Study Material : लाल पान की बेगम कहानी का सारांश | Lal Paan Ki Begum Story Summary

Study Material : Net JRF Hindi Unit 7 लाल पान की बेगम कहानी का सारांश | Lal Paan Ki Begum Story Summary

फणीश्वरनाथ रेणु का परिचय (Introduction of Phanishwarnath Renu)

फणीश्वरनाथ रेणु जी का जन्म 4 मार्च 1921 को हुआ था। उनका जन्म स्थान औराही हिंगना गाँव अररिया, बिहार है। उन्होंने अपनी शिक्षा मैट्रिक  विराटनगर, नेपाल से, इण्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1942 में प्राप्त की है। उनका निधन 11 अप्रैल 1977 को हुआ था।

उनकी प्रमुख कृतियाँ उपन्यास, कहानी एवं रिपोर्ताज हैं।

उपन्यास-

1 मैला आँचल 1954 में प्रकाशित हुआ।

2 परती परिकथा 1957 में प्रकाशित हुआ।

3 दीर्घतपा 1964 में प्रकाशित हुआ।

4 जुलूस 1965 में प्रकाशित हुआ।

5 कितने चौराहे 1966 में प्रकाशित हुआ।

6 कलंक मुक्ति 1972 में प्रकाशित हुआ।

7 पलटु बाबू रोड 1979 में प्रकाशित हुआ।

8 रामरतनराय (अपूर्ण)

कहानी संग्रह

ठुमरी कहानी संग्रह 1958 में प्रकाशित हुआ।

एक आदिम रात्रि की महक कहानी संग्रह 1967 में प्रकाशित हुआ।

अग्निखोर कहानी संग्रह 1973 में प्रकाशित हुआ।

एक श्रावणी दोपहर की धूप कहानी संग्रह 1984 में प्रकाशित हुआ।

अच्छे आदमी कहानी संग्रह 1986 में प्रकाशित हुआ।

रिपोर्ताज

ऋणजल धनजल

नेपाली क्रांतिकथा

वनतुलसी की गंध

श्रुत अश्रुत पूर्वे

प्रमुख कहानियाँ-

1 मारे गए गुलफाम (तीसरी कसम)

2 आदिम रात्रि की महक

3 लाल पान की बेगम

4 पंचलाइट, एकला चलो रे

5 ठेस, संवदिया।

महत्वपूर्ण तथ्य (Important Facts)

1 1954 में मैला आँचल से आँचलिक उपन्यास लेखन-परंपरा का सूत्रपात।
2 रसप्रिया 1955 रेणु की पहली कहानी, जिसने रेणु को श्रेष्ठ कहानीकारों की पंक्ति में ला खड़ा किया।

3 पद्मश्री सम्मान से अलंकृत।

विद्वानों ने कहा…

गोपालराय – एक प्रसिद्ध उक्ति है रचनाकार पर नहीं, उसकी रचना पर विश्वास करो। इसे देखते हुए लाल पान की बेगम, ठेस, पंचलाइट, सिरपंचमी का सगुन, आदि कहानियाँ भारतीय गणतंत्र के एक पिछड़े अंचल के ग्रामीण जीवन के त्रासद पिछड़ेपन और समृद्ध सांस्कृतिक परिवेश की जीती-जागती चमकती तस्वीरें हैं।

रेणु के अधिकतर पात्र समाज के हाशिए पर जीने वाले लोग हैं, चाहे रसप्रिया का पंचकौड़ी मिरदंगिया और उसकी प्रेमिका रमपतिया हो, तीसरी कसम का हिरामन और हीराबाई हो, लाल पान की बेगम की बिरजू की माँ और उसके परिवार के अन्य सदस्य हों, ठेस का सिरचन, पंचलाइट में ग्रामीण अथवा सिर पंचमी का सगुन का सिंघाय हो, सभी समाज के उपेक्षित हिस्से हैं पर रेणु ने उन्हें अपनी मानवीय संवेदना से विशिष्ट बना दिया है।

रेणु की कहानियों की एक उल्लेखनीय विशेषता उनमें चित्रित प्रेम की संवेदना है। इस दृष्टि से तीसरी कसम प्रेम की निष्कपट, रहस्यमयी, जटिल और उदात्त संवेदना की बेजोड़ कहानी है।

नामवर सिंह – रेणु, मार्कण्डेय और शिवप्रसाद सिंह की कहानियों में ग्रामीण चेतना मिलती है।

बच्चन सिंह

ग्रामांचल की तह में घुसकर उसके शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श को समग्रता में चित्रित करने वाले अकेले और अद्वितीय कथाकार हैं- फणीश्वरनाथ रेणु। उन्हें प्रेमचंद का सच्चा उत्तराधिकारी कहा जा सकता है।…रेणु ने बदलते हुए गाँव को, उनके बनते-बिगड़ते मूल्यों को पूरी समग्रता और जटिलता में पूरी तन्मयता के साथ चित्रित किया है। प्रेमचंद की कहानियों में किसानी लय है तो रेणु की कहानियों में पूर्णिया और मिथिला के ग्रामगीतों के छंद और ध्वनि।

लाल पान की बेगम कहानी के तथ्य (Facts of Lal Paan Ki Begum Story)

यह कहानी ठुमरी कहानी-संग्रह में संकलित है।

1956 में रचित तथा कहानी, पत्रिका, इलाहाबाद के जनवरी अंक में प्रकाशित।

कहानी के केन्द्र में स्त्री पात्र हैं।

बिरजू की माँ, चंपिया, मखनीफुआ, जंगी की पतोहू, राधे की बेटी सुनरी, लरैना की बीवी कहानी में प्रमुख स्त्री पात्र हैं।

पुरूष पात्रों में बिरजू और बिरजू के बप्पा।

ग्रामीण परिवेश में व्याप्त पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष, राग-विराग, आशा-निराशा, हर्ष-विषाद का प्रभावशाली चित्रण।

बिरजू की माँ कहानी की नायिका और लाल पान की बेगम।

नारी के स्वाभिमान और आत्मसम्मान की चाह की अभिव्यक्ति।

कहानी की घटनाएँ या सारांश (Events or Summary of the Story)

1 बिरजू की माँ के क्रोध से कहानी का प्रारंभ।

2 बिरजू की शकरकंद और गुड़ खाने की ज़िद तथा चम्पिया का सामान लेकर अभी तक न लौटना। बकरे का कुकुरमाछी के कारण परेशान करना।

3 मखनी बुआ द्वारा नाच देखने जाने की बात छेड़ना।

4 पानी भरने वाली स्त्रियों से मखनी बुआ का बिरजू की माँ की बातों का जिक्र करना। आठ दिन पहले ही बिरजू की माँ ने सबसे कहा कि – “बिरजू के बप्पा ने कहा है कि बैलगाड़ी पर बिठाकर बलरामपुर का नाच दिखा लाऊँगा”।

5 जंगी की पुतोहू का बिरजू की माँ पर कटाक्ष करना।

6 बिरजू के बापू को कोयरिटोले की गाड़ी न मिलना, अत: उसका मलदहिया टोली के मियाँजान की गाड़ी लेकर आना।

7 बिरजू की माँ का पति के गाड़ी लेकर न आने पर नाराज होकर काम छोड़कर सो जाना।

8 चम्पिया की आँखों में बलरामपुर के नाच के दिन माँ की मीठी रोटी बनाने, उसे छींट की साड़ी पहनाने, बिरजू को पैंट पहनाकर बैलगाड़ी से जेन की बात याद कर आँसू आना।

9 बिरजू भी उदास तथा उसके द्वारा मन ही मन इमली पर रहने वाले जिन बाबा को अपने लगाए पौधे का पहला बैंगन कबूलना।

10 सर्वे के दौरान बिरजू के पिता को मिली पाँच बीघा ज़मीन के कारण बिरजू का परिवार ईर्ष्या का शिकार।

11 बिरजू के पिता के गाड़ी न लेकर आने पर वह गाँव में हँसी की पात्र बनेगी, यह सोच-सोच कर बिरजू की माँ की नाराज़गी बढ़ना।

12 अंतत: गाड़ी आना, परिवार में आनंद की लहर व्याप्त।

13 गाड़ी में जगह होने पर बिरजू की माँ का जंगी की पुतोहू, लारेना की पत्नी और राधे की बेटी सुनरी को भी साथ ले जाना।

14 बिरजू की माँ का चम्पिया से बाइस्कोप का गीत गाने को कहना।

15 बिरजू की माँ जंगी की पुतोहू को प्रशंसा भरी दृष्टि से देखना और स्वयं को लाल पान की बेगम के रूप में देखना और संतुष्ट होना।

कहानी की महत्वपूर्ण पंक्तियाँ (Important lines of the story)

पड़ौसिन मखनी फुआ की पुकार सुनाई पड़ी- क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या? – बिरजू की माँ के आगे नाथ और पीछे पगहिया न हो तब न फुआ।

मखनी फुआ नीम के पास झुकी कमर से घड़ा उतारकर पानी भरकर लौटती पनभरनियों में बिरजू की माँ की बहकी हुई बात का इंसाफ करा रही थी- जरा देखो तो इस बिरजू की माँ को। चार मन पाट (जूट) का पैसा क्या हुआ है, धरती पर पाँव ही नहीं पड़ते। खुद अपने मुँह से आठ दिन पहले से ही गाँव की अली-गली में बोलती फिरी है, हाँ, इस बार बिरजू के बप्पा ने कहा है, बैलगाड़ी पर बिठाकर बलरामपुर का नाच दिखा लाऊँगा। बैल अब अपने घर है, तो हजार गाड़ी मँगनी मिल जाएँगी

जंगी की पुतोहू ने बिरजू की माँ की बोली का स्वाद लेकर कमर पर घड़े को सँभाला और मटककर बोली…चल दिदिया, चल। इस मुहल्ले में लाल पान की बेगम बसती है।

तीन साल पहले सर्वे कैम्प के बाद गाँव की जलन-डाही औरतों ने एक कहानी गढ़ के फैलाई थी, चम्पिया की माँ आँगन में रात-भर बिजली-बत्ती झुक-झुकाती थी। चम्पिया की माँ आँगन में नाक वाले जूते की छाप, घोड़े की टाप की तरह।

….जलो, जलो! और जलो! चम्पिया की माँ के आँगन में चाँदी-जैसे पाट सूखते देखकर जलने वाली सब खलिहान पर सोनोली औरतें धान के बोझों को देखकर बैंगन का भुर्ता हो जाएँगी।

एक महीना पहले से ही मैया कहती थी, बलरामपुर के नाच के दिन मीठी रोटी बनेगी, चम्पिया छींट की साड़ी पहनेगी, बिरजू पेंट पहनेगा बैलगाड़ी पर चढ़कर…चम्पिया की भीगी पलकों पर एक बूँद आँसू आ गया!

बिरजू का दिल भर आया। उसने मन-ही-मन इमली पर रहने वाले जिन बाबा को एक बैंगन कबूला, गाछ का सबसे पहला बैंगन, उसने खुद जिस पौधे को रोपा है! जल्दी से गाड़ी लेकर बप्पा को भेज दो जिनबाबा।

पाँच बीघा जमीन क्या हासिल की है बिरजू के बप्पा ने, गाँव की भाई-खौकियों की आँखों में किरकिरी पड़ गई है।

ढिबरी की रोशनी में धान की बालियों का रंग देखते ही बिरजू की माँ के मन का सब मैल दूर हो गया।…धानी रंग उसकी आँखों में उतरकर रोम-रोम में घुल गया।

बिरजू की माँ ने असली रूपा (चाँदी) का मंगटीक्का पहना है आज, पहली बार।

गाड़ी जंगी के पिछवाड़े पहुँची। बिरजू की माँ ने कहा- जरा जंगी से पूछो न, उसकी पुतोहू नाच देखने चली गई क्या?

जंगी धूर ताप रहा था, बोला – क्या पूछते हो, रंगी बलरामपुर से लौटा नहीं। पुतोहिया नाच देखने कैसे जाए। आसरा देखते-देखते उधर गाँव की सभी औरतें चली गईं।

बिरजू के बाप ने घूँघट में झुकी दोनों पुतोहूओं को देखा। उसे अपने खेत की झुकी हुई बालियों की याद आ गई।

ठीक ही तो कहा है उसने। बिरजू की माँ बेगम है, लाल पान की बेगम। यह तो कोई बुरी बात नहीं। हाँ, वह सचमुच लाल पान की बेगम है।

बिरजू की माँ ने अपनी नाक पर दोनों आँखों को केन्द्रित करने की चेष्टा करके अपने रूप की झाँकी ली, लाल साड़ी की झिलमिल किनारी, मंगटीक्का पर चाँद।…बिरजू की माँ मन में अब कोई लालसा नहीं। उसे नींद आ रही है।


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