Class – 6 : कृष्णा सोबती का संस्मरण बचपन | Krishna Sobti ka Sansmaran Bachpan
कृष्णा सोबती का परिचय (Introduction of Krishna Sobti)
कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी 1925 में हुआ था। उनकी मृत्यु 25 जनवरी 2019 में हुई है। उनका जन्म गुजरात में हुआ था, गुजरात का वह हिस्सा अब पाकिस्तान में है। विभाजन के बाद वह दिल्ली में रहने लगीं। उन्हें 1980 में “जिन्दगीनामा” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। 2017 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से कृष्णा सोबती को सम्मानित किया गया था। मुख्य रूप से वे कहानियाँ लिखती थीं। उनकी कहानियाँ बादलो के घेरे नामक संग्रह में संकलित हैं।
बचपन संस्मरण का परिचय (Introduction to Childhood Memoir)
वसंत कक्षा 6 में लगाया “बचपन” अध्याय कृष्णा सोबती का संस्मरण है। इसमे लेखिका ने अपनी शिमला से जुड़ी यादे साझा की हैं। लेखिका ने इस अध्याय के माध्याम से बताने का प्रयास किया है कि, जब वह छोटी थीं तब में और अब में संस्कृति में कितना परिवर्तन आ गया है।
बचपन संस्मरण का सारांश (Summary of Childhood Memoirs)
संस्मरण की शुरूआत में लेखिका कहती हैं – मैं तुम्हें अपने बचपन में ले जाऊँगी। उसके बाद वह इस अध्याय में अपने बचपन की छोटी बड़ी बाते साझा करती हैं। लेखिका कहती हैं अब मैं तुम्हारी दादी या नानी की आयु की हूँ। उनका कहना है उनके पहनावे में बहुत बदलाव आ चुका है।
लेखिका ने पहले फ्रॉक, निकर-वॉकर, स्कर्ट, लहँगे, गरारे पहले हैं, लेकिन अब वह चूड़ीदार और घेरदार कुर्ते ही पहनती हैं। उन्हें अपने बचपन के मोजे और स्कॉटिंग याद है। उन्हें अपने मोजे खुद धोने पड़ते थे क्योंकि वहाँ (शिमला) में उन्हें नौकर नहीं दिए जाते थे। लेखिका अपने जूते कपडे या ब्रश से रगड़ती थीं। वर्तमान में नए-नए प्रकार के जूते आ गए हैं।
वह पाठक और अपने बचपन में फर्क को बताते हुए, अपने समय की वस्तुओं और वर्तमान की वस्तुओं से तुलना करती हैं। लेखिका के पास सबसे अधिक चॉकलेट और टॉफी का स्टॉक रहता था, जिसे वह रात के खाने के बाद मज़े से खाती थीं।
लेखिका के बचपन में ग्रामोफोन थे, रेडियो और टेलीविजन नहीं थे। जब वह चोटी थीं तो कुलफी मिलती थी और अब आइसक्रीम मिलने लगी है। जिस प्रकार लोग कचौड़ी समौसा खाते थे अब उस प्रकार पैतीस आदि चीज़े खाने लगे हैं। शहतूत और फालसे के स्थान पर खसखस के शरबत और कोक पेप्सी पीने लगे हैं।
लेखिका रात में कम रोशनी में पढ़ाई करती थीं इसलिए उन्हें चश्मा लग गया था। डॉक्टर ने कहा था धीरे-धीरे चश्मा उतर जाएगा लेकिन उनका चश्मा वर्तमान में जब वह यह संस्मरण लिख रही थीं। तब तक भी नहीं उतरा है। जब नया-नया उन्हें चश्मा लगा था, तो उन्हें सब चिढ़ाते थे। वर्तमान में उन्हें चश्मे की आदत पड़ गई थी। उनका कहना है यदि ह चश्मा न पहने तो उनका चेहरा खाली खाली लगता है।
समीक्षा (Review)
इस संस्मरण के माध्यम से लेखिका ने बीसवीं सदी और इक्कीसवी सदी में अंतर बताने का प्रयास किया है। यह अंतर संस्कृति का है, 19 के शतक में भारतीय जीवनशैली सहज थी। इस शतक में संस्कृति में बदलाब आ गया है। भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का असर दिखाई देने लगा है। जिसका पता कोक आदि के इस्तेमाल से चलता है।
By Sunaina
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