IGNOU MHD- 3 शिव प्रसाद सिंह की कहानी कर्मनाशा की हार | Shiv Prasad singh ki kahani karmnasha kee haar
कर्मनाशा की हार का परिचय (Introduction to the Karmnasha Kee Haar)
प्रकृति अपने अनुसार चलती है, उसे प्रत्यक्ष रूप से बदला नहीं जा सकता है। प्रकृति से छेड़छाड कभी-कभी सुविधाएँ लाती है और कभी विनाश लाती है। नदियों पर बाँध बनाना मानव की आवश्यकता है, लेकिन बरसात के मौसम में वही बाँध विनाश का कारण भी बनते हैं। बाँध में इकट्ठा पनी अगर न छोड़ा जाए तो बाँध टूट सकता है, और विनाश हो सकता है। बाँध का पानी छोड़ दिया जाए तब भी कुछ क्षेत्र बाढ़ से नहीं बच पाते हैं।
हम बात कर रहे हैं, शिव प्रसाद सिंह की लिखी कहानी कर्मनाशा की हार की। कर्मनाशा के लिए मान्यता है, कि इस नदी का पानी जिस गाँव को छू लेता है, वहाँ किसी न किसी की जान चली जाती है। तभी यह नदी शांत होती है। “ई बाढ़ी नदिया जिया ले के माने” नईडीह के बच्चे-बच्चे गाने के माध्यम से इस बात को कहते हैं।
कर्मनाशा की हार कहानी का सारांश (Summary of the story)
कर्मनाशा का पानी हमेशा नीचे के क्षेत्रों में बाढ लेकर आता था, लेकिन पीछले साल नईडीह में भी कर्मनाशा नदी का पानी पहुँच गया। परिणाम स्वरूप पीछले साल भी बाढ के कारण कुछ एक मौतें नईडीह में हुई थी।
इस साल फिर से कर्मनाशा का पानी नईडीह तक आ पहुँचा। सारे गाँव के लोग परेशान है, इसी दौरान टीमल मल्लाह की विधवा बेटी फुलमती को बेटा हुआ है। धनेसरा चाची ने यह बात पूरे गाँव में फैला दी, साथ ही यह भी कहा – गाँव में बाढ़ फुलमती के पाप करने से आई है। अर्थात फुलमती के विधवा होने के बाद उसने किसी से संबन्ध रखा परिणाम स्वरूप उसकी संतान पैदा हुई है। फूलमती के बारे में यह सब सुनकर सभी गाँव वाले क्रोधित हो गए। इसी दौरान कुछ गाँव वाले पूजा पाठ करवाना चाह रहे हैं, ताकि इस बाढ़ से बचा जा सके।
भैरों पांड़े (Bhairon Pandey)
भैरों पांड़े इस गाँव का एक पंडित है, जब वह छोटा था तभी उसके माता-पिता का देहांत हो गया था।
उस समय उसका छोटा भाई कुलदीप 2 साल का था। भैरों पांड़े के दादा जी नामी गिरामी पंडित थे।
भैरों पांड़े अपने घर में अकेले हैं, और अपने भाई से संबन्धित अतीत की बातें लगातार याद कर रहे हैं। भैरों पांड़े ने बहुत कष्ट उठाकर अपने छोटे भाई कुलदीप की परवरिश की है। जब कुलदीप अठारह साल का हुआ तो, उसका ध्यान पढ़ाई से हटने लगा। गाँव की ही एक महिला जिसका नाम फुलमती है, कुलदीप का उसके साथ प्रेम प्रसंग हो गया। जिसे भैरों पांडे ने भाप लिया था।
भैरों पांडे ने कुलदीप को समझाने की कोशिश की। कुछ दिन तक कुलदीप ने भैरों पांडे की बात मानी, लेकिन कुछ दिन बाद वह फिर से फुलमती के संपर्क में आने लगा। भैरों पांडे ने एक दिन रात में खुद कुलदीप और फुलमती को साथ में देखा। उस दिन भैरों पांडे ने कुलदीप और फुलमती को कटु बातें भी सुनाई।
जिन दिनों गाँव के मुखिया की बेटी की शादी हो रही थी, उन्हीं दिनों कुलदीप के प्रेम प्रसंग का अनैतिक परिणाम सामने आ गया। भैरों कुलदीप से बहुत गुस्सा थे, लेकिन फिर भी उन्होंने उसके साथ समान्य व्यवहार करने का प्रयास किया। जब फुलमती के गर्भवती होने की बात सामने आई तो कुलदीप घर से भाग गया। आज भैरों को अपने भाई कुलदीप की बहुत याद आ रही है। भैंरों पांडे आज सोच रहे हैं, अगर फुलमती उसकी जात की होती और विधवा न होती तो उसके कोई कमी नहीं थी। उसे अपने घर की बहू वह बना सकता था। अर्थात भैरों को फुलमती से कोई नराज़गी नहीं है, फुलमती को बहू के रूप में वह अपना नहीं पा रहा है, इसका ज़िम्मेदार समाजिक ताना-बाना है।
भैरों पांडे ने फुलमती की जान बचाई (Bhairon Pandey saved Fulmati’s Life)
वर्तमान में सभी फुलमती को पापी मानते हैं, परिणाम स्वरूप सभी गाँव वालों ने तय किया है कि फुलमती और उसके नवजात बेटे को नदी में फैंक देंगे। जिससे नदी के पानी का स्तर नीचे चला जाएगा। भैंरों से मुखिया ने पूछा इसमें तुम्हारी क्या राय है।
भैंरो ने फुलमती से बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और गाँव वालो से कहा बाढ न आए इसके लिए बाँधों की मरम्मत करवानी चाहिए। किसी व्यक्ति की बली देने से बाढ़ नहीं रोकी जा सकती। इसी के साथ भैंरो ने फुलमती और उसके बच्चे को अपने भागे हुए छोटे भाई कुलदीप के परिवार के रूप में स्वीकार कर लिया।
‘शिवप्रसाद सिंह की लोकप्रिया कहानियाँ’ किताब खरीदने के लिए क्लिक करें।
निष्कर्ष (Conclusion)
समाज एक ही गलती के लिए पुरूष और स्त्री को अलग-अलग नज़रों से देखता है। प्रेम प्रसंग कुलदीप और फुलमती दोनों का था। अनैतिक संबन्ध के परिणाम स्वरूप संतान फुलमती और कुलदीप दोनों की थी। लेकिन गाँव का मुखियाँ और गाँव वाले पापी या दोषी सिर्फ फुलमती को मानते रहे, जिसके परिणाम स्वरूप मानवता भुला कर वह उसकी और उसके नवजात शिशु की जान तक ले लेना चाहते थे।
यह कहानी अवश्य है, लेकिन कहानी साहित्य का अंश है और साहित्य समाज का दर्पण होता है। वर्मतान में भी अगर कोई महिला विवाह से पूर्व या विवाह के बाद अनैतिक संबन्ध के परिणाम स्वरूप किसी संतान को जन्म दे, तो समाज के लिए पूर्ण रूप से दोषी महिला ही मानी जाती है।
By Sunaina
- Study Material : निबन्ध दिल्ली दरबार दर्पण | Essay Delhi Darbar Darpan
- Study Material : नादान दोस्त कहानी का सारांश | Summary of the story Naadan Dost
- Study Material : बचपन कहानी का सारांश | Summary of the story Bachpan
- Study Material : निबन्ध भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? | Nibandh bharatavarshonnati Kaise Ho Sakatee Hai?
- Study Material : निबन्ध नाखून क्यों बढ़ते हैं | Essay Nakhoon Kyon Badhate Hain