Study Material : कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण | How to Dramatize a Story

Class 12 – अभिव्यक्ति और माध्यम | Expression and Media

साहित्य (Literature)

साहित्य की अलग-अलग विधाओं का अलग-अलग स्वरूप होता है। न केवल उनकी रचना प्रक्रिया अलग होती है ब्लकि उनके तत्व भी अलग होते हैं। साहित्यिक विधाओं का स्वरूप, समय और आवश्यकता के अनुसार बदलता रहता है। विधाओं में आदान-प्रदान की प्रक्रिया चलती रहती है।

कहानी और नाटक में समानता व असमानता (Similarities and Differences Between Story and Drama)

कहानी का संबंध लेखक और पाठक से जुड़ता है। नाटक लेखक, निर्देशक, पात्र, दर्शक, श्रोता एवं अन्य लोगों को एक-दूसरे से जोड़ता है।

नाटक एवं फ़िल्म को लोग कई दिनों तक याद रखते हैं। यही कारण है कि गोदान, देवदास, उसने कहा था, सद्गति आदि के नाट्य रूपांतरण कई बार हुए हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार से भी हुए हैं।

कहानी या तो लिखी जाती है, या पढ़ी जाती है। नाटक मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। नाटक को मंच पर अभिनेता अभिनय द्वारा प्रस्तुत करते हैं। मंच सज्जा होती है, संगीत होता है, प्रकाश व्यवस्था होती है।

कहानी और नाटक मे समानता यह होती है कि दोनों में ही कहानी होती है। चरम उत्कर्ष होता है। नाटक और कहानी की आत्मा के कुछ मूल तत्व एक ही हैं। यह अवश्य है कि कुछ मूल तत्व जैसे द्ववदं नाटक में जितान और जिस मात्रा में आवश्यक है उतना संभवतः कहानी में नहीं है।

कहानी का नाटक में रूपांतरण (Dramatization of Story)

कहानी को नाटक में रूपांतरित करने के लिए सबसे पहले कहानी की विस्तृत कथावस्तु को समय और स्थान के आधार पर विभाजित किया जाता है।

कथावस्तु उन घटनाओं का लेखा-जोखा है जो कहानी में घटती है।

प्रत्येक घटना किसी स्थान पर किसी समय में घटती है। ऐसा भी संभव है कि घटना स्थान स्थान तथा समयविहीन हो। कहानी की कथावस्तु (कथानक) को सामने रखकर एक-एक घटना को चुन-चुनकर निकाला जाता है और उसके आधार पर दृश्य बनता है।

ईदगाह कहानी के संदर्भ में देखें तो इसके आरंभ में लेखक ने मेले को लेकर बच्चों के उतावलेपन और कुतूहल का लंबा मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है इसके लिए पहले दृश्य में गाँव के उस हिस्से को फ़ोकस कर सकते हैं, जहाँ बच्चे भाग-दौड़ कर रहे हैं, तैयार हो रहे हैं, बार-बार अपने पैसे गिन रहे हैं और टोली के निकलने की राह देख रहे हैं। पहला दृश्य का अंतिम हिस्सा हामिद औऱ उसकी दादी अमीना पर केंद्रित हो सकता है और उनके संवाद दिए जा सकते हैं।

नाटक में ऐसे दृश्य नहीं होते जो अनावश्यक होते हैं। अनावश्यक दृश्य नाटक की गति को बाधित करते हैं, और नाटक को उबाऊ बनाते हैं।

प्रत्येक दृश्य एक बिंदु से प्रांरभ होता है। कथानुसार अपनी आवश्यकताएँ पूरी करता है और उसका ऐसा अंत होता है जो उसे अगले दृश्य से जोड़ता है। इसलिए दृश्य का पूरा विवरण तैयार किया जाना चाहिए।

ऐसा नहीं होना चाहिए कि दृश्य में कोई आवश्यक जानकारी छूट जाए या उसका क्रम बिगड़ जाए।

नाटक के प्रत्येक दृश्य में प्रारंभ, मध्य और अंत होता है।

दृश्य कई काम एक साथ करता है। एक ओर कथानक आगे बढ़ता है। दूसरी ओर पात्रो और परिवेश को संवादो के माध्यम से स्थापित करता है।  साथ ही दृश्य अगले दृश्य की भूमिका भी तैयार करता है।

नाटक में यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि जानकारियाँ, सूचनाएँ और घटनाएँ दोहराई न गई हों।

लेखक द्वारा परिवेश का विवरण या परिस्थितियों पर टिप्पणियां प्रायः दृश्यों में नहीं धळ पातीं। यह देखना आवश्यक है कि परिस्थिति, परिवेश, पात्र, कथानक से संबंधित विवरणात्मक टिप्पणियाँ किस प्रकार की हैं।

विवारणात्मक टिप्पणी यदि परिवेश के बारे में है तो उसे मंच सज्जा के अंतर्गत लिया जा सकता है। या संगीत के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है। विवरण यदि पात्रों के बारे में है तो उन्हें संवादो के माध्यम से निर्धारित दृश्यों में उचित स्थान पर दिया जा सकता है। कहानी में व्यक्त महत्वपूर्ण सूत्र नाटक के स्वरूप के अनुसार अपनी जगह निर्धारित कर लेते हैं।

यदि पर्याप्त संवाद नहीं हैं तो उन्हें लिखने का काम किया जाता है। सबसे पहली और महत्वपूर्ण शर्त यह है कि नए लिखे संवाद, कहानी के मूल संवादो के साथ मेल खाते हों।

संवाद छोटे, प्रभावशाली और बोलचाल की भाषा में हों। कहानी में छपे लंबे संवाद को पाठक पढ़ सकता है लेकिन मंच पर बोले गए लंबे संवाद से तारतम्य बवाएँ रख पाना कठिन होता है।

प्रभावशाली बनाने का अगला तरीका अभिनय है जो प्रायः निर्देशक का काम है, पर लेखक भी इस ओर संकेत कर सकता है। पात्र की भावभंगिमाओं और उसके तौरतरीकों (मैनरिज़्म) से प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है।

ध्वनि और प्रकाश भी चरित्र-चित्रण करने तथा संवेदनात्मक प्रभाव उत्पन्न करने में कारगर सिद्ध हो सकते हैं।

कहानी का नाट्य रूपांतरण करने से पहले यह जानकारी होना आवश्यक है कि वर्तमान रंगमंच में क्या संभावनाएँ हैं। यह तभी संभव है जब अच्छे नाटक देखे जाएँ। परिणाम स्वरूप नाट्य रूपांतरण का पहला पाठ यही हो सकता है कि अच्छी नाट्य प्रस्तुतियाँ देखी जाएँ।

By Sunaina

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