Net JRF Hindi : दुलाई वाली कहानी के तथ्य व सारांश | Facts and summary of Dulai ‎wali story

Net JRF Hindi Unit 7 :दुलाई वाली कहानी का सारांश

दुलाई वाली कहानी के तथ्य व परिचय (Facts and summary of Dulai ‎wali story)

दुलाई का अर्थ कपड़े की दो परतों में रुई भरकर सिला हुआ ओढ़ने का मोटा कपड़ा, ओढने की रुईदार चादर, हलकी रजाई लिहाफ़।

यह कहानी रेल की घटना पर आधारित है। दुलाई वाली कोई और नहीं वंशीधर के मित्र और ममेरे भाई नवलकिशोर हीं हैं। जो एक दुलाई ओढ़कर ट्रेन में महिला बनकर वंशीधर को परेशान करते हैं, अर्थात खुद रजाई ओढ़कर बैठ जाते हैं।

दुलाईवाली कहानी 1907 ईसवी की सरस्वती में (भाग–8 संख्या-5) प्रकाशित हुई थी। इस कहानी की लेखिका बंग महिला हैं, जिनका मूल नाम राजेन्द्र बाला घोष है। वे मिरजापुर के एक प्रतिष्ठित बंगाली रामप्रसन्न घोष की पुत्री हैं। वे मिरजापुर में रामचंद्र शुक्ल के सम्पर्क में आने पर हिन्दी में लिखने लगीं।

शुक्ल जी – दुलाई वाली को तीसरे नंबर पर रखते हुए लिखा है-

यदि इंदुमती किसी बंगला कहानी की छाया नहीं है, तो हिंदी की पहली कहानी यही ठहरती है। उसके उपरांत ग्यारह वर्ष का समय फिर दुलाईवाली का समय आता है।

कहनी में यथार्थ चित्रण, पात्रानुकूल भाषा है, साथ ही मनोरंजक प्रधान कहानी है।

रायकृष्ण दास ने पाश्चात्य कला की दृष्टि से दुलाईवाली को ही हिन्दी की सर्वप्रथम मौलिक कहानी माना है।

इस कहानी में एक मध्यमवर्गीय परिवार की साधारण सी घटना को लेकर कथानक का निर्माण किया गया है। तथा इसके केंद्र में मुगलसराय से लेकर प्रयाग तक की रेलयात्रा तथा उससे जुड़ी हुई घटनाओं का वर्णन है।

इस कहानी में दुलाई वाली नवलकिशोर हैं, वे स्वदेशी समर्थक थे। साथ ही कहानी में बंगाल और कलकता का भी नाम आया है। चुहलबोध की कहानी है। कहानी का हास्य-व्यंग्य समाज में प्रचलित पर्दा-प्रथा की विसंगति पर आधारित है।

मुख्य पात्र –

नवलकिशोर (दुलाईवाली)

वंशीधर (इलाहाबादवासी हैं)

जानकीदेई – वंशीधर की पत्नी है।

सीता – जानकीदेई की छोटी बहन है।

भले घर की स्त्री – नवलकिशोर की पत्नी है।

कहानी का संक्षिप्त सारांश (Short Summary of the Story)

यह कहानी वंशीधर और नवलकिशोर को केंद्र में रखकर लिखी गई है। वंशधीर अपनी पत्नी को विदा कराने के लिए अपने ससुराल बनारस आए हैं, वह एक दिन बाद अपनी पत्नी को विदा करा कर ले जाने वाले थे, लेकिन उनके मित्र नवलकिशोर का पत्र मिला की वह उनसे ट्रेन में मिलेंगे। नववलकिशोर कलकत्ता से आ रहे थे, परिणाम स्वरूप वंशीधर ने एक दिन पहले ही अपनी पत्नी की विदाई करवा ली।

ट्रेन में नवलकिशोर वंशीधर को नहीं मिले, उनके स्थान पर एक महिला मिली जो अपने पति के खो जाने से बहुत परेशान थी। यह महिला नवलकिशोर की पत्नी ही थी, लेकिन यह बात वंशीधर को नहीं पता थी। नवलकिशोर दुलाई वाली महिला बनकर वंशीधर को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से परेशान भी करते हैं। जब वह महिला के पति यानी (अज्ञात नवलकिशोर) का पता लगाने के ले जाते हैं, और लौटकर आते हैं, तो उनकी पत्नी और वह महिला दोनों ही लपाता थीं। परिणाम स्वरूप उन्हें लगता है, दुलाई वाली महिला ने ही उन्हें गायब किया है, और वह जब दुलाई वाली पर दोषारोपण करते हैं, तभी वह अपना घुंघट हटा कर नवलकिशोर खिलखिला कर हँस देते हैं।

कहानी की घटनाएँ व सारांश (Events and summary of the story)

1 वंशीधर का दशाश्वमेघ घाट से स्नानकर लौटना गोदौलिया की बाईं तरफ की गली में पुराने मकान में प्रवेश करना।

2 सीता को पुकार कर अपनी पत्नी जानकीदेई को बुलवाना।

3 तत्काल विदाई करने की सूचना देना।

4 इक्का लेकर आना पत्नी को विदा कराकर रेलवे स्टेशन की ओर प्रस्थान करना।

5 वंशीधर के मित्र नवलकिशोर स्वदेशी के समर्थक हैं, परिणाम स्वरूप विलायती धोती पहनने का अफसोस।

6 रेल से राजघाट से मुगलसराय पहुँचना और प्लेटफार्म पर अपने ममेरे भाई और मित्र नवलकिशोर को तलाश करना।

7 पत्नी जानकी को जनाने डिब्बे में बिठाकर स्वयं बगलवाले डिब्बे में बैठना।

8 मिर्जापुर में पूड़ी और मिठाई खाना।

9 वंशीधर के निटक ही एक भले घर की स्त्री विराजमान है।

10 स्त्री के पति (नवकिशोर) का लापता होना और स्त्री का रूदन।

11 गाड़ी में हाय-तौबा मच जाती है, स्त्री-पुरूषों की तरह-तरह की बातचीत होती है।

12 पीछली सीट पर एक स्त्री का छींट की दुलाई (चादर) ओढ़कर बैठना और बीच-बीच में घूँघट से एक आँख निकालकर वंशीधर को ताकना।

13 वंशीधर को स्त्री का आचरण उचित नहीं लगता है।

14 वंशीधर अकेली स्त्री जिसके पति लापता हो गए हैं, उसे आश्वस्त करते हैं।

15 वंशीधर का जानकीदेई और भले घर की महिला को एकसाथ बुढ़िया की निगरानी में छोड़ते हैं, और स्टेशन मास्टर के पास उसके पति की तलाश के लिए जाते हैं।

16 लौटने पर तीनों स्त्रियों का गायब होना तथा दुलाईवाली को आते देखना।

17 वंशीधर दुलाईवाली पर स्त्रियों को गायब करने का संदेह करते हैं।

18 दुलाई से मुँह खोलकर मित्र नवलकिशोर का खिलखिला कर हँसना।

19 यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।

कहानी की मूलसंवेदना (The Essence of the Story)

यह मनोरंजनप्रधान रोचक कहानी है।

पर्दाप्रथा की विसंगति पर चोट की गई है।

परिवार, समाज, रेलवे स्टेशन का यथार्थ चित्रण किया गया है।

स्वदेशी आंदोलन की सांकेतिक आभिव्यक्ति है।

विद्वानों ने कहा-

1 आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में – 1907 ईसवी में श्री बंगमहिला की दुलाईवाली नामक कहानी प्रकाशित हुई, जिसमें एक छोटी सी घटना को लेकर सामान्य मनुष्यता को प्रभावित करने योग्य यथार्थवादी चित्रण था। बहुतों ने इसे ही हिंदी की प्रथम कहानी माना है।

2  गोपालराय के अनुसार – बंग महिला की तीसरी कहानी दुलाईवाली मध्यवर्ग के आत्मीय संबंधों को चित्रित करने वाली एक रोचक कहानी है। इस कहानी में लेखिका ने हास्य-विनोद का बहुत मनोरम रूप प्रस्तुत किया है। नवलकिशोर नाम का पात्र दुलाईवाली बनकर अपने मित्र वंशीधर को मुगलसराय से इलाहाबाद की रेल यात्रा में छकाता (परेशान) रहता है।

यह एक चुहलबोध की कहानी है, पर इस चुहल के बीच मध्यवर्ग की आर्थिक अभावग्रस्तता के संकेत भी बहुत मार्मिक हैं। समकालीन परिवेश का यथार्थ चित्रण भी कहानी को नयापन प्रदान करता है। इसके साथ ही स्वदेशी आंदोलन का उल्लेख और दबा-छिपा समर्थन भी कहानी को उल्लेखनीय बनाता है।

शुक्ल जी के अनुसार – दुलाईवाली मार्मिकता की दृष्टि से भावप्रधान होने के कारण उल्लेखनीय है।

कहानी के संवाद (Story Dialogues)

1 अरे इनकर मनई तो नाहीं आइलेन। हो देख हो, रोवल करथईन”

2 पैयाग जी, जाहाँ मनई मकर नाहाए जाला।

3 “नाहक बिलायती चीजें मोल लेकर क्यों रुपये की बरबादी की जाए। देशी लेने से भी दाम लगेगा सही; पर रहेगा तो देश ही में।”

4 खैर, दोनों मित्र अपनी-अपनी घरवाली को लेकर राजी-खुशी घर पहुँचे और मुझे भी उनकी यह राम-कहानी लिखने से छुट्टी मिली।

5 पहली, “उ मेहरुवा बड़ी उजबक रहला। भला केहू के चिल्लाये से रेलीऔ कहूँ खड़ी होला?”

6 उस गाड़ी में एक लाठीवाला भी था, उसने खुल्लमखुल्ला कहा, “का बाबू जी! कुछ हमरो साझा?”

7 वह बुढ़िया, जिसे उन्होंने रखवाली के लिये रख छोड़ा था, किसी बहाने से भाग गयी।

8 “तू ही उन स्त्रियों को कहीं ले गयी है,” इतना कहना था कि दुलाई से मुँह खोलकर नवलकिशोर खिलखिला उठे।

9 “दुलाई की बिसात ही कितनी?”

10 “अरे तुम क्या जानो, इन लोगों की हँसी ऐसी ही होती है। हँसी में किसी के प्राण भी निकल जाएँ तो भी इन्हें दया न आवे।”


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