कर्मभूमि प्रेमचन्द (कर्मभूमि भाग – 1 अध्याय 11 व अध्याय 12) Study Material | (Karmabhumi Part – 1 Chapter 11 and Chapter 12) ग्यारह
संक्षिप्त सारांश (Brief Summary)
अमरकान्त और सुखदा को पुत्र की प्राप्ति हई। पुत्र होने के परिणाम स्वरूप समरकान्त ने जलसा किया। अमरकान्त अपने घर में व्यस्त हो गया इसलिए वह कचहरी नहीं पहुँच सका। भिखारिन (मुन्नी) को जज साहब ने बरी कर दिया। बरी होते ही मुन्नी शहर छोड़कर हरीद्वार के लिए चली गई।
कर्मभूमि (भाग – 1) अध्याय ग्यारह का सारांश | Karmabhoomi (Part – 1) Summary of Chapter Eleven
सारे शहर में कल के लिए तैयारियाँ होने लगी। लोग दोनों प्रकार कि तैयारी कर रहे थे, यदि मुन्नी (भिखारिन) को सज़ा नहीं हुई तो क्या करना है और सज़ा हो गई तो क्या करना है।
रात दस बजे अमरकान्त सलीम के घर गया। अमर ने कहा – फाँसी की सज़ा पर ख़मोश रहना बुज़दिली है। जज को परेशान करने कि बात कही। सलीम ने कहा – अगर सबक़ देना ही है तो ऐसा सबक़ दे जो कुछ दिन हज़रत को याद रहे। सलीम ने अपना मत देते हुए कहा – कोई आदमी तय कर लेना चाहिए, दो जज साहब फैसला सुनाते ही जूते से मारे। सलीम ने इस काम के लिए काले खाँ का नाम अमरकान्त के सामने पेश कर दिया। इस काम के लिए काले खाँ जो रूपये लेगा, सलीम ने कहा – वह मेरे पास नहीं हैं। अमर ने कहा – रूपये मैं जाकर ले आता हूँ। सलीम ने इतनी रात को रूपये लाना ठीक नहीं समझा परिणाम स्वरूप वह सुबह रूपये लाने के बाद काले खाँ से बात कर लेगा।
अमरकान्त रात साढ़े दस बजे घर पहुँचा तो दरबाज़े पर लाइट जल रही थी। समरकान्त दो-तीन पंडित के साथ बैठक में बैठे थे। समरकान्त ने अमरकान्त को देखते ही डांटा और लेडी डॉक्टर को बुलाने को कहा। अमरकान्त ने कहा – क्या किसी की तबीयत…
इतना सुनते ही समरकान्त ने बहुत ज़ोर से डांटा, अन्दर से सिल्लो निकल आई और उसने सुखदा का हाल बताते हुए कहा – मैं सोने की कण्ठी लूँगी। नैना ने भी कहा – तुम कहा थे भैया भाभी बड़ी देर से बेचैन है। अमरकान्त समझ गया सुखदा को प्रसव पीड़ा हो रही है। दरवाज़े पर आकर उसने सुखदा को देखा, इतने में सुखदा ने उसे वहाँ से जाने के लिए कहा। परिणाम स्वरूप अमरकान्त तुरन्त डॉक्टर को बुलाने चला गया। अमरकान्त लेडी डॉक्टर मिस हूपर के पास गया, और उसे साथ चलने की बात कही। मिस हूपर ने कहा – शायद सिविल सर्जन को बुलाना पड़े। यह सुनने के बाद अमरकान्त ने मोटर से मिस हूपर को अकेले ही भेज दिया और खउद सिविल सर्जन को बुलाने चला गया।
अमर सिविल सर्जन के पास पहुँचा तो उसने जाने से मना कर दिया, और कहा – हमारा रात का फीस सौ रूपये है, अमरकान्त ने सौ रूपये देना स्वीकार कर लिया।
अमरकान्त घर पहुँचा तो दूर से ही शहनाई की आवाज़ सुनाई दी, परिणाम स्वरूप वह खुश हो गया। समरकान्त ने डॉक्टर को सलाम किया और बताया की पोता हुआ है। डॉक्टर साहब ने बिना कोई काम किये फीस लेकर वापस चले गए। डॉक्टर के जाने के बाद लाल समरकान्त ने अमरकान्त को डांटते हुए कहा – मुफ्त में सौ रूपये की चपत लगा दी।
अमरकान्त ने लेडी हूपर से सुखदा और बच्चे का हाल-चाल पूछा। उसके बाद घर में गाना-बजाना शुरू हो गया। थोड़ी देर में सिल्लो आकर रोने लगी और अमरकान्त से बताया मेम साहब ने मुझे बच्चे को देखने नहीं दिया। अमरकान्त ने समझाते हुए कहा – बच्चे को तो तू ही पालेगी, उन्होंने इसलिए मना किया होगा कि कहीं बच्चे को हवा न लग जाए।
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शुभ अवसर पर रंडियों के नाच की प्रथा थी, परिणाम स्वरूप समरकान्त यह नाच करवाना चाहते थे, लेकिन अमरकान्त ने इसका विरोध किया। समरकान्त ने प्रतिवाद करते हुए कहा जो प्रथा चली आ रही है। वह निभाई जाएगी।
दूसरी तरफ जज को जूता मानने के लिए, सलीम ने दौ सौ रूपये में काले खाँ को तैयार कर लिया।
कर्मभूमि (भाग – 1) अध्याय बारह का सारांश | Karmabhoomi (Part – 1) Summary of Chapter Twelve
सलीम को लगा अमरकान्त रूपये लेकर आता होगा, लेकिन नौ बज गए अमर नहीं आया। सलीम सोचने लगा कहीं, वह बीमार तो नहीं पड़ गया? फिर खुद यह सोचकर तसल्ली दी हो सकता है रूपये का इंतज़ाम कर रहा होगा। जैसे ही सलीम अमरकान्त के पास जाने लगा तभी प्रो. शान्तिकुमार आ गए। उन्होंने सलीम को बताया अमर के घर लड़का हुआ है, परिणाम स्वरूप वह कचहरी नहीं जा पायेगा।
सलीम यह खबर सुनकर खुश नहीं हुआ। उसने काले खाँ की तरफ देखा तो काले खाँ ने कहा – मैं यह काम कर देता हूँ, रूपये बाद में ले लूँगा। काले खाँ के जाने के बाद शान्तिकुमार ने सलीम से पूछा – क्या बात है? सलीम ने बहुत ही समान्य अंदाज़ में जज साहब को सबक़ देने वाली बात प्रो. शान्तिकुमार को बताई।
शान्तिकुमार यह बात सुनते ही नराज़ हुए, यह विचार अमरकान्त का है, यह जानकर उन्हें बहुत दुख हुआ। शान्तिकुमार ने सलीम को डांटा परिणाम स्वरूप सलीम का मुँह छोटा-सा हो गया। सलीम ने खुद को बचाने के लिए कहा – यह विचार अमरकान्त का था। शान्तिकुमार को यकीन ही नहीं हो रहा था कि ऐसा कोई विचार अमरकान्त के मन में आ सकता है।
अत्यधिक देर होने पर भी जब अमरकान्त नहीं आया तो उसके न आने के कारण प्रो. शान्तिकुमार नराज़ हो रहे थे। सलीम और शान्तिकुमार ने तय किया यदि फ़ैसला अनुकूल हुआ तो भिखारिन (मुन्नी) को गंगा तट पर लाएँगे वहाँ स्नान करेंगे उसके बाद सब अपने घर चले जाएँगे।
शान्तिकुमार ने सलीम से शाम को किसी प्रोग्राम में जाने के लिए पूछा वहाँ जाकर देश हित में भाषण देना था। सलीम ने शान्तिकुमार के साथ जाना तो स्वीकार कर लिया, लेकिन वहाँ भाषण देने से मना कर दिया। इसी दौरान सलीम ने मोटर मँगवाई और दोनों कचहरी के लिए निकल गए।
आज कचहरी (कोट) में बाक़ी दिनों से ज़्यादा भीड़ है। प्रो. शान्तिकुमार के आते ही बहुत सारे लोग उनके पास जाने लगे। यहाँ समरकान्त के यहाँ की उत्सव की बात किसी ने छेड़ दी और शान्तिकुमार से पूछने लगे – क्या आप उत्सव में जाएँगे? शान्तिकुमार ने मना कर दिया।
अचानक एक पुरूष एक साल के बालक के साथ प्रो. शान्तिकुमार के सामने आ जाता है। उसने अपना थोड़ा-सा परिचय दिया भीड़ से अलग जाकर पो. शान्तिकुमार से बात करने का प्रयास किया। शान्तिकुमार उस व्यक्ति को अलग पास के बगीचे में लेकर चले गए। इस पुरूष ने बताया की भिखारिन (मुन्नी) उसकी पत्नी है, और उसकी गोद में जो बच्चा है, उसकी माँ मुन्नी है। जिस दिन अँग्रेज़ो ने उसकी इज़्ज़त पर प्रहार किया उस दिन वह गाँववालों के साथ अपने लिए साड़ी लेने गई थी। लौटते समय मुन्नी के साथ यह वरदात हो गई, गाँव के सब आदमी उसे वहीं छोड़कर भाग गए। उस दिन के बाद वह घर नहीं आई और इस पुरूष ने उसे खोजने का प्रयास भी नहीं किया। इस पुरूष ने कहा – मैंने समझा वह कहीं डूब मरी होगी।
भिखारिन द्वारा गोरों की हत्या की खबर सुनने के बाद यह पुरूष समझ गया कि भिखारिन उसकी पत्नी मुन्नी ही है। कचहरी की हर पेशी में आता है, लेकिन किसी से मुन्नी के बारे में बात नहीं करता है। मुन्नी के पति ने शान्तिकुमार से निवेदन किया और कहा – जज साहब के फैसला सुनाने के बाद थोड़ी देर के लिए मुन्नी से मिलवा दें।
मुन्नी के पति ने शान्तिकुमार को विश्वास दिलाया, यादि मुन्नी बरी हो जायेगी तो वह उसे अपने साथ अपने घर ले जाएगा। बिरादरी वाले मुन्नी को अस्वीकार करेंगे फिर भी वह मुन्नी को अपना लेगा।
जज साहब ने फैसला सुनाया और कहा – यह सिद्ध है कि मुन्नी ने हत्या की…, लेकिन यह भी सिद्ध है कि उसने यह हत्या मानसिक अस्थिरता की दशा में की – इसीलिए मैं उसे मुक्त करता हूँ। यह सुनकर कचहरी में मौजूद सारी जनता खुश हो गई। पुष्प वर्षा के बाद जज कि पत्नी ने मुन्नी के गले में माला डाल दी। भीड़ महिलाओं की संख्या सबसे अधिक थी।
मुन्नी ने शान्तिकुमार से आग्रह किया और कहा – उसे हरिद्वार या किसी दूसरे तीर्थ स्थान पर भेज दिया जाए। प्रो. शान्तिकुमार ने मुन्नी से कहा तुम्हें जाने की अवश्यकता नहीं है, तुम्हारा पति तुम्हें अपने साथ ले जाने आया है। मुन्नी तो आश्चर्य हुआ उसने पूछा आपको कैसे पता?
शान्तिकुमार ने उसके पति से मिलने की बात मुन्नी से बता दी। यह सुनकर मुन्नी ने कहा – उसके पति और बेटे को उसके पास न आने दिया जाए, मैं पति और पुत्र के मोह में उनका सर्वनाश नहीं होने दूँगी। मुन्नी कि बातों से मजूबर होकर शान्तिकुमार ने उसे मोटर पर बिठाया और रेलवे स्टेशन की तरफ ले जाने लगे, थोड़ी ही दूर गए थे कि मुन्नी का पति अपने बच्चे को गोद में लिए मोटर के पीछे दौड़ लगाने लगा और उसे रूकने के लिए कहता रहा। इतना होने पर भी मुन्नी नहीं रूकी और चली गई, वह बहुत दुखी हो जाती है, अपने बच्चे को गोद में लेना चाहती है, लेकिन समाजिक मान्यता और बिरादरी के द्वारा बहिष्कार होने के डर से उसने ऐसा नहीं किया।
समीक्षा (Review)
मुन्नी बरी होने के बाद अपने पति से नहीं मिली, और न ही उसके साथ जाने के लिए तैयार हुई, क्योंकि उसे बिरादरी द्वारा त्याग दए जाने का डर था। यह डर मुन्नी के मन में ऐसे ही नहीं आया था। सम्भवतः उस समय के दौर में यदि कोई स्त्री किसी के साथ अनैतिक सम्बन्ध बनाती या उसके साथ कोई अनैतिक व्यावहार करता जैसा की मुन्नी के साथ अंग्रेज़ गोरों ने किया, तो उस स्त्री को उसका पति त्याग देता था। यदि उसे अपना भी ले तो समाज और परिवार उस स्त्री और उसके पति को भी त्याग देता था।
यह तो सिर्फ कथा है, विचार कीजिए क्या भारत के कुछ क्षेत्र (गाँव) में आज भी ऐसा हैं? जहाँ अगर स्त्री कुछ दिन बाहर (खो जाए या कहीं चली जाए) रह जाए, या किसी को संदेह है कि इसका किसी पुरूष ने अनैतिक किया है, तो समाज स्त्री का ही त्याग कर देता है। जिसका मुख्य कारण होता है, समाज स्त्री को अपवित्र मानने लगता है।
कर्मभूमि के प्रत्येक अध्याय
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