Net JRF Hindi : हिन्दी कविता यूनिट 5 | रामचन्द्र शुक्ल द्वारा संपादित सूरदास भ्रमरगीतसार
सूरदास भ्रमरगीतसार
भ्रमरगीतसार का संपादन रामचन्द्र शुक्ल ने किया है। सूरदास जी का जन्म 1478 ईसवी में हुआ था। जन्म स्थान रूनकता या सीही है, इन दोनों स्थानों को लेकर विवाद है। रूनकता रामचन्द्र शुक्ल, हजारी प्रसाद दिवेदी और श्यामसुंदर दास ने माना है। सीही जन्म स्थान नगेन्द्र और गणपति ने माना है।
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विशेषता
1- सूर की भक्ति सख्य भाव (वात्सल्य भाव) की भक्ति है।
2- सूर गीतकाव्य के लिए प्रसिद्ध हैं। गीत काव्य के लिए गेयता, कोमलकांत पदावली, सरल पद विन्यास, मधुर भाव व्यंजना अनिवार्य है।
3- गीत काव्य हमेशा मुक्तक शैली में लिखा जाता हैं।
4- शुक्ल कहते हैं – “सूर के भ्रमर गीत में जितनी सहृदयता एवं भावुकता है, उतनी ही चतुरता एवं वाग्विद्गधता भी है”….
सूरसागर में भ्रमरगीत प्राप्त होता है, सुरदास ने 3 भ्रमरगीत योजना किया है। हिंदी में भ्रमरगीत परम्परा सुरदास से शुरू होती।
भ्रमरगीत (भ्रमर अर्थात भौंरा)
भ्रमरगीत परम्परा अब उस काव्य के लिए रूढ़ हो गया है, जिसमें उद्भव-गोपी संवाद होता है। भ्रमरगीत का तात्पर्य उस उपालम्भ काव्य से हैं, जिसमें नायक की निष्ठुरता एवं लम्पटता के साथ-साथ नायिका की मूक व्यथा, विरह वेदना का मार्मिक चित्रण करते हुए नायक के प्रति नायिका के उपालम्भों (व्यंग्य) का चित्रण किया जाता है।
उपालम्भ – अपने प्रेमी या प्रिय के व्यवहार, कार्य आदि से दुखी होकर उससे या उसके किसी संबंधित से अपने दुख को कहने की क्रिया को उपालम्भ कहते हैं। जो भ्रमरगीत में मैजद है।
विप्रलम्भ – यदि नायक-नायिका में वियोगदशा में प्रेम हो तो, वहाँ विप्रलम्भ श्रृंगार होता है। ‘नागमती वियोग’ विप्रलम्भ का ही वर्णन में है।
सूरसागर के दशम स्कंध में भ्रमरगीत सम्बन्धी पद मिलते हैं।
अन्य भ्रमरगीत कवि – नन्ददास का भँवरगीत सबसे उच्च कोटि (सबसे ज्यादा दार्शनिक पद) का माना गया है।
हिन्दी में भ्रमरगीत की परंपरा सूरदास से मानी जाती है। शुक्ल कहते हैं – “श्रृंगार रस का ऐसा सुंदर उपालम्भ काव्य दूसरा नहीं है”।
विशेषता-
1 भ्रमर गीत में निर्गुण ब्रहम का खंडन किया है, तथा सगुण की स्थापना।
2 गोपियाँ के कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम को दिखाया गया है।
3 ज्ञान के स्थान पर प्रेम को सर्वोपरि कहा गया।
4 गोपियों द्वारा व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है।
5 इसमें ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का प्रयोग हुआ है।
6 प्रेमलक्षणा (माधुर्य भाव की भक्ति मीरा की भक्ति ऐसी ही है) भक्ति को अपनाया गया है और मर्यादा की अवहेलना के रूप में चित्रित किया गया है। माधुर्य भाव मे ईश्वर को पति या प्रेमी के रूप में माना जाता है, जैसा की मीरा की भक्ति में देखने को मिलता है।
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