प्रेमचंद लिखित उपन्यास कर्मभूमि का सारांश : अमरकान्त की बुढ़िया से मुलाकात | Synopsis of Premchand’s Novel Karmabhoomi

कर्मभूमि अध्याय 7 का संक्षिप्त स्वरूप

इस अध्याय में अमरकान्त की मुलाकात काले खाँ नाम के व्यक्ति से होती है, जिससे मिलकर उसे अपने पिता पर क्रोध आता है। काले खाँ के बाद ही उसकी मुलाकात एक बुढ़िया से होती है, जिससे मिलकर उसे अपने पिता पर गर्व महसूस होता है।

कर्मभूमि अध्याय – 7 का सारांश (अमरकान्त की बुढ़िया से मुलाकात)

अमरकान्त ने आम जलसों में जाना छोड़ दिया। कभी-कभी दुकान पर भी बैठने लगा था। छुट्टियों के दिन में वह सदैव दुकान पर बैठता था परिणाम स्वरूप उसे यह एहसास हुआ कि मानवी प्रकृति (समाज से जुडे ज्ञान) का अत्यधिक ज्ञान दुकान पर बैठकर प्राप्त किया जा सकता है।

एक दिन दुकान पर काले खाँ नाम का एक व्यक्ति आया, एक जोड़े सोने के कड़े निकाले और उसे लगभग दस तोले का बताया, जिसकी कीमत वह ढाई सौ रूपए चाहता था। अमरकान्त को लगा यह सोने के कड़े चोरी के हैं, जिस कारण अमरकान्त ने काले खाँ से प्रश्न भी किया, लेकिन काले खाँ ने स्पष्ट उत्तर नहीं दिया की यह कडे कहाँ से लाया है। परिणाम स्वरूप उसने काले खाँ को दुत्कारना चाहा, लेकिन उसने ऐसा किया नहीं और पुलिस को इत्तला करने की धमकी देते हुए काले खाँ को वहाँ से जाने के लिए कहा। यह सुनकर काले खाँ डेढ सौ और अंत में तीस रूपए में कडे बेचने को तैयार हो जाता है। काले खाँ की बात न मानते हुए अमरकान्त ने उसे धक्का दे दिया परिणाम स्वरूप काले खाँ दुकान से चला गया।

अमरकान्त को बहुत गुस्सा आ रहा था, वह अपने पिता से कह देना चाहता था, कि उससे यह व्यपार नहीं होगा।

थोड़ी ही देर में एक बुढिया आई और अमरकान्त के पिता के बारे में पूछने लगी। अमरकान्त द्वारा यह कहने पर की पिता नहीं है, बुढिया ने कहा – वह बाद में आयेगी, लेकिन अमरकान्त ने उसे अपनी दुकान में बैठा लिया और उसके परिवार के बारे में पूछा परिणाम स्वरूप यह पता चला कि बुढिया के परिवार में सब हैं, लेकिन कोई उसका सहारा नहीं है। बातचीत के दौरान पता चला की बुढिया का पति लाला समरकान्त के यहाँ काम करता था, उसके पति की मृत्यु को बीस साल हो गए हैं। बीस साल से लाला समरकान्त ही बुढिया का खर्चा उठाते हैं, हर महीने पाँच रूपए गुज़ारे के लिए देते हैं।

काले खाँ की चोरी के कड़े वाली बात से जहाँ अमरकान्त अपने पिता पर क्रोधित हो रहा था, अब बुढिया से मिलकर गर्व से पुलकित हो गया। अमरकान्त ने पाँच रूपए निकाल का बुढिया को दे दिए, और देखा की बड़ी मुश्किल से बुढिया जा रही है, तो वह इक्का लाया और उस पर बैठाकर उसे उसके घर पहुँचाने चला गया। 

बुढिया अपने घर पहुँचकर अमरकान्त से आग्रह करने लगी, कहा – “इतनी दूर से आए हो तो पल भर मेरे घर भी बैठ लो” बुढिया ने सकीना (बालिका) कहकर पुकारा, सकीना अन्दर से मिट्टी के तेल की कुप्पी लिए बाहर आई। सकीना ने एक टूटी खाट आँगन में डाल दी और एक सड़ी-सी चादर उस पर बिछाते हुए बोली – “इस खटोले पर क्या बिठाओगी मुझे शर्म आ रही है” बुढिया ने उत्तर दिया उनसे हमारा हाल छिपा नहीं है। अमरकान्त खाट पर बैठते हए बोल यह घार बहुत छोटा (घर की स्थिति बहुत खराब थी) है, बुढिया ने कहा अब यह घर ऐसा लगता है, पहले इसी घर में सब रहते थे, और सबके शादी ब्याह इसी घर में हुए हैं। अब बुढिया के साथ सिर्फ उसकी पोती रहती है, जिसकी बुढिया जल्द से जल्द शादी कर देना चाहती है। सकीना के माता-पिता का देहांत हो गया है। बुढिया ने सकीना की शादी की बात अमरकान्त से कहते हुए निवेदन किया। कहा तुम्हारे जानने वाले हों तो बात चलाओ, अमरकान्त ने उत्तर दिया, मेरे मुसलमान दोस्त ज़्यादा नहीं है, दो-एक ही हैं। बुढिया को पता चला कि वह अमीर हैं, तो उसे निराशा हुई।

बुढिया ने सकीना से उसका बनाया रूमाल अमरकान्त को दिखाने के लिए कहा, जिसे सकीना जल्दी से बुढिया के पास रखकर अन्दर चली गई। अमरकान्त ने रूमाल देखकर कहा – “यह तो बहुत सुन्दर है, सकीना काढ़ने के काम में बहुत होशियार हैं”। बुढिया ने अमरकान्त को वह रूमाल ले जाने को कहा। जाते-जाते अमरकान्त ने कहा- वादा तो नहीं करता, लेकिन मुझे यकीन है मैं अपने दोस्त से रूमाल का कुछ काम दिला सकूँगा। बुढ़िया आँचल फैलाकर उसे दुआएँ देती रही।

निष्कर्ष

किसी व्यक्ति का जैसा स्वरूप हम समझते हैं, पूर्ण रूप से वैसा ही हो, यह सदैव सम्भव नहीं है। अमरकान्त को सदैव लगता है कि उसके पिता गलत काम ही करते हैं, लेकिन बुढ़िया से मिलकर उसे पता चला उसके पिता के अन्दर भी दया का भाव है। जो मानवता के प्रमुख गुणों में से एक है।

साहित्य नज़्म (Sahitya Nazm)

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