Ignou Study Material : दूध का दाम कहानी का सारांश | Doodh ka Daam Story Summary

Ignou Study Material : दूध का दाम कहानी का सारांश : MHD 10 प्रेमचन्द कहानी विविधा | MHD 10 Premchand Story Miscellaneous

कहानी का परिचय (Introduction to the Story)

विचार कीजिए, जहाँ एक तरफ जहाँ किसी व्यक्ति के छू देने भर से दूसरा व्यक्ति अशुद्ध हो जाता है। दूसरी तरफ जब उसी के हक का उसी का जूठा दूध पीकर बड़ा हुआ बालक अशुद्ध नहीं है। यह अछूत मानने वाले व्यक्ति की दोहरी मानसिकता का चित्रण करती है।

आज हम ऐसी ही एक कहानी की बात कर रहे हैं, कहानी का नाम है – दूध का दाम। यह कहानी प्रेमचंद जी द्वारा लिखी गई है। साथ ही यह कहानी दलित विमर्श पर आधारित है।

दूध का दाम कहानी का सारांश | Doodh ka Daam Story Summary

महेशनाथ की पत्नी चौथी बार गर्भवती है। उन्हें अब से पहले तीन बेटियाँ हो चुकी हैं। महेशनाथ इस बार अपनी पत्नी को शहर के डॉक्टर को दिखाना चाहते हैं। वह चाहते हैं, उनकी पत्नी का प्रसव कोई नर्स या डॉक्टर कराए, लेकिन गाँव में कोई नर्स आने के लिए तैयार नहीं होती है। जो आना भी चाहें तो बहुत रूपए माँगती हैं, परिणाम स्वरूप महेशनाथ को इस बार भी प्रसव के लिए दाई का चयन करना पडता है।

चौथा प्रसव कराने का अवसर भी गुदड की पत्नी भूँगी को मिलता है। गुदड और उसकी पत्नी में शर्त लगती है कि इस बार बेटा ही होगा। बेटियों के पैदा होने पर भूँगी को कुछ अच्छा नेग नहीं मिला था। यदि बेटा होगा तो कुछ अच्छे उपहार और धन की प्राप्ति की संभावना होगी। भूँगी की बात सच हुई और इस बार मालकिन को बेटा ही हुआ।

इस बार मालकिन को बेटे को पिलाने के लिए दूध नहीं आया। परिणाम स्वरूप भूँगी सुरेश की दाई भी है, और दूध पिलाई (दूध पिलाने वाली) भी बन गई। भूँगी को अपने बेटे को एक दिन में सिर्फ दो बार दूध पिलाने की पर्मिशन थी, इसलिए उसका बेटा मंगल हमेशा बीमार ही रहता। मलकिन ने कहा मेरे बेटे को पाल दे – फिर सारी उम्र बैठ कर खाती रहना। जब तक भूँगी सुरेश को दूध पिलाती रही तब तक महेशनाथ और मलकिन भूँगी की मोलिक आवश्यकताओं का ख्याल रखते थे। खाने पीने की कोई कमी नहीं करते थे। जैसे ही सुरेश बड़ा हुआ और उसे अब भूँगी की जरूरत नहीं रही तो महेशनाथ और मलकिन ने उसे किनारे कर दिया।

भूँगी के पति की प्लेग से मृत्यू हो गई। भूँगी और उसका बेटा मंगल अकेले रह गए। भूँगी अकेले मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन चलाने लगी। एक दिन महेशनाथ का नाला साफ कर रही थी, उसी दौरान सांप निकला और भूँगी को काट लिया परिणाम स्वरूप उसकी भी मृत्यू हो गई।

मंगल अब बेसहारा हो गया। महेशनाथ के घर के सामने नीम के पड के नीचे ही रहता, वह अछूत था इसलिए उसे घर में जाने की इजाज़त नहीं थी। उसके साथ एक कुत्ता रहता था, जो इंसान न होते हुए भी उसके सुख-दुख का साथी था। महेशनाथ के घर में बहुत जुठन बचता था, इसलिए उसे खाने पीने की कमी नहीं होती थी। सब अच्छे बर्तन में खाते थे, उसे अछूत (दलित) होने के कारण मिट्टी के बर्तन में खाना देते थे। इस भेदभाव का कारण वह नहीं समझ सकता था, लेकिन उसे मिट्टी के बर्तन में खाना खाना अच्छा नहीं लगता था। अन्य बच्चे उसे चिढ़ाते थे, परेशान करते थे, लेकिन वह इसका कारण नहीं समझ पाता था।

एक दिन सुरेश ने मंगल को खेलने के लिए कहा, महेशनाथ के डर से मंगल ने खेलने के लिए मना कर दिया। सुरेश के बार-बार ज़िद करने पर वह खेलने के लिए तैयार हो गया। लेकिन खेल के दौरान सुरेश गिर जाता है। अपनी माँ से जाकर कहता है, उसे मंगल ने छू दिया है। महेशनाथ की पत्नी पहले तो उसे बहुत मारती है, फिर उसे वहाँ से भगा देती है। वह और कुत्ता किसी खंडर में चले जाते हैं। शाम होने पर मंगल को भूख लगती है, वह महेशनाथ के घर के सामने आकर खड़ा हो जाता है, सोचता है किसी ने उसे अवाज़ दी तो वह सामने आ जाएगा नहीं तो चुपचाप लौट जाएगा।

नौकर मंगल का ज़िक्र कर रहे थे, मंगल दिखाई नहीं देता है। अंत में किसी ने कहा अच्छा ही है, भंगी का चेहरा नहीं देखना पडेगा। कुछ ही देर में कहार पत्तल में बचा हुआ जूठन लेकर फैंकने जा रहा था, जूठन देखकर मंगल सामने आ गया। कहार वह खाना जो फैंकने जा रहा था, वह मंगल को दे दिया। बाद में मंगल कुत्ते से कहता है, यह भी नहीं मिलता तो कहाँ जाता। साथ ही वह अपनी माँ का ज़िक्र करता है और कहता है- यह मुझे दूध का दाम मिल रहा है। यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।

कहानी का निष्कर्ष (Conclusion of the Story)

यह काहानी दलित विमर्श पर आधारित है। अर्थात कहानी में छुआछूत का चित्रण हैं।

यह कहानी उस दौर में लिखी गई थी, जब समाज मे जातिगत असमानता थी। वर्तमान में ऐसा नहीं है, भारतीय संविधान में समानता का अधिकार मौलिक अधिकारों ने निहित है।

यह कहानी है, हकीकत नहीं है, साहित्य समाज का दर्पण होता है, लेकिन समाज नहीं होता है। वर्तमान में समाज का प्रत्येक वर्ग समान है, यदि छुआछूत के कारण सामाजिक भेदभाव होता है, तो वह गैर कानूनी है, ऐसा किए जाने पर संवैधानिक रूप से दंड देने का प्रावधान है।


Leave a Comment