Ignou Study Material : सवा सेर गेहूँ कहानी का सारांश व समीक्षा : MHD 10 प्रेमचन्द कहानी विविधा | MHD 10 Premchand Story Miscellaneous
कहानी का परिचय (Introduction to the Story)
अनुमान लगाइए किसी व्यक्ति ने किसी से लगभग दस रूपए की कोई चीज़ उधार ली हो। बाद में वह दस रूपए लौटाने में उसे शर्म आए परिणाम स्वरूप किसी और बहाने से लगभग सात सौ रूपए की चीज़ दे दी जाए। सात साल बाद दस रूपए की वस्तु देने वाला व्यक्ति ब्याज लगाकर सात हजार रूपए की माँग कर दे तो बताएँ वस्तु लेने वाले की क्या स्थिति होगी?
आज हम ऐसी ही कहानी की बात कर रहे हैं, कहानी का नाम है – सवा सेर गेहूँ, यह कहानी प्रेमचंद जी द्वारा लिखी गई है। भारतीय ग्रामीण समाज में मौजूद घुटन और ब्याज के माध्यम से किसानों के शोषण पर यह कहानी आधारित है।
सवा सेर गेहूँ कहानी का सारांश | Summary of the Story Saava Ser Gehoon
एक गाँव में शंकर नाम का किसान रहता है, वह बहुत ही साधारण व्यक्ति है। अपने काम से काम रखता है- खाना खाने को मिलता तो ठीक है, नहीं मिलता तो पानी पीकर सो जाता था। लेकिन उसके घर यदि कोई मेहमान आ जाता तो उसकी खातिर करने में कोई कमी नहीं रखता था।
एक दिन उसके यहाँ महत्मा आ जाते हैं, उन्हें खिलाने के लिए उसके घर में गेहूँ का आटा नहीं था। महत्मा को बिना खिलाए भी नहीं भेज सकता था, इसलिए वह गाँव में गेहूँ या गेहूँ का आटा उधार लेने के लिए जाता है। कई लोगों के मना करने के बाद विप्र महाराज ने उसे सवा सेर गेहूँ उधार दे दिया। उस गेहूँ का शंकर की पत्नी ने आटा पीसा। महात्मा को भोजन कराया, बदले में महात्मा आशीर्वाद देकर चले गए।
शंकर को लगा सवा सेर गेहूँ क्या लौटाए इसलिए उसने इससे ज्यादा गेहूँ, फसल होने खलिहान से ही दे दिया। सवा सेर गेहूं के बदले उसने डेढ पसेरी गेहूँ लौटा कर खुद को मुक्त समझ लिया। सात साल बाद विप्र महाराज ने अपने सवा सेर गेहूँ की याद दिलाते हुए कहा – तुमने अब तक नहीं लौटाए इसलिए वह गेहूँ ब्याज समेट साढ़े पाँच मन गेहूँ हो गए हैं। इतने गेहूँ को साठ रूपए में बदल दिया। शंकर ने जब कहा मैंने तो लौटा दिया था, तो विप्र महाराज ने कहा वह तो ब्रह्मण को दिया गया दान था। तुम पर गेहूँ का कर्ज अभी तक बाकी है। भगवान का डर दिखाते हुए कहा ब्रह्मण का यहाँ नहीं लौटाओगे तो भगवान के घर लौटाओगे।
शंकर ईश्वर के नाम से डर गया और मेहनत मजदूरी करके साठ रूपए भी विप्र महाराज को दे दिए। जब विप्र महाराज को ने देखा की शंकर उसके हाथ से जा रहा है, तो पन्द्रह रूपए और कर्ज के बता कर माँग लिए। ब्रह्मण देखकर शंकर ने इसे भी मंजूर कर लिया। विप्रे महाराज के डर से पूरे गाँव में उसे कोई पन्द्रह रूपए देने को तैयार नहीं होता। इस कर्ज़ के बोझ के नीचे दब कर शंकर परेशान रहने लगा और अब नशा करने लगा। शंकर के परिवार को विप्र महाराज बंधवा मजदूर बना लेते हैं। शंकर की मृत्यु हो जाती है, उसकी मृत्यु के बाद उसके बेटे को इस कर्ज़ को चुकाने के लिए काम करना पड़ता है, इस तरह सवा सेर गेहूँ का कर्ज शंकर की अगली पीढ़ी को बरबाद कर देता है।
कहानी की समीक्षा (Plot Summary)
यह कहानी औपनिवेशिक शासन काल में लिखी गई थी। इस कहानी में उस दौर के किसान की एक झलक मिलती है। ब्याज के नीचे किस तरह एक आम आदमी दबता चला जाता है, इसका स्पष्ट रूप इस कहानी में देखने को मिलता है।
यह तो उस दौर की बात थी, लेकिन वर्तमान में कर्ज की क्या स्थिति है? अब कर्ज साहूकार या आदि से नहीं लिए जाते, लेकिन क्या कर्ज़ लेना बन्द हो गया है? या कर्ज लेने का तरीका बदल गया है, लेकिन कर्ज लोग आज भी लेते हैं। यही कर्ज व्यक्ति को उम्र भर अंदर ही अंदर तोड़ता रहता है।
क्या बैंक से लिया गया किसी भी प्रकार का लोन, होम लोन, स्टडी लोन, आदि लोन कर्ज नहीं है? इस लिए गए कर्ज के बदले ब्याज नहीं चुकाना पड़ता है? ईएमआई का क्या अर्थ है? अपने शौक पूरे करने का लालच देकर कोई कर्ज के नीचे दबा तो नहीं रहा है? लोन हो या ईएमआई पर ली गई सुविधा, जब इनका मूल चुकाने हम जाते हैं, तो क्या सिर्फ मूल चुकाते हैं? या सालो साल ब्याज भी चुकाते हैं? क्रेडिट कार्ड से ली गई सुविधा का भुगतान कितना करना पड़ता है? विचार कीजिए।
कहानी और वर्तमान स्थिति के परिणाम स्वरूप यह कहा जा सकता है कि कर्ज लेन-देन का स्वरूप बदल गया है, लेकिन कर्ज और ब्याज का परिणाम शायद कुछ हद तक आज भी वैसा ही है।
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