शंखनाद कहानी का परिचय (Introduction to Shankhnaad story)
यह तो हम सभी जानते हैं, कि किसी व्यक्ति को समाज में सम्मान उसके व्यक्तित्व से ज़्यादा इस बात पर मिलता है कि वह कितना समृद्ध है। उसके पास कितनी धन दौलत है या उसके पास समाज में कितना दबदबा है। लेकिन यह स्थिति सिर्फ समाज में ही नहीं बल्कि परिवार में भी पैदा हो जाती है।
यदि कोई पुरूष विवाहित होने के बाद समृद्ध नहीं है या कोई नौकरी नहीं कर रहा है, परिवार का वह सदस्य भी उससे घृणा करने लगता है, जो उसके खर्चे नहीं उठा रहा है। परिवार में जैसा सम्मान या अपमान पुरूष का होता है, वैसा ही उसकी पत्नी और बच्चो का भी होता है।
हम बात कर रहे हैं, ऐसी ही एक कहानी की जिसका नाम है – शंखनाद। यह कहानी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई है। प्रेमचंद की कुछ कहानियों में हृदयपरिवर्तन देखने को मिलता है, यह कहानी भी उन्हीं कहानियों में से एक है, जिसमें नायक का कहानी के अंत में हृदयपरिवर्तन हो जाता है।
शंखनाद कहानी का सारांश (Summary of Shankhnaad Story)
शंखनाद कहानी के अनुसार भानु चौधरी गाँव के मुखिया है, लगभग गाँव के सारे मसले वे हल करते हैं। लेकिन समस्या सुलझाने की वह फीस भी लेते हैं। भानु चौधरी के तीन बेटे हैं, पहला बेटा बितान है, दूसरा बेटा शान चौधरी है और तीसरा बेटा गुमान है, जो रसिक, उद्दंड और आलसी है। अर्थात वह कौई काम नहीं करता है, जिस कारण उसकी भाबियाँ उसे दिन रात सुनाती रहती है। गुमान के व्यवहार का असर उसकी पत्नि पर भी होता है। घर के सारे मेहनत वाले काम वह करती है, लेकिन फिर भी जैठानियाँ उसे अपमानित करती रहती है।
गुमान उसकी पत्नी और बच्चो का खर्चा भानु चौधरी उठाते हैं, लेकिन फिर भी ईष्या के कारण उसकी भाबियाँ उसे कड़बी बातें सुनाती रहती है। गुमान कुछ काम करे इसके लिए भानु चौधरी ने उसके लिए एक कपड़े की दुकान खुलवा दी। तीन महीने में ही वह दुकान बन्द करनी पड़ गई, उसे खोलने में जो भी खर्चा लगा था। उसका गुमान की लपारवाही के कारण नुकसान हो गया।
पिता ने गुमान को इस पर कोई सज़ा नहीं दी परिणाम स्वरूप भाबियों को इतनी ईर्ष्या हुई कि बितान की पत्नी ने गुमान के सारे अच्छे कपड़े जला दिए। उसके बाद दोनों भाबियों ने घर का बँटवारा करने के लिए कह दिया।
मंगल के दिन मिठाई वाला मोहल्ले में मिठाई बेचने आया। मोहल्ले के बच्चों ने मिठाइयाँ खरीदी और खाई। शान की पत्नी ने अपने बेटों को मिठाई दिलाई परिणाम स्वरूप गुमान के बेटे धान ने भी मिठाई खाने की ज़िद की और अपनी माँ का अँचल पकड़कर खीचने लगा। घर के बाकी बच्चे धान को मिठाई दिखा-दिखा कर चिढ़ाने लगे। गुमान की पत्नी अपने बेटे को समझाने लगी और समझाते समझाते रोने लगी। जब बच्चा अपनी माँ की बात नहीं समझा तो गुस्से में माँ ने धान को थप्पड़ मार दिए। यह सारा दृश्य गुमान देख रहा था, बच्चे पर थप्पड़ पड़ते ही वह बहुत दुखी हो गया। परिणाम स्वरूप उसने अपनी पत्नी से कहा – “तुम्हारा दोषी मैं हूँ, मुझको जो दंड चाहो, दो। परमात्मा ने चाहा तो कल से लोग इस घर में मेरा और मेरे बाल-बच्चों का भी आदर करेंगे। तुमने आज मुझे सदा के लिए इस तरह जगा दिया, मानो मेरे कानों में शंखनाद कर मुझे कर्म-पथ में प्रवेश का उपदेश दिया हो”।
अर्थात अपने बच्चे पर एक समान्य मिठाई की वजह से पत्नी को हाथ उठाते देख उसे इतना मजबूर देखकर गुमान बहुत दुखी हो गया। उसने तय कर लिया की वह अब बेरोज़गार नहीं रहेगा, अपने और अपने बच्चे के लिए नौकरी करेगा।
नायक के हृदय परिवर्तन के साथ ही कहानी समाप्त हो जाती है।
By Sunaina
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