Ignou Study Material : जुलूस कहानी का सारांश व निष्कर्ष : MHD 10 प्रेमचन्द कहानी विविधा | MHD 10 Premchand Story Miscellaneous
कहानी का परिचय (Introduction to the Story)
जब किसी सीमित समाज या स्थान का शोषण करना होता है, शोषण करने वाला व्यक्ति या वर्ग खुद ही कर लेता है, लेकिन शोषण करने के लिए क्षेत्र का विस्तार हो जाता है, और जिस पर शोषण करने है, वह हमारे अपने नहीं है, तो उन पर अप्रत्यक्ष रूप से शोषण किया जाता है। जैसा की औपनिवेशिक शासन काल में अंग्रेजो ने किया था। उन्होंने भारत के लोगों का शोषण करने के लिए जो लीडर बनाएँ थे, वह भारतीय ही थे, और खुद उन लीडरों पर दबाव बनाते थे, उदाहरण के लिए किसानों से लगान वसूल करने की ज़िम्मेदारी भारत के ज़मीदारों की दी गई थी। सैनिक बल का उपयोग करने के लिए निचले तबके में भारतीय सैनिक/दरोगा को रखा हुआ था। खुद ज़मीदारों और दरोगाओं के माध्यम से भारत के लोगों का शोषण कर रहे थे। अर्थात अपना वर्चस्व मनवा रहे थे।
आज हम ऐसी ही कहानी की बात कर रहे हैं, कहनी का नाम है- जुलूस, यह कहानी प्रेमचंद जी द्वारा लिखी गई है, इस कहानी में इब्राहिम अली और बीरबल सिंह दो मुख्य पात्र हैं।
जुलूस कहानी का सारांश (Juloos story summary)
जैसा की इस कहानी का नाम जुलूस है, इस कहानी में दो बार जुलूस निकलता है। पहला जुलूस पूर्ण स्वराज्य के लिए आम जनता के द्वारा निकाला जा रहा था। इस जुलूस का नेतृत्व वृद्ध इब्राहिम अली द्वारा किया जा रहा था। जुलूस निकालने पर बाज़ार के दुकानदार शंभूनाथ, दीनदयाल मैकू आदि इस जुलूस की आलोचना कर रहे थे, क्योंकि इस जुलूस में अधिकतर यंग जनरेशन के लोग हैं, जिन्हें वे ‘लैंडे लफंगे’ कहकर संबोधित करते हैं। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो अमीर हो या फिर किसी ऊँचे पद पर बैठा हो।
इस जुलूस को रोकने के लिए दरोगा बीरबल सिंह अपनी टीम के साथ आ जाता है। वह जुलूस के लोगों को लौटने के लिए कहता है, लेकिन इब्राहिम अली कहता है कि हम किसी को कोई नुकसान नहीं पहुचाएँगे, लेकिन डी.एस.पी. को आते देखकर बीरबल सिंह ने उनकी एक नहीं सुनी, बेटन (डंडे) से इब्राहिम के सर पर प्रहार कर दिया, परिणाम स्वरूप चक्कर खा कर इब्राहिम अली वहीं गिर गया। उसके गिरने के बाद अपने घोड़े से इब्राहिम को कुचल दिया, साथ ही साथ बीरबल की टीम ने अन्य लोगों को भी डंडो से मारना शुरू कर दिया। जुलूस की भीड़ ने बिना विरोध किए मार खाती रही।
इस मार पीट की खबर जब बाजार तक पहुँची तो, शंभूनाथ, दीनदयाल, मैकू आदि लोग भी अपनी दुकानें बन्द करके जुलूस की तरफ आने लगे। यह शोर सुनकर इब्राहिम अली ने कैलाश से पूछा, कैलाश ने कहा शहर से लोग आ रहे हैं। वृद्ध इब्राहिम कोई दंगा फसाद नहीं करवाना चाहते थे, परिणाम स्वरूप उन्होंने सबसे वापस लौटने के लिए कह दिया। बाँसों, साफों और रूमालों से एक स्ट्रेचर बनाया गया और उसी पर इब्राहिम को लेटा कर ले जाया गया।
बीरबल सिंह जब अपने घर गए तो उनकी पत्नी ने उनके द्वारा किए जुलूस के इस विरोध और विरोध के दौरान इब्राहिम अली को मारे जाने पर क्रोध व्यक्त किया। उनकी पत्नी का नाम मिट्ठन बाई है, बीरबल सिंह ने अपनी परिस्थियों और नौकरी की मजबूरियों को समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन मिट्ठन बाई को अपनी बातों से सहमत नहीं कर पाए।
इसी दौरान एक सरकारी चिट्ठी आई, उसमें एक और जुलूस निकलने की सूचना थी। बीरबल सिंह की पत्नी ने ताना देते हुए कहा यह तरक्की की चिट्ठी होगी। लेकिन बीरबल ने सच बताते हुए कहा यह जुलूस निकलने की चिट्ठी है।
कुछ ही देर में जुलूस निकलने लगा। इस जुलूस में वंदेमातर् म के नारे लगने लगे। इसी जुलूस में इब्राहिम अली के शब की यात्रा निकाली जाने लगी। बीरबल सिंह के मारने से इब्राहिम अली के सर पर बहुत गहरी चोट लग गई थी। तीन दिन के बुखार और भीषण दर्द के बाद इब्राहिम अली की मृत्यु हो गई। इस जुलूस में महिलाएँ भी शामिल थीं।
महिलाओं ने बीरबल के द्वारा किए गए कार्य की निंदा की। उसे बहुत भला-बुरा सुनाया, महिलाओं की इस भीड में बीरबल सिंह की पत्नी मिट्ठन बाई भी थी। उसने अपने पति को कुछ कहा तो नहीं लेकिन उसकी आँखों में भी गुस्सा भरा था। बीरबल सिंह शर्मिंदा होकर जुलूस के रास्ते से हट जाता है। इब्राहिम अली की आखरी इच्छा थी कि गंगा स्नान के बाद उसे दफनाया जाए। परिणाम स्वरूप सभी जुलूस लेकर ग्यारह बजे तक गंगा घाट पहुँचे, इस जुलूस में घोड़े पर सवार होकर बीरबल सिंह भी भीड़ के पीछे-पीछे उनके साथ आ गए थे।
वापस लौटने के समय मिट्ठन बाई बहुत तनाव में आ जाती है, बीरबल सिंह से पूछे बिना जुलूस में शामिल हुई थी, परिणाम स्वरूप अब घर जाने से डर रही थी। इब्राहिम अली की कोई संतान नहीं है, मिट्ठन बाई सोचती है- इब्राहिम अली की पत्नी वृद्धा का क्या हाल हो रहा होगा। इसलिए उससे मिलने उसके घर चली जाती है।
वहाँ जाकर देखती है, बीरबल सिंह पहले से इब्राहिम की विधवा के पास पहुँच गया है, और वह अपनी गलती की माफ़ी उससे माँग रहा है। यह देखकर मिट्ठन बाई का अपने पति पर जो भी क्रोध था, वह समाप्त हो गया। यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
कहानी साहित्य है, और साहित्य समाज का दर्पण। यह कहानी प्रेमचंद जी ने लिखी है, प्रेमचंद जी औपनिवेशिक काल के लेखक हैं, परिणाम स्वरूप उस दौर में किस प्रकार आंदोलन किए जाते थे, और आंदोलन के दौरान अंग्रेज भारतीयों का विरोध भारतीयों द्वारा ही करवाते थे, जिसकी झलक इस कहानी में देखने को मिलती है।
अधिक जानकारी के लिए आधुनिक भारत का इतिहास पढ़े और अपने विवेक से निष्कर्ष पर पहुँचे।
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