IGNOU MHD- 3 कृष्णा सोबती की कहानी सिक्का बदल गया
सिक्का बदल गया कहानी का परिचय (Introduction to the Sikka Badal Gaya story)
परिवार के मुखिया पर घर की ज़िम्मेदारी होती है, परिणाम स्वरूप परिवार से जुड़े अधिकतर निर्णय मुखिया ही लेता है। लेकिन कभी कभी मुखिया बहुत समझदार होने के बाद भी कुछ ऐसा निर्णय ले लेता है, जिससे परिवार को अत्यधिक नुकसान उठाना पड़ता है।
उसी प्रकार देश का वह नेता जो लीडर की भूमिका निभाता है, वह भी कभी-कभी कुछ ऐसे फैसले ले लेता है, जिसकी देश को भारी कीमत चुकानी पड़ती है। हमारे देश के नेताओं ने भी 1947 में कुछ ऐसे निर्णय लिए थे, जिसकी कीमत देश की जनता को चुकानी पड़ी थी। बहुसंख्यक लोगों को अपना घर रातो रात छोड़ना पड़ा था। जो घर कल तक उनकी पहचान थी। रातो रात उसी घर में वह मेहमान हो गए।
विभाजन करने वालों ने विभाजन तो कर दिया लेकिन इसकी पूरी कीमत आम जनता ने चुकाई। सिर्फ घर और देश छोड़ना पड़ता तो भी बात समझ आती लेकिन बहुसंख्यक लोगों ने कई साल शरणार्थी बन कर गुज़ारे।
दंगे की आग में अनेको लोगों ने अपनी जान गवाई। महिलाएँ जिनके लिए सब कुछ उनका परिवार और सम्मान है, बँटवारे के दंगो में उन्हें वह भी खोना पड़ा।
आज हम बात कर रहे हैं ऐसी ही एक कहानी की जो विभाजन का प्रतिबिंब दिखाती है। कहानी का नाम है “सिक्का बदल गया” यह कहानी कृष्णा सोबती जी ने 1948 में लिखी थी। वर्तमान में यह कहानी इग्नु के पाठ्यक्रम MHD-3 में लगाई गई है।
सिक्का बदल गया कहानी के पात्र
शाहनी – ज़मींदार शाहजी की पत्नी है। विभाजन के कारण जिन्हें विस्थापित होना पड़ता है। अपनी सारी धन दौलत छोड़कर कैंप में रहने चली जाती है।
शेरा – हसैना का पति और शाहनी का कामगार है, अपनी माँ के मरने के बाद शाहनी के यहाँ पला-बडा है। सांप्रदायिक भावना से भरकर शाहनी को मारने का विचार करता है, लेकिन मार नहीं पाता है।
हसैना – शेरा की पत्नी
शाहजी – शाहनी का पति, ज़मींदार, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।
फिरोज़ – शाहनी को मारने के लिए शेरा को भड़काने वाला व्यक्ति है।
जैना – शेरा की माँ (जो मर गई थी)
नवाब बीबी, बेगू पटवारी, जौलदार, दाऊद खाँ इंस्पेक्टर, इस्माइल, रसूली।
सिक्का बदल गया कहानी का सारांश (Sikka Badal Gaya Summary)
सिक्का बदल गया यह एक मार्मिक कहानी है, जिसमें 1947 देश-विभाजन की मानवीय पीड़ा का गहराई से अंकर हुआ है।
आविभाजित कश्मीर के निकट चनाब नदी के किनारे बसे गाँव में एक बड़ी हवेली में 65-70 वर्ष आयु की शाहनी अकेली रहती हैं। उनके पति शाहजी का देहांत हो चुका है, और उनका पढ़ा-लिखा बेटा बाहर रहता है। दूर-दूर तक शाहनी के खेत फैले हैं, परिणाम स्वरूप वह जमीदारनी है।
1947 के विभाजन के समय लूटपाट, आगज़नी, हत्याएँ हुईं परिणाम सवरूप शाहनी को भी अपनी धरती छोड़कर शारणार्थी बनने के लिए जाना पड़ता है।
शाहनी शेरे और हुसैना को बुलाती है। शेरे की माँ के मरने के बाद शाहनी ने उसे बेटे की तरह पाल पोस कर बड़ा किया है। लेकिन इन दिनों शेरा तीस चालीस हत्याएँ कर चुका है और दंगाइयों में वह भी शामिल है। शाहनी की हवेली की दौलत पर उसकी भी नज़र है। शाहनी को पता है कि रात में कुल्लूवाल (पड़ोसी गाँव) के लोग आए थे। जों दंगा करने की योजना बना रहे थे।
शाहनी शेरे से कहती है कि – आज शाह जी होते तो कुछ बीच बचाव करते” शेरा ऐसा नहीं सोचता, उसे लगता है- आज शाह जी क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकता। यह होके रहेगा- क्यों न हो? हमारे ही भाई-बहनों से सूद लिया है। प्रतिहिंसा की आग शेरे की आँखों में उतर आई।
शेरा शाहनी से दुश्मनी नहीं जता पाता है, क्योंकि शाहनी ने उसे बेटे की तरह पाला है। वह शाहनी को होने वाली हिंसा से सावधान करना चाहता है। लेकिन कर नहीं पाता है। जलालपुर गाँव में आग लगने वाली थी, उसे इसकी पहले से जानकारी थी। शाहनी के लगभग सारे रिश्तेदार वहीं रहते थे।
शाहनी ने आसामियों को रिश्तेदारों से कम नहीं समझा। उन्हें अपना ही मानती रही है। शाहनी को पहले से दंगाइयों की योजना की जानकारी थी, उसकी हवेली को लूट लेने की योजना बनाई जा रही है ये भी उसे पता था। लेकिन वह जान कर भी अंजान बनी रहती है। उसने कभी किसी से बैर नहीं किया, परिणाम स्वरूप आज जाते जाते भी किसी से बैर नहीं करना चाहती है।
ट्रक आ गया, परिणाम स्वरूप थानेदार दाऊद खाँ शाहनी को लेने आया है। शाहनी ने उसकी मंगेतर को सोने के कनफूल मुँह दिखाई में दिए थे। मसीत के लिए भी तीन सौ रूपए चंदा दिया था। थानेदार शाहनी को कुछ सोना चाँदी या रूपया साथ लेने के लिए कहता है, लेकिन शाहनी मना कर देती है।
शेरा कहता है कि देर हो रही है। यह सुनकर शाहनी आहत हो जाती है – “देर – मेरे घर में मुझे देर” कहकर रोने लगती है। शाहनी के निकलते ही वहाँ की बड़ी-बुढ़ियाँ उससे मिलने आती हैं, और उसे जाता देख रोने भी लगती हैं। सोना-चाँजी नगदी, दौलत सब हवेली में ही रहेगी, वैसे तो शेरा को शाहनी की दौलत का लालच आ जाता है, लेकिन उसे जाता देख वह भी भावुक हो जाता है।
दाऊद खाँ कहता है “शाहनी, मन में मैल न लाना। कुछ कर सकते तो उठा न रखते। वक्त ही ऐसा है। राज पलट गया है, सिक्का बदल गया है…”
कैंप में पहुँच शाहनी बहुत आहत होती है। वह सोचती है – राज पलट गया, सिक्का क्या बदलेगा वह तो मैं वहीं छोड़ आई हूँ। शाहनी की आँखें गिली हो गईं। आस-पास के हरे-भरे खेतों में दंगे होते रहते थे। जिसे लेखिका ने कहा है “हरे-भरे खेतों में रात खून बरसा रही है, शायद राज पलट गया है। सिक्का बदल गया है”।
यूजीसी (नेट-जेआरएफ) : हिंदी साहित्य की किताब खरीदने के लिए क्लिक करें।
सिक्का बदल गया कहानी की विशेषता
भारत-पाक विभाजन के कारण होने वाले विस्थापन के दर्द की कहानी है। यह कहानी अविभाजित कश्मीर में चेनाव के तट पर स्थित जबलपुर की है। देश-विभाजन की पृष्ठभूमि पर आधारित है, यह कहानी। इस कहानी में विभाजन के कारण हुए मानसिक परिवर्तन का चित्रण है। इस कहानी में क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग किया गया है।
By Sunaina
- Study Material : संस्कृति के चार अध्याय का सारांश | Summary of Sanskrti Ke Chaar Adhyaay
- Study Material : दुनिया का सबसे अनमोल रतन का सरल सारांश | A Simple Summary of the Duniya Ka Sabase Anamol Ratan
- Study Material : आकाशदीप कहानी का सारांश | Summary of the story Akashdeep
- Study Material : लाल पान की बेगम कहानी का सारांश | Lal Paan Ki Begum Story Summary
- Study Material : अंधेर नगरी नाटक का सारांश | Summary of Andher Nagri Drama