Study Material : कक्षा 12 हिंदी अंतराल – कुटज (हजारी प्रसाद द्विवेदी) सारांश व समीक्षा | Class 12 Hindi antaraal – Kutaj (Hazari Prasad Dwivedi) Summary and ReviewantaraalStudy Material
कुटज का परिचय (Introduction to Kutaj)
कल्पना कीजिए एक ऐसा पौधा जो हिमालय की ऊँची, सूखी और पथरीली चट्टानों के बीच उगता हो। न वह रंग-बिरंगा हो, न खुशबूदार, फिर भी यह पौधा अपनी मस्ती और मुस्कुराहट से वहाँ खड़ा हो। आज हम उसी पौधे की बात कर रहे हैं, जिसका नाम है कुटज। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने इस पौधे को एक जीवनदर्शन के रूप में प्रस्तुत किया है। कुटज हमें सिखाता है कि कठिन से कठिन परिस्थिति में भी जीवन को आत्मसम्मान और आत्मविश्वास के साथ जिया जा सकता है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी के प्रसिद्ध निबंधकार, उपन्यासकार, आलोचक तथा विद्वान थे। उनका जन्म 1907 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था।
उन्होंने भारतीय संस्कृति, इतिहास तथा साहित्य को विश्लेषण और लेखन द्वारा समृद्ध किया। उनकी शैली गंभीर, स्पष्ट और विचारशील मानी जाती है
प्रेरणादायक कुटज निबन्ध का सारांश (Summary of the essay on Kutja)
कुटज हिमालय की कठोर पर्वतीय शिलाओं के बीच उगने वाला एक छोटा-सा पौधा है। यह पौधा बिना किसी दिखावे के, बिना किसी खूशबू के भी अपने अस्तित्व को बनाए रखता है। जब हिमालय के ठंडे पर्वतीय क्षेत्र में अक्सर पानी कम पहुँचता है, तब भी यह अपनी गहरी जड़ों से पत्थरों को फाड़कर पोषण प्राप्त करता है।
हिमालय की कठोर बर्फीली और सूखी ज़मीन पर यह स्थिर रहता है, मुस्कुराता है, और अपनी जीवनशक्ति की अद्भुत घोषणा करता है। यह हमें सिखाता है कि विषम परिस्थितियों में हार नहीं माननी चाहिए, बल्कि संघर्ष करते हुए मुस्कुराते रहना चाहिए।
निबन्ध से सीख (Learning from the essay)
हजारी प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि ठीक उसी तरह जैसे कुटज विषम परिस्थितियों में अपना अस्तित्व बनाए रखता है, हम मनुष्यों को भी विपरीत हालातों में धैर्य और संयम रखना चाहिए। कुटज दूसरों के सामने घुटने नहीं टेकता और न ही भीख माँगता है। हमें भी अपने मन को स्वार्थ और कमज़ोरी से दूर रखते हुए दूसरों के लिए परोपकार करना चाहिए। आत्मा का उच्च स्वरूप बनाए रखना चाहिए और अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए।
प्रेरणा और संदेश (Inspiration and message)
कुटज की वह जीवनशक्ति हमें यह संदेश देती है कि चाहे कितनी भी बाधाएँ आएँ, जीवन को सम्मान और उत्साह के साथ जीना चाहिए। हमें किसी भी परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए, बल्कि परिश्रम करते हुए, हमेशा मुस्कराते हुए आगे बढ़ना चाहिए। जैसे कुटज अपनी जड़ों को पत्थर के भीतर गहरे तक घुसा कर भोजन प्राप्त करता है, वैसे ही हमें अपनी जड़ों को मजबूत करके कठिनाइयों का सामना करना चाहिए।
निष्कर्ष (conclusion)
अंततः ‘कुटज’ केवल एक पौधा नहीं, बल्कि जिजीविषा, आत्मविश्वास और परमार्थ का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में जो कुछ भी मिले, वह स्वीकार करो, संघर्ष करो और दूसरों की भलाई में लगे रहो। यही जीवन का सार है।
‘कुटज’ हमें यह बताता है कि जीवन में दुख-सुख आते रहते हैं, लेकिन जो अपने मन पर नियंत्रण रखता है वही विजेता होता है। स्वार्थ और चापलूसी से ऊपर उठकर हमें अपनी आत्मा की आवाज़ सुननी चाहिए और जीवन को उसी दिशा में आगे बढ़ाना चाहिए। कठिनाइयों का सामना आत्मविश्वास के साथ करें और हमेशा मुस्कुराते रहें—यही इस कहानी का मूल संदेश है।
भाषा-शैली (language style)
कुटज निबंध की भाषा सरल, स्पष्ट और सुबोध है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने व्यास शैली का प्रयोग किया है, जिसमें विचारों को सहज और वर्णनात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया है, ताकि पाठक को समझने में आसानी हो। भाषा में संस्कृत से लिए गए तत्सम शब्दों का प्रयोग है, जिससे निबंध की गंभीरता और भार बढ़ती है, परंतु शब्द चयन में अत्यधिक जटिलता नहीं है, जिससे प्रत्येक स्तर के पाठक इसे सहजता से समझ सकते हैं।
निबंध में भावों की धारा निरंतर प्रवाहमान है, जो पाठक को अंत तक बाँधे रखती है। लेखक ने मनुष्य के जीवन मूल्य और नैतिकता को प्रभावशाली ढंग से उकेरा है। भाषा में सामयिक और दर्शनीय शब्दों का संतुलन है, जिससे कविता-समान सौंदर्य और अर्थ दोनों समाहित होते हैं।
कुल मिलाकर, कुटज निबंध की भाषा-शैली सरल, प्रभावशाली और दर्शनीय है, जो पाठक के हृदय को छू जाती है। अलंकारों का संयमित प्रयोग निबंध के भावों को गहराई और सौंदर्य प्रदान करता है, जिससे निबंध केवल एक वर्णनात्मक रचना नहीं, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण संदेशों से युक्त प्रभावशाली साहित्यिक कृति बन जाती है।
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