कहानी का परिचय (Introduction to the Story)
एक टोकरी भर मिट्टी के लेखक का नाम माधवराव सप्रे है। देवी प्रसाद वर्मा ने एक टोकरी भर मिट्टी को हिंदी की पहली कहानी माना है। यह कहानी बिलासपुर जिले के एक गाँव पेंड्रा से छत्तीसगढ़ मित्र नामक पत्रिका में प्रथम बार 1901 में प्रकाशित हुई। छत्तीसगढ़ पत्रिका के संपादक माधवराव सप्रे ही थे। 1900 में पेंड्रा गाँव से निकाली गई थी, यह पत्रिका मासिक पत्रिका थी।
कहानी के मुख्य दो पात्र हैं, जमींदार और अनाथ विधवा है। गौण पात्र- जमींदार का वकील और विधवा की पोती है।
यह कहानी वर्ग भेद पर आधारित है। इसमें एक गरीब के शोषण का चित्रण है। कहानी में अहंकार और स्वार्थ का चित्रण जमींदार के माध्यम से किया गया है। यह कहानी हृदय परिवर्तन की है, विधवा बुजुर्ग महिला द्वारा जमींदार का हृदय परिवर्तन हो जाता है।
एक टोकरी भर मिट्टी कहानी का सारांश (Ek Tokaree Bhar Mittee Story Summary)
एक जमींदार के महल (घर) के पास गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता (ब्राउंड्री) उस झोपड़ी तक बढ़ाने की इच्छा हुई, विधवा से बार-बार कहा कि वह अपनी झोपड़ी हटा ले, लेकिन वह कई ज़माने से वहीं बसी थी, उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोपड़ी में मर गए थे। बहू भी एक पाँच साल की बेटी छोड़कर चल बसी थी।
पेपर – 2 Drishti IAS UGC Hindi Sahitya [NTA/NET/JRF] – 4TH EDITION खरीदने के लिए क्लिक करें
विधवा की पोती ही उसका एकमात्र जीवन का आधार थी, जब वह अपने पूर्वस्थिति याद आई तो दुख के मारे फूट-फूट कर रोने लगती थी। जबसे उसे पता चला था कि ज़मीदार की नज़र उसकी झोपड़ी पर है, तब से वह मृतप्राय हो गई थी। विधवा का मन उसी झोपड़ी में लगता था, वह अपनी मृत्यु तक उसी झोपड़ी में रहना चाहती थी। जब श्रीमान अर्थात ज़मीदार के सारे प्रयास असफल हो गए तो उन्होंने बाल का खाल निकालने वाले वकीलों को रूपए देकर अदालत से झोंपड़ी पर अपना कब्जा करा लिया और विधवा को झोपड़ी से निकाल दिया। परिणाम स्वरूप अब उसके पास रहने को अपना घर नहीं था, तो पास-पडोस में जाकर रहने लगी।
फिर एक दिन श्रीमान ज़मीदार् उस झोंपड़ी के आसपास टहल रहे थे और लोगों को उनका काम बता रहे थे कि वह विधवा हाथ में एक टोकरी लेकर वहाँ पहुँची। श्रीमान ने उसके देखते ही अपने नौकरों से कहा कि उसे यहाँ से हटा दो। लेकिन वह गिड़गिड़ाकर बोली, महाराज, अब तो यह झोपड़ी तुम्हारी ही हो गई है। मैं उसे लेने नहीं आई हूँ। महाराज क्षमा करें तो एक विनती है, जमींदार ने सिर हिलाकर उसे कहा सुनने के लए हाँ कहा। जब यह झोंपड़ी छूटी है, तब से मेरी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानती है। यही कहती है कि अपने घर चल, वहीं रोटी खाऊँगी।
मैंने यह सोचा कि इस झोपड़ी में से एक टोकरी भर मिट्टी लेकर उसी का चूल्हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महाराज कृपा करके आज्ञा दीजिए तो इस टोकरी में मिट्टी ले आऊँ। परिणाम स्वरूप श्रीमान ने आज्ञा दे दी।
विधवा झोंपड़ी के भीतर गई। वहाँ जाते ही उसे पुरानी बातों का स्मरण हुआ और उसकी आँखों से आँसू की धारा बहने लगी। अपने आपको संभालकर उसने अपनी टोकरी में मिट्टी भर ली और हाथ से उठाकर बाहर ले आई। फिर हाथ जोड़कर श्रीमान से प्रार्थना करने लगी, महाराज कृपा करके इस टोकरी को हाथ लगाइए जिससे कि मैं उसे अपने सिर पर रख सकूँ।
किसी नौकर से न कहकर जमीदार स्वयं ही टोकरी उठाने के लिए आगे बढ़े। ज्योंही टोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठाने लगे त्योंही देखा कि यह काम उनकी शक्ति के बाहर है। उसके बाद अपनी पूरी ताकत लगाकर टोकरी उठाना चाहा, लेकिन जिस स्थान पर टोकरी रखी थी, वहाँ से एक हाथ भी टोकरी ऊँची नहीं उठा पाए। वह लज्जित होकर कहने लगे नहीं, यह टोकरी हमसे न उठाई जाएगी।
यह सुनकर विधवा ने कहा, महाराज, नाराज न हो, आपसे एक टोकरी-भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी हैं। उनका भार आप जन्म-भर क्योंकर उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए। ज़मीदार साहब धन पद से पवित्र हो अपना कर्तव्य भूल गए थे पर विधवा के उपयुक्त वचन सुनते ही उनकी आँखे खुल पायी। कृतकर्म का पश्चाताप कर उन्होंने विधवा से क्षमा मांगी और उसकी झोपड़ी वापस कर दी।
- study material : बिस्कोहर की माटी का सारांश व समीक्षा | Summary and Review of Biskohar Ki Mati
- Study Material : जूझ आत्मकथा का सारांश व समीक्षा | Summary and Review of Jujh Autobiography
- Study Material : सिल्वर वैडिंग कहानी का सारांश व समीक्षा | Summary and Review of the Story Silver Wedding
- Study Material : कुटज निबन्ध का सारांश व समीक्षा | Kutaj (Hazari Prasad Dwivedi) Summary and Review
- Study Material : भारत दुर्दशा नाटक का संक्षिप्त सारांश, कथन व महत्वपूर्ण तथ्य | Brief summary, statements and important facts of the play Bharat Durdasha