Ignou Study Material : सूजान भगत कहानी का सारांश : MHD 10 प्रेमचन्द कहानी विविधा | MHD 10 Premchand Story Miscellaneous
कहानी का परिचय (Introduction to the Story)
समाज में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो अपनी मेहनत का फल समाज में बाँट कर खाना चाहते हैं। अर्थात उनके परिश्रम से जो आय या फसल आदि होती है, उसे दान के रूप में समाज में बाँटना और इसे अपना सौभग्या समझना। बहुत कम लोगों का हृदय इतना उदार होता है। ऐसे उदार हृदय वाले व्यक्ति के परिवार द्वारा समर्थन होता है या विरोध होता है? विचार कीजिए।
हम बात कर रहे हैं, ऐसी ही कहानी की। कहानी का नाम है – सूजान भगत, यह कहानी प्रेमचंद जी द्वारा लिखी गई है। सूजान बहुत मेहनती किसान है, अपनी मेहतन से उसने धन सम्पत्ति बनाई है।
सूजान भगत कहानी का सारांश (Sujan Bhagat Story Summary)
सूजान गाँव का एक समान्य किसान है, लेकिन अपनी मेहतन से उसने अपने परिवार मे संपत्ति जुठाई है। जो कुछ भी उसने अपनी मेहनत से बनाया है, उसे ईश्वर का आशीर्वाद समझता है। मेहनत का कुछ हिस्सा दान दक्षिणा में लगा देता है। मेहनत तो गाँव के अन्य किसान भी करते थे लेकिन सूजान की फसल से कंचन बरस रहा था, अर्थात बहुत अच्छी फसल हो रही थी। सूजान के घर में हर रोज किसी न किसी का आना जाना लगा रहता था। साधु-संत का लगातार आदर सत्कार होने लगा। हेज कॉस्टेबल, थानेदार, शिक्षा विभाग के अफसर जब भी आते वह सूजान भगत के यहाँ ही रूकते थे। घर मे सेरों यानी ठीक-ठाक दूध होता था, लेकिन सूजना उस दूध का सेवन नहीं करता था। बल्कि घर आए मेहमानों की खातिर में वह दूध इस्तेमाल करता था।
उसे अपने गाँव वालो की भी बराबर चिन्ता है, परिणाम स्वरूप वह गाँव वालो के लिए कुआँ खुदवाता है। कुआ खुदवाने के बाद कुएँ का विवाह हुआ, यज्ञ हुआ और ब्रह्मभोज भी हुआ। अवसर पाकर सूजान और उसकी पत्नी ‘गया’ तीर्थ करने गए। वहाँ से आकर गाँव वालों का ब्रह्मभोज हुआ, ग्यारह गाँव के लोगों को निमत्रंण दिया गया। सूजान कहता है, भगवान इंसान का दिल देखते हैं- जो खर्चा करता है, उसी को देते हैं। परिणाम स्वरूप अब वह ब्याज को बुरा मानने लगा था। उसका ऐसा उदार दिल देखकर लोग उसे सूजान महतो से सूजान भगत बुलाने लगे थे। दान-दक्षिणा और ईश्वर पर उसे और पक्का विश्वास हो गया।
सूजान अत्यधिक दान करने लगे थे, परिणाम स्वरूप उसकी पत्नी बुलाकी और बेटा भोला धीरे-धीरे घर के अधिकार उससे छीनने लगे थे। लेन-देन का सारा काम अब भोला देखने लगा था। किसी से अगर कुछ अनाज लेना होता और वह कम लाकर देता तो सूजान उसे भी माफ करके भरपाई लिखने को कहता लेकिन भोला ऐसा नहीं करता।
एक दिन बुलाकी औखली में दाल छांट रही थी, तभी एक भिखारी द्वार पर आ गया। बुलाकी और भोला आपस में बात कर रहे थे, बुलाकी कहती है, पता होता ऐसा होगा तो गुरूमंत्र नहीं लेने देती। अर्थात गुरूमंत्र लेने के बाद सूजान भगत और ज़्यादा दानी हो गया है। बहुत देर तक भिखारी को अनाज देने कोई नहीं गया तो सूजान ने खुद ही अन्दर जाकर अनाज निकाल लिया और दान करने चला। भोला ने रास्ते में ही अनाज सूजान से छीन लिया और कहा भीख भीख की तरह दी जाती है, इतना अनाज देने से मना कर दिया। बुलाकी ने कुछ नहीं कहा, परिणाम स्वरूप सूजान का दिल बहुत दुखी हो गया।
भोला कहता है, वह इतने भी वृद्ध नहीं हुए हैं, खेत में काम न कर सकें। इस बात पर बुलाकी सूजान का समर्थन करते हुए करती है, अब फावड़ा और हल चलाने की आयु नहीं है उनकी। सूजान अब खेत में काम नहीं करता है, लेकिन बैठकर खाता भी नहीं है, घर पर बैलो की देखभाल से लेकर जो-जो काम वह कर सकता है, वह करता है।
सूजान ने भिखारी से जाकर भीख देने के लिए मना कर दिया। पेड के नीचे जाकर बैठ गया, गहन चिन्ता में डूब गया। उसे अपने बेटे और पत्नी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। शुरूआत से लेकर अब तक की मेहनत को याद करता है। कैसे उसने दिन-रात मेहनत करके यह गृहस्थी जोड़ी है। रात को उसने खाना नहीं खाया, बुलाकी खाने के लिए बोलने आई और सूजान नहीं माना तो वह चली गई। सूजान सिर्फ एक मेहनती किसान ही नहीं बल्कि एक योग्य पति भी है, गाँव के बाकी लोग अपनी पत्नियों पर हाथ उठाते हैं, लेकिन सूजान ने कभी फूलो की छड़ी से भी अपनी पत्नी को नहीं मारा। हमेशा उसे घर की मालकिन होने का अधिकार दिया, आज उसने उसका अपमान होने दिया इसका उसे बहुत दुख है।
सूजान रात भर सोया नहीं घास काटता रहा। उसके दोनों बेटे मिलकर घास काटते हैं, तब भी पूरा नहीं पड़ता। सूजान ने अकेले बहुत सारी घास काट दी। सुबह उठकर बिना खाए पीए हल लेकर खेत चला गया। दोपहर तक सब ने हल छोड दिया लेकिन सूजान ने नहीं छोड़ा। सूजान ने अकेले आधा खेत जोत दिया। घर जाकर खाना खाकर अराम करने के स्थान पर फिर से काम करने चला गया।
लगभग हर बार मुश्किल से पाँच मन की खेती होती थी। इस बार सूजान की मेहनत के कारण दस मन की खेती हुई। सूजान ने अपनी पत्नी और बेटे भोला का अहंकार तोड़ दिया। जो भीखारी आठ महीने पहले खाली हाथ चला गया था। आज सूजान ने उसे इतना अनाज दिया की उससे उठा ही नहीं, सूजान को खुद अनाज उसके घर तक पहुँचाना पड़ा। उसके अलावा जितने दान लेने वाले वहाँ पहुँचे सब को अनाज भोला से देने को कहा। यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
साहित्य समाज का दर्पण है, परिणाम स्वरूप समाज में ऐसे लोग भी मौजूद होते हैं, जो अपनी मेहनत के फल को ईशवर की कृपा समझते हैं, और इस कृपा को सबके साथ साझा करके जीवन व्यतीत करते हैं।
कहानी के परिणाम स्वरूप यह भी स्पष्ट होता है कि जब तक व्यक्ति कमा रहा है, नौकरी कर रहा है, मेहनत कर रहा है, उसका परिवार में आदर होता है। जैसे ही वह कमज़ोर हो जाता है, वृद्ध हो जाता है, उसकी अपनी पत्नी या संतान द्वारा उसका विरोध होने लगता है। उससे परिवार के अधिकार छीने जाने लगते हैं। इस बात में कितनी सच्चाई है, अपने आप-पास के महौल को देखकर समझा जा सकता है। लगभग ऐसी स्थितियों को दर्शाते हुए कुछ फिल्मों का निर्माण भी हुआ जिनमें बाग़बान जैसी फिल्में शामिल हैं।
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