IGNOU MHD-12 Study Material लड़की जिसकी मैंने हत्या की कहानी का सारांश Study Material बसवी प्रथा पर आधारित कन्नड़ कहानी का हिंदी अनुवाद
कहानी के लेखक आनन्द का परिचय (Introduction of the Author Anand)
लड़की जिसकी मैंने हत्या की कहानी के लेखक आनन्द का मूल नाम अजामपुर सीताराम था। वे आनन्द नाम से साहित्य सृजन करते थे। आनन्द का जन्म 1902 में हुआ था। 1963 तक आनन्द सृजन कार्य करते रहे व 1963 में ही उनका निधन हो गया था। आनन्द ने कन्नड़ भाषा में भारतीय कहानी में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया है।
लड़की जिसकी मैंने हत्या की कहानी का परिचय (Introduction of the story Ladki jiski maine hatya ki)
लड़की जिसकी मैंने हत्या की यह कहानी आनन्द द्वारा लिखी गई है। आनन्द कन्नड़ भाषा के प्रसिद्ध कहानीकार हैं। यह कहानी बसवी जैसी कुप्रथा पर आधारित है। कन्नड़ भाषा में “नानू कोंडा हुडुगी” नाम से लिखी गई कहानी का अनुवाद “लड़की जिसकी मैंने हत्या की” के नाम से हिन्दी में किया गया है। यह कहानी उस दौर की लिखी है जब बैलगाड़ी से यात्रा की जाती थी। वर्तमान में लड़की जिसकी मैंने हत्या की कहानी IGNOU MHD-12 के पाठ्यक्रम में लगाई गई है।
लड़की जिसकी मैंने हत्या की यह कहानी 1931 में लिखी गई थी। इस कहानी के आधार पर फिल्मकार एम.एस.सथ्थू ने रिलायंश बिग पिक्चर्स के लिए “इजोडू” नामक फिल्म बनाई है व 2009 में अहमदाबाद अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में दिखाई गई थी। जो बसवी प्रथा पर आधारित है।
लड़की जिसकी मैंने हत्या की कहानी का सारांश (Summary of the Story Ladki Jiski Maine Hatya Ki)
यह कहानी पूर्वदीप्ति (बीती बातें याद करते हुए) शैली में लिखी गई है। कहानी के नेरेटर स्वयं लेखक हैं। 1931 में लेखक प्राचीन भारतीय शिला शिल्पों के अध्ययन के लिए मैसूर की यात्रा पर निकलें थे। इसी दौरान वे नागवल्ली नामक गाँव में पहुँचे। वहाँ वे गाँव के मुखिया श्री करियप्पा के यहाँ ठहरते हैं। करियप्पा ने जिस प्रकार लेखक का स्वागत किया कहानी के अनुसार यह कहा जा सकता है कि अथिति देवता होता है। उनके आतिथ्य का वर्णन लेखन ने विस्तार पूर्वक किया है। लेखक का मुखिया के यहाँ ठहरना मुखिया के लिए अत्यधिक प्रसन्नता की बात थी। करियप्पा जी चार सौ रूपए लगान देते थे व उनके घर में सारी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध थी।
लेखक विवाहित हैं, वे अपनी यात्रा का अनुभव पत्र के माध्यम से समय-समय पर अपनी पत्नी लक्ष्मी को बताते रहते थे परिणाम स्वरूप नागवल्ली गाँव से भी उन्होंने अपनी पत्नी के लिए पत्र लिखा। पत्र लिखने के बाद पत्र लेटर बॉक्स में डालने की आवश्यकता थी लेकिन लेखक को यह नहीं पता था कि लेटर बॉक्स कहाँ है। जैसे ही वह कमरे से बाहर निकले तो एक लड़की बैठी हुई थी जिसने ज़िद करके खुद पत्र लेटर बॉक्स में डालने के लिए ले लेती है। लड़की का नाम चेन्नी (चेन्नम्मा) है। चेन्नी ही कहानी की नायिका है।
चेन्नी एक सरल व सिधी-साधी लड़की थी। जिसका उल्लेख लेखक ने इस प्रकार किया है – “चेन्नम्मा जन्म से ही मुस्कुराहट लेकर आई होगी। मैंने जब भी देखा उसके सरल मुख पर मुस्कान ही दिखाई दी। वह मृदुभाव से इधर-उधर घूमती कोपलों में घुसकर फूलों के गुच्छों से होती हुई परिमल से परिपूर्ण ठंडी बयार के समान हृदय में नन्हीं तरंगे उठाने वाली सरल मुस्कान थी। आंधी में फंस जाए तो केवल धूप मिलती है, आँख और मुँह में मिट्टी भर उठती है। उसमें सौरभ नहीं रहता। गाँव की उस लड़की की हँसी ओह, वह तो मल्लिका के फूल के समान थी। मल्लिका के फूल की शुभ्रता का क्या कहना है? कैसा परिमल?
चेन्नी ने लेखक से बताया कि आठ साल पहले वह बहुत बीमार हो गई थी। चेन्नी के माता-पिता ने मरडी भगवान से मन्नत मांगी कि यदि चेन्नी ठीक हो गई तो उसे भगवान के नाम पर छोड़ दिया जाएगा परिणाम स्वरूप चेन्नी के ठीक होने के बाद चेन्नी को बसवी बनाकर छोड़ दिया गया।
बसवी प्रथा के अनुसार बसवी को अजीवन बिना शादी किए रहना पड़ता है अथवा विवाह के बिना ही वह किसी पुरूष से संबन्ध बना सकती है। बसवी देवदासी से मिलती-जुलती एक प्रथा है। लेखक को इस प्रथा के बारे में जानकर व चेन्नी को देखकर बहुत दुख होता है कि यह कैसा अंधविश्वास है जिसके कारण एक मासूम बच्ची को बसवी बनाकर लोगों की सेवा के लिए प्रस्तुत करके खुद संतोष का अनुभव करते हैं। लेखक के अनुसार इस प्रथा के नाम पर ईश्वर को कलंकित करने की कोशिश की गई है क्योंकि कोई भी ईश्वर अपनी रचना को ज़िन्दगी के बदले हर दिन की मौत नहीं दे सकता, यह एक अंधविश्वास है।
चेन्नी के मन में धर्म और ईश्वर के लिए भय पैदा किया गया वह लेखक निकलना चाहता है। लेखक चेन्नी को इस बसवी जैसी कुप्रथा से बचाना चाहता है। जिसे लेखक चेन्नी से इस प्रकार कहता है – “तो सुनो, स्त्री के लिए मान ही प्राण है। मान खो देने वाली स्त्री का जीवन बहुत खराब होता है। तुम लोगों के पास जो कुछ भी है वह मान ही है। तुम लोगों को उसे ऐसे ही नहीं बेचना चाहिए। ज्ञानियों का कहना है कि मानहीन स्त्री के लिए नरक में भी स्थान नहीं है”
इसका उत्तर चेन्नम्मा इस प्रकार देती है – “मालिक, तो शादी वाली स्त्रियों के लिए, जिनके पति हैं, आपकी बात ठीक है, वे हमारी जैसी हो जाएँ तो उन्हें जाति से बाहर कर दिया जाता है। हमारे लिए तो आप जैसे कुलीनों की सेवा करना ही…”।
लेखक कहता है – “ अरे चेन्नम्मा। तुम समझती नहीं। सुनो भगवान के नाम पर स्त्रियां यदि मान खो दें तो क्या वे पसंद करेंगे? भगवान की मन्नत की है तो भगवान की सेवा करो, कौन मना करता है। वह छोड़कर इस प्रकार मान नहीं गँवाना चाहिए।
चेन्नम्मा कहती है – “ मालिक आप जैसे कुलीन ही हमारे लिए भगवान हैं। आपकी सेवा ही हमारा पुण्य है”
लेखक चेन्नी की इन बातों से समझ जाता है कि वह चेन्नी अत्यधिक भोली व अनजान है जिसे समाज या उसके माता-पिता ने जानबूझकर अंधकार में ढकेल दिया है। लेखक यह स्पष्ट करता है कि जब यह बच्ची थी तब वह एक क्षण में मर जाती लेकिन आज उसके माता-पिता के कारण उसे हर दिन मरना पड़ता है। जिसे मन्नत का नाम देकर पाप को पुण्य बनाने का प्रयास किया गया है। लेखक को इस बात का आश्चर्य है कि चेन्नम्मा जो कर रही है उसे सही समझती है। उसे भ्रम है कि यह कार्य भगवान को प्रिय हैं। विवाहित स्त्री जिसे पाप समझती है उसे चेन्नम्मा व उसके माता-पिता पुण्य समझते हैं। जिसके लिए लेखक पूर्ण रूप से माता-पिता को दोष देने के स्थान पर जाति के रिवाजों को दोष देते हैं।
लेखक के अनेक प्रयत्न के बाद चेन्नम्मा लेखक की बात समझ जाती है कि भगवान अपनी संतान से कोई ऐसा कार्य नहीं करवा सकते जिससे मान-सम्मान और आत्मा को क्षति पहुँचती है। परिणाम स्वरूप लेखक रोते हुए कहता है – “चेन्नमा, भगवान तुम्हारी रक्षा करें”।
लेखक खुश हो जाता है कि वह चेन्नी को सत्य का ज्ञान करा पाए और उन्होंने एक बच्ची को नरकीय जीवन से उबार लिया है। कहानी का अंत दुखद है सुबह लेखक को पता चलता है कि कुएँ में चेन्नम्मा की लाश मिली है। जिसे सुनकर लेखक बेहोश हो जाता है। पुलिस रिकार्ड के अनुसार चेन्नम्मा ने आत्महत्या की है लेकिन इस कहानी के अनुसार यह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है। सत्य का बोध होने के बाद यदि चेन्नी बसवी बने रहने से मना कर देती तो अंधविश्वास में डुबे माता-पिता व समाज उसे जीने नहीं देता परिणाम स्वरूप मृत्यू उसकी मर्ज़ी नहीं मजबूरी थी।
चेन्नी की मृत्यू के बाद लेखक को इस बात का पछतावा होता रहा कि यदि उसने चेन्नी को सत्य का बोध ना कराया होता तो वह मृत्यू को गले नहीं लगाती। लेखक के इस पछतावे का पता शिर्षक से चलता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
कहानी के अनुसार कहानी की नायिका चेन्नम्मा बसवी प्रथा का शिकार थी। कहने के लिए इस प्रथा के अनुसार ईश्वर की सेवा की जाती है लेकिन इसी प्रथा के अनुसार जीवन जीना समान्य महिलाएँ या शादी शुदा महिला पाप समझती हैं। इसका अर्थ है कि यह प्रथा ईश्वर की भक्ति का हिस्सा तो नहीं हो सकती है। कहानी के अनुसार यह कहा जा सकता है कि बसवी प्रथा का शिकार हुई लड़की का जीवन एक वैश्या के जीवन से अलग नहीं है। नाम अलग होने के कारण या फिर मन्नत का नाम देने के कारण पाप को पुण्य का नाम दिया गया है।
लेखक ने प्रयास किया है यह बताने का कि अंधविश्वास के कारण चेन्नी का जीवन मन्नत के नाम पर अंधकार से भर दिया गया है व एक दिन की मृत्यू से बचाने के नाम पर चेन्नी को माता-पिता व समाज के द्वारा हर दिन कि मृत्यू दे दी गई है।
इस प्रथा का शिकार हुई स्त्री ईश्वर की भक्ति तो नहीं कर पाती बल्कि ईश्वर के दिए अपने जीवन को नष्ट कर देती हैं। यह घृणित कार्य वह स्वयं नहीं करती समाज उसे करवाता है।
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