कायाकल्प उपन्यास का संक्षिप्त सारांश | Brief Summary of Kayakalp Novel

प्रेमचंद द्वारा लिखा उपन्यास कायाकल्प (Novel Kayakalp written by Premchand)

Table of Contents

कायाकल्प उपन्यास का परिचय (Introduction to Kayakalp Novel)

लगभग हर व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि वह कभी बूढ़ा न हो। यदि उम्र बढ़ भी रही है, तो वह उसके चेहरे से नज़र न आए। ऐसी ही इच्छा प्रेमचंद जी के लिए उपन्यास कायाकल्प की पात्र देवप्रिया की भी है। देवप्रिया का कायाकल्प इस उपन्यास में दो बार होता है। अर्थात देवप्रिया दो बार अपनी आयु कम करने में सफल हो जाती है। कायाकल्प अर्थ होता है, शहीर का जवान हो जाना या चोला बदल जाना।

कायाकल्प उपन्यास का सारांश (Summary of Kayakalp Novel)

कहानी की शुरूआत (Beginning of the Story)

तीन साल की अहिल्या त्रीवेणी के मेले में खो जाती है, खोने के बाद वह उस मेले के कार्यकर्ता को यशोदान्दन और ख्वाजा महमूद को मिलती है, कुछ दिन वह उसे अनाथ अश्राम में रखते हैं, लेकिन अनाथ अश्राम के बंद हो जाने के बाद यशोदान्दन उसे अपनी बेटी बना लेते हैं।

काशी के व्रजधर जो कुछ दिन के लिए तहसीलदार रह चुके हैं, वह अपने आप को मुंशीजी कहलवाना पसंद करते हैं। वह हाकिमों (सरकारी अफ़सरो) से संपर्क बना कर रखते हैं, उनका बेटा चक्रधर बहुत बढ़ा लिखा होने के बाद भी नौकरी नहीं करना चाहता परिणाम स्वरूप वज्रधर रोज़ उसे कोसते रहते हैं। अपने पिता की आर्थिक सहायता के लिए चक्रधर मनोरमा को पढ़ाने लगते हैं। मनोरमा को पढ़ा कर जो रूपए उसे मिलते हैं वह सारे रूपए वह अपनी माँ निर्मला को दे देता है। मनोरमा मन ही मन चक्रधर से प्रेम करती है, लेकिन यह बात स्पष्ट रूप से चक्रधर पर कभी ज़हिर नहीं करती है।

चक्रधर समाज की सेवा करना चाहते हैं, परिणाम स्वरूप वह विवाह करने से लगातार बचते हैं, लेकिन एक दिन यशोदानन्दन अहिल्या का रिश्ता चक्रधर के लिए लाते हैं, उनके अनुसार अहिल्या का स्वभाव भी चक्रधर की तरह है। साथ ही वह चक्रधर को यह भी बताते हैं, कि वह उसे मेले में मिली थी। परोपकार करने की इच्छा से चक्रधर यह तय कर लेते हैं कि वह अहिल्या से विवाह करेंगे। वह अगरा जाकर अहिल्य से मिलते हैं, अहिल्या भी उसे अपना पति मान लेती है। जब वापस काशी आकर अपने माता-पिता से अहिल्या के सच के बारे में चक्रधर बताते हैं, तो उनके माता-पिता अहिल्या से शादी के लिए मना कर देते हैं।

रानी जगदीशपुर देवप्रिया (Rani Jagdishpur Devpriya)

रानी जगदीशपुर अल्पआयु में ही विधवा हो गई थीं, लेकिन पति की मृत्यु के बाद भी वह विलसिता का जीवन पसंद करती रही और लगातार विलासिता को भोग करती रहीं। उनके यहाँ हमेशा कोई न कोई मेहमान आता ही रहता है, उनका मेहमान घर हमेशा भरा रहता है।  एक दिन उन्होंने हर्षपुर के राजकुमार को बुलाया था। तबीयत ठीक न होने के बाद भी वह उठीं और गुजराती से अपना श्रृंगार करवाया।

राजकुमार जब देवप्रिया से मिलते आए, तो उसे लगा उसने उन्हें कहीं देखा है। राजकुमार ने देवप्रिया से बातया की वह अपने पूर्व जन्म में देवप्रिया के पति थे। उन्होंने अब दोबारा जन्म लिया है, इस जन्म में उन्होंने विदेश जाकर विज्ञान का गहन अध्ययन किया है, उसके बाद वह किसी साधु से मिले उस दौरान उसे याद राजुकमार को अपना पूर्व जन्म याद आ गया। याद आते ही वह यहाँ अपनी पत्नी देवप्रिया से मिलने आए।

जब देवप्रया को यह विश्वास आ गया कि राजकुमार ही उसके पति थे, तो वह जगदीशपुर की रानी का पद त्याग कर उनके साथ चली गई। जाने से पहले उन्होंने विशालसिंह को (चचेरे देवर) पत्र लिखा और उसके माध्यम से उन्हें जगदीशपुर का नया राजा नियुक्त कर दिया। हर्षपुर के राजकुमार के साथ जाकर देवप्रिया कई दिनों तक गुफाओं में रही। इसी दौरान राजकुमार ने अपनी विद्या से उन्हें फिर से जवान बना दिया था। ऐसा करने के बाद देवप्रिया राजकुमार से अपने पति-पत्नि जैसे सम्बन्ध चाहती थी, लेकिन राजकुमार जब भी उनके पास जाते उन्हें तकलीफ होने लगती थी।

एक दिन राजकुमार ने उड़ता हुआ विमान बनाया और उसमें देवप्रिया के साथ उड़ने चले गए। उस जहाज का बैलेंस बिगड़ गया, और राजकुमार की मृत्यु हो गई। राजकुमार ने देवप्रिया को हर्षपुर जाकर रानी बनकर रहने के लिए कहा। फिर मिलेंगे इसका आश्वासन दिया और उनकी मृत्यु हो गई।

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चक्रधर का जेल जाना (Chakradhar Goes to Jail)

विशालसिंह के राजा बनने की खुशी में तिलकोत्सव बनाने का निर्णय लिया गया। इस उत्सव को करने के लिए राज्य की प्रजा से अत्यधिक कर (टैक्स) लिया गया। चक्रधर ने इसकी शिकायत राजा विशालसिंह से की, लेकिन उन्होंने इस अपनी कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी। उत्सव के दौरान प्रजा से फ्री में काम करवाया जाने लगा, यहाँ तक एक हफ्ते से उन्हें एक टाइम का खाना आधा पेट भी नहीं मिला था। परिणाम स्वरूप मुंशीजी (वज्रधर) और दीवान साहब के उन पर अत्याचार करने के कारण वह अपना काम छोडकर जाने लगे। प्रजा को देवप्रिया के समय में भी फ्री में काम करना पड़ता था, लेकिन देवप्रिया उन्हें पेटभर खाना ज़रूर देती थीं। अब स्थिति बहुत खराब हो गई थी, राजा ने बेगार काम करने वालों को धमकी दी। यदि वह यहाँ से गए तो अच्छा न होगा।

इसी समय चक्रधर आ गए, उन्होंने राजा को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वह उसी का मज़ाक उडाने लगे। यह स्थिति देखर काम करने वाले मज़दूर उस तरफ बढ़ने लगे जहाँ अन्य राजा (अथिति) का निवास था। उनके पास आते देखकर अंग्रेजो ने गोली चलानी शुरू कर दी। अपनी गोलियों से अनेको मज़दूर की हत्या कर दी। चक्रधर ने बीच-बचाव किया और अंग्रेजो को भी समझाया और जिन मज़दूरो की जान बच गई थी उन्हें भी समझाया। वहाँ मौजूद लोगों ने इस सबका ज़िम्मेदार चक्रधर को बताया परिणाम स्वरूप चक्रधर को दो साल की सजा हो गई।

मनोरमा राजा विशालसिंह के पास आई ताकि वह चक्रधर की सजा कम करा सके, या उसे छुड़ा सके। लेकिन वह इसमें असफल रही।

एक दिन जेलर और कैदियों के बीच लड़ाई हो गई। यहाँ भी चक्रधर ने जेलर की जान बचाई लेकिन इस लड़ाई का दोष भी उस पर लगाया गया। परिणाम स्वरूप फिर से उस पर ही मुकदमा चलाया गया, इस बार मनोरमा ने राजा विशालसिंह और गुरूसेवक पर ज़ोर देकर उसकी सज़ा कम करा ली। इस बार जेलर ने दस साल की सज़ा के एक साल में ही चक्रधर को देने का फैसला किया।

चक्रधर को अगरे की जेल में भेज दिया गया। यहाँ उसे बहुत प्रताड़ित किया गया। उसे अकेले अंधेरे कमरे में बन्द रखा और जितनी कष्ट उसे देना संभव था, दिया गया।

एक दिन यशोदानन्दन ने बहुत मुश्किल से चक्रधर से मिलने की परमिशन हंसिल की। यह मुलाकात सिर्फ बीस मिनट तक ही हो सकती थी। परिणाम स्वरूप अहिल्या को वह चक्रधर से मिलाने के लिए लेकर आए। अहिल्या की हालत भी चक्रधर जैसी ही हो गई थी। वह खाना कम से कम खाती और सर्दी में भी एक फटे कम्बल का इस्तेमाल करती थी। जो तपस्या चक्रधर को जेल में करनी पड़ रही थी वही तपस्या अहिल्या घर में रह कर रही थी। चक्रधर ने अहिल्या से अपना ख्याल रखने के लिए कहा और अधिकतर समय एक-दूसरे को देखते-देखते ही गुज़र गया।

मनोरमा और राजा विशालसिंह का विवाह (Marriage of Manorama and Raja Vishal Singh)

हरिसेवकसिंह मनोरमा के पिता विशालसिंह के यहाँ दीवान हैं, मनोरमा चक्रधर को जेल होने से बचाने के लिए पहली बार राजा साहब से मिलने गई थी। तभी राजा मनोरमा पर मोहित हो गए थे। विशालसिंह ने कुल छ विवाह किए परिणाम स्वरूप उनकी छठी पत्नि मनोरमा बनी। वर्तमान में मनोरमा से पहले उनकी तीन पत्निया और हैं, पहली पत्नि वसुमती दूसरी पत्नी रामप्रिया (रानी जगदीशपुर देवप्रिया की सगी बहन) तीसरी पत्नी रोहणी। विशालसिंह का रोहिणी से विशेष प्रेम था वह भी राजा साहब का बहुत ख्याल रखती थी। लेकिन एक दिन वसुमती और रोहिणी की इस प्रकार लड़ाई हुई की उसका सीधा नकारात्मक असर रोहिणी और राजा साहब के रिश्ते पर पड़ा। स्थिति इतनी बिगड़ गई की विशालसिंह ने उससे बात करना छोड़ दिया और उसने सिन्दूर लगाना छोड़ दिया।

अब स्थिति यह है कि उन्हें पत्नी की आवश्यकता महसूस हो रही थी। मनोरमा उन्हें अच्छी लगने ही लगी थी, परिणाम सवरूप वज्रधर ने युक्ति लगाकर मनोरमा के पिता से मनोरमा और विशालसिंह की शादी के लिए हामी भरवा ली। मनोरमा ने बूढ़े राजा से शादी के लिए यह सोचकर हाँ कर दिया की उसके पिता ने उसके लिए यह तय किया है, और इंकार नहीं किया।

मनोरमा चक्रधर से प्रेम करती है, विशालसिंह से पहली बार वह चक्रधर के लिए मिलने गई थी, और अब भी उसे परोपकार ही करना था, जिसके लिए वह रानी बनना स्वीकार कर लेती है। चक्रधर और मनोरमा दोनों ही समाज की सेवा करना चाहते हैं, चक्रधर इसके लिए कठोर तपस्या करना चाहता है और मनोरमा इसके लिए धन को आवश्यक समझती है, जो कुछ हद तक सच भी है।

मनोरमा और राजा के विवाह के बाद वह राजा साहब के साथ एक दिन शहर जाती है, और किसी अंग्रेज के साथ खेल में शर्त जीत जाती है, जीतने के बदले वह चक्रधर की रिहाई माँगती है। अंग्रेज को मनोरमा की यह शर्त न चाहते हुए भी माननी पड़ती है। परिणाम स्वरूप चक्रधर को समय से पहले रिहा कर दिया जाता है। चक्रधर जब काशी पहुँचा तो मनोरमा उससे मिलने आई, चक्रधर को अहिल्या ने पहले ही बता दिया था कि मनोरमा का विवाह विशालसिंह से हो गया है। इसलिए चक्रधर मनोरमा पर क्रोधित था, लेकिन यहाँ काशी में मनोरमा ने चक्रधर से मिलकर सच बताया कि उसे क्यों उससे शादी करनी पड़ी।

अहिल्या और चक्रधर का विवाह (Ahilya and Chakradhar’s Marriage)

चक्रधर को कुछ ही दिनों में पता चला कि अगरा में दंगा हो गया है, उस दंगे में यशोदानन्दन की मृत्यु हो गई है, परिणाम स्वरूप अपने माता-पिता की इच्छा के विरूद्ध वह अगरा आता है। जब वह अगरा जाता है, तो उसे पता चलता है कि अहिल्या का किड़नैप हो गया है। वह अहिल्या की तलाश में निकलता है, इसी दौरान उसे पता चलता है कि अहिल्या को ख्वाजा महमूद का बेटा उठा कर ले गया था। अहिल्या ने अपनी रक्षा के लिए उसकी हत्या कर दी है, ख्वाजा महमूद को इस बात का बहुत दुख हुआ कि ऐसा घिनौना काम उसके अपने बेटे ने किया।

ख्वाजा महमूद के घर से अहिल्या को लाकर चक्रधर ने उससे विवाह कर लिया। विवाह के बाद वह जब अपने घर काशी जाने लगा तो उसने सोचा माता-पिता उसकी पत्नी को स्वीकार नहीं करेंगे इसलिए वह इलाहाबाद (प्रयागराज) उतरकर वहीं बस जाएँ, लेकिन अहिल्या ने मना कर दिया। अहिल्या अपने ससुराल जाना चाहती थी, अपने सास ससुर की सेवा करना चाहथी थी। चक्रधर को अहिल्या की बात मानकर काशी जाना पड़ा, जब वह काशी पहुँचा तो देखा उसके पिता रेल्वेस्टेशन पर पहले से पहुँचे हुए थे। उन्होंने अहिल्या और उसकी पत्नी का स्वागत किया।

मनोरमा को जब अहिल्या और चक्रधर के विवाह के विवाह की बात पता चली तो वह भी उससे मिलने आई। मनोरमा ने सकारात्मक भाव से अहिल्या का स्वागत किया। कुछ ही दिन ठीक से गुज़रे एक दिन मुंशीजी मनोरमा के पास गए उन्होंने बताया चक्रधर काशी छोड़कर प्रयागराज जा रहा है। मनोरमा ने इसका कारण पूछा तो पता चला चक्रधर और उसकी पत्नी अहिल्या का छुआ खाना नहीं खाते इसलिए वह दोनों घर छोड़कर जा रहे हैं।

मनोरमा चक्रधर को रोकने के लिए उसके घर गई, लेकिन उसे रोकने में नकाम रही परिणाम स्वरूप चक्रधर के बुरे वक्त के लिए उसने बैग में कुछ रूपए डालकर दे दिए। जिसे चक्रधर ने लेने से इंकार किया लेकिन मनोरमा ने जबरदस्ती उसे वह रूपए का बैग दे दिया।

अहिल्या और चक्रधर पाँच साल तक प्रयागराज में रहे, इस दौरान उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार आ गया। जो चक्रधर कोई नौकरी नहीं करना चाहता था, अब वह अपने घर की सुविधाएँ जुटाने का सकारात्मक प्रयास करने लगा। इस दौरान उनका एक बेटा पैदा हुआ जिसका नाम शंखधर था।

एक दिन काशी से पत्र (खत) आया, जिसमें लिखा था। मनोरमा की तबीयत बहुत खराब है, शायद अब वह नहीं बचेगी, यह खत पढ़कर चक्रधर अहिल्या को लेकर राजा विशालसिंह के घर जगदीशपुर पहुँच गया। वहाँ पहुँचा तो मनोरमा ने उसकी खबर ना लेने की अहिल्या से शिकायत की। साथ ही उसने यह कहा इसकी सजा है कि शंखधर अब मेरा पुत्र है।

राजा विशालसिंह ने जब शंखधर को देखा तो उन्होंने कहा यह तो सुखदा के जैसा लगता है। यह नाम सुनकर अहिल्या को कुछ याद आया। अहिल्या को लगा सुखदा नाम शायद उसका है। अहिल्या ने राजा विशालसिंह से सुखदा के बारे में पूछा। विशालसिंह ने जब अहिल्या से बताया की त्रीवेंणी के मेले में उसकी बेटी खो गई थी, तो अहिल्या ने बताया वह भी त्रिवेंणी के मेले में खो गई थी। कुछ देर की पूछताछ के बाद राजा विशालसिंह को यह समझ आया की अहिल्या उन्हीं की खोई हुई बैटी है। इसके बाद अहिल्य चक्रधर और शंखधर तीनों राजा विशालसिंह के यहाँ पर ही रहने लगे।

चक्रधर कुछ दिनों तक तो विशालसिंह के यहाँ रहा, लेकिन कुछ ही दिनों में अहिल्या का व्यवहार बदल गया। अहिल्या पर धन-दौलत का नकारात्क प्रभाव होने लगा, अब वह देर से सोकर उठने लगी। अपने हर छोटे-बड़े काम के लिए नौकरो पर निर्भर रहने लगी। अब वह न ही अपने पति चक्रधर पर ध्यान देती न ही अपने बेटे शंखधर पर। शंखधर अब अधिक से अधिक समय मनोरमा के पास रहने लगा था। यहाँ तक की उसे ही अपनी माँ मानने लगा था।

चक्रधर ने घर परिवार त्याग दिया (Chakradhar Left his Family and Home)

चक्रधर धन के कारण समाज सेवा नहीं कर पा रहा था। उसे लगने लगा था कि धन का घमंड उसे भी होने लगा है। एक दिन वह मोटर से कहीं जा रहा था, रास्ते में एक बैल के कारण उसकी मोटर अटक गई। पास के एक गाँव में वह किसी से मदद मांगने पहुँचा, उस गरीब किसान ने कहा वह उसकी मदद सुबह कर देगा, लेकिन चक्रधर को यह बर्दाश्त न हुआ। उसने उस पर प्रहार कर दिया।

उसे ऐसी जगह मारा की उसकी तबीयत बहुत खराब हो गई। इतने में चक्रधर को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी।

इतने में मनोरमा वहाँ आ गई और चक्रधर को अपने साथ लेकर चली गई। अब चक्रधर किसी हालत में विशालसिंह के यहाँ नहीं रुकना चाहता था। वह चाहता था कि अहिल्या उसके साथ चले, लेकिन मनोरमा शंखधर को बेटे की तरह पालने लगी थी परिणाम स्वरूप मनोरमा और शंखधर एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे। अहिल्या शंखधर को छोड़कर नहीं जाना चाहती थी, सच यह है कि अहिल्या धन दौलत छोड़कर नहीं जाना चाहती थी। उसे पता था अगर वह शंखधर का सहारा लेगी तो उसे जाना भी नहीं पडेगा और पति की नज़र में अच्छी भी बनी रहेगी।

एक दिन रात को चुपचाप चक्रधर घर छोड़कर जाने लगा, उसे अहिल्या ने जाता देख लिया। परिणाम स्वरूप उसने फिर शंखधर का बहाना बनाया और चक्रधर को जाने से रोकना चाहा। मनोरमा को पहले से पता था कि चक्रधर सबको छोड़कर जाना चाहता है, यह स्थिति देखकर उसने शंखधर को ले जाने की इजाज़त दे दी। जैसे ही अहिल्या को पता चला अब मनोरमा शंखधर को नहीं रोकना चाहती तो उसने उस पर अरोप लगाते हुए कहा कि वह दौलत शंखधर को नहीं देना चाहती खुद मलकिन बनी रहना चाहती है, इसलिए भेज रही है परिणाम स्वरूप उसने जाने से इंकार कर दिया।

इतना सब होने के बाद भी चक्रधर चुपचाप घर से निकल गया। रास्ते में उसने देखा कि जिसको उसने गुस्से में मारा था उसकी उस चोट से मृत्यु हो गई है। यह देखकर उसे बहुत पछतावा हुआ। उसने सेवा कार्य करने का फैसला किया और चला गया।

पिता को तलाश करने की इच्छा : शंखधर (Desire to search for Father: Shankhadhar)

चक्रधर को घर छोड़े हुए पाँच साल हो गए थे, अब अहिल्या दिन-रात पछताती रहती थी। सोचती थी अच्छा होता जो वह चक्रधर के साथ चली जाती। शंखधर लगातार अपने पिता के बारे में पूछता रहता था। वह कहीं से भी अपने पिता को खोज लाना चाहता था।

इसी दौरान लौंगी तीरथ करने चली गई। लौंगी ने मनोरमा को माता की तरह पाला था। लौंगी मनोरमा के घर में नौकरानी थी, मनोरमा की माता के मृत्यु के बाद लौंगी ने ही मनोरमा और उसके भाई हरिसेवक सिंह को माँ की तरह पाला था। वह छोटी जाति से थी परिणाम स्वरूप मनोरमा के पिता ने उससे विवाह नहीं किया, लेकिन वह मनोरमा उसके भाई के लिए माँ थी और मनोरमा के पिता के लिए पत्नी थी। अर्थात वह मनोरमा के मायके में मालकिन थी। बड़े होने के बाद हरिसेवक उसे पसंद नहीं करता था, नीच जात होने का लगातार उसे ताना देता रहता था। उसे बार-बार तीरथ पर जाने के लिए कहता था।

एक दिन लौंगी ने हरिसेवक की बात मान ली और तीरथ पर चली गई। उसे जाता जान दीवान साहब अर्थात मनौरमा के पिता ने भी उसे अहम के कारण नहीं रोका। जब वह चली गई तो दीवान साहब की हालत दिन पर दिन खराब होती चली गई। लौंगी जिस काम के लिए उन्हें मना करती और वह खुशी-खुशी मान जाते थे, अब लौंगी के चले जाने के गुस्से में वह सब काम करने लगे। खाना खाना कम कर दिया, गुस्से में लौंगी को लिख देते थे कि उसे वापस आने की ज़रूरत नहीं है।

हरिसेवक को अपनी गलती का एहसास हो गया और वह लौंगी की अहमीयत को समझ गया। परिणाम स्वरूप वह लौंग को लेने तीरथ स्थान पर गया। उसी दिन लौंगी वापस आ गई, लेकिन रास्ते में वह हरिसेवक से नहीं मिली। जब लौंगी वापस आई तो दीवान साहब अखरी सांसे ले रहे थे। अर्थात कुछ ही देर में उनकी मृत्यु हो गई। उन्होंने अपनी जयदाद लौंगी के नाम कर दी थी, इसके बारे में सिर्फ मनोरमा को पता था। लौंगी को इस बात का दुख था कि जिसे उसने पति माना पत्नी की तरह सेवा की उन्होंने उसके बारे में कुछ नहीं सोचा। अब वह अपने मालिक की मृत्यु के बाद उस घर से चली जाना चाहती थी। एक दिन जब उसने यह बात हरिसेवक से कही तो हरिसेवक ने इसका विरोध किया।

इसी दौरान मनोरमा लौंगी से मिलने आई और उसने वसीयत लौंगी के नाम होने की बात लौंगी को बताई, लेकिन अब लौंगी न इस बात से खुश हुई, न ही दुखी हुई। उसने इस वसीयत को हरिसेवक को देने के लिए कह दिया। अर्थात अपनी हिस्से की जायदात उसने हरिसेवक को दे दी।

मनोरमा के साथ शंखधर भी लौंगी के घर आया था। लौंगी ने मनोरमा से चक्रधर का ज़िक्र किया, उसने बताया की हरिद्वार में एक व्यक्ति ऐसा मिला था, जो चक्रधर की तरह लग रहा था। यह बात सुनते ही शंखधर के अन्दर पिता को तलाश करने की इच्छा जाग गई।

शंखधर ने भी घर छोड़ा (Shankhadhar Also Left the House)

शंखधर तेरह साल का था, उसने अपने पिता की तलाश करने का फैसला कर लिया। परिणाम स्वरूप उसने घर छोड़ दिया। वह भी अपने पिता की तरह बिना किसी को बताएँ घर से चला गया। जाते-जाते बस एक खत लिख गया, ताकि उसके जाने के बाद उसकी कोई तलाश न करें।

इसी दौरान एक दिन विशालसिंह की तीसरी पत्नी रोहणी उनके पास आई, और विशालसिंह के प्रति उसने अपने प्रेम और का इज़हार किया। राजा साहब ने भी उनके रोहणी के लिए कोई मैल न रखा। बस उन्हें यह दुख था कि उसने यह बात सौलह साल पहले क्यों नहीं कह दी। मनोरमा से पहले सबसे प्रिय पत्नी राजा साहब की रोहिणी ही थी।

रात में राजा साहब रोहिणी के कमरे में गए, तो पता चला रोहिणी की मृत्यू हो चुकी है। राजा साहब को बहुत दुख हुआ, रोहिणी की मृत्यू के बाद उन्हें लगा मनोरमा ने उसे ज़हर देकर मार दिया है। जो पूर्ण रूप से झूठ था। शंखधर ने घर छोड़ दिया, रोहिणी की मृत्यू हो गई परिणाम स्वरूप राजा साहब ने मनोरमा से दूरी बना ली। जिस मनोरमा से उनकी सुबह शाम होती थी, अब वह उसे देखना भी नहीं चाहते थे। इसके बाद लगातार प्रजा पर अत्याचार करना शुरू कर दिया।

शंखधर को अपने पिता से मिला (Shankhadhar got it From His Father)

अपने पिता को तलाश करते करते शंखधर दक्षिण की ओर निकल गया। एक दिन उसे अपने पिता का चिन्ह मिला। पिता की तलाश करते-करते उसे कई साल बीत गए थे। उसके पिता को घर छोड़े लगभग चौदह साल हो गए थे और उसे घर छोड़े भी छ: साल से ज़्यादा हो गए थे। जब उसने घर छोड़ा था वह किशोर था। अब वह जवान हो गया था।

जब वह चक्रधर से मिला तो उसने यह नहीं बताया की वह जानता है कि वह अपने पिता से मिल रहा है, लेकिन चक्रधर को यह ज़रूर बता दिया की वह कौन है, और किसलिए अपने घर से निकला है। पिता-पुत्र दोनों जानते थे कि आपस में उनका क्या रिश्ता है, लेकिन एक-दूसरे पर ज़हिर नहीं करते थे।

एक दिन शंखधर ने अपनी माता अहिल्या को खत लिख दिया। उस खत के माध्यम से उसने अपने और अपने पिता चक्रधर के बारे में बताया साथ ही यहाँ का पता भी लिख दिया। उसने अपनी माँ अहिल्या को जल्द से जल्द बुलाया।

अहिल्या ने अपने पिता का घर छोड़ा (Ahalya Left her Father’s House)

अहिल्या अपने पति और बाद में बेटे के जाने के बाद खुद को मन ही मन दोषी मानने लगी थी। परिणाम स्वरूप उसने अपने पिता के घर से अपने पति के घर अपने ससुराल जाने का फैसला किया। वह समान्य रूप से वहाँ जाकर धन के बिना सुख-सुविधाओं के जीवन व्यतीत करना चाहती थी, लेकिन उसके पिता ने उसकी विदाई पर बहुत खर्च किया। साथ ही बहुत ज़्यादा धन व सम्पत्ति के रूप में उपयोग होने वाली वस्तु भी दी।

अहिल्या को उसकी सास पसंद नहीं करती थी, उसे लगता था, अहिल्या के कारण ही चक्रधर और शंखधर ने घर छोड़ा है। अहिल्या के मायके से आए समान को उसकी ननद धीरे-धीरे करके अपने घर ले जाने लगी। अहिल्या की ननद यह काम चोरी-चोरी करने लगी, वह सारा समान मायके से अपने ससुराल भेज देना चाहती थी।

अहिल्या को लगा वह यहाँ भी विलासिता के मोह से दूर नहीं हो पा रही है, परिणाम स्वरूप वह अगरा चली गई। अपनी उस माँ के पास जिसने उसकी परवरिश की थी। अहिल्या जब वहाँ पहुँची तो देखा अगरा के घर कि स्थति बहुत खराब है, उसकी माता भी वृद्ध हो गई है। कुछ दिन तो वहाँ वह समान रूप से रही, लेकिन कुछ ही दिनों में लोग उससे मिलने आने लगे। जो लोग उससे मिलने आते वह अहिल्या से कम और राजा की बेटी से ज़्यादा मिलने आते थे, परिणाम स्वरूप अहिल्या को अपने मान-सम्मान को बनाए रखने के लिए फिर से धन का सहारा लेना पड़ा और उसने अपने लिए यहाँ भी रूपए मंगवा लिए।

अहिल्या को अपने बेटे शंखधर का खत मिला, अहिल्या ने खुद वहाँ जाने के स्थान पर शंखधर को पत्र लिख दिया। शंखधर से पत्र में माध्यम से यह कह दिया की वह बहुत बीमार है, अब नहीं बचेगी और जल्द से जल्द उसे अपने पास आने को कहा।

शंखधर विवाह करके जगदीशपुर पहुँचा (Shankhadhar Got Married and Reached Jagdishpur)

शंखधर को अपनी माँ अहिल्या का पत्र मिला, परिणाम स्वरूप वह तुरन्त अगरा के लिए निकल गया। रास्ते में शंखधर हर्षपुर चला गया, रानी देवप्रिया के पास। अब देवप्रिया का नाम कमला था, वह उसके पास आया दोनों ने एक-दूसरे को पहचान लिया। कमला अब पहले से भी ज़्यादा वृद्ध हो चुकी थी, इसलिए वह शंखधर के पास आने से घबरा गई। शंखधर ने एक बार फिर से देवप्रिया यानी कमला का कायाकल्प करके उसे जवान कर दिया।

कमला और शंखधर विवाह करके अहिल्या के साथ जगदीशपुर पहुँचे। जगदीशपुर में राजा विशालसिंह एक और विवाह कर रहे थे, शादी के लिए बरात लेकर जा ही रहे थे कि शंखधर वहाँ पहुँच गया। विशालसिंह की बहुत खुश हो गए, और अपनी यह शादी करने का फैसला बदल दिया। अपनी शादी के उत्सव को शंखधर और उसकी पत्नी कमला के स्वागत के उत्सव में बदल दिया।

शंखधर के आने से मुंशीजी और उनकी पत्नी जो शंखधर के दादा-दादी हैं, उनकी खुशी का भी ठीकाना नहीं रहा। शंखधर अब अगला राजा बनने वाला था, रामप्रिया जब कमला से मिली तो वह तुरन्त पहचान गई कि यह तो उसकी बहन देवप्रिया के जैसे दिखती है। कुछ दी दिनों में विशालसिंह भी यह समझ गए कि शंखधर उनके बड़े भाई जैसा दिखता है। परिणाम स्वरूप उन्होंने यह अनुमान लगा लिया कि यह उनके भाई-भाई ही हैं, उन्हें लगा यह उनका दूसरा जन्म है। इसी बात की चर्चा करने वह मुंशीजी (चक्रधर के पिता) के यहाँ गए और उन्हें सारी बातें बताई। उन्होंने तय कर लिया की अब कोई दुर्घटना नहीं होने देंगे।

कमला (देवप्रिया) श्रृंगार करके अपने पति यानी शंखधर के पास गई। शंखधर कमला के पास आने से अन्दर ही अन्दर डर रहा था, लेकिन खुद को उसके पास जाने से रोक नहीं पा रहा था। उसी दौरान उसे तकलीफ हुई, और कुछ ही देर में शंखधर की मृत्यु हो गई। राजा विशालसिंह यह बर्दाश्त नहीं कर पाए और उनकी भी मृत्यु हो गई। अहिल्या भी बहुत बीमार हो गई।

चक्रधर को इसी दौरान अपने बेटे की बहुत याद आने लगी परिणाम स्वरूप वह जगदीशपुर आ गया। लेकिन जब तक वह पहुँचा, शंखधर नहीं रहा। अंतिम क्षणों में अहिल्या के पास गया, वह पहले से ही बीमार थी। चक्रधर से मिलते ही उसकी भी मृत्यु हो गई। कुछ दिन चक्रधर अपने माता-पिता के पास रहा, जब उसके माता-पिता की भी मृत्यु हो गई तो वह फिर से दक्षिण की ओर समाज सेवा के लिए चला गया। इस बार उसे इंसानों से ज़्यादा पक्षियों से प्रेम हो गया था।

कमला यानी रानी देवप्रिया फिर से जगदीशपुर की रानी बन कर राज करने लगी। अर्थात इस कहानी की शुरूआत में भी वह जगदीशपुर की रानी थी और अब कहानी के अंत में भी वह जगदीशपुर की रानी है।

मनोरमा अलग उस महल में रहने लगी जो विशालसिंह ने अपनी नई पत्नी के लिए बनवाया था। मनोरमा को भी पक्षियों से विशेष प्रेम हो गया। वह अपना समय पक्षियों के साथ ही बिताया करती है। एक दिन कोई व्यक्ति कुछ पंक्षी लेकर आया और मनोरमा के नौकर को देकर चला गया। वह उससे मिलना चाहती थी, दूसरे दिन वह फिर से पक्षी लेकर आया। मनोरमा उससे मिलने आ ही रही थी की वह इतनी देर मे चला गया।

लेखक ने यह स्पष्ट तो नहीं किया है, कि वह पक्षी देने वाला व्यक्ति कौन था लेकिन संभावनाओं के आधार पर यह लगता है कि वह चक्रधर था। यहीं पर इस उपन्यास की कहानी समाप्त हो जाती है।

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By Sunaina

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