UGC Net JRF Hindi :  सिक्का बदल गया कहानी की घटना संवाद व सारांश । Sikka Badal Gya Story Incident Dialogue and Summary

UGC Net JRF Hindi :  सिक्का बदल गया कहानी की घटना संवाद व सारांश । Sikka Badal Gya Story Incident Dialogue and Summary । study material

कहानी का परिचय (Introduction To The Story)

यह कहानी कृष्णा सोबती द्वारा लिखी गई है। इस कहानी की पृष्ठभूमि भारत-पाक विभाजन का दर्द है।

बादलों के घेरे 1980 में यह कहानी संकलित है।

कहानी के पात्र – शाहनी, शेरे, हसैना, बेगू पटवारी, थानेदार दाऊद खां, मुल्ला इस्माइल, नवाब बीवी।

सिक्का बदल गया कहानी का संक्षिप्त सारांश (Short Summary Of The Story The Sikka Badal Gaya)

इस कहानी के केन्द्र में शाहनी है, शाहजी की मृत्यु हो चुकी है। शाहनी का एक पढ़ा-लिखा बेटा भी था, लेकिन कहानी की घटनाओं के दौरान वह कहाँ है, लेखिका ने इसका ज़िक्र नहीं किया है।

कहानी की शुरूआत सुबह पौ फटने से होती है, और अंत रात से होती है। जिसका उल्लेख लेखिका ने यह कहते हुए किया है कि रात खून बरसा रही थी।

शाहनी सुबह-सुबह नदी में नहाने जाती है, जहाँ वह पिछले पचास साल से नहाती आ रही है। शेरा जिसकी माता की मृत्यु के बाद शाहनी ने ही उसे बच्चे की तरह पाला पोसा है। शाहजी कभी-कभी उस पर गुस्सा भी कर देते थे, लेकिन शाहनी उसे प्यार से बच्चे की तरह संभालती थी।

अब शेरा की शादी हो गई है, उसकी पत्नी का नाम है, हसैना है। इस कहानी में भारत-पाक विभाजन को दिखाया गया है, इसी दौरान शेरा पिछले दिनों कई सारे कत्ल कर चुका है। अन्य लोगों की बातों में आकर वह शाहनी को भी मारना चाहता है, लेकिन उसकी आत्मा ने उसे कहा शाहजी की बातें उनके साथ गई। शाहनी ने तो उसके साथ कुछ बुरा नहीं किया इसलिए वह शाहनी को बचाएगा।

शाहनी आज बहुत दुखी है, क्योंकि आज ही उसे अपना घर, ज़मीन और गाँव छोड़कर शरणार्थियों के कैम्प में जाना था। जब उसे कहते हैं, शाहनी जल्दी करो देर हो रही है, तो उसका मन बहुत आहत हो जाता है, आज उसी के घर में उसे देर हो रही है।

शाहनी एक साफ दिल कि महिला है, उसके दिल में किसी के लिए को बैर नहीं है। वह जानती है कि आज यहाँ उसका कोई अपना नहीं है, उसके बाद भी वह जाते-जाते सबके लिए आशीर्वाद और दुआ देकर जाती है।

शाहनी अपने घर से कुछ भी नहीं ले जाती, लोग कहते हैं सिक्का बदल गया है। शाहनी कहानी के अंत में सोचती है- राज पलट गया है…सिक्का क्या बदलेगा वह तो मैं वहीं छोड़ आई हूँ।

कहानी की शुरूआत में शाहनी बहुत ज़्यादा ज़मीन की मालकिन है, कहानी के अंत में वह निराश्रित हो जाती है।

यह कहानी विभाजन के मार्मिक दुख को दिखाती है, जिसका अंदाज़ा लगाकर भी समझ पाना मुश्किल है।

सिक्का बदल गया कहानी की घटना व संवाद (The Incident And Dialogue Of The Story Sikka Badal Gaya)

कहानी की शुरूआत सुबह पौ फटने से होती है।

शाहनी श्री राम, श्री राम कहती हुई स्नान करती है।

चनाब नदी का पानी आज भी पहले-सा ही सर्द था।

दूर काश्मीर की पहाड़ियों से बर्फ पिघल रही थी।

नीचे रेत में अगणित (विस्थापित लोगों के निशान) पाँवों के निशान थे।

शाहनी पिछले पचास वर्षों से चनाब नदी में स्नान कर रही है।

शाहनी सोचती है, एक दिन इसी दरिया के किनारे वह दुलहन बनकर उतरी थी।

आज उसके पास शाहजी नहीं हैं, पढ़ा-लिखा लड़का नहीं है, अर्थात वह अकेली है।

जम्मीवाला कुआँ भी आज नहीं चल रहा। ये शाहजी की ही असामियाँ हैं। शाहनी ने देखा, मीलों फैले खेत अपने ही हैं।

दूर-दूर गाँवों तक फैली हुई जमीनें, जमीनों में कुएँ- सब अपने हैं।

शेरा अपनी माँ जैना के मरने के बाद शाहनी के पास ही पलकर बड़ा हुआ।

शेरा के पास गड़ासा है, जिसे शाहनी की अवाज़ सुनकर शटाले के ढेर के नीचे सरका देता है।

शेरा सोचता है कि उस शाहनी की ऊँची हवेली की अँधेरी कोठरी में पड़ी सोने-चांदी की संदूकचियाँ उठाकर कि तभी..शेरे शेरे…. अवाज़ आई।

शेरा चीखकर बोला- ऐ मर गई एं… रब्ब तैनू मौत दे…

हसैना जल्दी-जल्दी बाहर निकल आई। – ऐ आई यां क्यों छावेले (सुबह-सुबह) तड़पना एं?

शाहनी प्यार से बोली- हसैना, यह वक्त लड़ने का है? वह पागल है तो तू ही जिगरा कर लिया कर।

जिगरा। हसैना ने मान भरे स्वर में कहा- शाहनी, लड़का आखिर लड़का ही है। कभी शेरे से पूछा है कि मुँह अँधेरे ही क्यों गालियाँ बरसाई हैं इसने?

शाहनी ने गंभीर स्वर में कहा – रात को कुल्लुवाल के लोग आए हैं यहाँ। जो कुछ भी हो रहा है, अच्छा नहीं। शेरे, आज शाहजी होते तो शायद कुछ बीच-बचाव करते।

शेरा सोचता है- शाहजी क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकता। यह होकर रहेगा- क्यों न हो? हमारे ही भाई-बंदों से सूद ले-लेकर शाहजी सोने की बोरियाँ तोला करते थे। प्रतिहिंसा की आग शेरे की आँखों में उतर आई। शेरा पिछले दिनों में तीस-चालीस कत्ल कर चुका है।

शाहजी की बात शाहजी के साथ गई, वह शाहनी को जरूर बचाएगा।

लेकिन कल रात वाला मशवरा वह कैसे मान गया था फिरोज की बात।

शेरा जानता है यह आग है। जबलपुर में आज आग लगनी थी, लग गई शाहनी कुछ न कह सकी। उसके नाते-रिश्ते सब वहीं हैं…

बीबी ने अपने विकृत कंठ से कहा- शाहनी, आज तक ऐसा न हुआ, न कभी सुना गजब हो गया, अंधेर पड़ गया।

पटवारी और बेगू जैलदार की बातचीत सुनाई दी। शाहनी समझी कि वक्त आन पहुँचा।

सारा गाँव है, जो उसके इशारे पर नाचता था कभी। उसकी असामियाँ हैं जिन्हें उसने अपने नाते-रिश्तों से कभी कम नहीं समझा। लेकिन नहीं, आज उसका कोई नहीं, आज वह अकेली है।

बेगू पटवारी ने कहा- शाहनी, रब्ब नू एही मंजूर सी।

बेगू पटवारी सोच रहा है- क्या गुजर रही है शाहनी पर। मगर क्या हो सकता है। सिक्का बदल गया है…

शाहनी ने कभी बैर नहीं जाना। किसी का बुरा नहीं किया। लेकिन बूढ़ी शाहनी यह नहीं जानती कि सिक्का बदल गया है….

थानेदार दाऊद खां की मंगेतर को सोने के कनफूल दिए थे मुँह दिखाई में। लीग के सिलसिले में भागोवाल मसीत बनाने के लिए भी तीन सौ रुपए दिए थे।

दाऊद खाँ ने पूछा – देर हो रही है शाहनी कुछ साथ रखना हो तो रख लो, सोना-चांदी…

शाहनी अस्फुट स्वर में बोली- सोना चांदी? सोना-चांदी बच्चा वह सब तुम लोगों के लिए है। मेरा सोना तो एक-एक जमीन में बिछा है।

शाहनी कहती है – दाऊद खाँ, इससे अच्छा वक्त देखने के लिए क्या मैं जिंदा रहूँगी।

शाहनी का एक बार फिर पूरा घर देखने का मन किया, लेकिन वह यह सोचकर नहीं जाती- जिनके सामने हमेशा बड़ी बनी रही है उनके सामने वह छोटी न होगी।

इस्माइल ने आगे बढ़कर भारी आवाज से कहा- शाहनी, कुछ कह जाओ। तुम्हारे मुँह से निकली सीस झूठी नहीं हो सकती।

शाहनी ने उत्तर में कहा- रब्ब तुहानू सलामत रक्खे बच्चा, खुशियाँ बक्शे…।

शेरे ने बढ़कर शाहनी के पाँव छुए। शाहनी ने शेरे को आशीर्वाद दिया – तैनू भाग जगण चन्ना (ओ चाँद तेरे भाग जागें)।

कहानी के अंत में शाहनी सोचती है- राज पलट गया है… सिक्का क्या बदलेगा? वह तो मैं वहीं छोड़ आई।…?

आस-पास के हरे-भरे खेतों से घिरे गाँवों में रात खून बरसा रही थी। शायद राज पलटा भी खा रहा था और सिक्का बदल रहा था…


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