IGNOU MHD- 3 ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा लिखित कहानी यह अंत नहीं
यह अंत नहीं कहानी का परिचय (Introduction)
यह अंत नहीं कहानी ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा लिखी गई है। यह कहानी डॉ. कुसुम वियोगी द्वारा संपादित कहानी संग्रह ‘समकालीन दलित कहानियाँ’ में संकलित है।
यह कहानी दलित महिला पर आधारित है, एक दलित लड़की के साथ स्वर्ण पुरूष द्वारा छेड़छाड की जाती है, जिसक लिए दलित लड़की का भाई किसन संघर्ष करता है, लेकिन उसे पूर्ण न्याय नहीं मिलता। पहले उसे पुलिस द्वारा मारा-पिटा जाता है, उसके बाद पंचायत में दोषी को बिना कोई सज़ा दिए छोड़ दिया जाता है।
यह अंत नहीं कहानी का सारांश (Summary of Yah Ant Nahin)
बिरमा एक मजदूर भूमिहीन किसान की बेटी है, उसके माता-पिता कठोर परिश्रम करके जीवन व्यतीत करते हैं। किसन बिरमा का भाई है, जिसे उसके पिता मंगलू ने शहर पढ़ने के लिए भेजा है। किसन और उसके मित्र आपस में आत्मविश्वास और सम्मान के विषय पर अकसर तर्क-वितर्क करते रहते जिसे सुनकर बिरमा को लगता वह झगड़ा कर रहे हैं, जब किसन ने कहा हम झगड़ा नहीं कर रहे हैं, तो बिरमा को पछतावा होता की अगर उसके पिता ने उसे भी पढ़ाया होता तो वह भी अपने भाई की तरह तर्क वितर्क कर सकती। लेकिन धीरे-धीरे उसे उनकी बाते समझ आने लगी।
तेजभान के खेत में कटाई लगी हुई थी, धान की कटाई के लिए अपने माता-पिता के साथ बिरमा भी जाती है, उस दिन मंगलू सरबती और बिरमा तीनों को धान का एक-एक गट्ठर मिला था, जिसे लेकर मंगलू ने बिरमा को अकेले ही घर भेज दिया। बिरमा सुनसान रास्ते में अकेले जा रही थी परिणाम स्वरूप उसे डर लग रहा था। बगीचे में सचिन्दर दिखाई दिया जिसकी अनैतिक भावी कृत की नज़रे बिरमा ने भाप ली, परिणाम स्वरूप वह और तेज चलने लगी। कुछ ही देर में सचीन्दर ने बिरमा का रास्ता रोक दिया। सच्चीन्दर ने जैसे ही बिरमा को अनैतिक रूप से छुआ, बिरमा ने धान का गट्ठर सचीन्दर के ऊपर फैंक दिया। गट्ठर गिरते ही सचीन्दर गिर गया, वह उठता इससे पहले ही बिरमा ने उसके ऊपर दूसरा वार कर दिया, परिणाम स्वरूप वह भाग कर खेतो में छुप गया।
घर जाकर बिरमा चुपचाप रही लेकिन जैसे ही अपनी माँ को देखा रोते हुए सारी बात माँ से कह दी। माँ ने यह बात जब मंगलू को बताई तो मंगलू ने दुखी तो हुआ, लेकिन इज़्जत की परवाह करते हुए बिरमा और उसकी माँ को चुप रहने की हिदायत देते हुए कहा यह बात फिर किसी को न बताई जाए।
बिरमा ने यह बात कुछ दिन में किसन से बात दी, किसन ने न्याय प्राप्त करने की उम्मीद से अपने दोस्तों के साथ पुलिस स्टेशन गया। वहाँ पुलिस वाले ने रिपोट लिखने से मना कर दिया। किसन और उसके दोस्तों को मार के भगा दिया।
किसन ने अपनी बस्ती के बुजुर्गों और नौजवानों को बुलाया और उन्हें यह सारी बात बताते हुए, संघर्ष करने के लिए कहा लेकिन किसी ने उसका साथ नहीं दिया। बस्ती वालों ने बिरमा को दोषी ठहराते हुए कहा यह बात छुपाने की है, इस तरह लोगों में बतानी ही नहीं चाहिए थी। साथ ही किसन को कहा चुप रहने में ही भला है, पाणी में रहके मगरमच्छ से बैर लेणा ठीक ना है।
किसन ने बिरमा की ओर से पंचायत में शिकायत करने का फैसला किया। परिणाम स्वरूप शिकायत पत्र तैयार करके बिरमा से अंगूठा लगवाया गया और किसन अर्ज़ी प्रधान को देकर आ गया। अर्ज़ी देखते ही बिसन सिंह प्रधान तेजभान सिंह के पास गया। जहाँ तेजभान ने एहसान जताते हुए कहा तुझे प्रधान इसलिए बनाया था? तेजभान ने कहा दरोगा से लेकर एस.पी. तक सभी अपणी जात के हैं, एक-एक को अंदर करा दूँगा।
प्रधान के जाने के बाद तेजभान ने अपने बेटे सचिन्दर को डांटा और कहा कुछ करना ही था तो खेत में घसीट लेता खुद ही किसी को मुँह दिखाने के लायक नहीं बचती। उसके बाद तेजभान ने मंगलू को चौपाल पर बुलाया और उसे धमकी दी, साथ ही उसे कहा कुछ हो जाएगा तो जाएगा तो हमे दोष मत देना आगे तेरी मर्ज़ी।
घर आते ही मंगलू ने अपना गुस्सा किसन पर उतारा और उसे डंडे से पीटने लगा। तब बिरमा ने अपने पिता के सामने किसन का पक्ष लेते हुए कहा उसने कुछ गलत नहीं किया है। बिरमा रोने लगी बिरमा को रोते देख मंगलू भी रोने लगा और कहा मैं क्या करूँ बेटी, वे ज़ालिम लोग हैं।
फैसले का दिन आ गया और पंचायत बुलाई गई। पंचायत ने सचिन्दर को पाँच रूपए का जुर्माना लगाया था, अर्थात उसे बिना कोई सज़ा दिए छोड़ दिया गया था। किसन ने विरोध करने का प्रयास किया, लेकिन उसे पंचायत से ही बाहर निकाल दिया गया। बिरमा को जब यह पता चला तो वह बहुत दुखी हुई, लेकिन उसके अंदर साहस की कमी नहीं थी। बिरमा के घर मातम सा छा गया।
बिरमा ने किसन और उसके मित्र मंडली से कहा तुम सब ने मेरे अन्दर विश्वास जगाया है, इसे मरने मत देना। बिरमा के माता-पिता भी उनके साथ आकर खड़े हो गए।
यह अंत नहीं कहानी की समीक्षा (Story Review)
ऐसा देखा जाता है, जो किसी को जन्म से बिना किसी मेहनत के मिल जाता है, वही किसी अन्य व्यक्ति को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है या फिर अभाव से समझौता करके जीवन काट देना पड़ता है।
कहानी के अनुसार स्वर्ण लोगों को जो सम्मान और अधिकार जन्म से बिना कोई संघर्ष किए प्राप्त हो जाता है, वह सम्मान प्राप्त करने के लिए दलितों को संघर्ष करना पड़ता है, उसके बाद भी उन्हें सम्मान या समानता का अधिकार प्राप्त नहीं हो पाता।
जो अनैतिक कार्य करने का प्रयास सच्चिन्दर द्वारा किया गया या स्वर्णों द्वारा कर ही दिया जाता है यदि ऐसा ही कार्य किसी दलित के द्वारा किया जाता तो तेजभाव या सच्चिन्दर न्याय के लिए पंचायत या पुलिस स्टेशन का दरवाज़ा भी नहीं खटखटाते वह खुद ही गुनहगार को सज़ा दे देते।
बिरमा को सरकारी स्तर पर भी न्याय प्राप्त नहीं हुआ। सम्मान प्राप्त नहीं हुआ। यह असमानता के परिणाम स्वरूप हुआ। एक ही गुनाह के लिए जाति के अधार पर सज़ा अलग-अलग हो गई।
कल्पना के अधार पर जिस गुनाह पर सच्चिन्दर को छोड दिया गया, समभव है उसी गुनाह के लिए दलित को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता। बिरमा के साथ अनैतिक होने पर बिरमा की पूरी बिरादरी ने बिरमा का साथ देने से इंकार कर दिया। कहानी के अनुसार यदि ऐसा कृत किसी स्वर्ण महिला के साथ होता तो पूरा स्वर्ण समाज घर से निकल पड़ता।
परिणाम स्वरूप कहानी के अधार पर कौन गुनहगार है, कौन पीड़ित है यह भी जाति के आधार पर तय किया गया।
by Sunaina
- IGNOU Study Material : कर्मनाशा की हार कहानी का सारांश व समीक्षा | Karmanasha Ki Haar Story Summary and Review
- Study Material : कर्मभूमि उपन्यास का संक्षिप्त सारांश | Brief summary of the novel Karmabhoomi
- IGNOU Study Material : पिता कहानी का सारांश व समीक्षा | Pita story summary and review
- IGNOU Study Material : यह अंत नहीं कहानी का सारांश | Summary of Yah Ant Nahin Story
- IGNOU Study Material : चीफ की दावत कहानी का सारांश | Summary of Cheeph Kee Daavat Story