Study Material : आधे-अधूरे नाटक का सारांश व समीक्षा । Summary and Review of the Play Aadha-adhure

भूमिका

कौन ज्यादा मेहनत करता है, या किसका काम ज़्यादा कठिन या मूल्यवान है, इस बात पर अक्सर पति-पत्नि के बीच तर्क वितर्क होता रहता है। दोनों को अपना काम मुश्किल और सामने वाला का काम असान लगता है। पुरूष को लगता है, स्त्री का काम असान है, क्योंकि वह घर पर रहती है। स्त्री को लगता है, कि घर पर प्रतिदिन वह खट्ती रहती है। इससे तो अच्छा पुरूष का काम है। परिणाम स्वरूप दोनों अपनी तुलना अपने साथी के काम से करते रहते हैं। यह समाज के प्रत्येक पति-पत्नि के विषय में नहीं कहा जा रहा है, लेकिन जिसके लिए कहा जा रहा है वह अपने काम को कठिन और अपने साथी के काम को आसान समझते हैं।

वर्तमान में ऐसा देखा गया है कि पत्नी नौकरी भी करती है और घर आकर अपनी गृहस्थी का काम भी संभालती है। यदि किसी व्यक्ति की पत्नी नौकरी करती है, और वह नौकरी नहीं करता या नहीं करना चाहता है, तो क्या वह अपनी पत्नी की तरह घर और बच्चों को संभाल सकता है? इसकी एक झलक देखने को मिलती है मोहन राकेश के नाटक में जिसका नाम है आधे-अधूरे, इस नाटक में नायिका नौकरी करके कई सालों से अपने परिवार का खर्च चला रही है। नायक नौकरी नहीं करता है, और न ही किसी गृहणी की तरह घर ही संभाल पा रहा है। उसे ऐसा लगता है कि उसकी स्थिति घर में एक नौकर की तरह हो गई है।

आधे-आधूरे नाटक का संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction of Aadhe-Aadhoore Natak)

आधे-आधूरे नाटक मोहन राकेश द्वारा लिखा गया है। इस नाटक का प्रथम मंचन दिल्ली में ‘दिशान्तर’ द्वारा ओम शिवपुरी के निर्देशन में फरवरी, 1969 में हुआ था। जिसके कलाकार और किरदार इस प्रकार थे-

पात्र का नामकलाकारनाटक में पात्रों के नाम
काले सूट वाला आदमीओम शिवपुरी
स्त्रीसुधा शिवपुरीसावित्री
पुरूष-एकओम शिवपुरूमहेन्द्रनाथ
बड़ी लड़कीअनुराधा कपूरबिन्नी
छोटी लड़कीऋचा व्यासकिन्नी
लड़कादिनेश ठाकुरअशोक
पुरूष-दोओम शिवपुरीसिंघानिया
पुरूष-तीनओम शिवपुरीजगमोहन
पुरूष-चारओम शिवपुरीजुनेजा
आधे-अधूरे

आधे-अधूरे नाटक का सारांश (Summary of Aadhe-Aadhoore Drama)

नाटक की शुरूआत एक काले कोट वाले आदमी से होती है, जो नाटक की भूमिका अपने शब्दों में बनाता है।

नाटक की कथा की शुरूआत महेन्द्र और उसकी पत्नि सावित्री से होती है। महेन्द्र घर पर होता है, और सावित्री ऑफिस से घर आती है, आते ही देखती है कि सारा घर बिखरा पड़ा है, घर में कोई नज़र नहीं आ रहा है। उसकी छोटी बेटी किन्नी ने किताब फाड़ के फैला रखी है, अशोक ने मैगज़ीन से कुछ तस्वीरें काटी हैं, उसका कचरा भी वहीं पड़ा है। किसी ने चाय पी होगी लेकिन चाय का कप वहीं हॉल में पड़ा है, उसे उठा कर किचन में नहीं रखा है।

सावित्री अभी ऑफिस से आई है, और घर की यह हालत देखकर दुखी हो जाती है। सारी चीज़े अपनी जगह पर अपनी जगह पर रखती है, घर के फर्नीचर की झाड़-पोंछ करती है, जिससे पता चलता है कि बहुत दिनों से ठीक से सफाई नहीं हुई है।

इसी दौरान वह अपने पति महेन्द्र नाथ से बताती है कि आज शाम को सिंघानिया उसका बोस घर आ रहा है। यह बात सुनकर महेन्द्रनाथ को अच्छा नहीं लगता है। सावित्री कहती है, सावित्री का इसलिए सिंघानिया को घर बुलाती है, ताकि वह अशोक की नौकरी लगवा सकें। कई सालो से महेन्द्रनाथ बेरोज़गार है, जिसका ज़िम्मेदार सावित्री जुनेजा को मानती है। जुनेजा महेन्द्रनाथ का दोस्ता है, बातों से पता चलता है कि दोनों ने मिलकर कोई काम (बिजनेस) शुरू किया था। जिसका लाभ जुनेजा को मिला लेकिन महेन्द्रनाथ को नहीं मिला। परिणाम स्वरूप आज महेन्द्र की इस हालत का ज़िम्मेदार सावित्री जुनेजा को मानती है।

अशोक सावित्री का बेटा है, वह नौकरी करने लायक हो चुका है, लेकिन वह न ही नौकरी करना चाहता है, न ही उसने अपनी पढ़ाई पूरी की है। सावित्री की बड़ी बेटी बिन्नी ने घर से भागकर मनोज नाम के व्यक्ति से शादी कर ली है। लेकिन उसकी गृहस्थी में उदासीनता कायम रहती है। वह अक्सर अपने घर से परेशान होकर मायके आ जाती है। सावित्री और महेन्द्रनाथ एक-दूसरे से बात ही कर रहे थे कि बिन्नी अचानक मायके आ जाती है।

सावित्री और महेन्द्रनाथ को लगता है वह अपने पति से झगड़ा करके आई है। इसलिए वह बिन्नी से पूछना चाहते हैं, लेकिन बिन्नी कुछ भी साफ़-साफ़ नहीं बताती है। मनोज कहता है कि उनके रिश्ते में जो उदासीनता है, वह बिन्नी के मायके की ही छाया है। उसी छाया की तलाश करने बिन्नी अक्सर यहाँ आ जाती है।

सावित्री बिन्नी से बात ही कर रही होती है कि तभी किन्नी आ जाती है। जो सुविधाएँ किन्नी को चाहिए और नहीं मिल पा रही हैं, वह उसकी शिकायत अपनी माँ से करती है। कहती है, यदि उसकी इच्छा पूरी नहीं हुई तो वह स्कूल नहीं जाएगी। किन्नी को फटे जुराब पहनकर स्कूल जाना पड़ता है। स्कूल में कुछ खरीद कर खाने के लिए उसके पास रूपए नहीं होते हैं।

अशोक किन्नी से हमेशा गुस्सा रहता है, और वह अपनी माँ से उसकी हरकतों के लिए शिकायत करता है। किन्नी की आयु लगभग बारह-तेरह साल है, लेकिन वह यौन संबन्धों से संबन्धित जानकारी प्राप्त करने में रुचि लेने लगती है। जिसका विरोध अशोक करता है।

इसी दौरान किन्नी अशोक की प्रेमिका का ज़िक्र कर देती है। परिणाम स्वरूप किन्नी, अशोक और बिन्नी में बातचीत होने लगती है। तभी उनके पिता महेन्द्रनाथ बहुत गुस्सा हो जाता है, और इस घर में उसका क्या स्थान है, यह जानने का प्रयास करता है। सकारात्मक उत्तर न मिलने पर वह घर छोड़कर चला जाता है।

उसके जाने के बाद सावित्री कहती है, यह हर शुक्र-शनिचर अर्थात शुक्रवार या शनिवार को वह घर छोड़कर चले जाते हैं, बाद में वापस आ जाते हैं।

सावित्री अपने बच्चों को डाँट ही रही होती है, कि अचानक पुरूष दो यानी सिंघानियाँ की एंट्री होती है। उन्हें देखकर सावित्री अपने गुस्से वाले अभिव्यक्ति (Expression) बदल कर समान्य हो जाती है।

कुछ देर सिंघानिया और सावित्री एक-दूसरे से बात करते हैं, सावित्री बात-चीत के दौरान लगातार प्रयास करती है, कि सिंघानिया अशोक से प्रभावित हो जाए और उसके लिए कोई नौकरी लगवा दे। सिंघानिया बिन्नी के विषय में अधिक रूचि दिखाता है। अंत में जाने से पहले जब वह अशोक से अशोक के विचारों के बारे में प्रश्न करता है, तो अशोक ऐसा अभिनय करता है जैसे कोई कीड़ा उसके पतलून में घुस गया हो। पुरूष दो यानी सिंघानिया अशोक के व्यवहार से निराशा व्यक्त करके चला जाता है।

सिंघानिया के जाने के बाद सावित्री और अशोक की बहस हो जाती है, अशोक सावित्री की मेहनत और उसकी कोशिशों को अनावश्यक समझता है। उसे लगता है, उसके पिता की जो हालत है उसकी माँ के कारण है। उसे अपने पिता की स्थिति पर रहम आता है, लेकिन अपनी माँ को वह सकारात्मक रूप से नहीं देखता। अशोक और सावित्री के बीच तर्क-वितर्क होने के बाद जब सावित्री कहती है, वह यह सब अपने परिवार के लिए कर रही है। अब वह चाहती है कि उसका हाथ बटाने वाला कोई हो, घर का कोई व्यक्ति नौकरी करे और उसका सहयोग करे। अशोक इससे इंकार कर देता है, साथ ही अपनी माँ को उल्टा जवाब देकर कहता है- वह क्यों करती हैं यह सब, न करें। जिससे सावित्री मनोवैज्ञानिक रूप से आहत हो जाती है।

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उत्तरार्द्ध (The Latter)

नाटक के इस भाग की शुरूआत में भी घर अस्त-वयस्त होता है। चाय की खाली प्याली और उतरे हुए कपड़े इधर-उधर फैले पड़े हैं।

बिन्नी और अशोक अपास में बात करते हैं, बिन्नी सावित्री के बारे में बोलती है, मम्मी का मूड अच्छा नहीं है, रात से उन्होंने बात नहीं की है। अशोक कहता है, सुबह तो साड़ी ऐसे पहनकर गई हैं, जैसे किसी शादी में का न्यौता है। बिन्नी ने कहा वह तो कह गई हैं, साढ़े पाँच बजे आ जाएंगी।

अशोक एक डब्बा खोलने की कोशिश करता है, इसी दौरान वह बाहर चला जाता है। बाहर से वह किन्नी को लेकर आता है। बताता है कि अपनी सहेली सुरेखा से यौन संबन्धों के विषय में चर्चा कर रही थी। अशोक के दोष देने वह किन्नी बताती है, कि वह नहीं बल्कि सुरेखा उसे बता रही थी। अशोक को देखते ही भाग गई। इसी दौरान वह बिन्नी से स्पष्ट रूप से कह देती है कि अशोक की कोई महिला मित्र (प्रेमिका) जिसे अशोक ने किन्नी का समान गिफ्ट कर दिया। अशोक और किन्नी दोनों ही एक-दूसरे की बातें उजागर करने लगते हैं।   

कुछ ही देर में सावित्री ऑफिस से आ जाती है, और बताती है कि जगमोहन आ रहा है। बातों-बातों में वह बिन्नी से कहती है, शायद जब अगली बार बिन्नी अपने मायके आएगी तो वह यहाँ नहीं मिलेगी। बिन्नी बताती है, जुनेजा अंकल आने वाले हैं, परिमाण स्वरूप सावित्री जगमोहन के साथ जुनेजा के आने से पहले घर से चली जाना चाहती है।

कुछ ही देर में जगमोहन (पुरूष तीन) आता है, जगमोहन और सावित्री के बीच बातचीत होती है। बातों से पता चलता है कि वह दोनों बहुत पहले से मित्र थे। जगमोहन का ट्रांसफर हो गया था तो वह दूसरे शहर चला गया था। अब फिर से उसका ट्रांसफर हो गया है, तो वह इस शहर में वापस आ गया है। आज सावित्री ने उसे मिलने के लिए बुलाया है। बिन्नी चाय बनाने के लिए चली जाती है।

बिन्नी के आने से पहले ही सावित्री और जगमोहन घर से चले जाते हैं। उनके जाने के बाद जुनेजा (पुरूष चार) की एंट्री होती है। वह और बिन्नी आपस में बात करते हैं, जुनेजा जगमोहन की कोई गाड़ी देख ली थी, जिससे उसे पता चल गया कि जगमोहन यहाँ आया था।

जुनेजा महेन्द्रनाथ का पक्ष रखने के लिए यहाँ आया था। उसका कहना है कि महेन्द्रनाथ सावित्री से बहुत प्रेम करता है। जवाब में बिन्नी बताती है कि उसने इस घर में बहुत कुछ देखा है। महेन्द्रनाथ सिर्फ बेरोज़गार ही नहीं है, उसने अपनी पत्नी सावित्री पर कई बार हाथ भी उठाया है। उसके बाद भी आप (जुनेजा से) ऐसा कह रहे हैं।

जुनेजा ने कहा हाँ मैं यह सब भी जानता हूँ। महेन्द्रनाथ ने खुद ही मुझे यह सब बताया है। इसी बाचतीत के दौरान किन्नी कहीं बाहर से आती है और कहती है, सुरेखा की मम्मी ने उसे सावित्री और महेन्द्रनाथ के साथ अपने घर बुलाया है। उनका कहना है कि किन्नी सुरेखा को बिगाड़ रही है। सावित्री घर पर नहीं थी और बिन्नी ने साथ जाने से मना कर दिया।

कुछ देर बाद सावित्री घर लौट आती है, उसके आते ही किन्नी उसके साथ चलने की ज़िद करती है, परिणाम स्वरूप सावित्री उसे थप्पड़ मार देती है। उसे कमरे में जाने के लिए कहती है, जैसे ही वह कमरे में चली जाती है, सावित्री दरवाज़े की कुंडी लगा कर उसे कमरे में बन्द कर देती है।

जुनेजा और सावित्री में तर्क-वितर्क करते हुए बहस शुरू हो जाती है। जुनेजा सावित्री से कहता है, उसने महेन्द्रनाथ को बाँध रखा है। साथ ही वह कहता है, कि तुम उसे मुक्त क्यों नहीं कर देती हो?

जनेजा महेन्द्रनाथ का पक्ष लेते हुए सावित्री की अलोचना करता है। महेन्द्रनाथ और सावित्री के बीच रिश्ते अच्छें न होने का पूरा दोष वह सावित्री को देता है। वह सावित्री की नकारात्मक अलोचना करते हुए आज जगमोहन से हुई उसकी मुलाकात पर भी टिप्पणी करता है। अशोक की बातों का सावित्री पर इतना नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, कि वह अब कोई रास्ता निकाल लेना चाहती है अर्थात कोई फैसला कर लेना चाहती है। इसलिए आज कई सालों बाद उसने जगमोहन को मिलने बुलाया।

सावित्री और जगमोहन के बीच क्या बात हुई यह तो लेखक ने स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन जुनेजा के अनुमान के माध्यम से यह बताया है कि सावित्री ने उसे अपने दुख बताएँ और उसका सहारा चाहा। जगमोहन ने सावित्री से यह कहा कि काश वह यह फैसला कुछ साल पहले कर लेती तो जगमोहम उसका साथ दे पाता। अब वह इस फैसलें पर अमल करने की स्थिति में नहीं है, साथ ही अब उसकी नौकरी में उसका मन नहीं लग रहा है, परिणाम स्वरूप अब वह कभी भी नौकरी छोड़ सकता है। यह सारी बातों के बाद वह सावित्री को उसके घर के बाहर छोड़ जाता है।

सावित्री महेन्द्रनाथ की इस हालत का ज़िम्मेदार स्पष्ट रूप से आज जुनेजा को बताती है। इसी दौरान जुनेजा लगभग बीस-बाईस साल पुरानी बात याद दिलाते हुए सावित्री से कहता है, तुम कैसे अपनी दुख बता रही थी। जवाब में सावित्री कहती है, मैं तुम्हारी इज़्जत करती थी।

यह बात सुनने के बाद सावित्री बिन्नी को अलग भेजने लगती है, लेकिन जुनेजा उसे वहाँ से जाने नहीं देता। जुनेजा की इस बात से लगता है, जैसे सावित्री और जुनेजा कई साल पहले बहुत अच्छे दोस्त थे। जुनेजा महेन्द्रनाथ को अज़ाद करने के लिए कहता है। अंत में जुनेजा कहता है, कि तुम्हारी शादी जुनेजा, जगमोहन, या महेन्द्रनाथ किसी से भी होती तब भी तुम इसी तरह परेशान होती क्योंकि इनमें से किसी में दूसरे के गुण नहीं मिलते।

दोनों में बात चल रही होती है, तभी अशोक आता है, और छड़ी माँगता है, जो उस कमरे में रखी है। जहाँ किन्नी को सावित्री ने बन्द कर दिया है। अशोक के आने के बाद बिन्नी लगातार किन्नी को दरवाज़ा खोलने को कहती है, लेकिन किन्नी दरवाज़ा नहीं खोलती है।

महेन्द्रनाथ लड़खाड़ाते हुए अन्दर आता है, जैसे उसे चोट लग गई हो। हर बार की तरह इस बार भी महेन्द्रनाथ लौट आता है। यहीं पर नाटक समाप्त हो जाता है।

आधे-अधूरे नाटक की समीक्षा (Review of Aadhe-Aadhoore Drama)

इस नाटक में जुनेजा के माध्यम से महेन्द्रनाथ को पक्ष रखा गया है, अर्थात कोई नौकरी न करने व पत्नी पर हाथ उठाने के बाद भी जुनेजा द्वारा महेन्द्रनाथ को ही बेचारा बताया जा रहा है।

नाटक के अनुसार यह दर्शाया जा रहा है कि महेन्द्रनाथ की स्थिति एक नौकर की तरह है, जब एक महिला घर में रहती है, पूरे घर को सभालती है, तब उसकी स्थिति क्या होती है? अर्थात सारी ज़िम्मेदारी सावित्री उठा रही है, बाहर से नौकरी करके आती है। घर आकर देखती है, तो घर गन्दा पड़ा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि महैन्द्रनाथ घर के अन्दर की ज़िम्मेदारी भी नहीं उठाता है।

अशोक जिसने पढ़ाई पूरी नहीं की है, और अब नौकरी भी नहीं करना चाहता है।

सावित्री का जुनेजा, जगमोहन या किसी अन्य पुरूष के साथ अनैतिक संबन्ध नहीं होता है, लेकिन वह समय-समय पर विचार करती है। यदि वह उनके साथ होती तो उसका जीवन कैसा होता। लेखक ने सावित्री के माध्यम से यह स्पष्ट नहीं किया है। सावित्री और जुनेजा के संवाद में अंतिम में जुनेजा के संवाद से प्रत्यक्ष किया है, कि सावित्री अलग-अलग समय में अलग-अलग पुरूषो के साथ सुखी रहने की कल्पना करती है। जिसे हकीकत में नहीं बदल पाती है, अर्थात समाज में हर व्यक्ति आधा है, अधूरा है, कोई पूरा नहीं है।

लेखक ने इस नाटक में जुनेजा के संवाद के माध्यम से महेन्द्रनाथ की स्थिति तो उजागर की है। लेकिन सावित्री का पक्ष नहीं रखा है। वह बाहर नौकरी करती है, घर आकर घर भी सभालती है। उसका पति या बेटा अशोक कोई उसका सहारा नहीं बनना चाहता है। ऐसे में उसकी स्थिति कितनी दयनीय है, इसका उजागर नहीं किया गया है।

महेन्द्रनाथ का सहयोग न मिल पाने के कारण सावित्री अकेले पूर्ण रूप से ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाती जिसका पता किन्नी के व्यवहार से चलता है। समय से पहले छोटी आयु में ही वह यौन सम्बन्धों के विषय में जानने में रूचि लेने लगती है।

यह सच है कि कोई व्यक्ति पूरा नहीं हो सकता है, हर व्यक्ति अपने आप में अधूरा है। किसी व्यक्ति में जो बुनियादी गुण होना आवश्यक है, वह सावित्री के पति महेन्द्रनाथ और बेटे अशोक में नहीं है परिणाम स्वरूप अकेले पूरे घर की ज़िम्मेदारी उठाते-उठाते सावित्री भी कठोर हो गई है।


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