UGC Net JRF Hindi : चीफ की दावत संवाद व घटना | Dialogue and Incident Cheeph Kee Davat
भीष्म साहनी (Bhisham Sahni)
भीष्म साहनी का जन्म 1915 रावलपिंडी पाकिस्तान में हुआ था। वे गद्यकार और जनवादी लेखक थे। उनका पहला कहानी संग्रह “भाग्य रेखा” 1953 में आया और दूसरा कहानी संग्रह “पहला पाठ” 1957 में आया। 1965 से 1967 तक नई कहानियाँ पत्रिका के संपादक थे।
भीष्म साहनी अभिनेता बलराज साहनी के भाई हैं। इनके उपन्यास तमस को 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और 1986 में फिल्म बनी।
भीष्म साहनी को प्रेमचन्द की परम्परा का कहानीकार माना जा सकता है।
नामवर सिंह जी कहते हैं— सादगी और सहजता भीष्मजी की कहानी कला की खूबियाँ हैं।
चीफ की दावत कहानी (Cheeph Kee Davat)
यह कहानी मिस्टर शामनाथ और उनकी माँ पर केन्द्रित है।
चीफ की दावत कहानी पहला पाठ 1957 कहानी संग्रह में संकलित है।
कहानी का विषय – मध्यवर्ग की नौकरी, विडम्बनाओं और पारिवारिक मूल्यों के तेजी से बदलाव की स्थिति का चित्रण।
यह कहानी वृद्ध विमर्श के दृष्टिकोश से भी प्रसिद्ध है।
इस कहानी में मध्यवर्गीय समाज का खोखलापन दिखाया है।
शिक्षित वर्ग के गलत आचरण को दिखाया है।
भारतीय आदर्श को छोड़कर पश्चिमी संस्कृति अपनाने का प्रभाव दिखाई दिया है।
नई कहानी के दौर में चीफ की दावत कहानी बहुत प्रसिद्ध हुई।
शामनाथ मध्यवर्गीय व्यक्ति है, जो अपने प्रमोशन के लिए कुछ भी कर सकता है।
शामनाथ की पत्नी उसके सारे कामों में सहयोग करती है।
शामनाथ की माँ को पुराने ख़्याल और अनपढ़ होने के कारण दरकिनार किया जाता है।
चीफ़ शामनाथ का बॉस है, जो एक अमेरिकी है, वह आदर्शवादी और शिष्टाचारी व्यक्ति है।
इस कहानी में शाम को चीफ़ की दावत है, जिसके लिए शामनाथ पूरी तैयारी करते हैं, लेकिन अपनी माँ को चीफ़ से नहीं मिलाना चाहते हैं, क्योंकि वह देहाती और अनपढ़ महिला हैं। लेकिन चीफ़ अचानक माँ से मिल लेते हैं, और माँ से मिलकर बहुत खुश होते हैं। साथ ही साथ वह माँ से अपने लिए फुलकारी बनाने की इच्छा प्रकट करते हैं। आँखे सही न होने के बाद भी शामनाथ अपनी माँ से फुलकारी बनाने के लिए मजबूर करता है।
कहानी के मुख्य संवाद और घटनाएँ (ialogue and Incident Cheeph Kee Davat)
कहानी की शुरूआत में आज चीफ़ की दावत है।
ड्रिंक का इन्तज़ाम बैठक में कर दिया गया।
शामनाथ के सामने सहसा एक अड़चन खड़ी हो गई, माँ का क्या होगा?
मिस्टर सामनाथ, श्रीमती की ओर घूमकर अंग्रेजी में बोले- माँ का क्या होगा?
पत्नी बोली इन्हें पीछवाड़े इनकी सहेली के घर भेज दो, रात-भर बेशक वहीं रहें।
कोठरी का दरवाजा बरामदे में खुलता था।
माँ दीवार के साथ एक चौकी पर बैठी, दुपट्टे में मुंह-सिर लपेटे, माला जप रही थी।
जब शामनाथ ने अपनी माँ को चीफ़ से छुपने के लिए कहा तो— माँ अवाक् बेटे का चेहरा देखने लगी। फिर धीरे से बोलीं- अच्छा बेटा।
शामनाथ ने माँ को जल्दी सोने के लिए मना किया क्योंकि माँ के खर्राटों की आवाज दूर तक जाती हैं।
माँ बताती है, जब से बीमारी से उठी हूँ, नाक से साँस नहीं ले सकती।
बेटा कहता है, माँ से किसी दिन तुम्हारी वह खड़ाऊँ उठाकर मैं बाहर फेंक दूंगा।
माँ के सारे ज़ेवर बेटे की पढ़ाई में बिक गए।
शामनाथ कहता है— निरा लंडूरा तो नहीं लौट आया। जितना दिया था, उससे दुगुना ले लेना।
कामयाब पार्टी वह है, जिसमें ड्रिंक कामयाबी से चल जाएँ। शामनाथ की पार्टी सफलता के शिखर चूमने लगी।
कहीं कोई रूकावट न थी, कोई अड़च न थी। साहब को व्हिस्की पसन्द आई थी। मेमसाहब को पर्दे पसन्द आए थे, सोफ़ा – कवर का डिज़ाइन पसन्द आया था, कमरे की सजावट पसन्द आई थी।
चीफ़ की पत्नी काला गाउन पहने, गले में सफ़ेद मोतियों का हार, सेंट और पाउडर की महक से ओत-प्रोत, कमरे में बैठी सभी देसी स्त्रियों की आराधना का केन्द्र बनी हुई थीं।
पीते-पिलाते साढ़े दस बज गए थे।
माँ को कुर्सी पर ज्यों-की-त्यों बैठी देख शामनाथ का सारा नशा हिरन होने लगा। वह नींद में झूल रही थीं। देखते ही शामनाथ क्रुद्ध हो उठे।
उन्हें देखते ही देसी अफ़सरों की कछ स्त्रियाँ हँस दीं।
चीफ़ के चेहरे पर मुस्कुराहट थी।
शामनाथ अंग्रेज़ी में बोले— मेरी माँ गाँव की रहने वाली हैं।
साहब खुश नज़र आए। उन्हें गाँव के लोग बहुत पसंद हैं।
तुम्हारी माँ गीत और नाच भी जानती होंगी? चीफ़ ने पूछा।
शामनाथ ने आदेश भरे लहज़े में माँ से कहा गीत सुनाने को।
माँ ने पुराना विवाह का गीत गया।
शामनाथ की खीज प्रसन्नता और गर्व में बदल उठी थी।
माँ ने पार्टी में नया रंग भर दिया था।
माँ अपनी पुरानी फुलकारी उठा लाई, चीफ़ को दिखाने के लिए।
माँ ने दुखी होकर कहा— बेटा, तुम मुझे हरिद्वार भेज दो।
शामनाथ अब भी अपने मतलब के लिए माँ को अपने पास रखना चाहता है, और माँ को दिखाई नहीं देता उसके बाद भी ज़बरदस्ती फुलकारी बनाने के लिए मजबूर करता है।
माँ दुखी मन से कहती है, थोड़े दिन की ज़िन्दगी है भगवान का नाम लूँगी, मुझे हरिद्वार भेज दो।
जब शामनाथ कहता है, फुलकारी बनाने से मैं बड़ा अफ़सर बन जाऊँगा तो माँ का चेहरा खिलने लगता है, और तरक्की होगी यह सुनकर वह फुलकारी बनाने को तैयार हो जाती है।
माँ बेटे के उज्जवल भविष्य की कामना करने लगी। शामनाथ लड़खड़ाते हुए वहाँ से चला जाता है। कहानी यहीं पर समाप्त हो जाती है।
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