UGC Net JRF Hindi : इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर कहानी का घटना व संवाद | Inspector Matadin – Incident And Dialogue Of The Story On The Moon
कहानी परिचय (Story Introduction)
यह कहानी ठिठुरता हुआ गणतंत्र कहानी संग्रह में 1970 में प्रकाशित हुई है।
कहानी के लेखक हरिशंकर परसाई हैं।
कहानी का विषय – इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर कहानी हरिशंकर परसाई जी की लोकप्रिय व्यंग्य रचना है। पुलिस के अत्याचारों की ओर लोगों का ध्यानाकर्षण करने वाली यह रचना है।
कहानी के पात्र – पुलिस मंत्री, यान चालक, कोतवाल, अब्दुल गफूर, बलभद्र, रामसजीवन
इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर कहानी का संक्षिप्त सारांश (Brief summary of the story)
यह कहानी इंस्पेक्टर मातादीन पर केन्द्रित है, जिसके माध्यम से लेखक ने पुलिस कि कार्यप्राणली पर व्यंग्य किया है। कहानी में मातादीन के चाँद पर चाँद की पुलिस को ट्रेनिंग देने के लिए सलाहकार के रूप में भेजा जाता है।
चाँद की पुलिस को लगात है, उनकी पुलिस आलसी है, काम नहीं करती इसलिए वह भारत के रामराज्य की पुलिस को बुलवाकर अपनी पुलिस को सक्षम बनाना चाहती है, परिणाम स्वरूप मातादीन चाँद पर जाते हैं।
चाँद पर जाने के बाद सबसे पहले मातादीन ने पुलिस वालों कि सैलरी कम करवा दी। ताकि पुलिस वाले ऊपरी आयके लिए काम करें। उसके बाद हर वह काम सिखा दिया, जो पुलिस वाले को नहीं करना चाहिए। इसी दौरान किसी आदमी का आपसी झगड़े में क़त्ल हो जाता है, मारने वाले भाग गए, जिसके घर के सामने यह झगड़ा हुआ, उसने घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुँचा दिया। मातादीन ने उसी भले आदमी को अपराधी साबित करते हुए बीस साल की सजा करवा दी। परिणाम स्वरूप चाँद की हालत पहले से ज़्यादा खराब हो गई, इसके दुष्परिणाम यह निकले कि कोई बीमार बाप का इलाज नहीं कराता, डूबते बच्चों को कोई नहीं बचाता, जलते मकान की आग कोई नहीं बुझाता, आदमी जानवर से बदतर हो गया।
चाँद के प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री से मातादीन को वापस बुलाने का निवेदन किया और उसे चाँद से वापस भारत भेज दिया।
इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर कहानी का घटना व संवाद Incident And Dialogue Inspector Matadin Chand par
वैज्ञानिक कहते हैं, चाँद पर जीवन नहीं है। सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर मातादीन (डिपार्टमेंट में एम.डी. साब) कहते हैं— वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं, वहाँ हमारे जैसे ही मनुष्य की आवादी है।
मातादीन कहते हैं- मैं चाँद का अँधेरा हिस्सा देखकर आया हूँ। वहाँ मनुष्य जाति है।
मातादीन चाँद पर भारत की तरफ़ से सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत गए थे।
चाँद सरकार ने भारत सरकार को लिखा-
1) हमारी पुलिस में पर्याप्त सक्षमता नहीं है।
2) वह अपराधी का पता लगाने और उसे सज़ा दिलाने में अक्सल सफल नहीं होती।
आपके यहाँ रामराज है, मेहरबानी करके किसी पुलिस अफ़सर को भेजें ज हमारी पुलिस को शिक्षित कर दें।
गृहमंत्री ने सचिव से कहा- किसी आई.जी. को भेज दो।
सचिव ने कहा- आई.जी. नहीं भेजा जा सकता प्रोटोकॉल का सवाल है, चाँद हमारा एक क्षुद्र उपग्रह है। किसी सीनियर इंस्पेक्टर को भेज देता हूँ।
चाँद को भारत सरकार ने लिखा मातादीन को लेने के लिए पृथ्वी-यान भेज दीजिए।
मातादीन यान पर बैठने जाते हुए कह रहे थे- प्रविसि नगर कीजै सब काजा, हृदय राखि कौसलपुर राजा’।
यान के पास पहुँचकर मातादीन ने मुंशी अब्दुल ग़फूर को पुकारा।
रोज़नामचे का नमूना, दिनचर्या पुस्तक को कहा है।
हवलदार बलभद्दर का ज़िक्र है। जिसे मातादीन ने घर में जचकी के समय अपनी पत्नी को भेजने को कहा।
यान चालक से पूछा – ड्राइविंग लाइसेंस है?
मातादीन ने यान चालक से गाली देकर बात की, तो चालक ने कहा – हमारे यहाँ आदमी ऐसे नहीं बोलते।
हवलदार रामसजीवन ने कहा- एस.पी. साहब के घर से किसी ने कहा है, चाँद से एड़ी चमकाने का पत्थर लेते आना।
मातादीन सोचता है, मैं यहाँ इंस्पेक्टर की हैसियत से नहीं, सलाहकार की हैसियत से आया हूँ।
चाँद में किसी इंस्पेक्टर के कंधे पर स्टार नहीं थे।
सबसे पहले मातादीन ने चाँद पर पुलिस लाइन का मुलाहज़ा किया।
पुलिसलाइन में हनुमान जी का मंदिर न होने पर मातादीन ने आई.जी से कहा- हनुमान का दर्शन हर कर्तव्यपरायण पुलिसवाले के लिए ज़रूरी है। हनुमान सुग्रीव के यहाँ स्पेशल ब्रांच में थे।
सीता एबडक्शन (अपहरण) को मामला – दफ़ा 362 कहा।
राम जी हनुमान जी को अयोध्या ले आए और ‘टौन ड्यूटी’ में तैनात कर दिया। वही हनुमान हमारे अराध्य देव हैं। मैं उनकी फ़ोटो लेता आया हूँ।
थोड़े ही दिनों में चाँद की हर पुलिस लाइन में हनुमानजी स्थापित हो गए।
चाँद पर – सिपाही को पाँच सौ, हवलदार को सात सौ, थानेदार को हज़ार रूपए तनख़्वाहें मिलती हैं। मातादीन को लगता है, इसी कारण पुलिस अपराधी को नहीं पकड़ती है।
मातादीन कहते हैं- पहली घटी हुई तनख़ा मिलते ही आपकी पुलिस की मनोवृत्ति में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाएगा।
पुलिस मंत्री ने तनख़्वाहें घटा दीं और 2-3 महीनों में सचमुच बहुत फ़र्क आ गया। पहले से कई गुने केस रजिस्टर में दर्ज हुए।
मातादीन ने कहा – कम तनख़ा दोगे, तो मुलाज़िम की गुज़र नहीं होगी। सौ रुपयों में सिपाही बच्चों को नहीं पाल सकता। दो सौ में इंस्पेक्टर ठाठ-बाट नहीं मेनटेन कर सकता। उसे ऊपरी आमदनी करनी ही पड़ेगी। ऊपरी आमदनी तभी होगी जब वह अपराधी को पकड़ेगा। सचेत, कर्तव्यपरायण और मुस्तैद हो जाएगा। हमारे रामराज का यही रहस्य है।
पुलिस के लोग भी खुश थे। सरकार भी ख़ुश थी कि मुनाफ़े का बजट बनने वाला था।
एक दिन आपसी मारपीट में एक आदमी मारा गया। मारने वाले तो भाग गए थे। मृतक सड़क पर बेहोश पड़ा था। एक भले आदमी ने उसे उठाकर अस्पताल भेजा। भले आदमी के कपड़ों पर ख़ून के दाग़ लग गए हैं। मातादीन ने इस भले आदमी को ही गिरफ़्तार करवा लिया।
मातादीन ने इंवेस्टिगेशन का सिद्धांत समझाया-
क़त्ल हुआ है, तो किसी मनुष्य को सज़ा होगी ही। मारनेवाले को होती है, या बेक़सूर को- यह अपने सोचने की बात नहीं है। मनुष्य-मनुष्य सब बराबर हैं। सबमें उसी परमात्मा का अंश है। हम भेदभाव नहीं करते। यह पुलिस का मानवतावाद है।
मातदीन कहता है, जुर्म दो बातों से साबित होता है-
1) क्या वह आदमी पुलिस के रास्ते में आता है?
2) क्या उसे सज़ा दिलाने से ऊपर के लोग (शासन+प्रशासन) ख़ुश होंगे?
मातादीन को पुलिस वालों ने बताया- पुलिस अन्याय करे तो विरोध करता है, वह वर्तमान सरकार की विरोधी राजनीति वाला है।
मातादीन ने कोतवाल से कहा- घबड़ाओ मत। शुरू-शुरू में इस काम में आदमी को शर्म आती है। अगे तुम्हें बेक़सूर को छोड़ने में शर्म आएगी। हर चीज़ का जवाब है। अब आपके पास जो आए उससे कह दो, हम जानते हैं वह निर्दोष है, पर हम क्या करें? यह सब ऊपर से हो रहा है।
इस तरह जब सब कह देंगे ऊपर से हो रहा है, तब वह भगवान के पास जाएँगे, मगर भगवान से पूछकर कौन लौट सका है?
मातादीन ने कहा- एक मुहावरा ‘ऊपर से हो रहा है’ हमारे देश में पच्चीस सालों से सरकारों को बचा रहा है।
मातादीन कहता है- चश्मदीद गवाह वह नहीं होता जो कहे मैंने देखा है, बल्कि वह होता है- जो कहे कि मैंने देखा।
अरे चश्मदीद गवाहों की लिस्ट पुलिस के पास पहले से रहती है। जहाँ जरूरत हुई, उन्हें चश्मदीद बना दिया। ऐसे आदमी हैं, जो साल में तीन-चार सौ वारदातों के चश्मदीद गवाह होते हैं।
परिणाम स्वरूप मातादीन ने लगभग आठ-दस उठाईगीरो को बुलवाया जो चोरी, मारपीट, गुंडागर्दी करते हैं। उन्हें गवाह बना दिया।
मातादीन के केस सॉल्व करने के तरीके को देखकर कोतवाल पाँवों से लिपट गया। कहने लग- मैं जीवन भर इ श्री चरणों में पड़ा रहना चाहता हूँ।
मातादीन ने चाँद की पुलिस को एफ.आई.
आर. बदलना, बीच में पन्ने डालना, रोज़नामचा बदलना, गवाहों को तोड़ना- सब सिखा दिया।
भले आदमी को बीस साल की सज़ा हो गई।
मातादीन का सार्वजनिक अभिनंदन किया गया। वे पछताएँ- इस मौंक़े के लिए कुरता, टोपी और धोती नहीं लाए।
मातादीन छब्बीस साल पहले पुलिस में भर्ती हुए थे।
भारत के पुलिस मंत्री टेलीविज़न पर दृश्य देख रहे थे।
कुछ महीनों के बाद चाँद की संसद ने विशेष अधिवेशन बुलाया। सदस्य ग़ुस्से से चिल्ला रहे थे-
1) कोई बीमार बाप का इलाज नहीं कराता।
2) डूबते बच्चों को कोई नहीं बताता।
3) जलते मकान की आग कोई नहीं बुझाता
4) आदमी जानवर से बदतर हो गया। सरकार फ़ौरन इस्तीफ़ा दे।
दूसरे दिन चाँद के प्रधानमंत्री ने मातादीन को बुलाया, प्रधानमंत्री एकदम बूढ़े दिखाई देने लगे।
रूँआसे होकर मातादीन से कहा- आप अपने देश लौट जाइए।
मातादीन ने कहा – मैं तो टर्म (समय) ख़त्म करके ही जाऊँगा।
मातादीन ने कहा- हमारा सिद्धांत है, हमें पैसा नहीं काम प्यारा है।
चाँद के प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री को गुप्त पत्र लिखा।
चौथे दिन मातादीन को वापस लौटने के ले भारत के आई.जी. का आर्डर मिल गया।
उन्होंने एड़ी चमकाने का पत्थर यान में रखा और चाँद से विदा हो गए। जाते देख पुलिस वाले रो पड़े।
पत्र में लिखा था-
इंस्पेक्टर मातादीन की सेवाएँ हमें प्रदान करने के लिए अनेक धन्यवाद। पर अब आप उन्हें फ़ौरन बुला लें। हम भारत को मित्रदेश समझते थे, पर आपने हमारे साथ शत्रुवत व्यवहार किया है। हम भोले लोगों से आपने विश्वासघात किया है।
आपके मातादीन ने हमारी पुलिस को जैसा कर दिया है, उसके नतीजे ये हुए हैं-
कोई आदमी किसी मरते हुए आदमी के पास नहीं जाता, इस डर से कि वह कत्ल के मामले में फँसा दिया जाएगा। बेटा बीमार बाप की सेवा नहीं करता। वह डरता है, बाप मर गया तो उस पर कहीं हत्या का आरोप नहीं लगा दिया जाए। घर जलते रहते हैं और कोई बुझाने नहीं जाता-डरता है कि कहीं उस पर आग लगाने का जुर्म कायम न कर दिया जाए।
बच्चे नदी में डूबते रहते हैं और कोई उन्हें नहीं बचाता, इस डर से कि उस पर बच्चों को डुबाने का आरोप न लग जाए। सारे मानवीय संबंध समाप्त हो रहे हैं। मातादीन जी ने हमारी आधी संस्कृति नष्ट कर दी है। अगर वे यहाँ रहे तो पूरी संस्कृति नष्ट कर देंगे। उन्हें फ़ौरन रामराज में बुला लिया जाए।
निष्कर्ष (Conclusion)
इस कहानी मे हरिशंकर परसाई जी ने पुलिस कार्यप्रणाली पर व्यंग्य किया है। साहित्य समाज का दर्पण हैं, ऐसे में साहित्य में वही लिखा जाता है, जो समाज में व्याप्त होता है। लेकिन साहित्य में सच के साथ कल्पना का भी समावेश होता है। इस कहानी में भी ऐसा ही है। साहित्यकार आईना दिखाने का काम करता है, इस कहानी के माध्यम से लेखक ने भी यही प्रयास किया है।
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