study material अध्याय 10 : कथा-पटकथा | Story Script Chapter 10 Class 11 – अभिव्यक्ति और माध्यम | Expression and Media
पटकथा (Screenplay)
कैमरे से फ़िल्म के परदे पर दिखाये जाने के लिए लिखी गई कथा को पटकथा कहते हैं। पटकथा शब्द दो शब्दों के योग से बना है, पट और कथा। कथा का अर्थ होता है कहानी, पट का अर्थ परदा होता है। अर्थात ऐसी कथा जो परदे पर दिखाई जाती है। फ़िल्मों, धारावाहिकों आदि का मूल आधार पटकथा ही होता है। पटकथा की मूल इकाई दृश्य होता है। एक ही स्थान पर, एक ही समय में लगातार चल रहे कार्य व्यापार के आधार पर एक दृश्य निर्मित होता है।
मशहूर साहित्यकार और कई कामयाब टेलीविज़न धारावाहिकों के लेखक स्वर्गीय मनोहर श्याम जोशी ने कई उपन्यासों आदि के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी जिसका शीर्षक- “पटकथा लेखन-एक परिचय” है।
किसी भी यूनिट या धारावाहिक बनाने वाली कंपनी को पटकथा तैयार करने के लिए, सबसे पहले कथा चाहिए होती है। कथा के कई स्रोत हो सकते हैं – हमारे स्वयं के साथ या आसपास के लोगों के जीवन में घटी कोई घटना, अखबार में छपा कोई समाचार, या इन सबके परिणाम स्वरूप हमारी कल्पना पर आधारित कोई कहानी आदि। ऐतिहासिक कथा पर आधारित कहानी उपन्यास आदि पर भी फ़िल्म या सिरियल बनाएँ जाते हैं।
हिंदी के प्रसिद्ध लखक जैसे – प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, धर्मवीर भारती, मन्नू भंडारी आदि की रचनाओं को समय-समय पर परदे पर उतारा गया है। दूरदर्शन अकसर साहित्यिक-रचनाओं पर आधारित धारावाहिक, टेलीफ़िल्मों आदि का निर्माण करवाता रहता है। अमेरिका-यूरोप में ज़्यादातर कामयाब उपन्यास और नाटक फ़िल्म का विषय बन जाते हैं।
नाटक व फ़िल्म दोनों में पात्र-चरित्र होते हैं।
नायक-प्रतिनायक होते हैं।
अलग-अलग घटनास्थल होते हैं, दृश्य होते हैं, कहानी का क्रमिक विकास होता है।
पहले समस्या फिर समाधान होता है।
नाटक और सिनेमा अंतर होता है (Difference Between Drama and Cinema)
नाटक (Play) – नाटक के दृश्य अकसर लंबे होते हैं। नाटक में सीमित घटनास्थल होते हैं। नाटक सजीव कला माध्यम है। जहाँ अभिनेता अपने ही जैसे जीवंत दर्शकों के सामने, अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। प्रत्येक घटना वहीं उसी स्थान पर घट रही होती है। नाटक का की पूरी घटना एक ही मंच पर निश्चित अवधि के दौरान घटित होती हैं। नाटक में दृश्यों की संरचना और चरित्रों की संख्या आदि को सीमित रखना पड़ता है। नाटक की कथा का निर्माण ‘लीनियर’ अर्थात एक-रेखीय होता है, जो एक ही दिशा में आगे बढ़ता है।
सिनेमा (Cinema) – फ़िल्मों में दृश्य छोटे-छोटे होते हैं। फ़िल्म में घटनास्थल की कोई सीमा नहीं होती है। लगभग प्रत्येक दृश्य नए स्थान पर घटित हो सकते हैं। सिनेमा या टेलीविज़न में पूर्व रिकॉर्डेड छवियाँ एवं ध्वनियाँ होती हैं। फ़िल्म या टेलीविज़न की शूटिंग अलग-अलग सेटों या लोकेशनों पर दो दिन से लेकर दो साल तक की अवधि में की जा सकती है। सिनेमा या टेलीविज़न में ऐसा कोई बंधन नहीं होता है। सिनेमा में फ़्लैशबैक या फ़्लैश फ़ॉरवर्ड तकनीकों का इस्तेमाल करके घटनाक्रम को किसी भी रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। फ़्लैशबैक वह तकनीक होती है, जिसमें अतीत में घटी घटना को दिखाते हैं। फ़्लैश फ़ॉरवर्ड में भविष्य में होने वाले किसी घटना को पहले दिखा देते हैं। परिणाम स्वरूप वर्तमान से अतीत में जाना फ़्लैशबैक कहलाता है। फ़िल्म या टेलीविज़न माध्यम में एक सुविधा यह भी है कि एक ही समय-खंड में अलग-अलग स्थानों की घटना घटित होते दिखाया जा सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
-पटकथा लिखने का विशिष्ट ढंग होता है।
-दृश्य संख्या के साथ दृश्य की लोकेशन या घटनास्थल लिखा जाता है जैसे- कमरा है?, पार्क है?, रेलवेस्टेशन है? शेर की माद है आदि।
-घटना का समय- दिन/रात/सुबह/शाम।
-आवश्यक जानकारी घटना खुले में घट रही है या किसी बंद जगह में, अर्थात अंदर या बाहर?
-सूचनाएँ अंग्रेज़ी में लिखी जाती हैं और अंदर या बाहर के लिए अंग्रेज़ी शब्दों इंटीरियर या एक्सटीरियर के तीन शुरूआती अक्षरों का इस्तेमाल किया जाता है, अर्थात INT. या EXT.
– सिनेमा या टेलीविज़न के कार्यक्रमों के निर्माण में कई टेक्निकल चीज़ों का सहारा लेना पड़ता है।
– पटकथा के शुरू में दिए डायरेक्टर, प्रोडक्शन मैनेजर तथा उनके सहायकों की अपने-अपने काम में काफ़ी मदद करते हैं।
– दृश्य के अंत में कट टू, डिज़ॉल्व टू, फ़ेड आउट आदि जैसी जानकारी निर्देशक व एडीटर को उनके काम में सहायता पहुँचाती है।
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