MHD-12 भारतीय कहानी (Bhartiya Kahaani)
ओड़िया साहित्य (Odia Literature)
ओड़िया साहित्य को मध्यकालीनता से आधुनिकता की ओर विकसित करने वालों में फकीरमोहन सेनापति का नाम अत्यंत आदर से लिया जाता है। फकीरमोहन ने भाषा आंदोलन का नेतृत्व प्रदान किया था। ओड़िया की सर्वप्रथम कहानी रेवती 1898 में लिखी गई जिसमें सामाजिक अंधविश्वास, कुसंस्कार, दकियानुसी विचार, जर्जर परंपरा का विरोध है। नारी-शिक्षा के प्रति प्रबल आग्रह है। फकीरमोहन ने लगभग पचीस कहानियाँ लिखी हैं लेकिन उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से ओड़िया कथा जगत के समक्ष एक मानदंड प्रस्तुत किया है। फकीरमोहन तथा उनके समकालीन रचनाकार – चंद्रशेखर नंद, दयानिधि मिश्र, दिव्यसिंह पाणिग्राही आदि ने रचना की है। फकीरमोहन की मृत्यु 1918 में हुई थी। सामाजिक अन्याय, अत्याचार, आर्थिक शोषण के विरोध में फकीरमोहन ने अपनी कलम चलाई है। वर्तमान में ओड़िया साहित्य की कहानी बघेई Mhd-12 के पाठ्यक्रम में लगाई गई है।
लेखक गोपीनाथ महंति का परिचय (Introduction to the Author Gopinath Mahanti)
कथाकार गोपीनाथ महंति की सृजन-यात्रा निबंध लेखन से शुरू हुई थी। 1935 में उन्होंने 16 निबंध सहकार नामक प्रसिद्ध पत्रिका में प्रकाशित किया था। लेखक के कहानी लेखन की शुरूआत 1935 में हुई थी। पहला कहानी संकलन 1951 में ‘घासर फूल’ (घास का फूल) प्रकाशित हुई। गोपीनाथ बाबू ने कुल दो सौ कहानियाँ लिखी हैं। ओड़िया तथा पूरे भारत में इन्हें उपन्यसकार के रूप में माना जाता है, अर्थात उनके उपन्यासों की अत्यधिक प्रशंसा हुई है। उपन्यास माटिमटाल हेतु लेखक को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1938 से 1964 के बीच उन्होंने 14 उपन्यास लिखें हैं।
बघेई कहानी का परिचय (Introduction to the Baghei Story)
बघेई कहानी में निश्चित कथा नहीं है। बघेई की लम्बी कहानी में बाघ के आतंक, आदिवासियों का बाघ-शिकार हेतु अभियान जैसी एक-आध घटनाओं के अतरिक्त कथा-क्रम नहीं है। पूरी कहानी में गोपीनाथ महंति जी ने बाघ का उल्लेख विविध परिप्रेक्ष्यों में किया है।
आदिवासी समाज बाघ के प्रकोप से आतंकित है। बाघ की उन्मत्ता के चलते चारों ओर भय व दहशत का वातावरण छाया रहाता है। बाघिन ने पहले गाय भैंस या बैल घसीटकर खाना शुरू किया उसके बाद वह प्रचंड रूप धारण कती है, उसका भय जन-जन में व्याप्त हो गया। बाद में उसने इंसानो का शिकार करना शुरू किया। बाघ का आदमी खाना उसके विरोधी स्वाभाव का प्रतीक है। आदिवासी समाज के लोग बाघ यानी मनुष्य विरोधी शक्ति को मारने के लिए संघबद्ध जीवन जीते हैं सामूहित प्रयास करते हैं। यथसामथ्र्य उसे चुनौती देते हैं। सदियों से उनके मन नें व्याप्त आतंक को समाप्त करना चाहते हैं। बाघ केवल एक हिंस्र जानवर नहीं है, यह स्वेच्छचारिता का भी प्रतीक है। दमन और शोषण के आधार पर आम आदमी पर आतंक बरसाने वाले शासक का भी प्रतीक है।
कहानीकार ने बाघ की सर्वकालिकता और सार्वभोमिकता को स्पष्ट शब्दों में चित्रित किया है – हर युग में, हर जगह बाघ निकला है और उसने शिकार किया है। संसार में जितने दिनों तक मनुष्य नाम का प्राणी जीवित है, बाघ नामधारी जंतु जिंदा है, किसी न किसी जगह आदमी को बाघ खा ही रहा होगा।
निष्कर्ष (Conclusion)
बाघ हर युग में हर देश में होता है। अर्थात बाघ अन्याय का प्रतीक है। आदिवासियों ने उस बाघ का विरोध किया है जो मनुष्य समाज को अपने अधिकारों से वंचित करता है। यह अलग बात है कि बाघ का मुकाबला करने के लिए उनके पास पारंपरिक अस्त्र-शस्त ही हैं। विजय के लिए अदम्य साहस चाहिए जो आदिवासियों के पास होता है। यह अलग बात है कि वह अंधविश्वास को आधार बनाकर रण-क्षेत्र में पहुँच रहें हैं।
By Sunaina