Study Material : कर्मभूमि उपन्यास का संक्षिप्त सारांश | Brief summary of the novel Karmabhoomi

प्रेमचन्द द्वारा लिखे उपन्यास कर्मभूमि का सारांश | Summary of the Novel Karmabhoomi Written by Premchand

Table of Contents

उपन्यास का परिचय (Introduction to the Novel)

अक्सर यह देखा जाता है कि माता-पिता और संतान के विचारों में फर्क होता है। किशोरावस्था के दौरान संतान के विचार माता-पिता के विपरीत होने लगते हैं। ऐसा आज से नहीं है, यकीनन ऐसा कई शतकों से होता आ रहा है। अतीत में संतान के संबन्ध माता-पिता से कैसे थे यह जानने के लिए या तो हम इतिहास पढ़ते हैं, या फिर उस दौर का साहित्य पढ़ते हैं।

परिणाम स्वरूप हम बात कर रहे हैं, प्रेमचन्द द्वारा लिखे उपन्यास कर्मभूमि की। इस उपन्यास में उपन्यास के नायक अमरकान्त और उसके पिता समरकान्त के बीच विचारों में भिन्नता दिखाई देती है। यह उपन्यास राजनीतीक विषयों पर आधारित है।

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कर्मभूमि उपन्यास भाग एक का सारांश (Summary of Karmabhoomi Novel Part One

अमरकान्त का परिवार के साथ संबन्ध (Amarkant’s Relationship with Family)

इस उपन्यास का नायक अमरकान्त है। उपन्यास के कथानक की शुरूआत अमरकान्त के विद्यालय से होती है, जहाँ फ़ीस जमा करने की आज अंतिम तारीख़ होती है। अमरकान्त के पास रूपए नहीं होते परिणाम स्वरूप वह बहुत दुखी होता है। उसकी इस समस्या को सलीम अमरकान्त का मित्र भाप लेता है और उसकी फ़ीस भी खुद ही जमा कर देता है।

अमरकान्त की माता का स्वर्गवास बचपन में ही हो गया था। उसके बाद अमरकान्त के पिता समरकान्त ने दूसरा विवाह कर लिया। अमरकान्त को सौतेली माँ से कभी स्नेह नहीं मिला, माता के कारण पिता समरकान्त से भी दूरी हो गई। पिता-पुत्र में सदैव मतभेद रहता है।

अमरकान्त के पिता के पास रूपए की कोई कमी नहीं है, लेकिन वह अपने रूपए अपने बेटे की पढ़ाई में खर्च नहीं करना चाहते हैं। जिस कारण अमरकान्त को अपनी पढ़ाई के लिए सलीम से सहायता लेनी पड़ी।

अमरकान्त सादा सरल जीवन जीना चाहता है, लेकिन उसकी पत्नी सुखदा सुख-सुविधाओं में जीवन जीना पसंद करती है। सुखदा बचपन से सुविधाओं और अपनी माँ के स्नेह के साथ बड़ी हुई है। वहीं अमरकान्त के घर में कोई कमी न होने के बाद भी उसे स्नेह और सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है परिणाम स्वरूप अमरकान्त और सुखदा के बीच मतभेद रहता है और तनाव की स्थिति बनी रहती है।

समरकान्त चाहते हैं अमरकान्त पढ़ाई छोड़कर उनके व्यवसाय में उनकी सहायता करें, सुखदा भी यही चाहती है। लेकिन अमरकान्त अपने पिता की इच्छाओं के विपरीत कार्य करता है।

अमरकान्त का पूरे परिवार में सिर्फ नैना के साथ सकारात्मक संबन्ध है, अमरकान्त की सौतेली माँ सदैव चाहती रही की नैना और अमर की आपस में न बने लेकिन वह इस असफल रही। अमर की माँ चाहती थी उसे एक बेटा हो जाए तो वह अमर को उसके पिता से पूर्ण रूप से दूर कर देगी, लेकिन उसकी यह इच्छा कभी पूरी नहीं हुई। सौतेली माँ की भी स्वर्गवास हो गया।

सुखदा अपने पति अमरकान्त के लिए सदैव चिंतित रहती थी। अमरकान्त के घर में सुख-सुविधाए थीं, लेकिन वह फिर भी कठिन परिश्रम करके जीवन व्यतीत करना चाहता था। यदि अमरकान्त अपने पिता की बाते मानकर उनके व्यवसाय में हाथ बटाने लगे तो सुखदा की समस्याएँ हल हो जाए ऐसा सुखदा को लगता है।

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सुखदा अमरकान्त को छोड़कर अपने मायके पिछले एक साल से नहीं गई थी। सुखदा की माँ रेणुका घर में रहने वाली अकेली महिला थी। बेटी उससे मिलने नहीं आ रही थी परिणाम स्वरूप रेणुका स्वयं  सुखदा के नगर में रहने के लिए आ गई। रेणुका के पास धन की कोई कमी नहीं थी, सुखदा के नगर में ही उसने अपने लिए एक छोटा सा मकान ले लिया। मकान को रहने लायक घर में बदलने में अमरकान्त ने रेणुका की पूरी सहायता की। रेणुका के आने से अमरकान्त को माँ का स्नेह मिलने लगा था। परिणाम स्वरूप अब सुखदा और अमरकान्त के संबन्धों में मधुरता आपने लगी थी। इसी दौरान सुखदा गर्भवती हो गई, संतान के आने की खुशी में अमरकान्त की परिवार से नज़दीकी होने लगी। अब वह समय निकाल कर अपने पिता की दुकान पर बैठने लगा था।

अमरकान्त के जीवन में सकीना का अगमन (Sakina’s Arrival in Amarkant’s Life)

अमरकान्त अपने पिता की दुकान पर बैठा था, उसके पिता समरकान्त उस दिन दुकान पर नहीं थे। एक बुढ़िया (पठानिन) उसकी दुकान पर आई और उसने बताया की उसके पति की मृत्यु के बाद लाला समरकान्त उसे हर महीने पाँच रुपए देते हैं। यह बात जानकर अमरकान्त को अपने पिता पर गर्व महसूस हुआ। पठानिन ने कहा वह समरकान्त का इंतज़ार कर लेगी, लेकिन अमर ने बिना पिता से पुष्टि किए ही बुढिया को पाँच रूपए दे दिए और उसे उसके घर पहुँचाने गया।

अमरकान्त जब उसके घर गया तो उसने पाया पठानिन के घर के हर कोने से दरिद्रता (गरीबी) झलक रही है। पठानिन के घर में खुद पठानिन और उसकी एक पोती सकीना रहती है। उसके अनुसार उसके घर के सभी सदस्यों का स्वर्गवास हो गया है। यह सब देख-जानकर अमरकान्त को इस परिवार से सहानुभूति हुई।

मुन्नी का आगमन (Munni’s Arrival)

अमरकान्त एक बार अपने दोस्तों और प्रोफेसर शान्तिकुमार के साथ एक गाँव का दौरा करने गए थे। वहाँ कुछ अंग्रेज़ो द्वारा एक महिला के साथ अनैतिक व्यवहार किया गया। अमरकान्त अपने मित्रों के साथ उस खेत में हादसा होने के बाद पहुँचे परिणाम स्वरूप वह उस महिला को उनके अनैतिक कृत से बचा नहीं सके। अमर और सलीम की उनके साथ लड़ाई झगड़ा हुआ, इसी दौरान महिला लंगड़ाती हुई खेत से निकाल कर चली गई। अंधेरा होने के कारण किसी ने उसका चेहरा नहीं देखा। उसके बाद अमर उस महिला को खोज रहा था, ताकि उसकी सहायता कर सके।

अब लगभग छ महीने बाद अमरकान्त अपने पिता की दुकान पर बैठा था, और कुछ गोरे उसकी दुकान पर ग्राहक बनकर आए। जैसे ही वह वापस जाने के लिए टाँगे पर बैठे एक भिखारिन महिला ने आकर गोरे पुरूष को ज़ख्मी कर दिया। परिणाम स्वरूप गोरे की मृत्यु हो गई।

पुलिस आई उन्होंने भिखारिन (मुन्नी) को गिरफ़्तार किया। महिला ने अपनी आप बीती बताई तो तुरन्त अमरकान्त को छ महीने पहले की घटना याद आ गई। मुन्नी की स्थिति समझने के बाद वहाँ मौजूद सबने यह बयान दिया कि वह होश में नहीं थी। वह भिखारिन है, उसने जानबूझकर हत्या नहीं की। पुलिस मुन्नी को अपने साथ ले गई, लेकिन सबकी सहानुभूति मुन्नी के साथ थी।

मुन्नी को न्याय दिलाने में रेणुका और सुखदा ने अमरकान्त का पूरा सहयोग किया। अदालत की हर पेशी में सुखदा और रेणुका आती रहीं, इस दौरान एक दिन सकीना भी अदालत आई। जितना संभव हो सके उतना सकीना ने भी अपनी ओर से चंदा देने का प्रयास किया।

जिस दिन मुन्नी को बरी किया गया उस दिन रेणुका, अमर और सुखदा अदालत नहीं पहुँच पाए। एक दिन पहले ही सुखदा ने पुत्र को जन्म दिया था, परिणाम स्वरूप सब व्यस्त हो गए थे।

मुन्नी को पेशी के दौरान मुन्नी का पति अदालत आता रहा लेकिन उसने मुन्नी से मिलने की कोशिश नहीं की। आज फैसला हो जाने के बाद वह मुन्नी को अपने साथ ले जाना चाहता है, लेकिन बदनामी के डर से मुन्नी अपने पति के साथ नहीं गई। प्रोफेसर शान्तिकुमार से निवेदन करके हरिद्वार जाने का इंतज़ाम करवा लिया। बच्चे और पति को सामने देखकर भी बिना उनसे मिले चली गई।

अमरकान्त का सकीना के प्रति प्रेम (Amarkant’s love for Sakina)

अमरकान्त से सकीना की दादी पठानिन ने सकीना के लिए लड़का खोजने को कहा था, परिणाम स्वरूप अमरकान्त ने इसका ज़िक्र अपने दोस्त सलीम से किया। लेकिन सलीम ने यह कहकर मना कर दिया की जैसी कल्पना उसने अपनी जीवन संगीनी कि की है, सकीना वैसी नहीं है।

सकीना सिलाई-बुनाई का काम बहुत अच्छा कर लेती है, परिणाम स्वरूप अमरकान्त ने सलीम से सकीना को सिलाई-बुनाई का काम दिलवा दिया। मध्यस्थता हमेशा अमरकान्त ही करता। पठानिन अमरकान्त की दुकान पर आती और बने हुए रूमाल अमरकान्त को देकर उससे रूपए ले जाती।

एक दिन पठानिन ने सकीना का रिश्ता तय हो जाने की बाताई जिसे सुनकर अमरकान्त दुखी हुआ और साथ ही गुस्सा भी हुआ। वह तुरन्त सलीम के यहाँ गया और उससे सकीना के प्रति मनौवैज्ञानिक रूप से आकर्षण की बात बता। सलीम के लाख समझाने पर भी वह नहीं समझा और सकीना के घर चला गया।

सकीना ने भी अमरकान्त के प्रति सकारात्मक मनौवैज्ञानिक आकर्षण की बात कहते हुए उसके प्रेम को स्वीकार कर लिया। लेकिन उसे अपने घर आने मना कर दिया। उस दिन के बाद अमरकान्त सकीना के घर बहुत दिन तक नहीं गया। लेकिन अब सकीना की मेहनत से ज़्यादा उसे मेहनताना देने लगा। रेणुका उसे जो भी जेब खर्च के लिए देती वह सब सकीना की दादी पठानिन के हाथ भेजवा देता था। सकीना ने भी शादी करने से मना कर दिया।

अमरकान्त ने अपने पिता का घर छोड़ा (Amarkant Left his Father’s House)

सकीना के मन की बात जानने के बाद अमरकान्त अब दो धर्मो के एक होने के भाषण जलसो में देने लगा। जो अक्सर अखबार में छपने लगे थे। अब वह सिर्फ अपने पिता की दुकान पर ही नहीं बैठता बल्कि अपने वह कार्य भी करने लगा जो स्वाधीनता के लिए आवश्यक थे।

अमरकान्त का जलसो में जाना यह घर के व्यवसाय के अतरिक्त कुछ करना समरकान्त को पसंद नहीं आया। एक दिन समरकान्त ने कह दिया या तो व्यवसाय सभालों या अपना इंतज़ाम करलो। यह सुनकर उसे गुस्सा आ गया और उसने अपने पिता का घर छोड़ दिया।

सुखदा को आज पहली बार अपने ससुर की बात अच्छी नहीं लगी। परिणाम स्वरूप उसने भी अमरकान्त के साथ घर छोड़ दिया। हमेशा सुख-सुविधाओं में रहने वाली सुखदा ने आज विलासिता की हर वस्तु का त्याग करते हुए अपने सारे गहने ससुर के पास छोड़कर अपने पति के साथ घर छोड़ दिया।

अमरकान्त की बहन नैना ने भी अमरकान्त के साथ घर छोड़ दिया। अब अमरकान्त प्रोफेसर शान्तिकुमार के खोली छोटी सी पाठशाला में सुबह बच्चो को फ्री में पढ़ाने लगा, और शाम को कुछ चीजे बेचने लगा। उसे व्यापार का अनुभव नहीं था परिणाम स्वरूप उसे कष्टो का सामना करना पड़ा। सुखदा ने भी एक नौकरी कर ली, सुखदा का नौकरी करना उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। लेकिन वह सुखदा से कुछ कह नहीं सकता था। सुखदा की आमदनी अमरकान्त से ज़्यादा थी जो उसे बर्दाश्त नहीं होता था।

एक दिन वह सकीना के पास चला गया। वह सकीना से बात कर रहा था, तभी सकीना की दादी पठानिन आ गई। पठानिन ने स्थिति को पूर्ण रूप से नकारात्मक समझा और सीधे लाला समरकान्त के पास चली गई। अमरकान्त समझ गया की वह कुछ न कुछ बुरा ही कहेंगी। वह तुरन्त सलीम के पास गया और यह सारी स्थिति बता दी। जिसे सुनकर सलीम ने अमर को समझाने का प्रयास किया। अमरकान्त सलीम से बात कर ही रहा था कि तभी लाला समरकान्त आ गए और उन्होंने कहा पठानिन जो कह रही है अगर यह सच भी है, तो वह चिन्ता न करे।

अमरकान्त ने अपने पिता से कहा क्या सकीना उन्हें अपनी बहू के रूप में स्वीकार है? समरकान्त ने सकीना को बहू बनाने से साफ़ इंकार कर दिया। परिणाम स्वरूप अमरकान्त ने अब अपने पिता का नगर ही छोड़ दिया। बिना यह बताएँ कि वह कहाँ जा रहा है, उसने वहाँ से जाने का फ़ैसला कर लिया। जाते-जाते न ही वह सकीना से मिला और न ही सुखदा से मिला। समरकान्त को बहुत दुख हुआ कि उनका बेटा अब उनसे बहुत दूर जा रहा है, लेकिन वह उसे रोक नहीं सके।

कर्मभूमि – भाग दो का सारांश (Summary of Karmabhoomi – Part Two)

अमरकान्त हरिद्वार रहने पहुँचा (Amarkant Reached Haridwar to live)

अमरकान्त को अपना घर छोड़े साल से भी ज़्यादा हो गया था। इस दौरान उसकी जान-पहचान कई अंजान लोगों से हुई। बहुत लोग अमरकान्त के प्रसंशक हो गए थे। घूमते-घूमते अब अमरकान्त हरिद्वार के पास एक गाँव में पहुँच गया।

यहाँ उसे मुन्नी मिली, अमरकान्त ने मुन्नी को पहचान लिया लेकिन मुन्नी ने अमरकान्त को नहीं पहचाना। इस गाँव में मुन्नी चमारों की वस्ती में एक चमार परिवार में रह रही है। इस परिवार का बड़ा बेटा मुन्नी को यहाँ ले आया था। एक दिन मुन्नी की तबीयत बहुत खराब हो गई उसके उपचार का इंतज़ाम करने वह घर से निकला था, लेकिन नदीं में डूब के मर गया। तबसे मुन्नी इसी परिवार में रह रही है, मुन्नी ने इस परिवार के बड़े बेटे से शादी नहीं की थी, लेकिन फिर भी छोटो बेटे मुन्नी को भाभी पुकारते व भाभी का मान देते थे।

अमरकान्त भी मुखिया के परिवार के साथ ही रहने लगा। इस गाँव की एक बुढ़िया (सलोनी) ने अपनी जगह दे दी। जहाँ अमरकान्त ने स्कूल बनाया और गाँव के बच्चो को पढाने लगा।

अमरकान्त को कभी-कभी सकीना की याद आ जाती थी। कुछ दिन बाद अमरकान्त ने मुन्नी को याद दिलाया की वह वही अमरकान्त है, जिसने मुन्नी के लिए अदालत लड़ी थी। धीरे-धीरे अमरकान्त मुन्नी के प्रति आकर्षित होने लगा। मुन्नी का मन भी अमरकान्त के प्रति आकर्षित होने लगा लेकिन अमरकान्त से किसी भी प्रकार का अनैतिक संबन्ध रखने से उसने साफ़ मना कर दिया।

इसी दौरान उसने अमरकान्त से अपने पति के बारे में बताया। मुन्नी का पति उसके पीछे-पीछे हरिद्वार तक आया था। जहाँ मुन्नी रूकी हुई थी, वहाँ भी पहुँच गया था, लेकिन मुन्नी ने उसके साथ जाने से इंकार कर दिया। समाजिक रितियों के अनुसार यदि मुन्नी अपने पति के साथ उसके घर चली जाती तो परिवार वाले समाज वाले उसके पति का (बहिष्कार) त्याग कर देते।

उसी दौरान मुखिया का बड़ा बेटा मुन्नी को अपने साथ ले आया। एक महीने बाद मुन्नी ने जाकर जब अपने पति का पता लगाया तो मुन्नी पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो। मुन्नी की खोज करते-करते मुन्नी का पति अत्यधिक बीमार हो गया और अंत में उसकी मृत्यु हो गई। अब मुन्नी लगातार पछताती रही, काश अपने पति के साथ ही लौट गई होती तो उसके पति के साथ इतना बुरा न होता जितना हो गया।

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कर्मभूमि – भाग तीन का सारांश (Karmabhoomi – Summary of Part Three)

सुखदा ने अमरकान्त का अधूरा काम पूरा किया

अमरकान्त के जाने के बाद समरकान्त की सारी इच्छाएँ मिट्टी में मिल गई। उन्होंने सोचा था, अपना सब कुछ बेटे को सौपकर बेटी का विवाह करके खुद भजन कीर्तन करके अपना जीवन व्यतीत करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

अमरकान्त के जाने के बाद सुखदा और नैना वापस अपने घर आ गई। अमरकान्त से मिलकर समरकान्त जब घर गए तो सबसे पहले उन्होंने सुखदा को डांटा फिर नैना को डांटा और अपने कमरे में जाकर रोने लगे। अमर के चले जाने की बात रातो-रात पूरे शहर में फैल गई।

शाम को ठाकुर द्वारे गए, जहाँ आरती हो रही थी। वहाँ लोगों ने अमरकान्त के बारे में पूछा तो समरकान्त ने कहा पूर्व जन्म का तपस्वी हैं, वह पूरी धन-दौलत लूटा देना चाहता है। मुझसे यह सब नहीं देखा जाता, बस यही झगड़ा है।

मंदिर में ही ब्रह्मचारी जी ने कहा – वाल्मीकीय कथा का विचार है, परिणाम स्वरूप लाला समरकान्त से इसके लिए धन मांगा गया। समरकान्त ने कहा बाकी सबसे चंदा इक्ट्ठा कर लीजिए, जो कमी रह जाएगी वह मैं पूरी कर दूँगा।

अमरकान्त का खत आया जिसे लेकर वह सुखदा के पास अन्दर आई, सुखदा ने जब उस खत के बारे में पूछा तो नैना ने अमरकान्त का नाम लिया और बताया वह हरिद्वार के पास किसी गाँव में हैं, यह जानने के बाद सुखदा ने कुछ नहीं पूछा।

जबसे अमरकान्त गया था, तबसे सुखदा और नैना के बीच आपस में अमर की कोई चर्चा नहीं हुई थी। सुखदा को अमर से चिढ़ हो गई थी, अब सुखदा अपने बेटे को भी कम समय देती थी। ज़्यादा से ज़्यादा सुखदा का बेटा नैना के पास रहता था। अब सुखदा आत्मनिर्भर हो गई थी, अब उसे विलासिता में कोई खास रूचि नहीं थी। इतना सब होने के बाद भी सकीना से सुखदा को कोई शिकायत नहीं थी।

पठानिन ने बताया सकीना बीमार है, यह खबर सुनकर सुखदा ने सकीना से मिलने का फ़ैसला कर लिया। सुखदा ने सकीना को समझाने का प्रयास किया। अमरकान्त के पीछे वह अपनी जान न दे, अर्थात अपनी तबीयत खराब न करे।

बातचीत के दौरान सकीना ने सुखदा से आग्रह किया की वह अमरकान्त के पास चली जाए और अमरकान्त और सुखदा और अमरकान्त के बीच जितने भी मतभेद हैं उसे खत्म कर दे। सुखदा ने कहा उन्होंने मेरे साथ विश्वास घात किया है, यह कहते हुए उसने अमरकान्त के पास जाने से इंकार कर दिया। परिणाम स्वरूप सुखदा नराज़ होकर चली गई।

लगभग एक महीने से ठाकुरद्वारे में कथा हो रही है। पंडित मधुसूदनजी यह कथा सुना रहे हैं, उनके वाचन में लोगों को अनन्द आता है। सुखदा की माँ रेणुकादेवी सांझ से ही कथा सुनने के लिए ठाकुरद्वारे पहुँच जाती है। नैना भी मुन्ने को लेकर चली जाती हैं, लेकिन सुखदा को कथा में कोई रूचि नहीं है।

इसी दौरान एक दिन हंगामा हो गया। ब्रह्मचारीजी कई आदमियों को उठा-उठा कर गालियां देने लगे, परिणाम स्वरूप लोग इकट्ठा हो गए। यह लोग भंगी-चमार थे, जिन्हें यहाँ बैठा देखकर ब्रह्मचारीजी को बहुत गुस्सा आ गया। उन्हें लगा उनके यहाँ होने से उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। लाल समरकान्त से सबको निकालने के लिए कह दिया। चमार जाति वालों को जूते चप्पलों से मारा भी गया। शान्तिकुमार ने अपने तर्कों से ब्रहमचारीजी और उनका सहयोग करने वाले लोगों को परास्त करने का प्रयास किया। लड़ाई-झगड़े के बाद उस दिन कथा नहीं हुई।

दूसरे दिन ठाकुरद्वारें में जब कथा हुई तो श्रोताओं की संख्या कम थी। एक तरफ यहाँ धार्मिक कथा चल रही थी दूसरी तरफ खुले मैदान में शान्तिकुमार ने अपनी कथा शुरू कर दी। शान्तिकुमार ने धर्म के नाम पर पाखण्ड करने वालों के खिलाफ बाते कीं और समाज के लोगों की आँखे खोलने का प्रयास किया। शान्तिकुमार के अनुसार ईश्वर सबके हैं, उन पर किसी एक का अधिकार नहीं है। परिणाम स्वरूप उनकी पूजा करने का अधिकार भी सबका है। नैना भी शान्तिकुमार की बातों से सहमत थी। शान्तिकुमार ने सभी को मंदिर जाने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा “मैं देखता हूँ, कौन जाने नहीं देता”।

जब यह लोग मंदिर के सामने पहुँचे तो वह लोग जो नहीं चाहते थे कि अछूत मंदिर में आएं वह लाठियाँ लेकर खड़े थे। लाठियों से लोगों की भीड़ हटाने लगे परिणाम स्वरूप कोई मंदिर जाने की इच्छा रखने वाले लोग इधर-ऊधर भागने लगे। शान्तिकुमार लगातार लोगों को समझाते रहे भागों मत सब यहीं बैठ जाओ। इसी दौरान शान्तिकुमार के सर पर एक डंडा लगा। इसके बाद लगातार सर पर डंडे पड़ते रहे और वह बेहोश हो गए।

नैना शान्तिकुमार के पास आना चाह रही थी लेकिन समरकान्त को देखकर वापस लौट जाती थी। चोरों की तरह छुपते छुपाते शान्तिकुमार को देखने नैना अस्पताल पुहँच गई, जहाँ उसे पता चला शान्तिकुमार को रात भर होश नहीं आया।

नैना घर पहुँची तो सुखदा तो परेशान पाया, सुखदा अछूत लोग मंदिर न जाए इसके लिए पुलिस वालों ने लगातार गोलियाँ चलानी शुरू कर दी थी। यह देखकर सुखदा लाला समरकान्त के पास गई और उनसे इस लड़ाई झगड़े को रूकवाने की बात कहने लगी।

समरकान्त ने जब सुखदा का समर्थन नहीं किया तो वह खुद ही लोगों के बीच चली गई। जो चिन्गारी शान्तिकुमार ने भड़काई थी उसे हवा देते हुए लोगों को डर के भागने से रोकने लगी।

सुखदा को अछूतो की मदद करते देख समरकान्त को लगा कहीं गोली सुखदा को न लग जाए उन्होंने पुलिस वालों को वहाँ से हटा दिया और सुखदा से आकर कहा मंदिर सबके लिए खुल गया है, जो चाहे दर्शन कर सकता है। जन-समूह अपनी इस जीत के लिए सुखदा का उपकार मानता है।

पुलिसो की गोली से कुछ लोगों की मृत्यु हो गई थी परिणाम स्वरूप एक तरफ कुछ लोग सुखदा पर फूलो की वर्षा कर रहे थे दूसरी तरफ अर्थियों पर फूलो की वर्षा कर रहे थे। जो इस क्रांति के दौरान शहीद हो गए थे।

इस घटना ने सुखदा के अंदर बहुत बड़ा परिवर्तन कर दिया था। जो सुखदा सुख-सुविधाओं में जीवन व्यतीत करना अपना अधिकार समझती थी, अब वह समजा के कल्याण के लिए काम करती है। अब वह ज़रूरतमंदो की सहायता करने के लिए हर मुमकिन प्रयास करती है।

शान्तिकुमार कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे, जिन्हें देखने अकसर नैना जाती रहती है। छः महीने गुज़र गए, अछूतो को अधिकार दिलाने के लिए जो संघर्ष शान्तिकुमार ने किया उसका श्रेय भी सुखदा को मिलने लगा, जो शान्तिकुमार को अच्छा नहीं लगा। इस दौरान अमरकान्त और शान्तिकुमार के बीच पत्राचार हुआ।

एक दिन शान्तिकुमार सुखदा से मिलने गए, तो वहाँ सुखदा की माता रेणुका से भी मुलाकात हुई। रेणुका ने शान्तिकुमार के अश्राम के बारे में ज़िक्र किया तो शान्तिकुमार ने कहा अभी तो कुछ चंदा नहीं मिलता है। अगर दो-तीन लाख रूपए मिल जाए तो अश्राम को यूनिवर्सिटी बनाया जा सकता है।

रेणुका ने कहा यदि आप कोई ट्रस्ट बना सकें तो मैं आपकी सहायता कर सकती हूँ। रेणुका के इस प्रस्ताव के परिणाम स्वरूप सेवाश्रम का ट्रस्ट बना दिया गया। सुखदा और शान्तिकुमार के सहमत होने पर रेणुका देवी ने अपनी संपत्ति का अधिकांश हिस्सा ट्रस्ट को दे दिया और उस ट्रस्ट को चलाने की ज़िम्मेदारी प्रोफेसर शान्तिकुमार को सौप दी।

कुछ दिनों बाद नैना का विवाह हो गया। नैना या शान्तिकुमार ने प्रत्यक्ष रूप से कभी नहीं कहा कि उन्हें एक-दूसरे से प्रेम है, लेकिन जिस प्रकार नैना की शादी ख़बर जान कर शान्तिकुमार ने प्रतिक्रिया दी और नैना की आँखों में आँसू थे समभवत: वे दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। सुखदा और शान्तिकुमार एक दूसरे के सहयोग से लगातार समाज के कल्याण का कार्य कर रहे थे।

इसी दौरान एक दिन सुखदा सकीना से मिलने गई तो देखा अब सकीना की अर्थिक स्थिति सुधर चुकी है। पुराने घर के स्थान पर उसने नया कमरा बना लिया है। सकीना का घर तो सुधर गया था लेकिन सकीना अब पहले से भी ज़्यादा कमज़ोर हो जाती है। कुछ ही देर में पठानिन घर में आई और उसने बताया सकीना और उसकी बोलचाल आज तक बन्द है। लाला समरकान्त जो कई सालो से पठानिन को रूपए देते थे, अब सकीना ने वह रूपए लेना बन्द करवा दिया। परिणाम स्वरूप सुखदा ने पूछा तुमने वह रूपए लेना क्यों बन्द करवा दिया। सकीना ने उत्तर में कहा मैं अपनी गरीबी मिटा कर रहूँगी।

इस मुलाकात में सकीना ने सुखदा से अपने और अमरकान्त के बीच हुए संवाद स्पष्ट रूप से बता दिया। परिणाम स्वरूप सुखदा के सामने सकीना ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसके और अमरकान्त के मध्य किसी प्रकार का अनैतिक संबन्ध नहीं था। सकीना ने सुखदा से यह भी बताया की अब सलीम सकीना से प्रेम करने लगा है, और शादी करना चाहता है। सकीना तब तक सलीम से शादी नहीं करेगी जब तक सुखदा और अमरकान्त के मध्य सब कुछ ठीक नहीं हो जाता है।

सकीना से मिलने के बाद सुखदा अपनी ननद नैना से मिलने उसके घर गई। नैना के ससुराल जाकर सुखदा को अत्यधिक निराशा हुई। वहाँ नैना के पति ने सुखदा से कहा कि नैना ऐसी महिला नहीं है, जैसी उसे पत्नि के रूप में चाहिए थी इसलिए अब वह दूसरा विवाह करना चाहता है। नैना के पति ने सुखदा का अपमान करने में कोई कमी नहीं छोड़ी परिणाम स्वरूप नैना के पति और सुखदा के बीच बहस हो गई और दुखी मन से सुखदा को नैना के घर से आना पड़ा।

सावन में नैना मायके आई। जब नैना के घर सुखदा गई थी, तो सुखदा की नैना से कोई बातचीत नहीं हो पाई। मायके आकर नैना ने भाभी से बताया कि उसके और उसके पति मतिराम के बीच संबन्ध अच्छे नहीं है। विवाह की रात को ही नैना और उसके पति के मध्य झगड़ा हुआ था। उस दिन के बाद से आज तक नैना और उसके पति के बीच बातचीत नहीं हुई। नैना और सुखदा बात ही कर रहे थे कि अचानक शान्तिकुमार आ गए। सुखदा गरीबो के लिए घर बनवाना चाहती है, जिसके लिए उसे ज़मीन की ज़रूरत है।  

म्युनिसिपल बोर्ड ने घर बनाने के लिए ज़मीन देने से इंकार कर दिया है। जो ज़मीन सुखदा गरीबो का घर बनाने के लिए फ्री में चाहती है, वह ज़मीन म्युनिसिपल बोर्ड अमीरों को अच्छे दाम में बेचना चाहती है। शान्तिकुमार के आने के बाद जब सुखदा को पता चला ज़मीन असानी से मिलना संभव नहीं है तो सुखदा ठाकुरद्वारे जाकर हड़ताल का इतज़ाम करने लगी। चमारो के मुखिया सुमेर ने यह कहते हुए हड़ताल में हिस्सा लेने से मना कर दिया कि हमारा कोई बस नहीं चलता। हड़ताल के लिए सभी चमारों ने सुखदा का साथ देने से मना कर दिया परिणाम स्वरूप सुखदा घर लौटी तो बहुत उदास हो गई।

सुखदा ने ज़मीन के लिए अपने स्तर पर विद्रोह (हड़ताल) शुरू कर दिया परिणाम सवरूप एक दिन सुखदा के गिरफ्तारी का वारंट आ गया। समरकान्त सुखदा की जमानत करवा कर उसे जेल जाने से रोकना चाहते थे, लेकिन सुखदा ने समरकान्त को ऐसा करने से रोक दिया और खुद का जेल जाना स्वीकार कर लिया। सुखदा जब जेल जा रही थी तो सारी जनता दुखी हो गई, आज जेल जाते हुए पहली बार सुखदा के मन में अमरकान्त के लिए क्षमा का भाव उत्पन्न् हुआ। वर्तमान में अमरकान्त और सुखदा दोनों अलग-अलग होकर भी एक ही राह पर चल रहे थे। अधिकारों के लिए दोनों ही संघर्ष कर रहे थे।

कर्मभूमि – भाग चार का सारांश (Karmabhoomi – Summary of Part Four)

सलीम अफसर बन गया। (Salim Became an Officer)

अमरकान्त को जैसे ही पता चला, सलीम अफ़लर बन गया है और अफ़सर बनने के बाद उसने उसी इलाके में पोस्टिंग ली है जहाँ अमकान्त रहता है। अमरकान्त तुरन्त सलीम से मिलने चला आया। अफसर बनने के बाद अमरकान्त ने अपने मित्र सलीम में कुछ बदलाव देखें, जिसका एक उदाहरण है, सलीम गले मिलने के स्थान पर अमरकान्त से हाथ मिलाने लगा।

सलीम ने अमर से पूंछ लिया सकीना से तुम्हारी शादी कब हो रही है?  जब अमर ने कहा मेरे लिए सकीना से शादी करना सम्भव नहीं है, तो तुरन्त सलीम ने अमर से पूछ लिया अगर मैं उसे अपने साथ शादी करने के लिए राज़ी कर लूँ तो? अरकान्त ने तुरन्त कह दिया मुझे कोई परेशानी नहीं है, लेकिन सलीम की इस बात पर अमरकान्त ने यकीन नहीं किया क्योंकि जब अमरकान्त ने पहले सकीना से शादी करने के लिए सलीम से कहा था तब सलीम ने मना कर दिया था।

अमरकान्त की यह बात सुनकर सलीम ने कहा मैं सच कह रहा हूँ, वह तुम्हारी पूजा करती है, मैं उसकी पूजा करती हूँ। सलीम ने अमरकान्त को बताया तुम्हारी सास ने सारी जायदाद सेवाश्रम के नाम कर दी है। साथ ही सलीम ने उस अंदोलन के बारे में भी अमरकान्त को बताया जिसका नेतृत्व सुखदा कर रही थी। देर रात तक सलीम और अमरकान्त आपस में बात कर रहे थे, सलीम के सो जाने के बाद अमरकान्त अपनी करनी पर पछताता रहा। अब अमरकान्त को सुखदा पर गर्व हो रहा था।

अमरकान्त द्वारा समाजिक सेवा बढ़ गई (Social Service Increased by Amarkant)

सुखदा द्वारा किए जा रहे समाजिक कार्य जानकर अमरकान्त के अन्दर समाज के भले के लिए काम करने की इच्छा व उत्साह पहले से और ज़्यादा बढ़ गया। इसी दौरान मुन्नी अमरकान्त के व्यावहार में परिवर्तन महसूस कर रही थी। परिणाम स्वरूप एक दिन मुन्नी ने अमरकान्त से पूछ लिया, क्यों वह मुन्नी के प्रति रूखा व्यावहार करता है। अमरकान्त ने मुन्नी के सवालों की कोई सीधा या सही उत्तर नहीं दिया और घर से पठशाला चला गया।

इस साल किसानों की आमदनी अच्छी नहीं हुई, परिणाम स्वरूप उन्हें लगान देने में समस्या आ रही थी। गूदड़ ने अमरकान्त से कहा कि वह महन्तजी से बात करें, ताकि उनका सहयोग हो सके। नहीं तो वह खेती नहीं करेंगे, जिस पर सलोनी ने कहा हमारे बाप-दादा की ज़मीन है वह नहीं छोड़ सकते। परिणाम स्वरूप अमरकान्त महन्तजी के पास बात करने गया और लगान कम करने और किसानों का सहयोग करने का आग्रह किया।

किसानों की हालत इतनी खराब हो गई कि एक समय के भोजन के लिए भी अनाज नहीं बचा। जिसका अंदाज़ा सलोनी कि स्थिती से चलता है, सलोनी के घर अनाज नहीं है परिणाम स्वरूप उसने खाना नहीं बनाया और भूखी ही पड़ी रहती है।

अमरकान्त गुदड़ के साथ जाकर महन्तजी को अर्ज़ी दे देता है और अपने मुँह से भी किसानों की दयनीय स्थिति बताने का प्रयास करता है। कुछ किसान जगह छोड़कर भागे जा रहे हैं, कुछ अपने घर का समान बेंचकर लगान चुका रहे हैं और कुछ को तो एक वक्त का भोजन भी नहीं मिल रहा है। महन्तजी ने अमरकान्त को तसल्ली दी यदि हो सका तो वह सहयोग करेंगे।

एक तरफ सुखदा ने गरीबों का घर बनाने के लिए आंदलोन छेड़ा था दूसरी ओर अमरकान्त आसमियों का लगान माफ़ कराने के लिए आंदोलन कर रहा था। अर्ज़ी देने के बाद भी जब असामियों को सरकार से कोई रियायत नहीं मिली तो अमरकान्त ने कहा हमें लगान देना  बन्द करना होगा, जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे सरकार टालती रहेगी।

सलीम इन दिनों इलाके के डाकखाने में रह रहा था। अमरकान्त के इस आंदोलन की खबर सलीम को लग गई। सलीम इलाके का अधिकारी होने के कारण चाह कर भी अपने मित्र अमरकान्त का साथ नहीं दे सकता था। परिणाम स्वरूप उसे अमरकान्त के विरूद्ध कार्य करना पड़ा। सलीम को ऊपर से ऑडर आया कि वह अमरकान्त को गिरफ्तार कर ले। सलीम अब सकीना से प्रेम करने लगा था, परिणाम स्वरूप वह अमरकान्त को गिरफ्तार करने से डरने लगा कि सकीना को यह पता चला तो वह मेरा मुँह भी नहीं देखेगी।

सलीम अमरकान्त को गिरफ्तार करने के लिए कितना मजबूर है, यह सब उसने सकीना, लाल समरकान्त, नाना आदि के नाम खत लिख कर उन्हें बताने का प्रयास किया।

सलीम अमर से मिलो तो उसने अमरकान्त को समझाया और कहा कि इससे कुछ नहीं होगा। फौजी कानून लग जाएगा, फसलें नीलाम कर दी जाएंगी, जमीनें जब्त हो जाएंगी, गांव से गाँव बरबाद हो जाएँगे।

अगर पुलिस अमरकान्त को गिरफ्तार करने जाती तो, जनता यह काम सरलता से नहीं होने देती। ऊपर से ऑडर आया कि सलीम अकेले जाकर सलीम को अपने साथ ले आए, जिससे किसी को शक न हो। परिणाम स्वरूप सलीम अमरकान्त को लेने अकेले चला आया।

मोटर पर सवार होकर सलीम और अमरकान्त जा ही रहे थे कि रास्ते में उसे मुन्नी मिली। सलीम ने मुन्नी से अपने छोटे-छोटे काम करने को कहा परिणाम स्वरूप मुन्नी समझ गई कोई बात है, और उसने अमर को रोकने की कोशिश की। मुन्नी ने बाकीं लोगों को भी इकट्ठा कर लिया, जिन्हें पीछे आते देख सलीम ने पिस्तौल निकालने की धमकी दी। अमरकान्त ने कहा मैं इन सबको समझा देता हूँ। अमरकान्त ने अपने शब्दों में सबको समझाया, मुन्नी फिर भी नहीं मानी। परिणाम स्वरूप अमर ने मुन्नी से निवेदन किया कि वह परिस्थितियों को समझे।

अमरकान्त और सुखदा दोनों अपने-अपने स्तर पर जंग कर रहे थे, परिणाम स्वरूप दोनों के साथ अन्याय हुआ। दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। अब दोनों ही जेल में हैं। इसी के साथ उपन्यास के इस भाग का अन्त हो जाता है।

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सुखदा को अमरकान्त की याद आई (Sukhda Remembered Amarkant)

सुखदा को लखनऊ के सेंटल जेल में रखा हुआ था। जेल में सुखदा के साथ उसका बेटा भी रहता था, अमरकान्त के चले जाने से सुखदा मुन्ना पर ध्यान नहीं देती थी, लेकिन जेल में आने के बाद एक पल भी मुन्ने को नज़रों से दूर नहीं होने देती थी। अब वह लगातार अमर को याद करने लगी थी। परिणाम स्वरूप अब सुखदा अमर से मिलना चाहती थी।

एक दिन सुखदा से मिलने उसके ससुर लाला समरकान्त जेल में आए, उस दिन वह जेल से एक महीने बाद बाहर निकली थी। सुखदा को लाला समरकान्त ने बताया सुखदा की माँ रेणुका तीर्थ यात्रा पर चली गई है। लाला मनीराम नैना के पति अब दूसरी शादी करने वाला है, जिसकी सुचना लाला समरकान्त ने सुखदा को आज दी है।

सुखदा के जेल आ जाने के बाद आंदोलन लगातार चल रहा है। लाला समरकान्त ने सारे समाचार के साथ सलीम द्वारा अमरकान्त को गिरफ्तार करने की सूचना भी सुखदा को दी। सकीना की शादी की बातें सलीम के साथ चलने लगी हैं। आज यह सारी बातें सुनकर सुखदा ने अपने ससुर के सामने यह स्वीकार कर लिया कि दोष अमरकान्त या सकीना का नहीं था बल्कि सारा दोष खुद सुखदा का था।

जिस जेल में सुखदा है, एक दिन उसी जेल में मुन्नी को भी गिरफ्तार करके लाया गया। मुन्नी अब पहले से कुछ मोटी हो गई थी, परिणाम स्वरूप सुखदा ने मुन्नी को नहीं पहचाना। बातचीत के दौरान सुखदा को पता चल गया कि अमरकान्त मुन्नी के घर में ही रहता था। सुखदा ने मुन्नी से अमरकान्त के व्यवहार के बारे में जानने का प्रयास किया, मुन्नी ने सुखदा से कहा वह तो किसी स्त्री की तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखते थे। मुन्नी से बात करके अमरकान्त के प्रति सुखदा की जितनी भी शंकाएँ थी, वह सब साफ हो गई।

लाला समरकान्त और सलीम की मुलाकात (Meeting of Lala Samarkant and Salim)

लाला समरकान्त हरिद्वार जहाँ अमरकान्त रहता था, वहाँ चले गए। वहाँ जाकर देखा तो पता चला पुलिस वालों ने असमियों पर बहुत अत्याचार किए हैं। यहाँ तक सलीम ने भी एक बुढ़िया को मारा था, जिसका शरीर मार खाके बहुत ज़ख्मी हो गया था। यह देखकर लाला समरकान्त को बहुत गुस्सा आया। परिणाम स्वरूप वह सलीम के पास गए उससे पूछा कि उसने बुढ़िया पर क्यों हाथ उठाया, सलीम ने कारण बताया। उसके बाद सलीम ने अपनी ड्यूटी की मजबूरी बताई, लगान वसूल करना उसकी ड्यूटी है।

समरकान्त ने सलीम को समझाकर सलीम और असमियों के बीच सुलाह कराई। बुढ़िया ने भी जब सलीम से प्यार से बात की तो सलीम की आँखों में भी आँसू आ गए और उसने अपने किए की बुढ़िया (सलोनी) से माफ़ी माँगी।

अमरकान्त को लखनऊ की जेल में शिफ्ट किया (Amarkant was Shifted to Lucknow Jail)

अमरकान्त को जेल में भी प्रतिदिन की खबर मिल जाती थी। लगान के लिए असमियों के साथ जो मार-पीट हुई, उसकी खबर भी अमरकान्त को मिल गई थी। इसी दौरान अमर को भी लखनऊ के जेल में शिफ्ट कर दिया गया। वह जेल जहाँ सुखदा और मुन्नी पहले से कैदी थीं। लखनऊ के जेल में आने के बाद अमरकान्त की मुलाकात काले खाँ से हुई, वही काले खाँ जो एक बार सोने के जेबर बेचने अमरकान्त के पास गया था। लेकिन अमरकान्त ने चोरी का माल खरीदने से मना कर दिया था।

पहली मुलाकात अमरकान्त और काले खाँ की कटुता से भरी थी, लेकिन आज जेल में दोनों मित्र के समान हो गए थे। अमरकान्त और काले खाँ दोनों को चक्की चलाने का काम मिला था। एक दिन काले खाँ आटा पीस कर नमाज़ पढने लगा। आटा तौलने वाले को यह बात अच्छी नहीं लगी और नमाज़ के दौरान ही काले खाँ को इतना मारा की उसकी मृत्यु हो गई।     

सलीम ने जब असमियों का साथ देना शुरू किया तो उसकी भरपाई उसे अपनी सरकारी नौकरी से इस्तिफा देकर करनी पड़ी। अब अमरकान्त के चलाए आंदोलन की बागडोर सलीम ने अपने हाथों में ले ली थी। परिणाम स्वरूप एक दिन सलीम को भी गिरफ्तार कर लिया गया। अब वह भी लखनऊ के उसी जेल में लाया गया है, जहाँ अमरकान्त और सुखदा पहले से मौजूद हैं।

सुखदा के गिरफ्तार होने के बाद पठानिन और सकीना उसके आंदोलन को आगे बढ़ा रही थीं, परिणाम स्वरूप पठानिन और सकीना भी गिरफ्तार हो गई। इसके बाद आंदोलन और हड़ताल में और ज़्यादा तेजी आ गई। जो इस आंदोलन से दूर रहना चाहते थे वे भी इस आंदोलन का हिस्सा बन गए। एक-एक करके लाला समरकान्त, रेणुका, शान्तिकुमार आदि सभी को गिरफ्तार कर लिया गया।

शान्तिकुमार के गिरफ्तार होने के बाद आंदोलन का भार नैना ने उठाया। नैना झंडा लेकर म्युनिसिपैलिटी के दफ्तर की ओर जाने लगी। उसी दौरान नैना के पति मनीराम ने पिस्तौल निकालकर नैना को शूट कर दिया, परिणाम स्वरूप नैना की मृत्यु हो गई। नैना का शव लेकर लोग म्युनिसिपैलिटी के ऑफिस पहुँच गए।

सुखदा का आंदोलन सफल हो गया (Sukhda’s Movement was Successful)

नैना की मृत्यु के बाद सुखदा द्वारा चलाया आंदोलन सफल हो गया। अर्थात म्युनिसिपैलिटी  गरीबो का घर बनाने के लिए वह ज़मीने देने को तैयार हो गई, जिसके लिए इतने दिनों से आंदोलन हो रहा था। म्युनिसिपैलिटी ने जब ज़मीन देने का अपना फैसला सुनाया तो सब तरफ नैनादेवी की जय के नारे लगने लगे।

जेल में सुखदा और अमरकान्त की मुलाकात हुई, अमरकान्त ने अपने किए की सुखदा से माफ़ी माँग ली। सकीना के साफ़ मन को समझने के बाद सुखदा ने अमरकान्त से कोई नराज़गी नहीं रखी। मुन्नी ने भी सुखदा से अमरकान्त के लिए सकारात्मक बातें ही की थी परिणाम सवरूप अमरकान्त के चरित्र से संबन्धित सुखदा के मन में कोई संशय नहीं रहा। अमरकान्त और सुखदा ने एक दूसरे को सम्मान पूर्वक स्वीकार कर लिया।

जेल में ही सलीम और सकीना की शादी की बात भी पक्की हो गई। नैना की मृत्यु की खबर सुनकर अमरकान्त बहुत दुखी हो गया। सलीम ने सरकारी नौकरी छोड़ दी यह जानकर सलीम के पिता को भी बहुत दुख हुआ। इतने दुखों के बाद भी सब को आंदोलन सफल होने की खुशी थी। सभी को जेल से रिहाई मिल गई।

अमरकान्त ने जो आंदोलन छेड़ा था, उसके लिए एक कमेटी बनाने का निर्णाय हुआ। जिसमें पाँच लोग रहेंगे। कमेटी जो फैसला करेगी वह सरकार को मनना होगा।

जेल से निकलकर सुखदा और समरकान्त भी काशी जाने के स्थान पर अमरकान्त और मुन्नी के साथ हरिद्वार जाना तय किया। रेलवे स्टेशन पर मुन्नी सुखदा और अमरकान्त के बीच संवाद चलता है, और यहीं पर उपन्यास की कहानी समाप्त हो जाती है।


By Sunaina

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