँखों से स्पष्ट था। प्राइवेट प्रैक्टिस के अलावा वह कॉन्वेंट स्कूल में हाइजीन-फिजियोलॉजी भी पढ़ाया करते थे।
बर्मा से आते हुए रास्ते में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। डॉक्टर मुकर्जी कहते – “मरने से पहले मैं एक दफा वर्मा जरूर जाऊँगा”।
लेखक का कथन है- होम-सिक्नेस ही एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज किसी डॉक्टर के पास नहीं है।
ह्यूबर्ट का कथन – पात नहीं, मिस वुड को स्पेशल सर्विस का गोरखधन्धा क्यों पसन्द आता है? छुट्टियों में घर जाने से पहले क्या यह जरूरी है कि लड़कियाँ फादर एल्मंड का सर्मन सुनें?
डॉक्टर मुकर्जी को फादर एल्मंड एक आँख नहीं सुहाते थे।
स्कूल बन्द होने के दिन दो प्रोग्राम होते हैं- चैपल में स्पेशल सर्विस और उसके बाद दिन में पिकनिक।
लतिका मेजर गिरीश नेगी से प्रेम करती है।
लतिका सोच रही थी- क्या वह बूढ़ी होती जा रही है? इसी समय उसे स्कूल की प्रिंसिपल मिस वुड याद आ गईं- पोपला मुँह, आँखों के नीचे झूलती हुई मांस की थैलियाँ, जरा-जरा सी बात पर चिढ़ जाना, कर्कश आवाज में चीखना।
सब मिस वुड को ओल्डमेड कहकर पुकारते हैं।
कुछ महीने पहले अचानक लतिका को ह्यूबर्ट का प्रेमपत्र मिला था। लतिका को ह्यूबर्ट की इस हरकत पर हंसी आई थी। ह्यूबर्ट का पत्र पढ़कर उसे क्रोध नहीं आया, आई थी केवल ममता।
डॉक्टर मुकर्जी ने सिगार का नया कश लिया, “सब लड़कियाँ एक जैसी होती हैं- बेवकूफ और सेंटीमेंटल।
नन्दा देवी और पंचचूली की पहाड़ियों का जिक्र है।
ह्यूबर्ट ने पूछा – मिस लतिका, आप कहीं छुट्टियों में जाती क्यों नहीं? सर्दियों में तो यहाँ सब कुछ वीरान हो जाता होगा?
ह्यूबर्ट ने कहा – “वह पत्र… उसके लिए मैं लज्जित हूँ। उसे आप वापस लौटा दें, समझ लें कि मैंने उसे कभी नहीं लिखा था”।
मिस वुड ने कहा- डॉक्टर मुकर्जी, आप तो सारा जंगल जला देंगे। मिस वुड ने अपनी ऊँची एड़ी के सैंडल से जलती हुई दियासलाई को दबा डाला, जो डॉक्टर ने सिगार सुलगाकर चीड़ के पत्तों के ढेर पर फेंक दी थी।
डॉक्टर मुकर्जी ने मिस वुड से कहा – “जंगल की आग कभी देखी है, मिस वुड… एक अलमस्त नशे की तरह धीरे-धीरे फैलती जाती है। बहुत साल पहले शहरों को जलते हुए देखा था। एक-एक मकान ताश के पत्तों की तरह गिरता जाता है। दुर्भाग्यवश ऐसे अवसर देखने में बहुत कम आते हैं। लड़ाई के दिनों में अपने शंहर रंगून को जलते हुए देखा था”।
मिस वुड का कथन – अपने देश का सुख कहीं और नहीं मिलता। यहाँ तुम चाहे कितने वर्ष रह लो, अपने को हमेशा अजनबी ही पाओगे।
डॉ मुकर्जी ने कहा- अजनबी तो मैं वहाँ भी समझा जाऊँगा मिस वुड। इतने वर्षों बाद मुझे कौन पहचानेगा। इस उम्र में ए सिरे से रिश्ते जोड़ना काफी सिरदर्दी का काम है… कम-से-कम मेरे बस की बात नहीं है>
डॉक्टर मुकर्जी- जड़ें कहीं नहीं जमतीं, तो पीछे भी कुछ नहीं छूट जाता। मुझे अपने बारे में कोई गलतफहमी नहीं है मिस वुड, मैं सुखी हूँ।
मिस वुड डॉक्टर को उच्छंखल, लापरवाह और सनकी समझती रही हैं, किन्तु उनके चरित्र में उसका विश्वास है, न जाने क्यों।
मेरी नाम का पात्र है।
लतिका ने जूली के बॉब हेयर को सहलाते हुए कहा, तुम्हें कल रात बुलाया था।
लतिका ने अपनी जैकेट की जेब से एक नीला लिफाफा निकालकर जूली की गोद में फेंक दिया।
जूली ने कहा – थैंक यू मैडम, मेरे भाई का पत्र है, वह झाँसी में रहते हैं।
लतिका ने लिफाफे की मुहर जूली को दिखाई जिसमें कुमाऊँ रेजीमेंटल सेंटर की मुहर उसकी ओर घूर रही थी।
लतिका ने अफवाह सुनी थी कि जूली को क्लब में किसी मिलिटरी अफसर के संग देखा गया था।
लतिका ने कहा – जूली, तुम अभी बहुत छोटी हो…, लतिका ने जूली को वह खत नहीं दिया।
लतिका का विचार- क्या मैं किसी खूसट बुढ़िया से कम हूँ? अपने अभाव का बदला क्या मैं दूसरों से ले रही हूँ?
शायद… कौन जाने… शायद जूली का यह प्रथम परिचय हो उस अनुभूति से, जिसे कोई भी लड़की बड़े चाव से सँजोकर, सँभालकर अपने में छिपाए रहती है, एक अनिर्वचनीय सुख, जो पीड़ा लिये है, पीड़ा और सुख को डुबोती हुई उमड़ते ज्वार की खुमारी… जो दोनों को अपने में समो लेती है… एक दर्द, जो आनन्द से उपजा है और पीड़ा देता है…) यहीं इसी देवदार के नीचे उसे भी यही लगा था, जब गिरीश ने पूछा था, ‘तुम चुप क्यों हो?’ वह आँखें मूँदे सोच रही थी-सोच कहाँ रही थी, जी रही थी, उस क्षण को जो भय और विस्मय के बीच भिंचा था-बहका-सा पागल क्षण। वह अभी पीछे मुड़ेगी तो गिरीश की ‘नर्वस’ मुस्कुराहट दिखाई दे जाएगी, उस दिन से आज दोपहर तक का अतीत एक दुःस्वप्न की मानिन्द टूट जाएगा। वही देवदार है, जिस पर उसने अपने बालों के क्लिप से गिरीश का नाम लिखा था।
जो वह याद करती है, वही भूलना भी चाहती है।
अब वैसा दर्द नहीं होता, सिर्फ उसको याद करती है, जो पहले कभी होता था, तब उसे अपने पर ग्लानि होती है। वह फिर जानबूझकर उस घाव को कुरेदती है, जो भरता जा रहा है, खुद-ब-खुद उसकी कोशिशों के बावजूद भरता जा रहा है…
डॉक्टर मुकर्जी ने एलिजाबेथयुगीन अंग्रेजी में कहा- मैडम, आप इतनी परेशान क्यों नज़र आ रही हैं…”
मेरी जिन्दगी के कुछ खूबसूरत प्रेम-प्रसंग कमबख्त इस नींद के कारण अधूरे रह गए हैं।
लतिका को याद आया, हर साल सर्दी की छुट्टियों से पहले ये परिन्दे मैदानों की ओर उड़ते हैं, कुछ दिनों के लिए बीच के इस पहाड़ी स्टेशन पर बसेरा करते हैं, प्रतीक्षा करते हैं बर्फ के दिनों की, जब वे नीचे अजनबी, अनजाने देखों में उड़ जाएँगे…
लतिका का सिर चकराने लगा था। “इन ए बैक लेन ऑफ द सिटी, देयर इज ए गर्ल हू लब्ज मी…” ह्यूवर्ट हिचकियों के बीच गुनगुना उठता था।
ह्यूवर्ट का कथन – इन ए बैक लेन ऑफ द सिटी, देयर इज ए गर्ल ए गर्ल हू लब्ज मी… ह्यूवर्ट डॉक्टर मुकर्जी के कन्धे पर सिर टिकाए अँधेरी सीढ़ियों पर उलटे-सीधे पैर रखता चढ़ रहा था।
डॉक्टर मुकर्जी ने ह्यूबर्ट को गिरीश नेगी और लतिका के बारे में बताया था।
“वैसे हम सबकी अपनी-अपनी जिद होती है, कोई छोड़ देता है, कोई आखिर तक उससे चिपका रहता है”
मुकर्जी का कथन – कभी-कभी मैं सोचता हूँ मिस लतिका, किसी चीज को न जानना यदि गलत है, तो जानबूझकर न भूल पाना, हमेशा जोंक की तरह उससे चिपटे रहना यह भी गलत है।
बर्मा से आते हुए मेरी पत्नी की मृत्यु हुई थी, जिन्दगी काफी दिलचस्प लगती है, और यदि उम्र की मजबूरी न होती तो शायद मैं दूसरी शादी करने में भी न हिचकता। इसके बावजूद कौन कह सकता है कि मैं अपनी पत्नी से प्रेम नहीं करता था-आज भी करता हूँ…
लतिका का कथन- सब कुछ होने के बावजूद वह क्या चीज है जो हमें चलाए चलती है, हम रुकते हैं तो भी अपने रेले में वह हमें घसीट ले जाती है?
कहानी के अंत में – लतिका धीरे-धीरे दबे पाँव जूली के पलंग के पास चली आई। जूली का सोता हुआ चेहरा लैम्प के फीके आलोक में पीला-सा दीख रहा था। लतिका ने अपनी जेब से वही नीला लिफाफा निकाला और उसे धीरे से जूली के तकिए के नीचे दबाकर रख दिया।
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