IGNOU MHD- 3 अज्ञेय की लिखी कहानी रोज़ या गैंग्रीन | Story written by Agyeya Rose or Gangrene
रोज़ कहानी का परिचय (Introduction to Rose Story)
अक्सर हमने कहते सुना है, जीवन में उतार-चढ़ाव लगा ही रहता है। सुख-दुख का आना जाना समान्य बात है, सुख दुख के कारण ही व्यक्ति के मनोभावों में परिवर्तन आता है। वह अपनी भवनाओं को जी पाता है, साथ ही प्रकट कर पाता है। इसके लिए आवश्यक है, जीवन का कोई न कोई उद्देश्य हो। यदि ऐसा नहीं होता तो व्यक्ति का जीवन तलाब के रूके हुए पानी की तरह हो जाता है। जो धीरे-धीरे उपयोग के लायक नहीं रहता है।
यदि व्यक्ति रोज़ एक ही प्रकार का जीवन व्यतीत करे तो वह भवाना हीन हो जाता है। एक प्रकार से मशीन की तरह हो जाता है। ऐसी ही एक कहानी की हम बात कर रहे हैं। कहानी का नाम है, रोज़। इस कहानी का नाम गैंग्रीन भी है। गैंग्रीन एक ऐसी बीमारी ही जिसके हो जाने के बाद व्यक्ति का हाथ या पैर काटना ही पड़ता है। इस कहानी की स्थिति भी इस बीमारी की तरह है, फर्क इतना है इसमें नायिका के हाथ-पैर के स्थान पर भवनाएँ कट गई हैं। यह कहानी अज्ञेय द्वारा लिखी गई है।
रोज़ कहानी का सारांश (Rose Story Summary)
यह कहानी मैं शैली में लिखी गई है। कहानी पढ़ने से ऐसा लगता है कि कहानीकार अपने जीवन की कोई घटना बता रहा है, (समभवतः ऐसा हो) लेकिन इस प्रकार की शैली में भी कहानी लिखी जाती है परिणाम स्वरूप “मैं” भी कहानी का एक पात्र ही है।
कहानी की नायिका मालती है, मालती और मैं पात्र बचपन से साथ में पढ़े-लिखे थे। कहानी के अनुसार मालती मैं पात्र की दूर की बहन लगती है, लेकिन मालती और मैं पात्र में मित्रता पूर्ण व्यवहार था। मैं पात्र ने मालती को कई सालो से नहीं देखा था, परिणाम स्वरूप अब वह मालती से मिलने पहाड़ी पर बसे उसके गाँव आता है।
जब मैं पात्र मालती के घर आता है, तो उस घर में एक छाया महसूस करता है। यह छाया उदासीनता की है। उसके आने से मालती के मुख पर जैसी प्रसन्ता की अपेक्षा थी, वैसा कुछ नहीं हुआ। मालती का एक बेटा है, जिसका टिटी नाम है। मालती के पति डॉक्टर हैं, सुबह डिस्पेंसरी में जाते हैं, दोपहर तक लौट आते हैं। शाम को फिर से एक बार दो घंटे के लिए चले जाते हैं। यह कहानी सुबह से शाम तक की घटनाओं में कहानी पूरी हो जाती है।
मैं पात्र की न तो मालती ने ठीक से बात की न ही महेश्वर ने। इसमें दोष मालती का भी नहीं है, महेश्वर के व्यवहार का असर मालती पर ऐसा पड़ा है कि मालती भावनाहीन हो गई है। अब अपने सुख-दुख को ठीक से व्यक्त भी नहीं कर पा रही है। मालती और उसका पति साथ रहते हैं, समाजिक रूप से उनके मध्य एक रिश्ता भी है, लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से दोनों एक-दूसरे से बहुत दूर हैं।
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मालती अपने पति के खाने के बाद अपने पति और मैं पात्र से दूर बैठकर खाना खाती है। पानी न होने के कारण उसे बर्तन माजने के लिए रात का इंतज़ार करना पड़ता है। रात को वह रात 11 बजे तक काम करती रहती है।
अचानक मालती कागज़ के एक टुकड़े को पढ़ने लगती है, जिसे देखकर मैं पात्र बचपन की बात याद करता है, जब मालती के पिता ने उसे एक किताब पढ़ने के लिए दी थी। वह किताब पढ़ने के स्थान पर मालती ने थोड़ी-थोड़ी करके फाड़ दी थी। पिता से कहा था वह पढ़ना नहीं चाहती है। वर्तमान में स्थिति यह है कि उसके घर में एक किताब नहीं है, जिसे वह पढ़ सके। कागज़ के एक टुकड़े में उम्मीद तलाश करने का असफल प्रयास करती है।
इसी दौरान मालती का बेटा टिटी खाट से गिर जाता है, जिसके गिरने पर भी मालती भवनाहीन दिखाई पड़ती है, वह कहती है यह रोज़ ही गिरता रहता है।
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घटनाओं के घटित होते-होते ही रात हो जाती है, और कहानी समाप्त हो जाती है। मालती के घर में फैली उदासीनता की छाया से मालती बच नहीं पाती है। लेखक इस छाया को शाप कहकर संबोधित करते हैं। एक दिन में ही यह छाया मैं पात्र पर भी पड़ जाती है, जिस अज़ाद ख्याल मालती को वह जानता था, आज वाली मालती वह नहीं है।
By Sunaina
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