Class 12 – अभिव्यक्ति और माध्यम | Expression and Media ( patrakaarita – vibhinn maadhyamon ke lie lekhan)
प्रमुख जनसंचार माध्यम (प्रिंट, टी.वी., रेडियो और इंटरनेट) (Major Mass Media (Print, TV, Radio and Internet))
समाचार जानने लिए, इंटरनेट, टी.वी. रेडियो और अखबार माध्यम हैं। प्रत्येक माध्यमों में समाचारों की लेखन-शैली, भाषा और प्रस्तुति में अंतर होते हैं। जहाँ अखबार पढ़ने के लिए हैं, वहीं रेडियो सुनने के लिए और टी.वी. देखने के लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं। इंटरनेट पर समाचार पढ़ने, सुनने और देखने तीनों की सुविधा है। अखबार में शब्द छपे जाते हैं, रेडियो में शब्द बोले जाते हैं। प्रत्येक माध्यम की अपनी खूबियाँ हैं और खामियाँ हैं।
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की खूबियाँ और खामियाँ (Merits and Demerits of Different Media of Mass Communication)
ऐसा नहीं है कि जनसंचार का कोई एक माध्यम सबसे अच्छा या बेहतर है या कोई एक-दूसरे से कमतर है। सब की अपनी खूबियाँ और खामियाँ हैं। जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के बीच फ़र्क चाहे जितना हो लेकिन वे आपस में आपस में एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी हैं।
अखबार में समाचार पढ़ने और रुककर उस पर सोचने में एक अलग तरह की संतुष्टि मिलती है, टी.वी. पर घटनाओं की तसवीरें देखकर उसकी जीवंतता का एहसास होता है। रेडियो पर खबरें सुनते हुए हम जितना उन्मुक्त होते हैं, उतना किसी और माध्यम में संभव नहीं है। प्रत्येक माध्यम हमारी अलग-अलग ज़रूरतों को पूरा करते हैं और इन सभी की हमारे दैनिक जीवन में कुछ न कुछ उपयोगिता है।
प्रिंट माध्यम (Print Medium)
प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना है। आधुनिक युग की शुरूआत ही मुद्रण यानी छपाई के आविष्कार से हुई। मुद्रण की शुरूआत चीन से हुई लेकिन आज हम जिस छापेखाने को देखते हैं, इसके आविष्कार का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को जाता है। छापाखाना यानी प्रेस के आविष्कार ने दुनिया की तसवीर बदल दी। यूरोप में पुनर्जागरण ‘रेनेसाँ’ की शुरूआत में छापेखाने की अहम भूमिका थी।
भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 में गोवा में खुला। मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए खोला था। तब से अब तक मुद्रण तकनीक में काफ़ी बदलाव आया है और मुद्रित माध्यमों का व्यापक विस्तार हुआ है। मुद्रित माध्यमों में अखबार, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि शामिल हैं।
मुद्रित माध्यमों की दूसरी बड़ी विशेषता यह है कि यह लिखित भाषा का विस्तार करती है। लिखने में भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शब्दों के इस्तेमाल का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
मुद्रित माध्यम चिंतन, विचार और विश्लेषण का माध्यम है।
मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी कमज़ोरी या सीमा यह है कि निरक्षरों (अनपढ़) के लिए मुद्रित माध्यम किसी काम के नहीं हैं।
मुद्रित माध्यम मे रेडियो, टी.वी. या इंटरनेट की तरह तुरंत घठी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते क्योंकि यह एक निश्चित अवधि मे प्रकाशित होते हैं। उदाहरण के लिए – अखबार 24 घंटे में एक बार प्रकाशित होता है।
अखबार में किसी भी समाचार को लिखने के लिए शब्द सीमा का ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि अखबार में अतरिक्त जगह नहीं होती है।
रेडियो (Radio)
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल है। रेडियो समाचार बुलेटिन को कभी भी और कहीं से भी नहीं सुन सकता। उसे बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतज़ार करना होगा और फिर शुरू से लेकर अंत तर बारी-बारी से एक के बाद दूसरा समाचार सुनना होगा।
- रेडियो में अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं है।
- रेडियो मूलतः एकरेखीय (लीनियर) माध्यम है और रेडियो समाचार बुलेटिन का स्वरूप, ढाँचा और शैली इस आधार पर ही तय होता है।
- रेडियो में शब्द और आवाज़ ही सब कुछ है।
रेडियो समाचार की संरचना (Structure of Radio News)
- रेडियो समाचार की संरचना अखबारों या टी.वी. की तरह उलटा पिरामिड (इंवर्टेड पिरामिड) शैली पर आधारित होती है।
- उलटा पिरामिड-शैली में समाचार के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है और उसके बाद घटते हुए महत्वक्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है।
- उलटा पिरामिड शैली के तहत समाचार को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है – एंट्रो, बॉडी और समापन।
रेडियो के लिए समाचार लेखन-बुनियादी बातें (News Writing for Radio – The Basics)
क) साफ़-सुथरी और टाइप्ड कॉपी – रेडियो समाचार कानों के लिए यानी सुनने के लिए होते हैं, सुने जाने से पहले समाचार वाचक या वाचिका उसे पढ़ते हैं और तब वह श्रोताओं तक पहुँचता है। इसलिए समाचार कॉपी ऐसे तैयार की जानी चाहिए कि उसे पढ़ने में वाचक/वाचिका को कोई दिक्कत ना हो।
- समाचार कॉपी को कंप्यूटर पर ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए।
- एक लाइन में अधिकतम 12-13 शब्द होना चाहिए। पृष्ठ के आखिर में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाहिए।
- कॉपी में ऐसे जटिल और उच्चारण में कठिन शब्द, संक्षिप्तताक्षर (एब्रीवियेशंस), अंक आदि नहीं लिखने चाहिए जिन्हें पढ़ने में ज़बान लड़खड़ाने लगे।
ख) डेडलाइ, संदर्भ और संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग – रेडियो में अखबारों की तरह डेडलाइन अलग से नहीं बल्कि समाचार से ही गुँथी होती है। रेडियो में 24 घंटे समाचार चलते रहते हैं। इसलिए समाचार में आज, आज सुबह, आज दोपहर, आज शाम, आज तड़के आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसी सप्ताह, अगले सप्ताह, पिछले सप्ताह, इस महीने, अगले महीने, पिछले महीने, इस साल, पिछले साल, अगले साल, अगले बुधवार, या पिछले शुक्रवार जैसे शब्दों का उपयोग करके सुचना सुनाई जाती है।
टेलीविज़न (Television)
टी.वी. खबरों के विभिन्न चरण-
- टेलीविज़न में दृश्यों की अहमियत सबसे ज़्यादा है। टेलीविज़न देखने व सुनने का माध्यम है परिणाम स्वरूप इस बात का ध्यान रखा जाता है कि बोले जा रहे शब्द परदे पर दिखने वाले दृश्य के अनुकूल रहें।
- टेलीविज़न में शब्दों से ज़्यादा खबर बताने की कला का इस्तेमाल किया जाता है। टी.वी. के लिए खबर दृश्य को ध्यान में रखकर लिखी जाती है।
- टेलीविज़न पर दो तरह से खबर पढ़ी जाती है- 1) खबर का शुरूआती हिस्सा, जिसमें मुख्य खबर होती है, बगैर दृश्य के न्यूज़ रीडर या एंकर पढ़ता है। 2) परदे पर एंकर के स्थान पर खबर से संबंधित दृश्य दिखाए जाते हैं। यदि आग लगने की सूचना है, और आग का दृश्य मौजूद है तो एंकर इस प्रकार कहेगा – आग की ये लपटें सबसे पहले शाम चार बजे दिखीं, फिर तेज़ी से फैल गई। दृश्य के साथ बँधे होने की शर्त हर खबर पर लागू नहीं होगी।
1) फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ – बड़ी खबर फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जाती है।
2) ड्राई एंकर – इसमें एंकर खबर के बारे में दर्शकों को सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ।
3) फ़ोन-इन – एंकर रिपोर्टर से फ़ोन पर बात करके सूचनाएँ दर्शकों तक पहुँचाता है। रिपोर्टर घटना के स्थान पर मौजूद होता है।
4) एंकर-विजुअल – जब घटना के दृश्य मिल जाते हैं तब उन दृश्यों के आधार पर खबर लिखी जाती है, जो एंकर पढ़ता है।
5) एंकर-बाइट – बाइट यानी कथन। इसके अंतर्गत घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखा और सुनाकर खबर को प्रामाणिकता प्रदान की जाती है।
6) लाइव – लाइव यानी किसी खबर का घटनास्थल से सीधा प्रसारण।
7) एंकर पैकेज – इसमें संबंधित घटना के दृश्य, इससे जुड़े लोगों की बाइट, ग्राफ़िक के ज़रिये ज़रूरी सूचनाएँ आदि होती हैं।
टी.वी. में सिर्फ़ बाइट या वॉयस ओवर नहीं होते, और भी ध्वनियाँ होती हैं। उन ध्वनियों से भी खबर या उसका मिजाज़ बनता है। टी.वी. में ऐसी ध्वनियों को नेट या नेट साउंड यान प्राक्रतिक आवाज़ें कहते हैं – वह आवाज़ें जो शूट करते हुए खुद-ब-खुद चली आती हैं।
रेडियो और टेलीविज़न समाचार की भाषा और शैली (Language and Style of Radio and Television News)
किसी भी तरह के लेखन का कोई फ़ार्मूला नहीं हो सकता है। रेडियो और टी.वी. पत्रकारिता का भी नहीं है। रेडियो और टी.वी. आम आदमी के माध्यम हैं। भारत जैसे विकासशील देश में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मज़दूर तक सभी हैं। इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी को आसानी से समझ में आ सके लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े।
आपसी बोलचाल में जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह की भाषा का इस्तेमाल रेडियो और टी.वी. समाचार में भी करें। सरल भाषा लिखने के लिए वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ।
तथा, एवं, अथवा, व किंतु परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। इनके स्थान पर और, या, लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए।
इंटरनेट (Internet)
- इंटरनेट को इंटरनेट पत्रकारिता, ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता कुछ भी कहा जा सकता है।
- जो लोग इंटरनेट के अभ्यस्त हैं, या जिन्हें चौबीसों घंटे इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है, उन्हें अब कागज़ पर छपे हुए अखबार उतने ताज़े और मनभावन नहीं लगते। परिणाम स्वरूप घंटे-दो-घंटे में खुद को अपडेट करने की लत लगती जा रही है।
- हर साल करीब 50-55 फ़ीसदी की रफ़तार से इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या बढ़ रही है।
- इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का बेहतरीन औज़ार है, वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी ज़रिया है। यह स्पष्ट है कि रिसर्च या शोध का काम तो इंटरनेट ने बेहद आसान कर दिया है।
- एक समय ऐसा था जब टेलीप्रिंटर पर एक मिनट में 80 शब्द एक जगह से दूसरी जगह भेजे जा सकते थे, आज एक सेकेंड में 56 किलोबाइट यानी लगभग 70 हज़ार शब्द भेजे जा सकते हैं।
- इंटरनेट पर अखबारों का प्रकाशन या खबरों का आदान-प्रदान ही वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता है। लगभग प्रत्येक प्रमुख अखबार इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। कई प्रकाशन समूहों ने और कई निजी कंपनियों ने खुद को इंटरनेट पत्रकारिता से जोड़ लिया है।
इंटरनेट पत्रकारिता का इतिहास (History of Internet Journalism)
वर्तमान मे विश्व में पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है। पहला दौर 1982 से 1992 तक चला था। दूसरा दौर 1993 से 2001 तक चला था। तीसरा दौर 2002 से अब तक चल रहा है। सही मायने में इंटरनेट पत्रकारिता की शुरूआत 1983 से 2002 के बीच हुई थी। इंटरनेट ईमेल, इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेटस्केप नाम के ब्राउजर इसी दौर में आए। न्यू मिडिया के नाम पर डॉटकॉम कंपनियों का उफ़ान आया।
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता (Internet Journalism in India)
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है। पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता है। 2003 से अब तक दूसरा दौर चल रहा है। पत्रकारिता की दृष्टि से टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, हिंदू, ट्रिब्यून, स्टेट्समैन, पॉयनियर, एनडीटी.वी., आईबीएन, जी न्यूज़, आजतक और आउटलुक की साइटें की बेहतर हैं। रीडिफ़ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है जो गंभीरता से इंटरनेट पर पत्रकारिता कर रही है।
हिंदी नेट संसार (Hindi Net Hansar)
हिंदी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ के साथ शुरू हुई। जागरण, अमर उजाला, नयी दुनिया, हिन्दुस्तान, भास्कर, राजस्थान पत्रिका, नवभारत टाइम्स, प्रभात खबर व राष्ट्रीय सहारा के वेब संस्करण शुरू हुए। प्रभासाक्षी नाम से शुरू हुआ अखबार, प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ़ इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। हिन्दी की पत्रकारिता के लिहाज़ से सर्वश्रेष्ट साइट बीबीसी की है।
By Sunaina