प्रेमचन्द (कर्मभूमि भाग – 1 अध्याय 9 व अध्याय 10) Study Material | (Karmabhumi Part – 1 Chapter 9 and Chapter 10)
कर्मभूमि (भाग – 1) अध्याय नौ का सारांश | Karmabhoomi (Part – 1) Summary of Chapter Nine
अमरकान्त ने अपने पिता की बात मानने का वादा सुखदा से कर लिया था, लेकिन वह खुश नहीं था। अमर ऐसा कोई शब्द नहीं कहना चाहता था, जिससे सुखदा को दुख हो। अमरकान्त अपनी पत्नी सुखदा को रामायण, महाभारत और गीता जैसी अच्छी अच्छी किताबे पढ़ कर सुनाने लगा। साथ ही अमर सुखदा को थियटर, सिनेमा दिखाने लगा। समरकान्त भी बहुत खुश रहने लगे, वह भी सुखदा की खैरियत पूछ लेते थे। अब समरकान्त अमरकान्त के आदर्शों को पहले जितना बुरा नहीं समझते थे, परिणाम स्वरूप वे असामियों पर पहले जैसा गुस्सा नहीं करते थे। समरकान्त अमरकान्त से प्रसन्न रहने लगे और उसकी निष्ठा की प्रशंसा रेणुका (सुखदा की माँ) से करने लगे। सुखदा प्रसव पीड़ा की कल्पना करके चिंतित रहती है। परिणाम स्वरूप रेणुका ने सुखदा के लिए अभी से दाई रखने का प्रस्ताव समरकान्त को दिया और उन्होंने स्वीकार कर लिया।
भिखारिन का आगमन (Arrival of Beggar)
एक दिन दुकान पर दो गोरे आए, जिन्हें देखते ही समरकान्त ने अमरकान्त को दुकान से हटा दिया और सौदा खुद ही पटाने लगे, क्योंकि अमरकान्त एक रूपए भी अनैतिक स्वीकार नहीं करेगा। तीनों गोरे नशे में थे, जो सोना गोरे लोग बेचने आए थे, उसकी सही कीमत से अत्यधिक कम कीमत समरकान्त ने उन्हें बताई और कहा – दस रूपये से ज़्यादा नहीं देंगे। परिणाम स्वरूप तीनों गोरो ने आपसी सहमति से जेबर बेंच दिया।
जैसे ही गोरे ताँगे पर बैठते हैं, एक भिखारिन उनके ताँगे पर आई और दोनों पुरूष गोरों पर चाकू से वार कर दिया। अमरकान्त यह देखकर छुरी छिनने को बढ़ा, तभी भिखारिन ने छुरी फैंक दी। भिखारिन भागने की जगह वहीं चुपचाप खड़ी रही।
कुछ दुकानदार जमा हो गए, पुलिस भी आ गई। शहर के अधिकार भी वहाँ आ गए। भिखारिन ने खुद ही अपराध स्वीकार कर लिया। भिखारिन ने बताया, छ महीने पहले कुछ गोरे पुरूषो ने उसकी इज़्जत लूटी थी, उसके बाद वह होश में नहीं थी। आज चाकू से वार करने के बाद होश में आई है। उसका कहना है, उसने वार अवश्य किया है, लेकिन वह हत्यारिन नहीं है। उसने कहा – मैं फाँसी से नहीं डरती हूँ, मैं खुद ही मर जाना चाहती हूँ, जब आबरू लुट गई, तो जीकर क्या करूँगी।
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भिखारिन की यह बात सुनते ही, सारी जनता का क्रोध दया में बदल गया। परिणाम स्वरूप सब ने ऐसी गवाही दी जैसे वह उस भिखारिन को कब से जानते हैं, और उसने पागलों जैसी हरकतें पहले भी की है। जिस दिन भिखारिन के साथ अनैतिक कार्य किया गया था, उस दिन अमरकान्त ने उसे देखा था। उसके बाद आज तक अमरकान्त ने उसे दोबारा नहीं देखा, हाँ उसकी तलाश अवश्य करता है, ताकि उसकी सहायता कर सके। सहायता करने का मौका आज मिला है, परिणाम स्वरूप बाकी लोगों कि तरह अमरकान्त भी झूठा बयान देता है, और उसके पागल होने के किस्से सुनाता है।
अमरकान्त घर गया तो देखा नैना घबराई है, लेकिन सुखदा साहस से पूर्ण बैठी हुई है। सुखदा ने अमर से कहा इसे फाँसी नहीं होनी चाहिए। इसके लिए वह अपनी माँ रेणुका से मिलने गई, और रेणुका से भिखारिन को अज़ाद कराने के लिए अर्थिक मदद चाहती है। अमर का कहा – अनैतिक कार्य किसी और गोरे ने किया था, भिखारिन ने सज़ा किसी और गोरे को दी है। यह सुनकर सुखदा भिखारिन का पक्ष लेते हुए, गोरों का एक किस्सा सुनाती है, जिसमें गलती गाँव के एक व्यक्ति ने की थी, लेकिन सज़ा गोरों ने पूरे गाँव को दी थी।
सुखदा भिखारिन का केस लड़ने के लिए शहर में चंदा इकट्ठा करने के लिए कहती है। अमरकान्त ने कहा जो तुम चाहती हो वही होगा, हम अपनी तरफ से पूरा प्रयास करेंगे। अमरकान्त को आज पता चला सुखदा के मन में कितनी दया है, वह कितनी अच्छी इंसान है।
कर्मभूमि (भाग – 1) अध्याय दस का सारांश (Karmabhoomi (Part – 1) Summary of Chapter Ten)
भिखारिन के स्थिति को लेकर तीन महीने तक पूरे शहर में चहल-पहल रहती है, लोग समय निकाल कर कोट जाते और भिखारिन के अज़ाद होने की ख्वाहिश रखते हैं। कोट जाने वाले में महिलाएँ अधिक होती हैं। रेणुका और सुखदा सबसे अधिक समय तोकत कोट में रहती हैं। भिखारिन ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था परिणाम स्वरूप उसे निर्दोष साबित करने के लिए उसे पागल साबित करने का प्रयास किया जा रहा था, लेकिन डॉक्टर ने कह दिया उसमें पागल जैसी कोई निशानी नहीं है, अर्थात वह ठीक है।
इस मुक़दमें की पैरवी में मुख्य भूमिका रेणुका ने निभाई और शान्तिकुमार (प्रोफेसर) और अमरकान्त उसकी सहायता कर रहे थे। पठानिन बुढ़िया और सकीना भी कोट आई, और भिखारिन से मिलने की इच्छा ज़ाहिर की। इस मुक़दमें के लिए लोगों ने चंदा भी दिया, परिणाम स्वरूप सकीना भी कुछ पैसे चंदे में देना चाहती है। पठानिन ने सकीना की शादी के लिए लड़का देखने के लिए अमरकान्त से पहली मुलाक़ात में कहा था, जिसे वह आज अमरकान्त को फिर से याद दिलाती है। अमरकान्त ने भी उत्तर दिया इस मुक़दमे के कारण मुझे मौक़ा ही नहीं मिला। अमरकान्त ने सकीना और पठानिन को सुखदा और रेणुका से मिलवाया।
मुक़दमें की पैरवी शुरू होने वाली थी, परिणाम स्वरूप सभी दर्शक कमरे में आकर इकट्ठा हो गए। जज साहब पहले राष्ट्र के उतसाही सेवक और काँग्रेस के प्रान्तीय जलसे के सभापति थे। तीन साल से जज हैं, परिणाम स्वरूप वे राष्ट्रीय अंदोलन से अलग रहते हैं, लेकिन नाम बदल कर पत्रों में सकारात्म राष्ट्रीय विचार लिख कर लोगों को प्रोत्साहित करते हैं।
भिखारिन से उसके घर परिवार के बारे में पूछा गया, जिसे उसने बताने से मना कर दिया, क्योंकि वह अपने परिवार को कलंकित नहीं करना चाहती है। बिना डरे उसने यह भी स्वीकार कर लिया की उसी ने क़त्ल किया है। उसने पहले भी कहा था, जब से उसके साथ अनैतिक कार्य हुआ था तबसे लेकर गोरों की हत्या करने तक उसे होश नहीं था। उसे नहीं पता कैसे उसके हाथ में खंजर आ गया, उसे होश तब आया जब उसने दोनों गोरो पर वार कर दिया।
भिखारिन ज़िन्दा नहीं रहना चाहती है, वह जज से खुद ही कहती है – मुझे मृत्यु दण्ड दे दो। आज उसने बताया वह विवाहित है, उसकी एक बच्चा भी है, जो बहुत छोटा है। उसका कहना है – मैं अब अपवित्र हो चुकी हूँ, मेरा परिवार मुझे स्वीकार नहीं करेगा। उसने प्रश्न किया अगर आज मुझे छोड़ भी दें, तो क्या मैं अपने घर जा सकती हूँ?, क्या अपने पति को अपना कह सकती हूँ?, अपने बच्चे को अपना कह सकती हूँ? अब मैं अपवित्र हूँ, अछूत हूँ।
भिखारिन की यह बातें सुनकर महिलाओं का चेहरा गर्व से पूर्ण हो गया और पुरूषो का चेहरा शर्म से झुक गया। सुखदा के पास ही जज की पत्नी बैठी हुई थी, वह भी चाहती थी कि भिखारिन छूट जाए। जज ने पंच लोग से अपनी सम्मति देने के लिए कहा। सबने अपना पक्ष बता दिया, उनके हिसाब से भिखारिन निर्दोष थी, जिसे पढ़कर वह मुस्कुराए, और अपना फ़ैसला कल सुनाने का वादा करके उठ गए।