IGNOU MHD-12 भारतीय कहानी | Bhartiya Kahaani (Ak Avismaraneey yaatra)
असमिया साहित्य का संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction to Assamese Literature)
आधुनिक असमिया साहित्य के विकास में असमिया की सर्वप्रथम पत्रिका ‘अरूणोदय’ (1846-80) का विशेष स्थान है। असमिया की शुरूआती कहानियाँ इस पत्रिका में प्रकाशित होती थीं। असमिया के प्रारंभिक महत्वपूर्ण कहानीकारों में लक्ष्मीनाथ, साधुकथार, बेजबरूआ का नाम उल्लेखनीय है।
इंदिरा गोस्वामी का रचनाकाल 1960 के आस-पास शुरू होता है। उन्होंने अपने साहित्य में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अंतर्विरोधों को बड़ी शिद्दत से चित्रित किया है।
‘एक अविस्मरणीय कहानी’ अत्यंत मार्मिक कहानी है जिसमें सामाजिक पहलू तो हैं ही मर्मस्पर्शी मानवीय पहलुओं को भी वाणी दी गई है।
लेखिका डॉ. इंदिरा गोस्वामी का परिचय (Introduction to the Author Dr. Indira Goswami)
डॉ. इंदिरा गोस्वामी असमिया साहित्य की अत्यंत प्रसिद्ध लेखिका हैं। मास्टरपीस ऑफ इंडियन लिटरेचर खंड-1, नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया के अनुसार वह वर्तमान की असमिया महिला रचनाकारों में सर्वश्रेष्ठ हैं। इंदिरा गोस्वामी का जन्म 1942 में दक्षिण कामरूप के आमराँगा सत्र के सत्रधिकार परिवार में हुआ था। इंदिरा गोस्वामी का रचनाकाल 1960 के आस-पास शुरू हुआ है। सन् 1961 में उनकी कहानी सेइ अंधार पुहारारू (अंधेरा प्रकाश से अधिक उजला था) प्रकाशित हुई। इंदिरा गोस्वामी ने सैकड़ों कहानियाँ लिखी हैं। ब्राह्मण विधवा, गरीब किसान, असहाय प्राणी, दंगा पीड़ित आदि इंदिरा जी की कहानियों के जीवंत पात्र हैं।
इंदिरा गोस्वामी को “मामोरे धारा तरुवाल” उपन्यास हेतु 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कृत किया गया। उपन्यास लेखन से पूर्व इंदिरा गोस्वामी ने फील्ड वर्क किया था। यह उपन्यास सर्वाधिक चर्चित हुआ है, अनेक भषाओं में इसका अनुवाद भी हुआ है। इसी उपन्यास पर आधारित एक फीचर फिल्म बनी। कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुए।
लेखिका का लेखन असम की भौगोलिक सीमा तक ही सीमित नहीं है। ‘चेनाबोर स्रोत’ कश्मीर के श्रमिक जीवन पर आधारित है। ‘अहिरण’ मध्यप्रदेश पर आधारित है। लेखिका सर्वप्रथम सामाजिक कार्यकर्ता हैं उसके बाद वे रचनाकार हैं। कवि, कथाकार, निबंधकार अनुवादक, अध्यापक आदि के रूप में इंदिरा गोस्वामी भारतीय साहित्य में एक उल्लेखनीय नाम है।
कहानी का परिचय (Story Introduction)
इंदिरा गोस्वामी की कहानियों में आम जनजीवन को प्रभावित करने वाले हिंसा के कुछ हृदयविदारक पहलुओं के चित्रण मिलते हैं। इस कहानी से असमिया जन-जीवन का एक छोटी सी झलक देखने को मिलती है। वन-जंगल से घिरे असम प्रदेश में हाथी बड़ी मात्रा में मौजूद थे। हाथियों का झुंड धान के खेतों में आ जाता था और सभी किसान मिलकर उन्हें भगाने में जुट जाते थे।
आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा अभिशाप है। यह मानव जीवन में भयानक विस्फोट के रूप में प्रकट होकर न केवल आर्थिक और सामाजिक विकट समस्याएँ खड़ा करता है बल्कि संपूर्ण देश की व्यवस्था को नष्ट-भ्रष्ट कर देता है। परिणाम स्वरूप आम लोगों में अविश्वास, अनास्था, संदेह आदि का भाव पैदा कर देता है। इस अध्याय में आतंकवाद की झलक महसूस होती है।
कहानी का संक्षिप्त सारांश (Short Summary of the Story)
लेखिका अपने सहकर्मी साथी पोफेसर मीराजकर के साथ दिल्ली से काजीरंगा (असम) के लिए यात्रा शूरू करती है, जो अविस्मणीय यात्रा बन जाती है।
असम के छात्रों द्वारा आयोजित सम्मेलन में शामिल होने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग में काम करने वाले प्रो. मीराजकर और लेखिका इंदिरा गोस्वामी आए थे। शाम को वे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान से लौट रहे थे। वे दोनों शाम होने से पहले गुवाहाटी पहुँचना चाहते थे। प्रो. मीराजकर का कोई मित्र पंजाब के आतंकवादियों के हाथ मारा जा चुका था, परिणाम स्वरूप वे उस दहशत से मुक्त नहीं हो पाए थे। सफर के ही दौरान रास्ते में गाड़ी खराब हो जाती है। रोड़ के किनारे ही एक चाय की दुकान में लेखिका और प्रो. मीराजकर थोड़ी देर के लिए आराम करते हैं, चाय पीते हैं।
चाय की दुकान में एक वृद्ध व्यक्ति जो दुकान का मालिक है, और उसकी वृद्ध पत्नी है। उसकी पत्नी चाय बनाती है, चाय बनाते-बनाते ही अपने दुख भरे जीवन की सारी दास्तान लेखिका व प्रो. मीराजकर से बताने लगती है। वृद्ध अपनी पत्नी के द्वारा कही जा रही बातों का विरोध करते हुए उसे न कहने को कहता है। बातचीत के माध्यम से लेखिका को पता चलता है कि इस परिवार में कभी बहुत सुख था। शांति थी, अभाव का कोई नामोनिशान ही नहीं था। बाढ़ के कारण उनके खेत नदी में डूब गए। उनके दो पुत्र थे जिसमें से बड़े बेटे की मृत्यु हो चुकी थी। अब वृद्ध है, वृद्ध की पत्नी है। वृद्ध की एक बेटी भी है जिसका किसी भारतीय सैनिक से प्रेम हो गया था। परिणाम स्वरूप उस बेटी से पूरा परिवार नफरत करता है। छोटा बेटा किसी सशस्त्र संगठन में शामिल हो गया है।
जब लेखिका और प्रो. मीराजकर दुकान में बैठे चाय पी रहे थे, तभी वृद्ध का घायल बेटा झोपड़नुमा दुकान में आता है और अपनी बहन को देखकर अत्यंत क्रोधित हो जाता है परिणाम स्वरूप उसके पेट पर लगातार प्रहार करता है। प्रहार इतन ज्यादा था कि रक्त (भ्रूण का रक्त) बहने लगता है।
चाय के लिए दिए गए पैसे देखकर उसे उठा लेता है और खरीददारों से कुछ और पैसे माँगता है ताकि वह पोचर लोगों से एक अमरीकी कारबाइन खरीद सके। दोनों ग्राहक विस्मय-विमढ़ होकर एक दूसरे की ओर देखने लगे। इस दृश्य के बाद कहानी का अंत हो जाता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
कहानी के परिणाम स्वरूप कहा जा सकता है कि आतंकवाद की काली छाया अपना हाथ बढ़ाते ही देश की शांति, उसके अमन-चैन एवं उसकी सुरक्षा की स्थिति को क्षति पहुँचती है। इस कहानी में वृद्ध सज्जन का छोटे बेटे के हिंसा की राह पर चलने के पीछे उस परिवार की अभावग्रस्तता अधिक जिम्मेदार है। परिवार दाने-दाने को मोहताज है। कहानी के अनुसार यह स्पष्ट है कि यूँ ही कोई हथियार नहीं उठा लेता है। वृद्ध सज्जन को अपने बेटे के द्वारा किए जा रहे कार्य पसंद नहीं आते हैं। जब उनकी पत्नी बार-बार बेटे को खोजने जाने के लिए कहती है तो वृद्ध सज्जन उसकी बातों को अनसुना कर देते हैं।
लेखिका आतंकवाद को देश का सबसे बड़ा आंतरिक दुश्मन मानती हैं। अपने समय व समाज की गंभीर समस्या पर लेखिका ने चिंता जताई है। यह चिंता सिर्फ असम की नहीं है बल्कि हर उस स्थान की है जो आतंकवाद से ग्रसित है। जिस प्रकार वृद्ध के बेटे ने वृद्ध की बेटी पर प्रहार किया उससे स्पष्ट हो जाता है कि आतंकवाद में न कोई माँ होती है और न कोई बहन। आतंकवाद न केवल परायों का विनाश करता है, यह अपनों का भी संहार करता है।
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