Ignou Study Material : घासवाली कहानी का सारांश : MHD 10 प्रेमचन्द कहानी विविधा | MHD 10 Premchand Story Miscellaneous
कहानी का परिचय (Introduction to the Story)
यदि प्रेम की बात करें तो किसी भी व्यक्ति के प्रेम का क्या आधार है? किसी महिला या पुरूष का सुंदर होना, धनवान होना, समाज में उनकी प्रतिष्ठा का होना, या उस व्यक्ति के अन्दर मौजूद सीरत, जिसमें समर्पण, निष्ठा, त्याग, सकारात्मकता आदि मौजूद है। विचार कीजिए, प्रेम का मूल आधार क्या है?
इसी आधार पर प्रेमचंद जी की लिखी कहानी है, जिसका नाम घासवाली है। इस कहानी की नायिका मुलिया है, जो घास काट कर बाजार में बेचती है। चैनसिंह नाम का व्यक्ति उसकी सुंदरता से आकर्षित हो जाता है।
घासवाली कहानी का सारांश (Summary of Ghaswali Story)
मुलिया घास लेकर घर आती है, वह बहुत गुस्से में है। उसका पति महावीर उसके गुस्से का कारण पूछता है, लेकिन वह उसे नहीं बताती है। वह घास लेकर आ रही थी, तो चैनसिंह ने उसका हाथ पकड लिया। मुलिया घबरा गई और उसने चल्लाने की धमकी दी, परिणाम स्वरूप चैनसिंह ने उसका हाथ छोड़ दिया। यह बात वह अपने पति महावीर को नहीं बताना चाहती है, क्योंकि उसे पता है, उसने ऐसा किया तो उसका पति चैंनसिंह के खून का प्यासा बन जाएगा। अर्थात मुलिया इसके परिणाम से भी घबरा जाती है।
मुलिया को शादी करके इस गाँव में आए एक साल से अधिक हो गया है, लेकिन मुलिया ने किसी पुरूष कि तरफ आँख उठाकर नहीं देखा है, न ही किसी से बात की है। मुलिया चमारिन है, साथ ही बहुत सुन्दर भी है। अधिकतर पुरूष उसकी सुंदरता के प्रति आकर्षक हैं। वे चाहते हैं, मुलिया उनसे बात किया करे। उन्हीं में से एक चैनसिंह भी है, उसने आज मुलिया को अकेला पाकर उसकी बाँह पकड़ी।
दूसरे दिन मुलिया घास लेने नहीं गई, यह जानकर सास ने उसे बहुत कुछ भला-बुरा सुना दिया। मुलिया ने अकेले घास के लिए जाने से मना कर दिया तो सास ने और ज़्यादा सुनाया। सास ने कहा उसे मुलिया की सुंदरता से नहीं उसके काम से मतलब है। मुलिया दुखी होकर घास लेने जाने लगी, तब महावीर ने दिखावे के लिए उसे जाने से मना किया। लेकिन मुलिया यह कहकर निकल गई कि वह घास नहीं लाएगी तो घोड़ा खाएगा क्या?
आज मुलिया घास काटने रास्ता बदल कर गई। एक जगह उसने देखा बहुत अच्छी घास है, परिणाम स्वरूप उसने घास काटना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में वहाँ चैनसिंह आ गया। वह जिन खेतो से घास काट रही थी, वह चैनसिंह का ही था। चैनसिंह को देखते ही मुलिया डर गई और उसके हाथ में खुर्पी जम गई।
चैनसिंह ने मुलिया को यकीन दिलाया की, वह उसके साथ कुछ गलत नहीं करेगा। वह उससे डरे न, उसने मुलिया को बताया वह उसकी दया (अनैतिक संबन्ध) चाहता है। यह सुनकर मुलिया कुछ समान्य हो गई, और उसने कहा – यह दया वह दूसरी महिलाओं से क्यों नहीं माँग लेता जो उससे ज़्यादा सुन्दर है, साथ ही मुलिया ने इसका उत्तर भी दे दिया। वह महिलाएँ मुलिया की तरह छोटी जाति की नहीं है, न ही कमज़ोर है, परिणाम स्वरूप वह ऐसी हिम्मत नहीं कर सकता।
मुलिया ने यह भी पूछ लिया यदि ऐसी ही बात उसका पति महावीर चैनसिंह की पत्नी से कहे तो क्या चैनसिंह महावीर को छोड़ देगा? इस बात चीत के दौरान मुलिया ने अपने पति के सकारात्मक चरित्र के बारे में कहा कि वह किसी दूसरी औरत को देखता भी नहीं है, ऐसे में वह खुद अपने पति को धोखा कैसे दे दे? मुलिया ने चैनसिंह से पूछा यदि उसे रोग हो जाति, माता निकल आए तो क्या तब भी उससे प्रेम करेगा या दया मागेगा। चैनसिंह ने इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया अर्थात यदि मुलिया सुंदर न रहे तो वह चैनसिंह के किसी काम की नहीं है। यह सारी बाते सुनकर चैनसिंह की सूरत लज्जा से ऐसा सूख गया जैसे वह महीनों से बीमार है।
उस दिन के बाद चैनसिंह के व्यवहार में पूर्ण रूप से परिवर्तन आ गया। लेखक का कहना है “जवानी का नशा मुलिया ने उतार दिया” । पहले चैनसिंह से आसामी और मजदूर बहुत डरते थे, वह लोगों को गाली देता, डांटता और कभी-कभी पीट भी देता था। अब उसके व्यवहार में नर्मी आ गई है।
एक दिन वह अपने खेतो में गया तो देखा जो पानी खेतो में जाना था, वह पानी बह रहा था क्योंकि पानी के प्रवाह में बीच से मिट्टी निकल गई थी। वहाँ पर इस काम को देखने के लिए एक वृद्धा को नौकरी कर रही थी, पहले ऐसा होता था, तो चैनसिंह मजदूरी के रूपए काट लेता था, आज उसने खुद ही मिट्टी उठाकर नाली बन्द कर दी। वृद्धा ने देखा तो वह डर से कंपने लगी, लेकिन चैनसिंह ने समान्य भाव से कहा उसने खुद ही नाली बन्द कर दी है। साथ ही उसके पति के बारे में पूछा और उसे भी अपने यहाँ काम पर आने को बोल दिया।
कुए की तरफ गया तो वहाँ चार मजदूर काम कर रहे थे, उनमें से दो मजदूर बैर खाने व लेने चले गए थे। चैनसिंह आया तो वह सामने पड़ गए, डरने लगे अब न ही वह लौट पा रहे थे, न ही चैनसिंह के सामने आना चाहते थे। चैनसिंह ने समान्य होकर उनके साथ बैठकर बैर खाई और चला गया। उसके जाने के बाद एक मजदूर ने कहा – अब वह बदल गए हैं, एक ने कहा शाम को मजदूरी काट ली जाएगी, एक ने कहा अब हम दिल लगाकर काम करेंगे।
एक दिन चैनसिंह को कचहरी (कोट) जाना था, उसने महावीर का टाँगा मंगा लिया। उसके टाँगे कि हालत बैठने लायक नहीं थी, लेकिन फिर भी वह उस पर बैठ गया। बात-चीत के दौरान महावीर ने चैनसिंह को बताया पहले ढाई-तीस सौ की कमाई हो जाती थी, लेकिन अब लारिय (बस) के आ जाने से कोई फ्री में भी नहीं पूछता। पूरे दिन में बीस आने की भी कमाई नहीं हो पाती है। महाजन से कर्जा लेकर उसने घोडा खरीदा था, अब देख रहा है, कोई उससे खरीदने वाला मिल जाए तो घोड़ा-टाँगा बेचकर कोई और काम करेगा।
अभी मुलिया और उसकी सास मिलकर घास काटती हैं, और मुलिया अकेले उसे बेचने जाती है। दस-बारह आने मिल जाते हैं, उसी से घर चलता है। कचहरी पहुँचकर चैनसिंह ने महावीर को शाम को लेने आने के लिए भी कह दिया।
शाम के चार बज गए चैनसिंह कचहरी का काम पूरा करके निकला तो देखा मुलिया घास बेच रही है। कोचवान उसे नकारात्मक रूप से देख रहे हैं, कोई उससे मोल-भाव कर रहा है, कोई रस भरी निगाह से उसे देख रहा है, कोई उससे हँसी (मजाक) कर रहा है। यह देखकर चैनसिंह को बहुत गुस्सा आया, उस दिन तो वह शेरनी बन गई थी, और आज इन सबसे ऐसे बातें कर रही है।
कुछ ही देर में मुलिया की घास बिक गई और वह चली गई। इस दौरान वहाँ और क्या हुआ चैनसिंह को कुछ पता नहीं है। उसकी समाधि टूटी तो दुकान वाले ने उसकी इस बीमारी का इलाज करवाने को कहा। इतनी देर में इक्का लेकर महावीर आ गया।
चैनसिंह ने महावीर से उसकी आज की कमाई के विषय में बात की, महावीर ने कहा कोई कमाई नहीं हुई, उल्टा वह चार पैसे की बीड़ियाँ पी गया। यह सुनकर चैनसिंह ने कहा वह महावीर को रोज एक रूपये देगा, इसके बदले में वह मुलिया को घास बेचने के लिए न भेजा करे। यह बात मुलिया को न बताए।
फिर एक दिन शाम को चैनसिंह अपने घर की तरफ चला जा रहा था, तभी मुलिया भागती हुई चैनसिंह के पास आई और उसने कहा वह कई दिनों से उससे मिलने की कोशिश कर रही थी। उसने आज चैनसिंह को याद दिलाया इसी जगह उसने उसकी बाँह (हाथ) पकड़ा था। चैनसिंह ने शर्मिंदा होकर कहा उसे भूल जाओ। मुलिया ने सम्मान जनक शब्दो में कहा – “कैसे भूल जाऊँ, उसी बाँह गहे की लाज तो तुम निभा रहे हो”। चैनसिंह समझ गया कि मुलिया को पता है।
मुलिया ने पूछ लिया तुमने मुझे घास बेचते देखा था क्या। चैनसिंह ने कहा हाँ, साथ ही उसने कहा गरीबी बहुत कुछ करवाती है, और अब वह इस बात से खुश है कि उसे घास बेचने नहीं जाना पड़ता है। अपनी बात कह कर वह चली जाती है, चैनसिंह उसे जाते हुए तब तक देखता रहता है, जब तक उसी परछाई दिखाई देती है। चैनसिंह मन से खुद को बहुत सुखी महसूस कर रहा है। यहीं कहानी समाप्त हो जाती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
चैनसिंह जो पहले मुलिया के प्रति उसकी सुंदरता के कारण आकर्षित हुआ था, वह बाद में उसकी बातों से प्रभावित होकर उसके प्रित श्रद्धा पूर्ण रूप से प्रेम करने लगता है।
मुलिया की सास उसकी भवनाओं और परेशानियों को नहीं समझती और जबरजस्ती उसे घास काटने भेज देती है, जिससे आपसी सम्बन्ध में सहयोग न होने का पता चलता है।
महावीर कमाई न होने के बाद भी बीड़ियाँ खरीद कर पीता है, इससे पता चलता है- नशा करने वाला व्यक्ति नशे को प्रथमिकता देता ही है। नशा परिवारिक समृद्धि में रूकावट का काम करता है। यह एक कहानी है, इसकी तुलना समाज की वास्तविकता और वर्तमान स्थिति से करके विचार कीजिए?
कहानी के अंत में मुलिया चैनसिंह का सम्मान करने लगती है, साथ ही अपने प्रति सच्ची और समर्पित रहती है।
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