Study Material : कायाकल्प उपन्यास का सारांश | Summary of Kayakalp Novel

प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यास कायाकल्प | Novel Kayakalp written by Premchand

अध्याय एक

इस अध्याय में सूर्यग्रहण लगा है, श्रद्धालुं त्रिवेणी के घाट (नदी) पर स्नान करने आए हैं। भीड़ बहुत ज़्यादा हो गई है, जिसे नियंत्रित करने का असफल प्रयास किया जाता है। इस भीड में बहुत लोग एक-दूसरे से बिछड़ जाते हैं, कुछ लोग डूब जाते हैं, कुछ लोग कुचले जा चुके हैं, और कुछ लोग खो गए हैं। जिनमें एक छोटी लड़की भी अपने परिवार से बिछड़ गई है। वह तीन-चार साल की है और नाली में पड़ी चिल्ला-चिल्लाकर रो रही है।

यशोदान्दन और महमूद दोनों मित्र हैं, यह दोनों भीड़ को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। इन्हे वह छोटी बच्ची मिलती है, जिसके परिवार को खोजने का यह बहुत प्रयास करते हैं, लेकिन असफल हो जाते हैं। मजबूर होकर लड़की को अनाथालय में रख देते हैं, उसी अनाथालय में यशोदानन्दन मैनेजर हैं।

अध्याय दो

बनारस में मुंशी वज्रधरसिंह का मकान है, वैसे तो यह राजपूत हैं, लेकिन स्वयं को मुंशी लिखते और बातते हैं। उन्हें ठाकुर के साथ गंवारपन का बोध होता है। वर्तमान में सरकारी पेंशन पाते हैं। तीन महीने के लिए तहसीलदार थे, परिणाम सवरूप उन्हें खुश करने के लिए सभी गाँव वाले आज भी उन्हें तहसीलदार साहब ही कहते हैं।

वज्रधरसिंह जी के बेटे का नाम चक्रधर है, जिसने अपनी बुद्धि-बल से एम.ए. कर लिया है। लेकिन वह नौकरी नहीं करना चाहता है, वह कर्मभूमि के अमरकान्त की तरह समाज की सेवा करना चाहता है परिणाम स्वरूप नौकरी करना वह इसमें बाधा समझता है। पिता चाहते हैं, कि उसकी कोई सरकारी नौकरी लग जाए, लेकिन चक्रधर के बार बार मना करने पर वह उस पर बहुत क्रोधित होते हैं। अपने पिता का कुछ सहयोग करने के लिए चक्रधर हरिसेवकसिंह के यहाँ उनकी बेटी मनोरमा को पढ़ाने की नौकरी कर लेता है।

मनोरमा तेरह साल की बच्ची है, चक्रधर मनोरमा को अकेले में पढ़ाना पसंद नहीं करता है। परिणाम स्वरूप हमेशा यही कोशिश करता है कि मनोरमा को उसके पिता के सामने पढाए।

अध्याय तीन व चार

चक्रधर हर महीने अपनी माता के हाथ में तीस रूपए मासिक की आय लाकर दे देता है। उसके अपने कोई निजी शौक नहीं हैं, परिणाम स्वरूप वह अपने लिए एक रूपया भी बचा कर नहीं रखता। हरिसेवकसिंह की आदत है, शुरूआत में नौकरो के समय से पैसे दे देते हैं लेकिन पुराने हो जाने के बाद उनकी सैलरी देना भूल जाते हैं। यही उन्होंने चक्रधर के साथ किया, संकोच के कारण चक्रधर ठाकूर से रूपए माँगता नहीं है।

कुछ दिन बाद इस बात पर चक्रधर के पिता व्रजधर इस बात पर गुस्सा करने लगते हैं कि अपनी कमाई के रूपए अखिर ब्रजधर क्यों नहीं माँगता है।

एक दिन यशोदान्दन ब्रजधर के लिए अपनी बेटी का रिश्ता लेकर आते हैं। यशोदान्दन ने ब्रजधर के लेख पत्रिकाओं में पढ़ा था परिणाम स्वरूप उन्हें ब्रजधर उसके विचारों से पसंद आ गया। पहले तो ब्रजधर ने अपनी माँ से शादी के लिए मना कर दिया। लेकिन यशोदान्दन से मिलने के बाद और उनकी बेटी अहिल्या की तस्वीर देखने के बाद वह मन ही मन शादी के लिए तैयार हो गया। अहिल्या की तस्वीर देख कर और उसके बारे में उसके पिता से सुनकर ब्रजधर अहिल्या और मनोरमा के बीच तुलना करने लगा। एक तरफ मनोरमा चंचल स्वभाव की है, दूसरी तरफ अहिल्या शांत स्वभाव की है।

लौंगी मनोरमा के यहाँ वैसे तो एक सहयोगी (कर्मचारी) थी, लेकिन मनोरमा की माता के देहांत के बाद उसने हरिसेवकसिंह का पूरा घर सम्भाल लिया। मनोरमा को माता का प्रेम दिया। हरिसेवकसिंह की पत्नी के देहांत के बाद (बिना हरिसेवकसिंह से विवाह के) उनकी पत्नी होने की सारी ज़िम्मेदारी उठा ली। कभी-कभी हरिसेवकसिंह लौंगी पर हाथ भी उठा देते हैं, लेकिन फिर भी वह उनके प्रति अनपी सेवा कम नहीं करती है।

लौंगी और मनोरमा के बार-बार कहने पर हरिसेवकसिंह ने चक्रधर की सैलरी उसे दे दी। इसी दिन चक्रधर ने बताया वह दो-तीन दिन के लिए अगरा जा रहा है। मनोरमा के निजी रूप से पूछने पर चक्रधर ने उसे बताया वह विवाह के संबन्ध में वहाँ जा रहा है, परिणाम स्वरूप मनोरमा की आँखे नम हो गई।

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अध्याय 5

चक्रधर यशोदानन्दन के साथ बनारस से अगरा के लिए नकल गया। ट्रेन में यशोदानन्दन ने चक्रधर से बताया कि कई साल पहले अहिल्या उन्हें नदी के तट पर मिली थी। अर्थात उन्होंने चक्रधर से यह बताया कि अहिल्या उनकी अपनी बेटी नहीं है, बल्कि उन्होंने उसे पाला है। यह सुनकर चक्रधर सोच में पड़ गया कि उसे अहिल्या से विवाह करना चाहिए या नहीं। कुछ देर विचार करने के बाद उसने अहिल्या से विवाह करना स्वीकार कर लिया। यह सुनते ही यशोदानन्दन ने उसे गले लगा लिया और खुशी से सितार बजाने लगे। सितार सुनकर ब्रजधर को पहली बार बहुत (मधुर) अच्छा लगा। इससे पहले उसे सितार में कोई रूचि नहीं थी।

अगरा पहुँचने पर पता चला कि वहाँ दंगा हो गया है। पंजाब से मौलवी दीनमुहम्मद साहब आए हैं, उन्होंने कुछ ऐसे भाषण दिए जिसके परिणाम स्वरूप दंगा हो गया है। यशोदानन्दन ने राधामोहन से पूछा – ख्वाज महमूद ने कुछ नहीं किया?  उत्तर में राधामोहन ने बताया इस सभा की अध्यक्षता ख्वाजा महमूद ही कर रहे थे परिणाम स्वरूप यशोदानन्दन बहुत आहत हुए। तुरन्त ख्वाजा महमूद से मिलने के लिए उनके घर चले गए। जाकर देखा तो ख्वाजा महमूद के घर के सामने भीड़ लगी हुई है, यशोदानन्दन ने ख्वाजा महमूद को समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं समझे। भीड़ से किसी ने यशोदानन्दन की निष्ठा पर सवाल उठा दिए परिणाम स्वरूप यशोदानन्दन ने कहा धर्म से पहले आत्मसम्मान की रक्षा करना आवश्यक है, यह कह कर वह वहाँ से चले गए।

ब्रजधर ने ख्वाजा महमूद से तर्क-वितर्क करके ख्वाजा महमूद को यह समझा दिया कि सबका ईश्वर एक ही है। परिणाम स्वरूप किसी की भवनाएँ आहत करने के लिए कुर्बानी करना ठीक नहीं है। ख्वाजा महमूद ब्रजधर को एक अच्छा इंसान समझकर उसे यह विश्वास दिलाते हैं कि अब कुर्बानी नहीं होगी।

ब्रजधर की बातों से हिन्दु और मुस्लिम दोनों धर्म के लोग सहमत हो जाते हैं, परिणाम स्वरूप दंगा समाप्त हो जाता है। भीड़ से किसी ने ब्रजधर को मारा था, इसलिए उसके सिर पर चोट आ गई थी। ब्रजधर जब यशोदानन्दन के घर पहुँचा तो यशोदानन्दन भी वैसे ही ब्रजधर से प्रसन्न हुए जैसे ख्वाजा महमूद। ब्रजधर की मुलाकात अहिल्या से हुई, उसने अहिल्या को वैसी ही पाया जैसा सोचा था। वागीश्वरी ने अहिल्या को बताया की ब्रजधर को उससे शादी करने के लिए उन्होंने पसंद किया है, अहिल्या से उसकी मर्ज़ी पूछने पर अहिल्या ने कहा तुम मेरे मन का हाल जानती हो, अर्थात उसने शादी के लिए सहमति दे दी।

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By Sunaina

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