Net JRF Hindi : हिन्दी कविता यूनिट 5 | रामधारी सिंह की रचना उर्वशी
रचना उर्वशी
उर्वशी काव्य के रचनाकार – रामधारी सिंह दिनकर हैं, इसका प्रकाशन वर्ष – 1961 है। उर्वशी गीतिनाट्य भी है और इसे महाकाव्य भी माना गया है। इसमें पांच अंक हैं। उर्वशी शीर्षक से उर्वशी (चम्पू काव्य) में जयशंकर प्रसाद ने भी लिखा है।
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उर्वशी रचना के पात्र-
1 पुरुरवा 2 उर्वशी 3 मेनका 4 चित्रलेखा 5 मदनिका 6 रम्भा 7 सुकन्या 8 औशिनरी 9 पुरूरवा का पुत्र आयु।
1 बच्चन सिंह की नजर में उर्वशी काव्य-
उर्वशी उनका दूसरा विशिष्ट प्रबंध है, जिसे गीतिनाट्य भी कहा गया है। कथा का पाँच अंकों में विभाजन और कथोपकथन की पद्धति के कारण इसे नाट्य की स्थूल संज्ञा दी जा सकती है। पर इसमें नाटकीयता का अभाव है। मूलत: यह प्रबंध काव्य है- आधुनिक प्रबंध परम्परा का काव्य है। इसमें घटनात्मक तत्व अत्यधिक क्षीण है, पात्रों की संख्या बहुत कम है। प्रतीकों के माध्यम से संपूर्ण कथ्य को भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर ले जाने का प्रयास किया गया है।
इसमें उर्वशी और पुरूरवा की प्रणय- कथा को वैदिक तथा कालिदासीय स्रोतों से ग्रहण किया गया है।
1- प्रथम अंक में पुरुरवा की राजधानी प्रतिष्ठानपुर के नन्दनकानन में अप्सराओं का अवतरण और उर्वशी – पुरूरवा में प्रेम का सूत्रपात होता है।
2- द्वितीय अंक में पुरूरवा की राजमहिषी औशीनरी को पुरूरवा की प्रणय कथा का समाचार मिलता है और वह उद्विग्न हो उठती है।
3) इस नाट्य प्रबंध कल्पना का सबसे महत्वपूर्ण अंश तीसरा अंक है। इसमें प्रणय लीलाओं की उन्मुक्त बिवृति के साथ उससे पार जाने का, जीवन की चरम उपलब्धि का समारोहपूर्ण चित्रण किया गया है।
4) चौथे अंक में उर्वशी अपने नवजात शिशु को च्यवन ऋषि की पत्नी सुकन्या को पालनार्थ (पालने के लिए) सौंप देती है।
5) पाँचवें अंक में सुकन्या उर्वशी-पुरूरवा के पुत्र आयु को लेकर के प्रतिष्ठानपुर आती है और भरतमुनि के शाप के फलस्वरूप अदृश्य हो जाती है। तथा पुरूरवा संन्यास ले लेता है।
पुरूरवा और उर्वशी के माध्यम से कवि एक कामाध्यात्म की दुनिया सिरजता है, जिसे लेकर आलोचकों में काफी मतभेद व रचना के प्रति विवाद है, विशेष रूप से उसकी आधुनिक प्रासंगिकता को लेकर पुरूरवा मन का प्रतीक है, जो काम पीड़ा से अत्यधिक व्याकुल है।
मुक्तिबोध कहते हैं- “मानो पुरूरवा और उर्वशी के रति- कक्ष भोंपू लगे हों जो शहर और बाजार में रति- कक्ष के आडंबरपूर्ण कामात्मक संलाप का प्रसारण – विस्तारण कर रहे हों”।
मुक्तिबोध लिखते हैं, उर्वशी में कोई रोमैंटिक उन्मेष, श्रृंगार की ताजगी तथा स्फूर्ति नहीं है। इसके विपरीत उसमें बासी फूलों का सड़ापन है।
(पुरूरव: ! पुनरस्तं परेहि,
दुरापना वात इवाहमस्मि)
ऋग्वेद – हे पुरूरवा! तुम अपने घर को लौट जाओ मैं वायु के सामान दुष्प्राप्य हूँ।
काम और आध्यात्म का द्वंद है। कामाध्यात्म उर्वशी काव्य को कहा गया है। उर्वशी विवाद से ग्रसित काव्य है। श्री भगवतशरण उपाध्य ने इस विवाद की शुरूआत की थी। धर्मवीर भारती और रघुवीर सहाय ने भी इस काव्य को विवाद में शामिल रखा है। उर्वशी में काम ज्यादा था, अध्यात्म पुरूरवा में ज्यादा था। इस काव्य में कामभावना का उन्मुक्त रूप से चित्रण किया गया।
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