Study Material : बकरी नाटक का सारांश व महत्वपूर्ण तथ्य | Summary And Important Facts Of Bakri Natak

Study Material : बकरी नाटक का सारांश व महत्वपूर्ण तथ्य | Summary And Important Facts Of Bakri Natak

बकरी नाटक का संक्षिप्त परिचय (A Brief Introduction to the Bakri Natak)

यह नाटक समामजिक और राजनितीक परिस्थिति को दर्शाता है, इस नाटक के केन्द्र में बकरी को रखा है, जो गाँधीजी का प्रतीक है। तीन डाकूओं के मन में अचानक ख्याल आता है, कि वह बकरी को गाँधीजी की बकरी बताकर जनता को भ्रमित करेंगे। परिणाम स्वरूप वह विपति नामट औरत की बकरी चुरा लेते हैं, जिसमें उनका साथ सिपाही देता है, क्योंकि सिपाही जिसके पास न्याय माँगने औरत जा सकती है, वह खुद डाकुओं का साथ देता है, औरत कुछ नहीं कर पाती। उल्टा उसे ही ढाई साल की सज़ा करा दी जाती है।

कर्मवीर नामक डाकू चुनाव लड़ता है, जीत जाता है। चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी युवक उसका विरोध करता है। युवक को भी कुछ समय के लिए जेल हो जाती है। जिस बकरी को माध्यम बनाकर चुनाव जीता जाता है, उसी बकरी की बलि देकर उसकी दावत कर दी जाती है, जिसे डाकु शाकाहारी दावत कहते हैं।

नाटक के अंत में युवक इनका विरोध करने में सफल हो जाता है, और ग्राणीणों को इनकी नीयत के बारे में समझा देता है। जनचेतना जागृत हो गई है, इसी के संकेत के साथ नाटक का अंत हो जाता है, युवक कहता है-

बहुत हो चुका अब हमारी है बारी,

बदल के रहेंगे ये दुनिया तुम्हारी!

क्रमवार बकरी नाटक का सारांश व महत्वपूर्ण तथ्य (Summary And Important facts of The Play Goat In Sequence)

नाटक के प्रकाशनोद्घाटन पर जन नाट्य मंच द्वारा 13 जुलाई 1974 को त्रिवेणी कला संगम, नई दिल्ली में प्रथम प्रस्तुति की गई थी।

कविता नागपाल ने नटी की भूमिका निभाई थी, उन्होंने ही नाटक का निर्देशन भी किया था।

संगीत मोहन उपरेती ने दिया था।

नृत्य संरचना भगवतीचरण शर्मा द्वारा की गई थी।

नाटक में शहरी व ग्रामीण दो प्रकारो के पात्र उपस्थित हैं।

नाटक दो अंको में विभाजति है, प्रत्येक अंक के तीन-तीन दृश्य हैं।

भूमिका दृश्य की विशेषता

नट विद्रोही है। उसे मंगलाचरण पर यकीन नहीं है।

नट पहले मंगलाचरण के समय चुप रहता है, लेकिन नटी के आँखें तरेरने पर गाता है, और मंगलाचरण को राजनीतिक संदर्भ से जोड़ देता है।

मंगलाचरण में नटी (समवेत) भवानी, गणेश, ब्रह्मा, विष्णु, महेश का ज़िक्र होता है।

नट पाँच देव को पाँच दल से जोड़ देता है। कहता है, दलों के कारण देश आज परदेस हो गया है।

नटी नाटक पढ़े-लिखे समझदार दर्शकों के अनुरूप खेलना चाहती है, लेकिन नट नाटक सामाजिक व राजनीतिक स्थितियों के अनुरूप खेलना चाहता है।

वंदना नट समेत सभी गाते हैं, लेकिन नटी नहीं गाती क्योंकि वंदना में व्यंग्य है-

हे संकट मोचू

बना दे हमें घोंचू।

अपना सिर नोचूँ न उसका मुँह नोचूँ।

हे संकट मोचू…

किसकी रसोई में किसका कलेजा

कौन पकाए, कुछ भी न सोचूँ।

हे संकट मोचू…

हों जड़भरत हमारे श्रोता

दर्द न छलके जितना खरोचूँ

हे संकट मोचू…

नटी नट का विरोध करती है, तो नट कहता है फिर हम गँवई-गाँव में जाते हैं, यहाँ नहीं होगा हमसे नाटक, जाने लगता है तो नटी उसे रोक लेती है…

नट कहता है- लगता है तुम लोग सरकारी आदमी हो।

नटी कहती है- हम अच्छा नाटक खेलना चाहते हैं, इसलिए तुम्हें खींचकर लाई हूँ, बहुत कविता रचते थे, अब ज़रा मंच पर आओ।

उत्तर में नट कहता है, नाटक का जो सजा-सजाया थाल चला आ रहा है उसमें थोड़ी चटनी रख दें बस?

नट और नटी युगल गीत गाते हैं-

जा मेरी तेरी ना पटनी

कैसी बनाई चटनी।

गाल बजाया पेट बजाया…

जब से हुई छँटनी।

जा मेरी तेरी ना पटनी…

कैसी अमीरी कैसी गरीबी

प्यारी लगे नटनी।

जा मेरी तेरी ना पटनी…

थोड़ी दिलासा बाकी निराशा

सारी उमर खटनी।

जा मेरी तेरी ना पटनी…

लोकतंत्र की ले के पतुरिया

भाग गई जटनी।

जा मेरी तेरी ना पटनी…

हिंसा तेरी अहिंसा मेरी

रस्सी है बटनी।

जा मेरी तेरी ना पटनी…

(दोनों अलग-अलग और मिलकर भी गाते हैं। नटी गाने पर भाव दिखा नाचती है, नट गाते-गाते चुप हो जाता है)

नटी दर्शकों से कहती है- माफ कीजिएगा। बड़ा सिरफिरा आदमी है…. जैसा भी हो, जो भी हो, देखकर जाइए। हमने तो सोचा था कवि है तो नाटक भी लिख लेगा।

पहला दृश्य

एक भिश्ती मशक लादे सड़क सींचता गा रहा है। (अर्थात पहले पात्र के रूप में भिश्ती की एंट्री होती है)

गाता है-

बगरी को क्या पता था

मशक बन के रहेगी,

पानी भरेंगे लोग

औ वह कुछ न कहेगी,

जा जा के सींच आएगी

हर एक की क्यारी,

मर कर के भी बुझाएगी

वह प्यास तुम्हारी।

मंच के कोने में तीन डाकू भिश्ती का गाना सुनते हैं, उसके जाते ही मंच पर आ जाते हैं, तीनों मिलकर गाते हैं-

मुझे मिल गई मिल गई

मिल गई रे

मुझे मिल गई मिल गई

मिल गई रे

मिल गई मिल गई

मिल गई रे

मुझे मिल गई मिल गई

मिल गई रे।

सिपाही पूछता है-क्या मिल गया ठाकुर?  सोना चाँदी की खान मिल गई?

तीनों गाते हैं-

सोना भी मिल गया

चाँदी भी मिल गई

राजा भी मिल गया

बाँदी भी मिल गई।

मिल गई मिल गई

मिल गई रे

मुझे मिल गई मिल गई

मिल गई रे।

तीनों के नाम हैं- कर्मवीर, सत्यवीर, और दुर्जन। सिपाही पूछता है- कोई नया डाका डाला है?

दुर्जनसिंह का कथन – होश में बात करो दीवान जी, अब हम डाकू नहीं, शरीफ आदमी हैं।

तीनों गाते हैं-

कुर्सी भी मिल गई

सेवा भी मिल गई

माधव भी मिल गए

मेवा भी मिल गई

मिल गई मिल गई

मिल गई रे

मुझे मिल गई मिल गई

मिल गई रे।

सिपाही कहता है मेरा क्या होगा तो जबाव में दुर्जन कहता है, वही होगा जो हमारा होगा। मज़े, खूब मज़े होंगे।

दुर्जन कहता है-

सुबह ओ शाम बोलेगा

मज़ा तुम से ये मिमिया कर

हमारी गली से दीवान जी

जाना न तुम आकर।

है ऐसा क्या मेरी सोहबत में

जो तुम पा नहीं सकते

छुड़ाकर हाथ दामन से

हमारे जा नहीं सकते।

सिपाही कहता है मेरी समझ में नहीं आ रहा तो, दुर्जन कहता है – यह बातें हैं न समझाने की… आवाज़ सुनो बकरी के मिमियाने की… चलो मिट्टी को भी सोना मानो।

दुर्जन सिपाही के लिए गाता है-

तेरी किरपा के बिना, हे प्रभु मंगलमूल,

पत्ता तक हिलता नहीं, फँसे न कोई फूल।

दुर्जन का कथन – हम मालामाल होंगे।

सत्यवीर का कथन – हमारी इज्जत होगी।

कर्मवीर – जनता हमारे इशारों पर चलेगी।

दुर्जन सिपाही से कहता है- एक बकरी ले आओ।

भिश्ती मंच पर आता है, और गाता है-

बकरी को क्या पता था मशक बन के रहेगी,

जन्नत वो बख्श करके भी खुद नर्क रहेगी

चुटकी में दूसरों के उसका आब रहेगा,

कल खून बहाया था आज पानी बहेगा।

सिपाही बकरी लेकर आता है, दुर्जन उसे शाबाशी देता है।

दुर्जन का कथन – यह गाँधी जी की बकरी है।

जब सिपाही कहता है, बकरी दूध देती है, तो दुर्जन कहता है- कुर्सी,धन और प्रतिष्ठा देती है।

जब सिपाही कहता है, बकरी घास खाती है, तो दुर्जन कहता है- बुद्धि, बहादुरी और विवेक खाती है।

सिपाही और दुर्जन गाते हैं-

उह करी न अह करी

गाँधी जी की बकरी,

हर किला फतह करी

गाँधी जी की बकरी,

शत्रु को जिबह करी

गाँधी जी की बकरी।

दुर्जन दीवान से कहता है, एलान कर दो लोग दर्शन करने आएँ, पर खाली हाथ नहीं।

दुर्जन कहता है- इस बकरी की माँ, की माँ, की माँ गाँधी जी की बकरी थी।

यह लोग मिलकर मंडप बनाते हैं, मंडप पर एक साइनबोर्ड लगा देते हैं, जिस पर लोक सेवा सदन लिखते हैं।

गायन-

सोने की छत हो, चाँदी के खम्बे

जय जगदम्बे, जय जगदम्बे।

सोओ प्रभुजी, तान के लम्बे

जय जगदम्बे, जय जगदम्बे

चाहे हो दिल्ली, चाहे हो बम्बे

जय जगदम्बे, जय जगदम्बे

डंडा गीत सिपाही गाता है-

डंडा ऊँचा रहे हमारा

सबसे प्यारा सबसे न्यारा

डंडा ऊँचा रहे हमारा।

सुख सुविधा सरसाने वाला

शक्ति सुधा बरसाने वाला

प्रभुता सत्ता का रखवारा।

डंडा ऊँचा रहे हमारा।

इस डंडे को लेकर निर्दय

हो स्वतंत्र हम विचरें निर्भय

बोलो शक्ति प्रदाता की जय।

दीन दु:खी का ताड़नहारा।

डंडा ऊँचा रहे हमारा।

औरत आती है, कहती है- यह बकरी हमार है। औरत और सिपाही के बीच संवाद होता है, अंत में सिपाही उसे ही दोषी बनाकर सजा दिला देता है। औरत सिपाही से कहती है, यह हमें जान से ज्यादा प्यारी है, हम गरीब आदमी हैं।

औरत बकरी को बीस रुपये की बताती है, लेकिन सिपाही उसे पचपन करोड़ की बकरी बताता है। कहता है, भाग जा यहाँ से नेता लोग आ रहे हैं।

तीनों डाकू नेताओं की पोशाक में आते हैं, सिपाही समेत चारो पीजा गीत गाते हैं-

तन मन धन उन्नायक जय हे

जय जय बकरी माता।

अन्याय अहिंसा दंभ क्रूरता

भुला, करै मन चंगा,

ए बी सी डी ई एफ जी एच

क ख ग घ अंगा।

दुर्जन सज्जन आएँ।

सब तेरे गुन गाएँ

हे त्राता सुख दाता।

जय हे जय हे जय हे

जय जय जय जय हे।

दुर्जन का कथन – हम जितना खोने को तैयार रहते हैं, उससे पता चलता है कि हम कितना पाना चाहते हैं।

कर्मवीर का कथन – लेकिन जब सवाल मर चुके हों तो जवाब कहाँ से मिलेगा। पेट भी वही बजा सकता है जिसकी आत्मा में जान हो।

तीनों डाकू जनता को दान देने के लिए कहते हैं, उनसे ज्यादा से ज्यादा दान देने की अपील करते हैं।

कर्मवीर – जो इतिहास को झूठलाता है, वह समाजद्रोही है, देशद्रोही है।

तीनों डाकू लगातार इस बकरी को गाँधी की बकरी साबित करने पर ज़ोर देते हैं, और औरत कहती है, सरकार, हमारे ही घर ई पैदा भई, हम ही एहका पाला-पोसा, रात-दिन साथ रही। बच्चों के साथ सोई, खेली, बड़ी हुई।

सत्यवीर का कथन – औरत, कबीरदास कह गए हैं- ई जग अंधा मैं केहि समझाऊँ। बोल तूने इससे क्या सीखा?

औरत कहती है- आप लोग बड़े लोग हैं, हुजूर। आपको एक नहीं हजार बकरी मिल जाएँगी। हम गरीब का सहारा न छीनो।

जवाब में सत्यवीर कहता है-

गरीबी। इस बकरी ने तुझे नहीं बताया कि गरीबी केवल मन की होती है, गरीबी केवल विचारों की होती है, दुष्टि की होती है। जानती है औरत, गाँधी जी केवल छ: पैसे में गुजर करते थे।

सिपाही – भारत सुरक्षा कानून, निवारक नजरबंदी कानून, अपराध संहिता की बकरी धारा के अधीन…. सजा देने की बात कहता है।

कर्मवीर का कथन – लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए जनता के द्वारा…

दुर्जन कर्मवीर को कानून के नियमों के अनुसार औरत को ठीक करने का काम सौंपता है।

डाकू और सिपाही का गीत-

गायन

तन मन धन उन्नायक जय हे

 जय जय बकरी माता

अन्याय अहिंसा दंभ क्रूरता

भुला, करै मन चंगा

दुर्जन सज्जन आएँ

सब तेरे गुन गाएँ

हे त्राता सुखदाता।

जय है…

दुर्जन जनता से कहता है- पच्चीस साल से इस बकरी को खोजा जा रहा था। वह कहता है, गाँधी जी देवता थे, उनकी बकरी देवी से कम नहीं है, इसलिए देवी का मान होना चाहिए।

ग्रामीण बताते हैं- सूखा पड़ा है, पानी की एक बूँद नहीं, और महामारी फैल रही है। कुआँ सूख गया, पीने का पनी चार मील से लाते हैं।

दुर्जन गाँवों वालों को कहकर डराता है कि अगर बकरी औरत के पास रही तो सब सूख जाएगा, अर्थात विपत्ति का डर दिखा कर गाँव वालों को औरत का साथ देने से रोक देता है।

गाँव वाले कहते हैं, बकरी को आप आसरम में ही रखें।

कर्मवीर का कथन – (जज की विग लगाकर) सिपाही, सार्वजनिक संपति हड़पने के आरोप में इस औरत को दफा एक्स क्यू जीरो के अधीन दो साल सख्त कैद की सजा दी जाती है। साथ ही पाँच सौ रुपया जुर्माना। न देने पर छ: महीने की कैद बामशक्कत।

परिणाम स्वरूर औरत को ढाई साल की जेल हो जाती है।

सत्यवीर गाँव वालों को रुपया-पैसा, सोना-चाँदी चढ़ाने को कहता है।

कर्मवीर जनता को कहता है- निधि में काफी पैसा होना चाहिए- तुम्हारे कल्याण के लिए – बकरी शांति प्रतिष्ठान, बकरी संस्थान, बकरी मंडल बहुत-सी संस्थाएँ बनानी है।

नट गायन-

दौलत की हे दरकार ए सरका आपको

सबको उजाड़ चाहिए घरबार आपको,

मक्कारी, ढोंग, छल, फरेब आप बाँटिए

बदले में मगर चाहिए एतबार आपको,

आदत जो पड़ गई है वो अब छूटती नहीं

कोई शिकार चाहिए हर बार आपको

दूसरा दृश्य

इस दृश्य में युवक की एंट्री होती है।

एक ग्रामीण युवक को बताता है, विपती को जेहल लै गए।

युवक का कथन – बाबा आप नहीं बोले सो ठीक, पर झूठ बोलने वाले से झूठ सहने वाला ज्यादा बड़ा पापी होता है।

दूसरा ग्रामीण – ई गरम खून है बचवा जो चहकाय रहा है। जो बड़ा बन के आया वह बड़ा बनके रहेगा।

सभी ग्रामीण का गायन-

चिरई दाना बिन मुरझाए

मछरी पानी बिन अकुलाए

खाए दौरत बा आपन घर दुआर है हरि।

मानुष आपन कर्म लजाए

बैठा तीनहु लोग गँवाए

लाये नैया बीच सागर, कर दे पार हे हरि।

नट गायन

एक नारा ढलता है, हर नई बरबादी के बाद

आसरम ही आसरम खुल गए आज़ादी के बाद

(नटी का नाचते गाते प्रवेश)

नट- सेवा यहाँ पर स्वार्थ है

और स्वार्थ ही परमार्थ है।

कोई किसी से है न कम

हैं देश के फूटे करम।

तीसरा दृश्य

दुर्जनसिंह बड़े बक्स पर बैठा है जिस पर लिखा है – बकरी स्मारक निधि। एक कड़ी कीप है, जिसमें ग्रामीण एक-एक कर पंक्तिबन्ध आते हैं और धन डालते हैं। बकरी के चारो ओर घूमकर पूजा गीत गाते हैं।

समूह गान-तर्ज कहरवा

बकरी मैया तोरे चरनन अरज करूँ

गाँधी बाबा तोरे चरनन अरज करू

खेत न दाना

कूप न पानी

केकरे हुजूरे दरज करूँ

गाँधी बाबा तोरे चरनन अरज करूँ

बकरी मैया तोरे चरनन अरज करूँ।

घास भी राँधूँ

पात भी राँधूँ

कब तक अपना फरज करूँ।

बकरी मैया तोरे चरनन अरज करूँ।

गाँधी बाबा तोरे चरनन अरज करूँ।

उन के महलिया

सोना बरसे

जनम जनम का मैं करज करूँ

बकरी मैया तोरे चरनन अरज करूँ।

पार लगा दे नैया

ओ बकरी मैया

दोऊ कर जोड़े अरज करूँ

गाँधी बाबा तोरे चरनन अरज करूँ।

सत्यवीर का कथन – मैं बकरीवाद पर भाषण देने विदेश जाता हूँ। बकरीवाद का प्रचार करूँगा।

कर्मवीर – मैं चुनाव लड़ जाता हूँ।

दुर्जन कहता है – चुनवा चिन्ह बकरी का थन, समझा करो, दीवान जी।

दुर्जन द्वारा पूछने पर कि क्या हुआ उस औरत का? सिपाही कहता है, ढाई साल की छुट्टी हुई समझो।

सिपाही का कथन – सर्दी में हैं बंगलौर तो गर्मी में हैं कुल्लू।

नट और नटी (दोनों) का कथन – जाके कह दो कि उट्ठे ज़माना नहीं अब घबराना।

दूसरा अंक

पहला दृश्य

पहले अंक और दूसरे अंक में 2 वर्षों का अंतराल है।

उसी स्थान पर, बंदूकें रखी हैं। बकरी के मंडप को काली दीवारों से घेरकर ताला लगा दिया गया है। दीवार पर लोक सेवा सदन की तख्ती लटकी है।

सिपाही डी. आई. जी बन गया है।

सिपाही का कथन – तो क्या हम झूठ बोलते हैं? देवी ने खुद कहा है। सब अपना काम करो। कर्मवीर को चुनाव लड़ने का हुक्म दिया है। उसे चुनाव चिन्ह के रूप में स्वयं अपना थन दिया है। वह कहता है, कर्मवीर को वोट देने से कल्याण होगा और भाग्य खुलेंग।

ग्राणीण – पर हम पचन हाती को…जिमींदार साहब के लरिका पढ़ि कै आवा है, ऊ पहले ही…

यहाँ पर सिपाही कर्मवीर को वोट देने के लिए ग्राणीणों पर दबाव बनाता है।

कर्मवीर का कथन – हम जन्म के ठाकुर हैं। कर्म से ब्राह्मण और सेवक हरिजनों के हैं। हमें सबका वोट मिलना चाहिए।

कर्मवीर गाँव तक की सड़क पक्की कराने का वाद करता है।

सिपाही का कथन – नाटक है? और यह नाटक कंपनी तेरे बाप खोल गए हैं। तेरे हिसाब से यहाँ सब चूतिए बसते हैं? दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है अपना।

युवक का कथन – इलाज आपके पास हर चीज़ का है। गरीबी और अन्याय का नहीं है। बस

कर्मवीर युवक को नकसलवादी कहता है।

दुर्जन का कथन व गीत – शाकाहारी दावत कही जाएगी। गाँधी जी की नेक पवित्र बकरी निरामिष ही मानी जाएगी।–

मिमियाने में भी जिसके है

देवत्व की वाणी

उसकी रगों में होगा ही

अमरत्व का पानी।

सहने को जोर जुल्म

जिसे राजी जानिए

वह गोश्त भला कैसे

उसे भाजी मानिए।

दीवान जी, बकरी अहिंसावादी होती है। छुरा फिरवा लेगी। गोश्त तो जंली सूअर का होता है।

नट गायन-

जिसकी लेते हैं शरण उसको ही खा जाते हैं लोग,

जिसका थामा हाथ, उसका ही लगा जाते हैं भोग,

मुँह से निकला नाम, जैसे पेट से निकली डकार

वह भी मजबूरी हो जैसे, वह भी ज्यूँ बेअख्तियार

जिसका झंडा हाथ में है वह समाया पेट में,

जिसका डंडा हाथ में है वह समाया पेट में

पेट ही बस पेट निकल आ रहा है देश का,

कोई बतलाए भी आकर क्या करूँ इस क्लेश काष

दूसरा दृश्य

नारे लगाए जाते हैं, जीत गया भाई जीत गया, बकरी वाला जीत गया। कर्मवीर ज़िंदाबाद

युवक जेल से छूट के आया है, अर्थात युवक द्वारा विरोध करने पर पहले अंक में उसे जेल हो गई थी?

युवक का कथन – आप लोगों का अज्ञान जेहल ही है, अब ये जीत के और लूटेंगे, पहले बकरी का नाम लेकर लूटते थे अब आपका ही नाम लेकर लूटेंगे।

पहला ग्रामीण – गाँव में एक छप्पर भी नहीं बचा।

दूसरा ग्रामीण – सूखा पड़ा एसन कि अन्न का एक दानौ नहीं।

तीसरा ग्रामीण – कहूँ कछू नाहीं, हमरै अभाग।

विपती का भी चीखते हुए प्रवेश हो जाता है।

विपती का कथन – अबहिने हम देखा, सिपाही ओहका कसाई जस सहर लिहे जात रहा, ऊ चिल्लात रही।

बाढ़ आने का संकेत मिलता है, ग्रामीण अपना घर और खुद को तो नहीं बचाते लेकिन बकरी के स्थान को जरूर बचा लेते हैं। कुछ समय बाद सूंखे का संकेत मिलात है, गीत चल रहा है-

कौन कसूर भइल हमसे मैया

बिरवा गइल मुरझाय हो,

सींचत सींचत उमर सिरानी

नेकु नहीं हरिआय हो।

आपन खून पसिनवा न साथी

अंसुअन केहि पतिआय हो।

युवक का कथन – अब भी कुछ समझे आप लोग? आप लोगों ने बकरी को देवी माना। बाढ़ में सारा गाँव बह जाने दिया पर आसरम को नहीं डूबने दिया। गाँव की जमीन खोद-खोदकर आसरम की जमीन ऊँची करते रहे। सूखा पड़ा, खुद भूखे रहे, घऱ का अनाज आसरम को दे आए। आसरम में दावतें उड़ती रहीं, खुद भूखों मरते रहे। फिर उन्हीं लुटेरों को कंधों पर बिठाकर देश की बागडोर थमा आए। अब भी कुछ समझे आप लोग?

नट गायन

उसके ही पेट पर जला के जश्न का चिराग

कहते समाजवाद है ओर देश जाग जाग

तीसरा दृश्य

दुर्जन का कथन – हमने खून पसीने से इस धरती को, इस देश की धरती को सींचा है और ऐसी घास उगाई है जो हमेशा हरी-हरी रहेगी और युगों तक चरे जाने पर भी खत्म नहीं होगी।

दुर्जन का कथन – बाबर ने, नहीं माफ कीजिएगा हुमायूँ ने, जान बचाने पर एक भिश्ती को एक दिन के लिए शहंशाह बना दिया था। हम गरीब देश के गरीब सेवक हैं, शहंशाह नहीं। हमारी कृतज्ञता इस भिश्ती को एक नई खाल, एक नई मशक के लिए भेंट करते हैं।

भिश्ती का गीत-

बकरी को क्या पता था मशक बन के रहेगी

अपने खिलाए फूलों से भी कुछ न कहेगी।

उसके ही खूं के रंग से इतराएगा गुलाब

दे उसकी मौत जाएगी हर दिल अजीज़ ख्वाब।

चाहे वो ढोल किया हो, मदारी हो या किरदार

चमका के चली जाएगी हर इक का रोज़गार

कर्मवीर का कथन – यह धरती एक चरागाह है जिसकी घास जितना ही रौंदो उतना ही पनपती है।

युवक का कथन – (गरजकर) अब यह में-में नहीं होगी। बाँधो इन लुटेरों को। इन्कलाब ज़िन्दाबाद।

(दुर्जन समेत सभी) अरे। अरे यह क्या हम तो सेवक हैं भाई, जन सेवक। हम पर दया करो।

(सब गाते हैं। नट नटी आगे आ है)

दिन में दो रोटी के हों जब देश में लाले पड़े

हों सभी खामोश सब की जबां पर ताले पड़े,

दिल दिमाग औ’ आत्मा पर इस कदर जाले पड़े,

सूखे की शतरंज नेता खेलें दिल काले पड़े।

तोंद अड़ियल पिचके पेटों पर चलाए गोलियाँ,

हर तरफ फिर न निकलें क्रांतिकारी टोलियाँ

फिर बताओ किस तरह खामोश बैठा जाए है

अब तो खौले खून रह-रहकर जबां पर आए है—

बहुत हो चुका अब हमारी है बारी,

बदल के रहेंगे ये दुनिया तुम्हारी!

(समाप्त : पर्दा)

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