Study Material : Delhi University, IGNOU, DU, MHD, Munshi Premchand
कर्मभूमि उपन्यास का परिचय (Introduction to the Novel Karmabhoomi)
कर्मभूमि प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित राजनीतिक उपन्यास है। कर्मभूमि उपन्यास पहली बार १९३२ में प्रकाशित हुआ। वर्तमान में अनेक प्रकाशकों द्वारा कर्मभूमि के अनेक संस्करण निकाले जा चुके हैं। इस उपन्यास के माध्यम से विभिन्न राजनीतिक समस्याओं को कुछ परिवार व पात्र के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। ये परिवार यद्यपि अपनी पारिवारिक समस्याओं से जूझ रहे हैं साथ ही तत्कालीन राजनीतिक आन्दोलन में भाग ले रहे हैं।
कर्मभूमि उपन्यास का संक्षिप्त कथानक (Brief Plot of the Novel Karmabhoomi)
कर्मभूमि उपन्यास का कथानक काशी व उसके आस-पास के गाँवों से संबंधित है। इस उपन्यास में आन्दोलन होता है, आन्दोलन का उद्देश्य क्रान्ति है। किन्तु यह क्रान्ति गाँधी जी के सत्याग्रह से प्रभावित है। गाँधीजी का कहना था कि जेलों को इतना भर देना चाहिए कि उनमें जगह न रहे और इस प्रकार शांति और अहिंसा से अंग्रेज सरकार पराजित हो जायेगी। इस उपन्यास की मूल समस्या यही है। उपन्यास के सभी पात्र जेलों में ठूस दिए जाते हैं।
इस प्रकार प्रेमचन्द क्रान्ति के व्यापक पक्ष का चित्रण करते हुए तत्कालीन सभी राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याओं को कथानक से जोड़ देते हैं। निर्धनों के मकान की समस्या, अछूतोद्धार की समस्या, अछूतों के मन्दिर में प्रवेश की समस्या, भारतीय नारियों की मर्यादा और सतीत्व की रक्षा की समस्या, ब्रिटिश साम्राज्य के दमन चक्र से उत्पन्न समस्याएँ, भारतीय समाज में व्याप्त धार्मिक पाखण्ड की समस्या पुनर्जागरण और नवीन चेतना के समाज में संचरण की समस्या, राष्ट्र के लिए आन्दोलन करने वालों की पारिवारिक समस्याएँ आदि इस उपन्यास में बड़े यथार्थवादी तरीके से व्यक्त हुई हैं।
‘कर्मभूमि’ का नायक अमरकांत एक अस्थिर गांधीवादी के रूप में चित्रित किया गया है। अमरकांत तत्कालीन मध्यमवर्ग का प्रतिनिधि है, जिसकी मूल-प्रवृत्ति स्थिति के प्रति समझौतावादी है, उसकी राजनीतिक दृष्टि एवं चारित्रिक दृढ़ता अविश्वसनीय है। अमरकांत के घर में विलासिता की सारी वस्तुएँ हैं लेकिन वह साधारण जीवन जीने में विश्वास करता है। अमरकांत ने आधुनिक विचार के परिणाम स्वरूप उसके व उसके पिता के बीच मतभेद बना रहता है।
कर्मभूमि उपन्यास की संक्षिप्त समालोचना (Brief Criticism of the Novel Karmabhoomi)
प्रेमचन्द जी ने कर्मभूमि में समस्याओं का चित्रण सत्यानुभूति से प्रेरित होकर किया है, परिणाम स्वरूप प्रेमचन्द जी की रचना कौशल का पता चलता है। उपन्यास पढ़ने के दौरान तत्कालीन राष्ट्रीय सत्याग्रह आन्दोलन पाठक की आँखों के समक्ष सजीव हो जाता हैं। छात्रों तथा घटनाओं की बहुलता के बावजूद उपन्यास कहीं बोझिल या नीरस नहीं लगता है। प्रेमचन्द प्रत्येक पात्र और घटना की डोर अपने हाथ में रखते हैं, परिणाम स्वरूप उपन्यास में कहीं शिथिलता नहीं आती। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद से ओतप्रोत कर्मभूमि उपन्यास प्रेमचन्द की एक प्रौढ़ रचना है जो पूर्ण रूप से प्रभावशाली है।
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प्रेमचन्द जी का संक्षिप्त परिचय (Brief introduction of Premchand ji)
प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव है। प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को हुआ था। 8 अक्टूबर 1936 को उनका देहांत हो गया। प्रेमचंद हिन्दी व उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार व कहानीकार थे। प्रेमचंद जी ने कर्मभूमि, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, गोदान आदि कई उपन्यास व कहानियाँ लिखी हैं। अपने समय की सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि कई प्रमुख पत्रिकाओं में लिखा है। 1906 से 1936 तक लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य सामाजिक दस्तावेज है। जिनके मुख्य विषय अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह आदि हुआ करते थे। परिणाम स्वरूप यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि अपने साहित्य में समाज का दर्पण दिखाने में प्रेमचंद जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
By Sunaina