Ignou Study Material : गुल्ली डंडा कहानी का सारांश : MHD 10 प्रेमचन्द कहानी विविधा | MHD 10 Premchand Story Miscellaneous
कहानी का परिचय
किसी के व्यवहार में पूर्ण सच्चाई तब होती है, जब वह सामने वाले व्यक्ति को अपने समान समझता है, यदि वह दो व्यक्ति में से एक व्यक्ति किसी कारण से कमज़ोर है, तो ताकतवर व्यक्ति उसके सामने अपनी ताकत (पद) के साथ व्यवहार करता है, कोई कमज़ोर है, तो कमज़ोर व्यक्ति ताकतवर के सामने अपनी स्थिति के अनुसार व्यवहार करता है। इस प्रकार की परिस्थितियाँ बड़े होने के बाद आती हैं, जब वही व्यक्ति छोटा होता है, बालक होता है, तब वह सामने वाले को अपने समान समझता है। दोनों व्यक्तियों में कोई भेद नहीं होता है, इस स्थिति में दोनों का एक-दूसरे के लिए व्यवहार सच्चा होता है।
हम बात कर रहे हैं, ऐसी ही एक कहानी की। कहानी का नाम है, गुल्ली डंडा, यह कहानी परवर्ति दौर की कहानियों का प्रतिनिधित्व करती है। इस कहानी के लेखक प्रेमचंद हैं, साथ ही यह कहानी मैं शैली में लिखी गई है। कहानी पढ़ने के दौरान ऐसा लगता है, लेखक अपनी बात कर रहा है, लेकिन यह लेखक का संस्मरण नहीं बल्कि कहानी है।
गुल्ली डंडा कहानी का सारांश | Gulli Danda Story Summary
एक कहानी गुल्ली डंडा भारतीय खेल पर आधारित है। मैं पात्र का मानना है, यह खेल सस्ता है, इसे खेलने के लिए सिर्फ एक डंडे की आवश्यकता पड़ती है। विलायती खेल बहुत मँहगे होते हैं। इस खेल को खेलने अमीर गरीब का कोई भेद नहीं होता है।
यह कहानी वर्तमान में अतीत के स्मरण का परिणा है, मैं पात्र अफसर बन गया है। अफसर बनने के बाद वह उस स्थान में जाता है, जहाँ उसके बचपन में उसके पिता रहते थे। पिता का तबादला हो जाने के कारण उसे वह गाँव छोड़ना पड़ता है, परिणाम स्वरूप वहाँ से लेखक का संपर्क टूट जाता है। लेखक अपने बचपन की बातें याद कर रहा है, अर्थात यह कहानी फ्लैशबैक में दिखाई पड़ती है।
लेखक को वहाँ जाकर अपने एक साथी की याद आती है, जिसका नाम दया है। वह गुल्ली डंडा खेल में बहुत अच्छा था, वह जिस टीम में होता था, वह टीम हमेशा जीत जाती थी। खेल में अपनी बारी लिए बिना वह किसी को घर नहीं जाने देता था। एक बार मैं और गया खेल रहे थे, मैं हार रहा था परिणाम स्वरूप वह खेलना नहीं चाहता था। दोनों में झगड़ा हो जाता है, मैं पात्र रोने लगता है, रोने का अभिनय करते हुए वह खेल से बचकर चला जाता है।
अब जब कई सालों बाद मैं पात्र अफसर बनकर वापस आया है, तो वह दया को हराना चाहता है, परिणाम स्वरूप वह गया से ज़िद करता है कि वह उसके साथ गुल्ली डंडा खेले। गया पहले मना कर देता है, फिर मैं पात्र का मन रखने के लिए खेल लेता है। मैं पात्र दया से जीत नहीं पाता है, इसलिए चीटिंग करता है। दया यह जानते हुए कि वह चीटिंग कर रहा है, उसे नज़रअंदाज़ कर देता है।
अगले दिन दया और असके बराबरी वालों (अपने ग्रुप) का गुल्ली डंडा खेल होने वाला था। परिणाम स्वरूप दया ने मैं पात्र को वह खेल देखने के लिए बुलाया। मैं पात्र अगले दिन खेल देखने पहुँच जाता है, दया को बचपन की तरह खेलते और जीतते अर्थात प्रदर्शन देखकर समझ जाता है, कि वह कल उसके साथ खेल नहीं रहा था, बल्कि खेला रहा था। मैं पात्र को एहसास हो गया कि अब दया उसे अपने बराबर का नहीं समझता है, इसलिए वह उससे उसके पद के अनुसार व्यवहार करता है, क्योंकि दया एक मजदूर है, वर्तमान में मैं पात्र की अफसरी दोनों के बीच दीवार बन गई है। मैं पात्र सोचता है, अफसर के पद को पाकर मैं उसकी दया के योग्य हूँ। वह मुझे अपने बराबर का नहीं समझता है, बचपन में हमारे बीच भेद नहीं था, अब भेद हो गया है। मैं उसका साहचर्य नहीं पा सकता हूँ। वह बडा हो गया है, मैं छोटा हो गया हूँ। इसी विचार के साथ कहानी समाप्त हो जाती है।
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